भारत सरकार ने 31 मई को दूसरी ‘आयात निगेटिव लिस्ट’ की अधिसूचना जारी की. हालांकि इस बार इसको अच्छा महसूस कराने वाला ‘स्वदेशीकरण पॉज़िटिव लिस्ट’ नाम दिया गया. वैसे गुलाब का नाम कुछ भी हो, उसकी ख़ुशबू वैसी ही होगी. निगेटिव लिस्ट, बड़ी योजनाओं और पुरानी बोतल में नई शराब जैसे ‘आत्मनिर्भरता’ के नारे के बावजूद वास्तव में सरकार ने नीरस ट्वीट और प्रेस विज्ञप्तियों के अलावा कुछ विस्तृत योजना अभी तक नहीं बनाई है. सरकार ने ये नहीं बताया है कि रक्षा आधुनिकीकरण के लिए असल में उसकी योजना क्या है.
अगर आपके पास तथ्य नहीं हों तो…
ये लिस्ट अपने आप में मदद करने वाली नहीं है, कम-से-कम कुछ हिस्से तो बिल्कुल नहीं क्योंकि इसमें चालाकी की गई है. उदाहरण के लिए, दूसरी लिस्ट की शुरुआत “हेलीकॉप्टर विद ऑल अप वेट (एयूडब्ल्यू)” के लिए दरवाज़ा बंद करने से होती है जिस पर 2003 से विचार किया जा रहा था. इस लिस्ट में नौसेना हेलीकॉप्टर को लेकर भी स्पष्टता नहीं है जबकि भारतीय नौसेना और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच इस बात का झगड़ा है कि नौसेना के हेलीकॉप्टर को आयात किया जाए या मौजूदा एचएएल के उत्पाद को नौसेना की ज़रूरत के अनुकूल बनाया जाए.
वास्तव में इस्तेमाल होने वाले सामानों और अतिरिक्त पुर्जों को विदेशी वास्तविक उत्पादक (ओईएम) या तीसरे पक्ष से ख़रीदना अक्सर आसान और सस्ता साबित हुआ है. ऐसा नहीं करने पर कथित घरेलू फ़ायदे के नाम पर सैन्य तैयारी की बलि चढ़ाई जाएगी.
निगेटिव लिस्ट की कुछ और बड़ी खामियां, कम-से-कम अभी तक, रही हैं घरेलू ख़रीद के मामले में वास्तविक अमल पर उनकी नाकामी. लिस्ट में शामिल कुछ चीज़ें, जैसे अगली पीढ़ी के लड़ाकू जलपोत और बख़्तरबंद गाड़ियां, निश्चित रूप से बताती हैं कि उनको हासिल करने की दिशा योजना बनाने वालों के दिमाग़ में तो है लेकिन इस मामले में वास्तविक तौर पर आगे बढ़ने में कामयाबी नहीं मिली है. दूसरे उदाहरण देखें तो ये साफ़ है कि लिस्ट में आयात के ज़रिए सप्लाई के समानांतर स्रोतों को ख़त्म करने की बात तो की गई है लेकिन इससे घरेलू रक्षा उद्योग पर बेहद कम असर पड़ता है. इसकी वजह या तो कम क़ीमत है या उत्पादन की कम मात्रा. वास्तव में इस्तेमाल होने वाले सामानों और अतिरिक्त पुर्जों को विदेशी वास्तविक उत्पादक (ओईएम) या तीसरे पक्ष से ख़रीदना अक्सर आसान और सस्ता साबित हुआ है. ऐसा नहीं करने पर कथित घरेलू फ़ायदे के नाम पर सैन्य तैयारी की बलि चढ़ाई जाएगी.
अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के विनाशकारी असर को देखते हुए सभी सरकारी खर्च, जिनमें रक्षा भी शामिल है, में कटौती की जाएगी. लेकिन भारत में पूंजी की कमी और हताश करने वाली ज़्यादा लागत को देखते हुए घरेलू रक्षा उद्योग को इस वक़्त सबसे ज़्यादा अपनी मौजूदगी दिखाने की ज़रूरत है. ये ऐसी चीज़ है जिसको मुहैया कराने में सरकार को कोई खर्च नहीं होगा, यहां तक कि खर्च करने की मजबूरी के भीतर भी. लेकिन इसके बावजूद ऐसी विचित्र स्थिति है जहां रक्षा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने और देसी उद्योग का समर्थन करने के दावे के बावजूद सेना और घरेलू उद्योग- दोनों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
सैन्य आधुनिकीकरण आख़िरी सांसें गिन रहा है
कुछ दिन पहले मिग-21 बाइसन के जानलेवा हादसे ने भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों के बेड़े की ख़तरनाक स्थिति को एक बार फिर साफ़ कर दिया है. लेकिन ये नई चीज़ नहीं है. क़रीब 15 साल पहले लड़ाकू विमानों को लेकर मंडराते संकट की चर्चा भविष्य के संदर्भ में होती थी. ये वो वक़्त था जब मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) का मुक़ाबला तेज़ हो रहा था. लेकिन उस संकट की चर्चा बंद नहीं हुई बल्कि हालात उस वक़्त और चिंताजनक हो गए जब 2010 के क़रीब ख़रीद का कार्यक्रम पटरी से उतर गया. यहां तक कि जब मोदी सरकार ने 2015 में 36 दसॉ रफाल लड़ाकू विमान ख़रीदने का ऐलान (और बाद में जिसका समझौता किया गया) किया तो भी इसे कामचलाऊ क़दम ही माना गया, इसकी तुलना खुले हुए घाव पर बैंड-ऐड लगाने से की गई. सिर्फ़ एक चीज़ में बदलाव आया. भारतीय वायुसेना की तैयारी की चर्चा अब वर्तमान के संदर्भ में की जाती है, लड़ाकू विमानों का बेड़ा 1971 के युद्ध के समय से सबसे छोटा है. हालांकि ऐसी बात नहीं है कि कोई विकल्प नहीं है. इसका तुरंत समाधान भी किया जा सकता है लेकिन इस पर भी कोई अमल नहीं किया गया है.
थलसेना, जो फिलहाल दो पहाड़ी मोर्चों पर प्रतिबद्ध है, नये तोप को शामिल करने में आगे नहीं बढ़ पाई है. ऐसी हालत ये मानने के बावजूद है कि जब आख़िरी बार हिमालय में एक वास्तविक निशाना साधने का युद्ध हुआ था तो जंग के मैदान में तोपखाना सबसे क़ीमती हथियार पाया गया. इस बीच, दिसंबर 2020 में 155 मिलीमीटर/एल52 गन को निगेटिव लिस्ट में डालने के एक साल से कम समय के भीतर, रक्षा मंत्रालय ने फ़ैसला पलटते हुए समय सीमा बढ़ाकर दिसंबर 2021 कर दी. नौकरशाही की इस चालाकी, जिसका मक़सद इज़रायल की एक बोली और घरेलू विकल्प के बीच फ़ैसला करने के लिए समय मांगना था, के बीच ये थलसेना और सीमा पर तैनात सैनिक हैं जो महत्वपूर्ण सहारे के बिना डटे हुए हैं.
समंदर में भी हालात कोई बहुत बेहतर नहीं हैं. नौसेना की महत्वाकांक्षी पनडुब्बी परियोजना 2010 से अटकी हुई है. रिक्वेस्ट फॉर इन्फॉर्मेशन (आरएफआई) और रिक्वेस्ट फॉर प्रपोज़ल (आरएफपी) बिना किसी फैसले के नौसेना, रक्षा मंत्रालय और सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी के बीच धूल फांक रही है.
समंदर में भी हालात कोई बहुत बेहतर नहीं हैं. नौसेना की महत्वाकांक्षी पनडुब्बी परियोजना 2010 से अटकी हुई है. रिक्वेस्ट फॉर इन्फॉर्मेशन (आरएफआई) और रिक्वेस्ट फॉर प्रपोज़ल (आरएफपी) बिना किसी फैसले के नौसेना, रक्षा मंत्रालय और सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी के बीच धूल फांक रही है. भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों की तरह नौसेना की हेलीकॉप्टर से जुड़ी परेशानी का भी बैंड-ऐड से इलाज किया जा रहा है. 2020 में अमेरिका में बने 24 एमएच-60आर मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर के ऑर्डर के ज़रिए हेलीकॉप्टर से जुड़ी परेशानी का समाधान किया जा रहा है. इस मामले में भी उस ख़तरनाक वास्तविकता को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है कि नौसेना अभी भी 1960 में डिज़ाइन किए गए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कर रही है और नौसेना की ज़रूरत कुछ दर्जन नहीं बल्कि सैकड़ों भारी-भरकम हेलीकॉप्टर की है. न तो सेना प्रमुख, न ही रक्षा मंत्रालय में बैठे बड़े अधिकारियों ने इन मुद्दों का हल तलाशने में लचीलापन या फुर्ती दिखाई है.
सब कुछ अच्छा हो जाएगा के दिखावे और ये सोचने कि कुछ आयात निगेटिव लिस्ट बनाने से सैन्य आत्मनिर्भरता से जुड़ी सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा, के बदले शायद ये सही वक़्त है कि इस पर कुछ गंभीरता से सोचा जाए और इस समस्या के समाधान के लिए काम किया जाए.
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