Author : Hari Bansh Jha

Expert Speak Digital Frontiers
Published on Feb 09, 2024 Updated 0 Hours ago
आख़िर नेपाल में टिकटॉक पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया?

एक अचंभित कर देने वाले क़दम के तौर पर, 13 नवंबर को, नेपाल सरकार ने चीनी स्वामित्व वाली टिकटॉक ऐप एवं उनमें दिखाए जाने सामग्रियों को, सामाजिक सौहर्द के लिए हानिकारक मानते हुए, उसपर प्रतिबंध लगा दिया. इसके तहत, नेपाल के दूरसंचार अधिकारियों (एनटीए) ने देश के भीतर इंटरनेट सेवा देने वाले सभी कंपनियों को, अगस्त 2018 में बीजिंग स्थित प्रौद्योगिकी कंपनी बाइटडांस द्वारा लॉन्च किए गए इस ऐप को ब्लॉक करने का आदेश दे दिया.  यूट्यूब एवं फेसबुक के बाद ये सबसे ज्य़ादा इस्तेमाल किए जाने वाले सोशल मीडिया ऐप के तौर पर ये उभर कर आने वाली ये तीसरी सबसे बड़ी कंपनी थी. इस पर  प्रतिबंध लगाए जाने के वक्त तक, नेपाल के कुल 30 मिलियन आबादी वाले देश के 2.2 मिलियन से भी ज्य़ादा लोग इस सेवा का सक्रिय रूप से इस्तेमाल कर रहे थे.    

इस पर  प्रतिबंध लगाए जाने के वक्त तक, नेपाल के कुल 30 मिलियन आबादी वाले देश के 2.2 मिलियन से भी ज्य़ादा लोग इस सेवा का सक्रिय रूप से इस्तेमाल कर रहे थे.    

प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया 

टिकटॉक को बैन करने के पीछे के कारकों के बारे में बोलते हुए, देश की सूचना और दूरसंचार प्रौद्योगिकी मंत्री रेखा शर्मा ने कहा कि, “इसके उद्भव और अत्यधिक इस्तेमाल से देश में सामाजिक सौहार्द, पारिवारिक ढांचा, और पारिवारिक संबंधों में अवरोध उत्पन्न हो रहा था.” विगत चार वर्षों के दौरान, सरकार के सामने 1600 टिकटॉक संबंधित साइबर क्राइम केस दर्ज किए गए थे. इसके अलावा, टिकटॉक को अपने छोटे वीडियो या रील के ज़रिये समाज में, बड़े पैमाने पर अश्लीलता फैलाने  का भी दोषी पाया गया.   

टिकटॉक के इन नकारात्मक प्रभावों के कारण चिंतित, नेपाल सरकार ने बार-बार और लगातार, टिकटॉक कंपनी में इसमें  दिखाए जाने वाली  सामग्रियों के खिलाफ़ आपत्ति दर्ज की थी. वो ये भी चाहती थी कि टिकटॉक नेपाल में इस मुद्दे को संबोधित करने के लिये अपना कोई प्रतिनिधि  वहां नियुक्त करे. लेकिन टिकटॉक के अधिकारियों ने तरफ़ कोई ध्यान न देते हुए, इसपर कोई कदम नहीं उठाया. यही वजह है कि नेपाल सरकार अंत में ये क़दम उठाना पड़ा, जिसके तहत देश में टिकटॉक पर पाबंदी लगा दी गई.  

इस प्रगति के मद्देनज़र, सरकार ने देश के भीतर कार्यरत सभी मीडिया कंपनियों, जिनमें फ़ेसबुक, एक्स(X), और इंस्टाग्राम को अगले तीन महीनों के भीतर अपनी कंपनी को नेपाल के सूचना और संचार प्रौद्योगिकी मंत्रालय में  पंजीकृत कराने एवं देश में अपना संपर्क कार्यालय खोलने के आदेश जारी किया है. जो कंपनियां  ये कर पाने में असफल रहेंगी उन्हें भी टिकटॉक सरीख़ा खामियाज़ा भुगतने को तैयार रहना पड़ सकता है.   

टिकटॉक पर लगाए गए प्रतिबंध के प्रति अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए, टिक-टॉक के कार्यालय ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ऐसे कदम नेपाल में न केवल उनके निवेश के विचार को प्रभावित करेगी बल्कि नेपाल की  व्यापार गतिविधियों पर भी  बुरा असर डालेगी. नेपाल के कई लघु व्यवसाय, जो टिकटॉक को एक वैकल्पिक माध्यम के तौर पर अपने उत्पादों एवं सेवाओं को बाज़ार में प्रस्तुत करते थे, सरकार के इस निर्णय से काफी बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं, क्योंकि इनमें से बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो टिकटॉक के ज़रिये कंटेट बनाने का काम कर पैसा कमाया करते हैं.  

नेपाली कांग्रेस के नेता गगन थापा ने कहा कि, “सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वाले लोगों को हतोत्साहित करने के लिए, कानून लाना ज़रूरी है, परंतु रोक कानूनी कार्रवाई के नाम पर सोशल मीडिया को पूरी तरह से बंद कर देना, बिल्कुल गलत है.”

टिकटॉक कंपनी की भाषा में ही बात करते हुए, नेपाल के कुछ सामाजिक कार्यकर्ता समूह, सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने टिकटॉक को प्रतिबंधित किए जाने के सरकार के इस निर्णय को अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक, और विशुद्ध राजनीति से प्रेरित करार दिया. नेपाली कांग्रेस के नेता गगन थापा ने कहा कि, “सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वाले लोगों को हतोत्साहित करने के लिए, कानून लाना ज़रूरी है, परंतु रोक कानूनी कार्रवाई के नाम पर सोशल मीडिया को पूरी तरह से बंद कर देना, बिल्कुल गलत है.”

लगभग 30 संस्थाओं ने अपने संयुक्त वक्तव्य में सरकार के टिकटॉक को प्रतिबंधित किए जाने के कदम का इस आधार पर विरोध किया कि सरकार का ये कदम ना सिर्फ़ नेपाली संविधान के अनुच्छेद 17(2ए) और अनुच्छेद 19 के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी का उल्लंघन करता है, परंतु साथ ही ये मानव अधिकारों की व्यापक घोषणा और घरेलू और राजनीतिक अधिकारों के अंतरराष्ट्रीय नियम के भी खिलाफ़ था. इतना ही नहीं, टिकटॉक पर सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ़ 10 और रिट याचिका, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है, जिससे ये मुददा जल्द शांत होता नहीं दिख रहा है.  

दक्षिण एशिया में टिकटॉक को सबसे पहले भारत में बैन किया गया था. जून 2020 में भारत सरकार ने, भू-राजनीतिक  कारणों से चीनी डेवलपरों द्वारा बनाए गए, दर्जन भर चीनी ऐप्स को प्रतिबंधित  किया था, इनमें टिकटॉक भी शामिल था. अक्टूबर 2020 के बाद से, पाकिस्तान ने रुक-रुक कर चार बार इस ऐप पर बैन लगाया. दुर्भाग्यवश, टिकटॉक अब जांच के दायरे में आता जा रहा है, क्योंकि ऐसी आशंका जताया जा रही है कि, टिकटॉक और ऐसे अन्य ऐप्स चीनी अधिकारियों को डाटा मुहैया कराए जाने प्राइमरी साधन बन चुका है. इस आधार पर, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका (यूएस), यूनाइटेड किंगडम (यूके), कनाडा, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, फ़्रांस, यूरोपियन यूनियन (ईयू), और अन्य देशों के गुटों ने भी टिकटॉक को आंशिक या फिर पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है.    

नेपाल में, कुछ समूहों का ऐसा भी मानना है कि, टिकटॉक को अन्य कारणों के बजाय कुछ विशिष्ट कारकों की वजह से बैन किया गया है. 16 -24 वर्ष उम्र सीमा के, ज्य़ादातर युवा वर्ग, जो कि हिन्दू राष्ट्र और राजशाही तंत्र संस्थान के पुनर्स्थापना की मांग के लिए राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हैं, वे ज्य़ादातर टिकटॉक का इस्तेमाल अपने भावनाओं और विचार की अभिव्यक्ति और उसके प्रचार-प्रसार के लिए करते थे. ऐसी गतिविधियां, नेपाल में, सत्ता पर काबिज इस वर्तमान सरकार के खिलाफ़, एक ख़तरा पैदा कर रही थी. क्योंकि ये सरकार कई कारणों से जनता के बीच लगातार अलोकप्रिय होती जा रही है. सरकार पर देश में होने वाले भ्रष्टाचार, स्मगलिंग की कई घटनाएं और कई तरह के स्कैंडल को रोक पाने में विफल होने की वजह से खासी बदनामी का सामना करना पड़ रहा है. इन सबसे ऊपर, इसने राजनीतिक प्रणाली के गणतांत्रिक, संघीय और धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को भी चुनौती दी है, क्योंकि ताकत की इस नई लहर ने देश में फिर से वर्ष 2008 में खत्म कर दिये गये  हिन्दू राष्ट्र एवं राजशाही संस्था/व्यवस्था को पुनः स्थापित करने की मांग करने वाले आंदोलनों को अपना समर्थन देने का काम किया है.  

दोनों देशों के बीच छायी इस विश्वास की कमी की वजह ने नेपाल सरकार को टिकटॉक को उस वक्त प्रतिबंधित करने का बहाना दे दिया है जब ऐसा माना जा रहा है कि यह ऐप देश के भीतर के सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ रहा है.   

इन सब के अलावा, काठमांडू एवं बीजिंग के बीच के द्विपक्षीय संबंध अब पहले की तरह गर्मजोशी से भरे नहीं रहे हैं. यहाँ तक कि, हाल ही में नेपाली प्रधानमंत्री पुष्प कुमार दहल द्वारा की गई चीन की यात्रा के दौरान भी, दोनों देशों के बीच बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत कोई भी प्रमुख परियोजना पर सहमति अथवा हस्ताक्षर नहीं हो पाई. इसके विपरीत, नेपाल ने देश के भीतर के भ्रष्टाचार निरोधी एजेंसी को पश्चिमी नेपाल में चीनी राज्य कंपनियों द्वारा वित्तपोषित एवं निर्मित $216 मिलियन डॉलर वाली वाली पोखरा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट की जांच पड़ताल की अनुमति दे दी. प्रधानमंत्री दहल के हाथों लगभग एक साल पहले उदघाटन किये जाने बावजूद, इस एयरपोर्ट पर अभी तक कोई भी अंतरराष्ट्रीय उड़ान शुरू नहीं की जा सकी है, जबकि चीन इस परियोजना को अपने नेतृत्व में शुरू किया गया सबसे महत्वपूर्ण परियोजना बताता आया है. दोनों देशों के बीच छायी इस विश्वास की कमी की वजह ने नेपाल सरकार को टिकटॉक को उस वक्त प्रतिबंधित करने का बहाना दे दिया है जब ऐसा माना जा रहा है कि यह ऐप देश के भीतर के सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ रहा है.   

सारांश

हकीक़त में, ये काफी सराहनीय होता अगर नेपाल सरकार ने टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने के बजाय उस पर साइबर अपराध संबंधी जुर्माना लगाने का काम करती, परंतु इस बात से भी इत्तेफाक़ रखना चाहिए कि जब बांध का द्वार खुला हो तो पानी पर रोक लगाना खासा मुश्किल हो जाता है. इसलिए हर तरीके से ये साफ़ था कि, टिकटॉक का जारी रहना, किसी खुले हुए बांध से निकली गंदगी से कम नहीं था, क्योंकि उसने समाज और उसके अंदर के विभिन्न वर्गों के बीच, साइबर अपराध के पनपने और नफ़रत के बीजारोपण का काम करना शुरू कर दिया था. टिकटॉक की वजह से समाज के भीतर अनैतिक गतिविधियां इतनी बढ़ रहीं थीं कि सरकार के पास इनको नियंत्रित कर पाना असंभव हो गया था. इसलिए, नेपाल ने इस ऐप को बिल्कुल उसी तरह से प्रतिबंधित करना बेहतर समझा, जिस दुनिया के अन्य देशों ने इसे सुरक्षा या वजहों से अपने यहां बैन कर दिया था. चूंकि, अब टिकटॉक पूरी तरह से प्रतिबंधित है, ऐसी आशा की जा सकती है कि ऐसे अवांछनीय गतिविधियों पर अब रोकथाम लग सकेगी और देश मे लंबे समय तक शांति और सामाजिक सौहार्द पनपने वाली सकारात्मक वातावरण की रचना की जा सकेगी.     

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.