अमेरिकी कांग्रेस की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की यात्रा के बाद चीन और ताइवान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है. ताइवान को लेकर अधिकतर देश दो भागों में बंट गए हैं. इस क्रम में अमेरिका के मित्र राष्ट्रों के साथ पश्चिमी देश ताइवान के साथ खड़े हैं. भारत ने पहली बार ताइवान का जिक्र करके चीन के दुखती रग पर जोरदार पलटवार किया है. भारत ने ताइवान जलडमरूमध्य में चीन की ओर से किए जा रहे विनाशकारी हथियारों के जमावड़े का उल्लेख किया है. हालांकि, ताइवान के मामले में भारत ने अपने पत्ते कई दिनों तक खोले नहीं थे. यह भारतीय कूटनीति का हिस्सा था. भारत-चीन सीमा विवाद के पूर्व भारत वन चाइना पालिसी पर आस्था व्यक्त करता रहा है, लेकिन चीन के साथ सीमा विवाद गहराने पर भारत ने अपनी नीति में बदलाव के संकेत दिए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि भारत ने ताइवान पर क्या प्रतिक्रिया दी है. इस प्रतिक्रिया के क्या मायने हैं. इस पर विशेषज्ञ की क्या राय है.
भारत-चीन सीमा विवाद के पूर्व भारत वन चाइना पालिसी पर आस्था व्यक्त करता रहा है, लेकिन चीन के साथ सीमा विवाद गहराने पर भारत ने अपनी नीति में बदलाव के संकेत दिए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि भारत ने ताइवान पर क्या प्रतिक्रिया दी है. इस प्रतिक्रिया के क्या मायने हैं.
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि चीन ताइवान विवाद पर भारत ने अपने स्टैंड को साफ किया है. भारत ने चीन का नाम लिए बगैर कहा है कि पूर्वी एशिया में तनाव कम किए जाने के लिए सार्थक प्रयास किया जाना चाहिए. बता दें कि पूर्वी एशिया में ताइवान आता है और भारत का यह बयान ऐसे समय आया है, जब चीन के साथ सीमा विवाद का कोई कूटनीतिक समाधान नहीं निकल पाया है. इतना ही नहीं, चीन लगातार भारत विरोधी नीति अपना रहा है. चीन, श्रीलंका और नेपाल में भारत विरोधी नीतिओं को हवा दे रहा है. इससे भारत की रणनीतिक चुनौती बढ़ी है. उन्होने कहा कि इसे ‘वन चाइना पालिसी’ के खिलाफ उठाया गया एक बड़ा कदम कहा जा सकता है. इस बयान ने यह साबित कर दिया कि भारत अपनी तरह से ताइवान या फिर वन चाइना पालिसी के साथ कैसे डील करेगा.
2- प्रो पंत का कहना है कि पूर्वी लद्दाख पर सीमा विवाद से पूर्व अरुणाचल प्रदेश जाने वाले पर्यटकों को चीन द्वारा स्टेप्लड वीजा देने के बाद भारत ने वन चाइना पालिसी की नीति में बदलाव किया है. हालांकि, भारत ने सार्वजनिक तौर पर कभी वन चाइना पालिसी के पक्ष या विरोध में कोई बयान नहीं दिया है. भारत ने अपने पत्ते कभी नहीं खोले. पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल के मामले के पूर्व वह चीन के वन चाइना पालिसी का समर्थन करता आया है. अब भारत ने भी इस नीति से सार्वजनिक तौर पर किनारा करना शुरू कर दिया. अरुणाचल, चीन की सीमा पर स्थित वह राज्य है जिस पर पड़ोसी दक्षिणी तिब्बत के तौर पर दावा जताता है.
3- प्रो पंत ने जोर देकर कहना है कि ताइवान के मामले में भारतीय नीति ज्यादातर तटस्थता की रही है. यही कारण है कि चीन और ताइवान विवाद पर भारत मौन ही रहता है. इधर, भारत-चीन सीमा विवाद के बाद नई दिल्ली के रुख में बदलाव आया है. उन्होंने कहा कि ताइवान को लेकर शायद भारत पहली बार खुलकर बोला है. भारत ने यह जता दिया है कि ड्रैगन इसे भारत की कमजोरी नहीं समझे, बल्कि पड़ोसियों के साथ बेहतर संबंध बनाने की उसकी इच्छा है. हाल में चीन ने श्रीलंका सरकार पर हंबनटोटा बंदरगाह पर जिस तरह से दबाव बनाने की रणनीति चली उससे भारत निश्चित रूप से आहत हुआ है.
पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल के मामले के पूर्व वह चीन के वन चाइना पालिसी का समर्थन करता आया है. अब भारत ने भी इस नीति से सार्वजनिक तौर पर किनारा करना शुरू कर दिया. अरुणाचल, चीन की सीमा पर स्थित वह राज्य है जिस पर पड़ोसी दक्षिणी तिब्बत के तौर पर दावा जताता है.
4- प्रो पंत ने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत को चीन को उसकी ही भाषा में समझाना होगा. चीन के प्रति उसकी उदार दृष्टिकोण को वह भारत की कमजोरी समझ रहा है. उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि चीन के प्रति भारत की रणनीति में बदलाव किया जाए. उन्होंने भारत के इस कदम की सराहना करते हुए कहा कि चीन को सही समय पर करारा जवाब दिया गया है.
भारत और ताइवान के रिश्ते
हालांकि, भारत और ताइवान के बीच द्विपक्षीय रिश्तों के मजबूत होने के बाद भी कुछ खास नहीं हो सका है. वर्ष 2000 में जहां दोनों देशों के बीच एक अरब डालर का व्यापार हुआ तो 2019 में यह सात अरब डालर से कुछ ज्यादा ही पहुंच पाया. यह आंकड़ा ताइवान के कुल व्यापार का बस एक फीसद ही है. वर्ष 2016 में सिर्फ 33,500 ताइवानी पयर्टक ही भारत आए थे. इतने ही पर्यटक उस साल ताइवान गए थे.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.