Author : Oommen C. Kurian

Published on Oct 20, 2020 Updated 0 Hours ago

दिल्ली के अनुभव ने हमें सिखाया है, जहां पहले पीक पीरियड की तुलना में दूसरे पीक पीरियड का जोख़िम स्पष्ट रूप से मौजूद है, जहां सीरो सर्वे में बड़ी संख्या में लोगों में सीरो की मौजूदगी पाई गई है, वहां मौतों को तुलनात्मक रूप से कम रखना अभी भी मुमकिन है.

वैश्विक महामारी COVID19 का 'पिचवर्क' भारत में सिर्फ एक पीक-पीरियड में ही ख़त्म हो जाएगा?

कोविड-19 ट्रैकर्स को देखें तो पिछले कुछ दिनों में भारत (ग्राफ़ 1) में प्रतिदिन दर्ज किए जा रहे मामलों की संख्या में गिरावट दर्शाता है, ऐसे में कई लोग सोच सकते हैं कि क्या वायरस भारत में पीक (चरम स्थिति) को पार कर चुका है. महाराष्ट्र में नए मामलों में नाटकीय रूप से तेज गिरावट दर्ज की गई जहां संख्या 11 सितंबर को 24,886 के उच्च स्तर से 21 सितंबर 15,738 पर आ गई. इसके साथ ही दूसरे ज़्यादा मामलों वाले राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में भी प्रतिदिन नए मामले आना घटे हैं. यहां यह साफ़ करना ज़रूरी है कि नए मामलों में जो गिरावट देखी जा रही है, उसके कई कारणों में से एक कुछ हद तक टेस्टिंग का कम होना भी है.

कम टेस्टिंग,  कम मामले?

हालांकि, भारत ने 21 अगस्त तक प्रतिदिन दस लाख टेस्टिंग का महत्वपूर्ण मील का पत्थर पार कर लिया था, लेकिन आगे तेज़ी नहीं देखी गई. असल में, पिछले महीने में 13 दिन ऐसे थे जब प्रतिदिन टेस्टिंग संख्या दस लाख से नीचे रही थी. 22 सितंबर को संकलित इन आंकड़ों में पिछले चार दिनों  में से तीन में दस लाख से कम टेस्टिंग हुई, जो 20 सितंबर को 7.31 लाख से भी कम थी. इसके साथ ही, राज्य स्तर की टेस्टिंग संख्या गोवा और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में काफ़ी अलग दिखती है, जो पहले से ही अपनी आबादी का प्रति दस लाख पर लगभग 1.5 लाख टेस्टिंग कर रहे हैं, जबकि मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल प्रति लाख जनसंख्या (ग्राफ़ 2) पर केवल 30,000 टेस्टिंग कर रहे हैं.

ICMR के सूत्र बताते हैं कि 21 सितंबर को किए गए 9.3 लाख टेस्ट में से 2.59 लाख रैपिड एंटीजन टेस्ट (आरएटी) थे. दुर्भाग्य से, किए गए टेस्टिंग की किस्म वाले डेटा को भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं कराया गया है. अपेक्षाकृत कम-सटीक आरएटी से की गई टेस्टिंग में बड़ी संख्या ऐसे मामलों की हो सकती है, जिनका पता ही नहीं लगाया जा रहा है.

ICMR के सूत्र बताते हैं कि 21 सितंबर को किए गए 9.3 लाख टेस्ट में से 2.59 लाख रैपिड एंटीजन टेस्ट (आरएटी) थे. दुर्भाग्य से, किए गए टेस्टिंग की किस्म वाले डेटा को भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं कराया गया है. 

फिर भी, फिलहाल यह साफ़ हो गया है कि भारत के अधिकांश हिस्से में कम्युनिटी स्प्रेड (सामुदायिक प्रसार) नहीं हुआ है, और आने वाले हफ्तों व महीनों में वायरस को नियंत्रित करने के एक उपकरण के रूप में टेस्टिंग की केवल सीमित भूमिका होगी. अधिकांश भारतीय राज्यों में कुल  टेस्टिंग में पॉज़िटिव का अनुपात 5% से अधिक है, जो दिखाता है कि वायरस ने कम्युनिटी में जड़ें जमा ली हैं. इसके अलावा उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में ग़लत हरकतों की सूचना मिली है, जहां एक डॉक्टर ने अपने ख़ुद का 15 से अधिक सैंपल कोविड-19 टेस्टिंग टार्गेट पूरा करने के लिए दे दिए. यह दिखाता है कि कुछ राज्यों में कम पॉज़िटिव मामले मिलना भी स्वास्थ्य प्रणाली के भीतर लोकप्रिय टार्गेट-आधारित नज़रिये का एक अप्रत्याशित परिणाम हो सकता है.

कम मृत्यु दर एक दोधारी तलवार

यह भी साफ़ तौर से सामने आ रहा है कि आकलन से कम मृत्यु दर, जो कि पिछले छह महीनों में भारत में रही है, एक दोधारी तलवार साबित हो रही है. देश के कई हिस्सों में, समग्र कम मृत्यु दर और लॉकडाउन की थकान का नतीजा लोगों में दिख रहा है, जिनमें ज़्यादा जोखिम वर्ग वाले शामिल हैं, जो महीनों वायरस से खुद को बचाने के बाद अपने सुरक्षा उपायों को घटा देते हैं. आमतौर सरकार के पॉज़िटिव होने के जोखिम वाले मैसेज, जो इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि बाकी दुनिया के मुकाबले भारत कितना अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, और “रिकवरी दर”  जैसे सावधानी से चुने गए संकेतक भी इत्मीनान का एहसास दिलाते हैं. शायद देखने के लिए संकेतक के रूप में मरीजों की संख्या के बजाय मौतें दिखाने की ज़रूरत है. ओडिशा, असम और केरल जैसे राज्यों ने दिखाया है कि बहुत ज़्यादा मामलों के बावजूद मौतों को बहुत कम स्तर पर रखा जा सकता है.

अगर हम राष्ट्रीय स्तर की मौजूदा प्रतिदिन संख्य़ा में सात बहुत ज्यादा मरीज़ों वाले राज्यों की संख्या को देखकर राहत महसूस कर रहे हैं और उम्मीद बांधने लगे हैं तो याद रखें कि केरल, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़ पश्चिम बंगाल तथा कई अन्य राज्यों में केस संख्या में चिंताजनक बढ़ोत्तरी हुई है. 

छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण इलाक़ों में नए हॉटस्पॉट उभरने के साथ भारत इस समय इंसानों पर मार के मामले में वैश्विक महामारी के सबसे खतरनाक चरण में है. यह आने वाले हफ्तों में और भी ख़राब हो सकता है— अगर हम मौतों को रोकने में कामयाब नहीं हुए— चाहे मामलों का पता लगाएं या नहीं. कोविड पर प्रतिक्रिया और प्रबंधन की स्थिति और तैयारियों की समीक्षा के लिए 23 सितंबर 2020 को प्रधानमंत्री ने कोविड ​​-19 के ज़्यादा मामलों वाले सात राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ एक उच्च स्तरीय वर्चुअल बैठक की— ये हैं महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, दिल्ली और पंजाब.

कई आयाम हैं, और कई शिखर बिंदु

देश के 63% से अधिक एक्टिव केस इन सात हॉटस्पॉट में पाए गए हैं. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार,  कुल कन्फ़र्म मामलों का 65.5%  और कुल मौतों का 77% भी इन्हीं में हुआ है. इनमें से, महाराष्ट्र, पंजाब और दिल्ली में सबसे ज़्यादा मृत्यु दर रही है. इनमें से अधिकांश राज्यों में राष्ट्रीय औसत 8.52% से ज़्यादा पॉज़िटिव दर है. लेकिन अगर इस महामारी ने हमें कुछ सिखाया है, तो यह कि ज़रूरी नहीं कि अगले महीने के हॉटस्पॉट्स पिछले महीने वाले होंगे. दूसरे शब्दों में, भारत जैसे विविधता वाले देश में राष्ट्रीय औसत और रुझान, दिखाएगा कम और छिपाएगा ज्यादा.

अगर हम राष्ट्रीय स्तर की मौजूदा प्रतिदिन संख्य़ा में सात बहुत ज्यादा मरीज़ों वाले राज्यों की संख्या को देखकर राहत महसूस कर रहे हैं और उम्मीद बांधने लगे हैं तो याद रखें कि केरल, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़ पश्चिम बंगाल तथा कई अन्य राज्यों में केस संख्या में चिंताजनक बढ़ोत्तरी हुई है. हालांकि, कोविड-19 से प्रतिदिन की मौतें पिछले महीने की तुलना में बहुत ज़्यादा नहीं बढ़ी हैं, फिर भी किसी तरह की कमी (ग्राफ़ 3) के संकेत नहीं दिखते हैं. जबकि वैश्विक महामारी ज़्यादा ग्रामीण इलाकों में फैल गई है, यह प्लैटू (समतल स्थिति) एक हद तक बजाय इसके कि प्रतिदिन मौतों की संख्या कम रही, दर्ज नहीं की गई मौतों से भी समझाया जा सकता है.

इस स्थिति को देखते हुए, देश को चौकन्ना और ख़बरदार रहना ज़रूरी है क्योंकि एक के बाद हर अनलॉक में नई रियायतें दी जा रही हैं. प्रतिदिन मामलों की संख्या में दिख रही गिरावट— अगर अगले हफ़्तों में यह मौतों की संख्या में गिरावट में परिलक्षित नहीं होती है— संदिग्ध साबित होगी. जबकि हम अर्थव्यवस्था को फिर से खोल रहे हैं, सरकारी बयान को इस ख़तरनाक वायरस के जोखिम को कम दिखाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए, ख़ासकर बुजुर्गों और कमज़ोर इम्यूनिटी वालों के लिए. जबकि भारत एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन का इंतजार कर रहा है मास्क लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग और हाथ की स्वच्छता लोगों के लिए सबसे अच्छा हथियार है.

लोगों को यह याद दिलाना ज़रूरी है कि सिर्फ़ आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 से रोज़ाना हज़ार से ज़्यादा लोग मारे जा रहे हैं. आने वाले महीनों में जहां तक मुमकिन हो, इस गिनती को शून्य के करीब लाना सरकार और नागरिकों के लिए बुनियादी मक़सद है. 

लोगों को यह याद दिलाना ज़रूरी है कि सिर्फ़ आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 से रोज़ाना हज़ार से ज़्यादा लोग मारे जा रहे हैं. आने वाले महीनों में जहां तक मुमकिन हो, इस गिनती को शून्य के करीब लाना सरकार और नागरिकों के लिए बुनियादी मक़सद है. कोविड-19 मामलों पर नज़र रखने के बजाय, हमें कोविड-19 से मौतों पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है. दिल्ली के अनुभव ने हमें सिखाया है, जहां पहले पीक की तुलना में दूसरे पीक का जोखिम स्पष्ट रूप से मौजूद है, जहां सीरो सर्वे में बड़ी संख्या में लोगों में सीरो की मौजूदगी पाई गई है, वहां मौतों को तुलनात्मक रूप से कम रखना अभी भी मुमकिन है.

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