Author : Saranya

Published on May 02, 2024 Updated 0 Hours ago

नियमों का डंडा चलने के बाद चीन में टेक्नोलॉजी कंपनियों के सीईओ सीपीसी के ‘सबकी समृद्धि’ योजना को वित्तीय और नैतिक समर्थन देने को मजबूर हुए

चीन की बड़ी टेक कंपनियां ‘सबकी समृद्धि’ का समर्थन करने को क्यों मजबूर हुईं

पिछले एक साल में चीन में टेक्नोलॉजी सेक्टर की डिक्शनरी में कई नए शब्द आए. जैसे कि पूंजी का बेतरतीब विस्तार (资本无序扩张), जंगल की तरह फैलाव (野蛮生长), दोहरी कटौती (双减) और आध्यात्मिक अफीम (精神鸦片). चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) ने इन दिनों ‘सबकी समृद्धि या साझी समृद्धि’  (共同富裕) का नया नारा उछाला है. इससे टेक्नोलॉजी सेक्टर राह भटक गया है. इसके साथ सरकार ने इन कंपनियों पर नियमों का जो डंडा चलाया है, उससे इस क्षेत्र की निजी कंपनियों को आगे का रास्ता नहीं सूझ रहा. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अभी तक यह भी नहीं बताया है कि सबकी समृद्धि का मतलब क्या है. ऐसे में देश के अमीर इस बात का अपने लिए अलग-अलग मतलब निकाल रहे हैं.

पिछले हफ्ते अलीबाबा समूह ने ऐलान किया कि वह 2025 तक ‘सबकी समृद्धि’ के लिए 15.5 अरब डॉलर का निवेश करेगा. समूह इस पैसे से साइंस और तकनीक के क्षेत्र में इनोवेशन (नवाचार) को बढ़ावा देगा.

इनमें से कुछ ने सरकार को मनाने के लिए परोपकार के काम पर खर्च भी बढ़ा दिया है. पिछले हफ्ते अलीबाबा समूह ने ऐलान किया कि वह 2025 तक ‘सबकी समृद्धि’ के लिए 15.5 अरब डॉलर का निवेश करेगा. समूह इस पैसे से साइंस और तकनीक के क्षेत्र में इनोवेशन (नवाचार) को बढ़ावा देगा. वह छोटे और मध्यम दर्जे की कंपनियों की मदद करेगा. खेती के क्षेत्र में औद्योगिकरण को बढ़ावा देगा और ऐसे ग्रामीण इलाके जहां कम विकास हुआ है, वहां भी पैसा खर्च करेगा. अलीबाबा समूह ने युवाओं में रोजगार बढ़ाने, गिग वर्कर्स (डिलीवरी बॉय जैसे कामगार) को सामाजिक सुरक्षा और संवेदनशील समूहों की देखभाल पर भी पैसा खर्च करने का वादा किया है. कम आय वर्ग के कामगारों के लिए वह कल्याणकारी योजनाओं पर भी पैसा खर्च करेगा. इसी तरह से पिछले महीने दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) के कंपनी नतीजे जारी करने के बाद टेनसेंट ने कहा कि वह कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी से जुड़े प्रोग्राम में निवेश दोगुना करके 15.4 अरब डॉलर ले जाएगा. कंपनी ने ‘सबकी समृद्धि’ की खातिर एक विशेष कार्यक्रम शुरू करने का भी ऐलान किया है. इससे कम आय वर्ग वाले लोगों की मदद की जाएगी. बुनियादी मेडिकल इंश्योरेंस का दायरा बढ़ाया जाएगा. ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के लिए और समाज के निचले स्तर पर शिक्षा के लिए भी टेनसेंट ने निवेश करने का वादा किया है. पिंडुओडो ने भी कृषि क्षेत्र के लिए 1.55 रब डॉलर की निवेश योजना से परदा हटाया. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसानों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी. उनकी खातिर खाद्य तकनीक के क्षेत्र में निवेश की बात भी कंपनी ने कही है. इस कंपनी के संस्थापक कॉलिन हुआंग ने 1.85 अरब डॉलर के अपने हिस्से के 2.37 प्रतिशत शेयर दान किए हैं. इसके बाद मार्च में उन्होंने कंपनी का सीईओ पद भी छोड़ दिया. चीन की एक और कंपनी बाइटडांस के संस्थापक च्यांग यिमिन ने कहा है कि वह 50 करोड़ युआन यानी 7.73 करोड़ डॉलर लोंग्यान शहर को शिक्षा की खातिर दान करेंगे. मेतुआन के सीईओ वांग चिंग ने कंपनी में अपनी 10 प्रतिशत हिस्सेदारी दान की है, जिसकी वैल्यू 2.27 अरब डॉलर है. यह पैसा उन्होंने परोपकार का काम करने वाले अपने फाउंडेशन को दिया है. उन्होंने निवेशकों को बताया कि ‘सबकी समृद्धि’ तो उनकी कंपनी के ‘डीएनए’ में है. चीन की कंपनियों ने बेशक सरकार को शांत करने के लिए ये कदम उठाए हैं, लेकिन वे नई नीतियों को लेकर भ्रमित भी हैं. ब्लूमबर्ग  के मुताबिक अगस्त के आखिर तक 73 चीनी कंपनियों ने दूसरी तिमाहियों को लेकर अपने निवेशकों को जो चिट्ठी भेजी, उसमें ‘पॉलिसी बज’ शब्द को शामिल किया गया था.

चीन की एक और कंपनी बाइटडांस के संस्थापक च्यांग यिमिन ने कहा है कि वह 50 करोड़ युआन यानी 7.73 करोड़ डॉलर लोंग्यान शहर को शिक्षा की खातिर दान करेंगे. मेतुआन के सीईओ वांग चिंग ने कंपनी में अपनी 10 प्रतिशत हिस्सेदारी दान की है, जिसकी वैल्यू 2.27 अरब डॉलर है. 

साझी समृद्धि और समाजवाद

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने सीपीसी की वित्तीय और आर्थिक मामलों पर बनी समिति को 17 अगस्त को संबोधित किया था. इसमें उन्होंने कहा था कि ‘साझी समृद्धि समाजवाद की अनिवार्य शर्त है. चीन ने आधुनिकीकरण का जो रास्ता चुना है, यह उसका भी एक अहम हिस्सा है.’ उनके इस बयान के बाद से कंपनियों की ओर से इस दिशा में भारी-भरकम निवेश का ऐलान हुआ है. शी सरकार टैक्स से होने वाली आमदनी और दूसरे जरियों से होने वाली कमाई को लोगों में बांटकर मध्य वर्ग का विस्तार करना चाहती है. उसका इरादा इस तरह से गरीबों की आमदनी बढ़ाने का है. समाज में गैर-बराबरी कम करना और काली कमाई पर रोक लगाना भी उसका मकसद है. लेकिन ‘सबकी समृद्धि’ शब्द से चीन में लोग आशंकित हैं. उसकी वजह यह है कि जब माओ त्से तुंग के नेतृत्व में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना वजूद में आया तो एक समतामूलक समाज बनाने की बात कही गई थी. इसे पूरा करने की सीपीसी की कोशिश नाकाम हो गई. वैसे, चीन में केंद्रीय वित्त और आर्थिक मामलों के आयोग कार्यालय के डिप्टी डायरेक्टर हान वेनश्यो एक से संपत्ति लेकर दूसरे को देने संबंधित आशंकाओं को बेबुनियाद बताया. उन्होंने कहा कि सरकार ‘अमीरों को लूटकर गरीबों की मदद नहीं करेगी.’

शी सरकार टैक्स से होने वाली आमदनी और दूसरे जरियों से होने वाली कमाई को लोगों में बांटकर मध्य वर्ग का विस्तार करना चाहती है. उसका इरादा इस तरह से गरीबों की आमदनी बढ़ाने का है. 

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने हाल में जो कदम उठाए हैं, उनसे नीति-निर्माताओं, निवेशकों, पत्रकारों और चीन मामलों के जानकार हैरान हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि इनका मकसद क्या है. शी चिनफिंग की चीन में आज तूती बोलती है. वह एक तरह से तंग श्याओ फंग की कही गई बात से आगे बढ़ रहे हैं. फंग ने चीन में आर्थिक सुधारों की शुरुआत करते वक्त कहा था, ‘कुछ लोगों को पहले अमीर तो बनने दीजिए.’ ऐसा लगता है कि शी एक बार फिर चीन के राष्ट्रपति बनेंगे, इसलिए वह अपनी सामाजिक स्वीकार्यता पक्की करना चाहते हैं. चीन की सरकारी मीडिया एजेंसी शिन्हुआ ने भी  रिपोर्ट दी थी कि ‘सबकी समृद्धि’ को ध्यान में रखकर आगे बढ़ा जाए तो इससे पार्टी की लंबी अवधि में शासन व्यवस्था मजबूत होगी. साथ ही, इससे आर्थिक मसलों का हल भी निकलेगा. कुछ जानकारों का मानना है कि इससे पहले की चीन के अरबपति सामाजिक और आर्थिक ताकत का विकल्प बन जाएं, शी उन्हें कुचलना चाहते हैं. सीपीसी बेहद अमीरों लोगों पर जो लगाम लगाने की कोशिश कर रही है, उसमें बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां शुरू करने वालों को भी निशाना बनाया गया है. वैसे, यह भी देखना होगा कि क्या इन कदमों से चीन में आर्थिक गैर-बराबरी कम होती है या इससे उद्यमिता को नुकसान पहुंचता है. अगर उद्यमी इन कदमों के कारण हतोत्साहित हुए तो उससे लंबी अवधि में आर्थिक विकास पर बुरा असर पड़ सकता है.

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