Author : Rakesh Sood

Published on Apr 15, 2019 Updated 0 Hours ago

आज के नाभिकीय निराशावाद के पीछे पश्चिम द्वारा नए नाभिकीय दौर को न समझ पाना है।

आखिर पश्चिमी देश क्यों नहीं समझ पा रहे नये परमाणु दौर को

पहला नाभिकीय बम बनाने वाले प्रोजेक्ट से जुड़े हुए वैज्ञानिकों के एक समूह ने शिकागो में 1947 में प्रलय के दिन की घड़ी लगाई थी। अब, प्रसिद्ध वैज्ञानिकों का एक अंतर्राष्ट्रीय समूह बेलगाम वैज्ञानिक और तकनीकी विकास से मानवता पर होने वाले खतरे का आकलन करके इसे हर साल सेट करता है। 1991 में जब शीत युद्ध खत्म हुआ तो यह अर्धरात्रि से 17 मिनट दूर हो हो गयी थी, यह प्रलय के दिन से अब तक की सबसे ज्यादा दूरी थी। उसके बाद से वह धीरे-धीरे पास आ रही है और इस समय अर्धरात्रि से सिर्फ दो मिनट दूर है, यह काफी भयभीत करने वाला है।

क्या नाभिकीय निराशावाद उचित है?

पहली नज़र में देखें तो जमीनी हकीकत से इस निराशावाद को कायम रखना मुश्किल लगता है। आख़िरकार, 1945 के बाद से नाभिकीय हथियारों का कोई इस्तेमाल नहीं किया गया है। हालांकि, कुछ बाल-बाल बचने के मामले हुए हैं; जानबूझ कर तनाव को बढ़ावा देने से होने वाले (जैसे 1962 में क्यूबाई मिसाइल का संकट) या गलत धारणाओं और गलत गणनाओं के कारण (जैसे 1983 में एबल आर्चर संकट) [1] होने वाले। फिर भी, 75 साल से करार कायम है। यह नाभिकीय निषेध को मजबूती देता है।

दुनिया भर में जमा नाभिकीय हथियारों का ढेर अब तक का सबसे कम है। दो नाभिकीय विश्व-शक्तियों ने मिल कर कुल 70,000 से ज्यादा नाभिकीय हथियार जमा कर लिए थे जो अब घट कर 4,000 रह गए हैं। लेकिन अब और कमी आने की संभावना नहीं है।

नाभिकीय अप्रसार संधि (न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफेरेशन ट्रीटी यानी एनपीटी) 1970 में अस्तित्व में आयी जिसमें 50 देश अनिश्चित काल के लिए बिना शर्त जुड़े और 190 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए। सिर्फ चार देश एनपीटी से बाहर हैं: भारत, पाकिस्तान और इजराइल जिन्होंने इस पर कभी हस्ताक्षर नहीं किए और नॉर्थ कोरिया जो 2003 में इससे बाहर आ गया।

अनेक पश्चिमी विद्वान जिन्होंने “दूसरा नाभिकीय दौर” शब्द बनाया उन्होंने खौफनाक भविष्यवाणियाँ भी की थी। पॉल ब्रैकेन के अनुसार, “1998 (जब भारत और पाकिस्तान ने परीक्षण किया था) निर्णायक बिंदु है।” उन्होंने बिलकुल सही कहा कि “यह दूसरा दौर है क्योंकि इसके पहले के नाभिकीय दौर, शीतयुद्ध, के केंद्रीय तथ्यों से इसका कुछ लेना-देना नहीं है। यह टिप्पणी सही थी, लेकिन उससे निकाला हुआ निष्कर्ष सही नहीं थाV ब्रैकेन ने “बम के ऊपर बड़ी ताकतों के एकाधिकार के बिखरने” की भविष्यवाणी की थी [2]। केनेथ वाल्ट्ज का विश्वास था कि नाभिकीय हथियार फैलेंगे [3] जबकि जॉन मार्शीमर ने अनुमान लगाया कि यूरोप में और फैलाव होगा [4]। उम्मीद यह थी कि आगे प्रसार होना ही है, तो पश्चिम को धीरे-धीरे इसे मैनेज करना चाहिए ताकि स्थिरता का स्तर बना रहे। जब 2003 में उत्तरी कोरिया औपचारिक रूप से एनपीटी से बाहर हो गया, तो ग्राहम एलीसन ने चेताया था कि “दक्षिण कोरिया और जापान दशक के अंत तक अपने हथियार बना लेंगे [5]।”

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। भारत और पाकिस्तान के नाभिकीय परीक्षण का कोई भी क्रमबद्ध प्रभाव नहीं हुआ। बेचैन करने वाली हकीकत यह है कि प्रसार पहले ही हो चुका है लेकिन पश्चिमी नाभिकीय नैरेटिव के लिए ज्यादा आसान यह है कि इसे नहीं माना जाना जाए और अपना ही कोई संस्करण पेश कर दिया जाए। इसी प्रकार, उत्तरी कोरिया के शासन ने पश्चिमी सैन्य हस्तक्षेप को देखा और एक दशक पहले एनपीटी से बाहर आने की लिए नोटिस दे दिया, और अंत में 2003 में जब राष्ट्रपति बुश ने इसे ‘बुराई की धुरी’ से जोड़ दिया तो वह बाहर हो गया। साफ़ तौर पर, पश्चिमी विश्लेषकों ने गैर-पश्चिमी राजनैतिक व्यवहार के प्रेरकों (ड्राइवर) को गलत ढंग से पढ़ा।

एक और पश्चिमी धारणा यह थी कि नाभिकीय हथियारों से परहेज का पुराना नियम नए नाभिकीय देशों पर लागू नहीं होगा क्योंकि वे “पागलपन से भरे राष्ट्रवाद” से चलते थे और उनकी प्रेरणा कम पारदर्शी और तार्किक होगी [6]। यूएस के हथियार आत्मरक्षा के लिए थे लेकिन नए नाभिकीय देशों द्वारा अपने नाभिकीय हथियारों का उपयोग हमले के लिए भी हो सकता है। इस दलील को प्रसार को रोकने के लिए किए जा रहे युद्धों के उद्देश्य का समर्थन करने के लिए कारण के रूप में दर्शाया जाता है जैसा इराक के मामले में हुआ [7] या उस संबंध में भी होता है जब किसी भी देश से संबंध न रखने वाले भारी तबाही के हथियार पाना चाहते हैं। यह “सोच-समझकर बनाए हुए परहेज” [8] के लिए मिसाइल सुरक्षा में भारी निवेश को सही ठहराता है। पॉल ब्रैकेन गंभीरता से सवाल करते हैं कि क्या “देशों का दूसरे नाभिकीय दौर से बच कर निकल पाना संभव होगा।” [9]

एक बार फिर, हकीकत कुछ ही निकल कर आ रही है।

यह सच है कि भारत पाकिस्तान के बीच 1998 के बाद से संकट रहा है लेकिन दोनों ने शायद ही कभी बिना विचारे या दो नाभिकीय महाशक्तियों से ज्यादा गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार किया हो।

उत्तरी कोरिया ने नाभिकीय और मिसाइल विकास कार्यक्रम को किम जोंग-अन के नेतृत्व में और बढ़ावा दिया है लेकिन ये क्षमताएं से उसे इस इलाके में ज्यादा आक्रामक नहीं बनाते हैं। जेसीपीओए के खत्म होने से पहले, अनेक पश्चिमी विश्लेषक संदेह कर रहे थे कि ईरान कभी भी अपने कार्यक्रम पर कठोर प्रतिबंधों को स्वीकार करेगा और आज भी, ईरानी प्रतिबंध यूएस के जेसीपीओए से बाहर जाने के एकतरफा कदम से बिलकुल विपरीत हैं।

पश्चिमी विश्लेषण और दूसरे नाभिकीय दौर की हकीकत में कोई भी मेल न होने की क्या व्याख्या की जा सकती है? शीतयुद्ध की तुलना में आज नाभिकीय हथियारों के ढेर हो रहे, प्रसार के आपातकालीन द्वार नहीं खोले गए जाने और एनपीटी के प्रति लगभग सभी देश निष्ठा दिखा रहे हैं, यह सब देख कर बेचैनी का अहसास क्यों है? इस धारणा की व्याख्या कैसे की जा सकती है कि शीत युद्ध के दौरान परहेज ज्यादा स्थिर था? क्या यह एक तथ्य है कि शीत युद्ध पश्चिम के लिए जीत में खत्म हुए इस कारण से जब वह वापस मुड़ कर इसे देखता है तो पश्चिम की सोच इस बात से प्रभावित होती है? क्या पश्चिम को दुबारा शीत युद्ध में लौटने का मोह है या वास्तव में यह कुछ समय के लिए एकध्रुवीय हो जाने के लिए है, जिसके बाद यूएसएसआर का पतन हो गया था? एकध्रुवीयता का समय निकल चुका है, तो क्या हम दूसरे नाभिकीय दौर से नए नाभिकीय दौर में जा चुके हैं?

अतीत से बंधे हुए

इसे समझने के लिए, शीतयुद्ध और परहेज की कुछ अंतर्निहित मान्यताओं को दुबारा समझना होगा शायद पश्चिम का शीत युद्ध से मोह इसलिए है क्योंकि उसकी ऐतिहासक स्मृति ‘निश्चितता’ के रंग से रंगी है। लेकिन हकीकत यह है कि नाभिकीय हथियारों का बटन अक्सर कम सुरक्षित हाथों में रहा है। वाटरगेट जांच के दौरान राष्ट्रपति अक्सर ख़राब मूड से परेशान रहते और बड़ी मात्रा में शराब के दौर चलते जिस कारण से एनएसए हेनरी किसिंजर और रक्षा सचिव श्लेंजर ने रणनीतिक बलों को निर्देश दे रखा था कि वाइट हाउस से आने वाले किसी आदेश को क्रॉस चेक करें। सोवियत जनरल सेक्रेटरी लियोनिद ब्रेज्ह्नेव को भूलने के दौरे पड़ते थे, सभवतः डेमेंशिया (स्मृतिलोप), जबकि फ़्रांस के राष्ट्रपति जॉर्जेस पॉम्पिडो को सबसे छुपाए गए कैंसर के लिए सेडेटिव (प्रशांतक) इलाज चल रहा था। नाभिकीय युद्ध के लिए माओ की राय यह थी कि चीन की आबादी इतनी है वह कुछ करोड़ लोगों के जीवन की भरपाई कुछ सालों में कर सकती है लेकिन एक नाभिकीय युद्ध पूंजीवाद की मौत होगा।

पॉल ब्रैकेन ने सही परिभाषित किया कि शीत युद्ध पहले नाभिकीय दौर का सबसे महत्वपूर्ण कारक था। इसका तार्किक परिणाम यह था कि द्विध्रुवीयता ने पहले नाभिकीय दौर को नियंत्रित किया और रणनीतिक स्थिरता को नाभिकीय स्थिरता में बदल दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि हथियारों के नियंत्रण का एक खास मॉडल सामने आया- परहेज की स्थिरता एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने की क्षमता और एक-दूसरे के विनाश के आश्वासन, और हथियारों की दौड़ से आने वाली स्थिरता पर आधारित है। इसका कारण यह था कि दोनों नाभिकीय महाशक्तियों ने समानता और संतुलन का आनंद उठाया, क्राइसिस मैनेजमेंट (संकट प्रबंधन) किया जिसे समय-समय पर परखा गया और सौभाग्य से शीत युद्ध के दौर में सफलता से चल गया। हालांकि इसे उस समय स्थिरता के रूप में नहीं माना गया, लेकिन बाद में पश्चिम द्वारा देखे जाने पर इसे स्थिरता माना गया। अनेक पश्चिमी नाभिकीय विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि परेहज के कारण नाभिकीय शांति बनी रही। नकारात्मकता की अनुपस्थिति में उसकी हकीकत को साबित करना सदियों से एक दार्शनिक विरोधाभास रहा है।

हालांकि हथियारों के नियंत्रण का यह मॉडल अब नहीं चलेगा क्योंकि नाभिकीय बहुध्रुविता ठहर गयी है और इसकी खासियत समानता नहीं बल्कि असंतुलन है।

दूसरा नाभिकीय दौर एकध्रुवीयता और एकध्रुवीय से नए नाभिकीय दौर के बारे में था। यूएस ने न तो पारस्परिक अरक्षितता (शायद रूस के साथ छोड़कर) को माना न ही पारस्परिक विनाश आश्वासन को। समस्या यह है कि द्विध्रुवीय मॉडल हथियारों के नियंत्रण का एकमात्र मॉडल है जिसे पश्चिमी विश्लेषक जानते हैं और चूंकि यह पश्चिम के लिए स्थिरिता देने और विजय सुनिश्चित करने में उपयुक्त रहा है, इसलिए अक्सर इसे 21वीं सदी की उभरती हुई रणनीतिक शत्रुताओं पर थोपा जाता है।

यदि आज बहुत कम हो चुके नाभिकीय हथियार दुबारा भरोसा नहीं दे पा रहे, तो उसका कारण है कि यह कमी सिर्फ हथियारों की दौड़ को मैनेज करने के लिए थी और इसमें यूएस और सोवियत यूनियन के सुरक्षा समीकरण में नाभिकीय हथियारों के कम करने के लिए कुछ नहीं किया गया। एक मिथ जरूर बना दिया गया कि हथियारों का नियंत्रण या हथियारों को सीमित करना हथियारों को खत्म करने की और जाएगा और इसे होने देना मुश्किल है। आज, संख्या में कमी के बावजूद नाभिकीय हथियारों का महत्व बढ़ना एक हकीकत है।

असंतुलन के दौर में, लांचर और वॉरहेड की गिनती से काम नहीं चलेगाv सत्यापन भी चुनौती प्रस्तुत करता है क्योंकि सिद्धांत का असंतुलन अस्पष्टता पर निर्भर है। नाभिकीय स्थिरता और रणनीतिक स्थिरता के बीच का लिंक टूट गया है। पुराने तरीके जिनके नतीजे से शीत युद्ध में मदद करने वाले साल्ट (SALT) और स्टार्ट (START) की प्रक्रिया शुरू हुई थी लेकिन आज के राजनैतिक डायनामिक्स (यहां तक यूएस और उनके रणनीतिक प्रतिद्वंदी रूस और चीन के बीच में भी) बदल गए हैं।

आईएनएफ संधि के खत्म हो जाने की चिंता करना बेकार है क्योंकि सच्चाई यह है कि उसके लिए राजनैतिक औचित्य में अब कोई विश्वास ही बचा नहीं रह गया।

पश्चिम ने इस आधार पर कि दुष्ट शासनों से आने वाली धमकियों से बचने के लिए मिसाइल सुरक्षा की जरूरत है एंटी बैलिस्टिक मिसाइल संधि को 2002 में खत्म करने को सही साबित कर दिया। हालांकि, रूस ने इसका कम परहेज के लक्षण की रूप में वर्णन किया। इसी प्रकार, यूएस ने यह दर्शाने के लिए नाभिकीय हथियारों का महत्व कम हो रहा पारंपरिक त्वरित वैश्विक प्रहार क्षमता (कन्वेंशनल प्रांप्ट ग्लोबल स्ट्राइक कैपबिलिटी) को विकसित किया लेकिन रूस चीन ने इसे तकनीकी श्रेष्ठता को हमेशा बनाए रखने की कोशिश रूप में देखा। इसलिए हथियारों के नियंत्रण की पुरानी धारणा काम नहीं कर सकती।

120 गैर-नाभिकीय हथियार देशों ने नाभिकीय हथियार निषेध संधि (एनडब्लूपीटी) पर 2017 में जोर दिया। वे सभी एनपीटी का हिस्सा हैं। हालांकि उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि सार्वभौमिक निष्ठा होने के बावजूद, एनपीटी कभी नाभिकीय निशस्त्रीकरण का माध्यम नहीं बन सकता, जबकि यही इसे शुरू करने का एक बताया हुआ उद्देश्य था। एनपीटी ने प्रसार को अवैध कर दिया लेकिन नाभिकीय हथियारों को अवैध बनाने के लिए कुछ भी खास नहीं किया। और ऐसा करने में, यह सफलता की सीमा पर पहुंच गया। एनडब्लूपीटी वार्ताओं का नेतृत्व हथियारहीन कर रहे और इसका बहिष्कार उन्होंने कर दिया जिनके पास नाभिकीय हथियार थे, इससे एनपीटी में समाया तनाव उजागर हो गया।

पश्चिम के लिए नाभिकीय धमकियां कभी पूरी तरह गायब नहीं हुई सिवाय एकध्रुवीय काल के छोटे से समय को छोड़कर, और अब वे लौट चुकी हैं। इसका सामना करने के लिए बदलती हुई राजनैतिक हकीकत के साथ वर्तमान हथियार नियंत्रण की सीमाओं को स्वीकार करना होगा। इसकी बजाय, पश्चिम शीत युद्ध के समय की मिथिकल स्थिरता के मोह में पड़ा हुआ पुरानी बात को ही दुहराता रहता है। शायद पश्चिम द्वारा नए नाभिकीय दौर को समझने की असफलता आज के नाभिकीय निराशावाद का असली कारण है।


[1] https://www.chathamhouse.org/sites/default/files/field/fielddocument/20140428TooCloseforComfortNuclearUseLewisWilliamsPelopidasAghlani.pdf

[2] Paul Bracken, Fire in the East (New York: Harper Collins, 1999) and The Second Nuclear Age (New York, Henry Holt, 2012)

[3] Scott D Sagan and Kenneth Waltz, The Spread of Nuclear Weapons: A Debate (New York, W W Norton, 1995)

[4] https://mearsheimer.uchicago.edu/pdfs/A0017.pdf

[5] Graham Allison, Nuclear Terrorism: The Ultimate Preventable Catastrophe (New York, Henry Holt, 2004)

[6] Bracken, Fire in the East

[7] Days before the Iraq invasion in 2003, Vice President Dick Cheney stated, “We believe he (Saddam Hussein) has, in fact, reconstituted nuclear weapons”.

[8] http://archive.defense.gov/pubs/pdfs/QDR20060203.pdf

[9] Bracken, The Second Nuclear Age

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