ईरान का ब्रिक्स के लिए आवेदन के साथ यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस बदलाव से भारत के समक्ष नई चुनौती खड़ी होगी. आखिर ब्रिक्स में ईरान के शामिल होने से कोई बदलाव आएगा. इसके पीछे क्या तर्क है. चीन और रूस के सदस्य देश वाले ब्रिक्स में अगर ईरान शामिल होता है तो भारत और अमेरिका के संबंधों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा. आइए जानते हैं कि ब्रिक्स के इस बदलाव को लेकर विशेषज्ञों की क्या राय है. इसे क्वॉड के साथ क्यों जोड़कर देखा जा रहा है.
ईरान ने ब्रिक्स का हिस्सा बनने के लिए आवेदन किया है. ईरान के विदेश मंत्री के इस ऐलान के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या ईरान में प्रवेश से भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी को ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए बुलाया था. चीन के इस कदम से भारत की चिंता लाजमी है. प्रो पंत इसे चीन और अमेरिका के आपसी टकराव व मतभेद के बीच भारत के संतुलन और अपना महत्व बनाए रखने की कोशिशों के नजरिए से देखते हैं.
ब्रिक्स में और देशों के शामिल होने की चर्चा पहले भी होती रही है, लेकिन चीन और रूस की पश्चिम विरोधी नीति और भारत के क्वॉड जैसे पश्चिमी समर्थित समूह में शामिल होना ईरान की सदस्यता को अहम बना देता है. इसका असर ना सिर्फ ब्रिक्स पर पड़ेगा, बल्कि ये अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाकर चल रहे भारत की विदेश नीति को भी प्रभावित करेगा.
उन्होंने कहा कि ब्रिक्स में और देशों के शामिल होने की चर्चा पहले भी होती रही है, लेकिन चीन और रूस की पश्चिम विरोधी नीति और भारत के क्वॉड जैसे पश्चिमी समर्थित समूह में शामिल होना ईरान की सदस्यता को अहम बना देता है. इसका असर ना सिर्फ ब्रिक्स पर पड़ेगा, बल्कि ये अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाकर चल रहे भारत की विदेश नीति को भी प्रभावित करेगा. प्रो पंत ने कहा कि इससे भारत के लिए स्वतंत्र विदेश नीति का रास्ता और कठिन हो सकता है. साथ ही ब्रिक्स का महत्व भी कम हो सकता है. अनुमान ये भी है कि इससे भारत की अमेरिका के लिए अहमियत भी बढ़ सकती है.
पश्चिम के विकल्प के तौर पर ब्रिक्स
ब्रिक्स को आर्थिक तौर पर पश्चिम के विकल्प के तौर पर गठित किया गया है ताकि पश्चिम के साथ मोलभाव की ताकत बढ़ सके. इसके साथ उस पर निर्भरता भी कम हो सके. अब चीन इस गुट को अमेरिका विरोध में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है. 14वें सम्मेलन में भी चीन ने अमेरिका पर निशाना साधते हुए गुटबाजी में शामिल नहीं होने और शीत युद्ध की मानसिकता को बढ़ावा ना देने की बात कही थी. उधर, इस बार रूस भी खुलकर चीन के साथ दिख रहा है. लेकिन, जब चीन उभरती हुई ताकत बना तो अमेरिका ने भारत के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार किया. चीन को भारत के ज़रिए एशिया में ही चुनौती दी गई. ये भारत के पक्ष में था क्योंकि उसका चीन के साथ सीमा विवाद चलता रहा है.
हालांकि, भारत एक स्वतंत्र विदेश नीति की वकालत करता रहा है. भारत कहता है कि वह किसी एक गुट का हिस्सा नहीं रहेगा और अपने हित के अनुसार समूहों से जुड़ेगा. अगर ईरान ब्रिक्स में शामिल होता है तो इस संगठन में अमेरिका विरोधी देशों की संख्या में इजाफा होगा. ईरान लंबे समय से अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, जिससे उसके आर्थिक हालात खराब हुए हैं. उसे भी नए बाजार चाहिए और ब्रिक्स उसके लिए एक बेहतरीन मौका हो सकता है. ऐसे में ईरान और भारत के संबंधों के बीच अमेरिका के साथ संतुलन बनाना भारत के लिए एक चुनौती बन सकता है.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस पर क्या प्रतिक्रियाएं रहती हैं. इसमें भारत और ब्राजील असहज हो सकते हैं, क्योंकि ईरान और अमेरिका के संबंध अच्छे नहीं हैं और ईरान अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है. इससे भारत की चुनौतियां बढ़ जाएंगी.
यह अभी परीक्षण का विषय है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस पर क्या प्रतिक्रियाएं रहती हैं. इसमें भारत और ब्राजील असहज हो सकते हैं, क्योंकि ईरान और अमेरिका के संबंध अच्छे नहीं हैं और ईरान अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है. इससे भारत की चुनौतियां बढ़ जाएंगी. भारत हमेशा से संतुलन बनाने की विदेश नीति अपनाता रहा है. भारत एक साथ ब्रिक्स और क्वॉड दोनों का हिस्सा है. चीन क्वॉड को अपने लिए खतरा बताता आया है. हालांकि, पश्चिमी देशों ने इससे इनकार किया है. भारत अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भी रूस और ईरान से तेल खरीदता रहा है. प्रो पंत का कहना है कि ईरान भारत के लिए उतना ही अहम है जितना की अमेरिका. ये आर्थिक और रणनीतिक दोनों स्तर पर है. बढ़ती महंगाई के बीच भारत को सस्ते तेल की जरूरत है जो उसे ईरान और रूस से मिल सकता है. ईरान में चाबहार बंदरगाह का निर्माण भी इसी दिशा में किया जा रहा है.
आख़िर क्या है ब्रिक्स
ब्रिक्स दुनिया की पांच उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है. इसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के इस आर्थिक समूह से जुड़ने से पहले इसे ब्रिक ही कहा जाता था. ब्रिक देशों की पहली शिखर स्तर की आधिकारिक बैठक वर्ष 2009 को रूस के येकाटेरिंगबर्ग में हुई थी. इसके बाद वर्ष 2010 में ब्रिक का शिखर सम्मेलन ब्राजील की राजधानी ब्रासिलीया में हुई थी. ब्रिक्स देशों के सर्वोच्च नेताओं का सम्मेलन हर साल आयोजित किए जाते हैं. ब्रिक्स शिखर सम्मलेन की अध्यक्षता हर साल एक–एक कर ब्रिक्स के सदस्य देशों के सर्वोच्च नेता करते हैं. ब्रिक्स देशों की जनसंख्या दुनिया की आबादी का लगभग 40 फीसद है और इसका वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा लगभग 30 फीसद है. ब्रिक्स देश आर्थिक मुद्दों पर एक साथ काम करना चाहते हैं, लेकिन इनमें से कुछ के बीच राजनीतिक विषयों पर भारी विवाद हैं. इन विवादों में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद प्रमुख है. इसका सदस्य बनने के लिए कोई औपचारिक तरीका नहीं है. सदस्य देश आपसी सहमति से ये फैसला लेते हैं.
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