Author : Pratnashree Basu

Published on Mar 30, 2023 Updated 0 Hours ago

अमेरिका, चीन और रूस के बीच बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने इस जलडमरूमध्य की सामरिक अहमियत को बढ़ा दिया है और इसकी समुद्री जहाज़ रानी मार्ग की महत्ता में भी वृद्धि कर दी है.

उत्तरी पूर्वी एशिया की भू-राजनीति के लिए क्यों अहम है सुशिमा जलसंधि

सुशिमा स्ट्रेट जिसे कोरिया जलडमरूमध्य का पूर्वी चैनल भी कहा जाता है, वो उत्तरी पूर्वी एशिया के महत्वपूर्ण समुद्री चौराहे पर स्थित है, जो दुनिया कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं जैसे कि जापान, दक्षिणी कोरिया और चीन का इलाक़ा है. 243 किलोमीटर लंबी ये सुशिमा जलसंधि एक ऐसा संकरा समुद्री मार्ग है, जो दक्षिणी कोरिया और जापान को जोड़ता है. ये दोनों देश हिंद प्रशांत क्षेत्र की दो मध्यम दर्जे की ताक़तें है. ये जलसंधि जापान सागर के प्रवेश द्वार का भी काम करती है, जिसे कुछ लोग रूस और चीन का पिछला सामरिक दरवाज़ा भी कहते है. ये चारों ही देशों के लिए महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है, और जहाज़ों के आने जाने का ऐसा रास्ता है, जिससे होकर एशिया को यूरोप से जोड़ने वाले समुद्री मार्ग गुज़रते है. इन कारणों से सुशिमा जलसंधि उत्तरी पूर्वी एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि हर साल इससे होकर करोड़ों टन कार्गो गुज़रता है. इसके कारण ये जलसंधि वैश्विक व्यापार और ख़ास तौर से G20 देशों के लिए एक अहम मार्ग बन जाता है. क्योंकि दुनिया के कुल व्यापार में इन देशों की हिस्सेदारी लगभग 75 प्रतिशत है. चूंकि दक्षिणी कोरिया (ROK) और जापान केवल तीन समुद्री मील क्षेत्र (UNCLOS के मुताबिक़ ये 12 समुद्री मील होना चाहिए.) को विशेष आर्थिक क्षेत्र मानने पर सहमत हुए, इससे 23 समुद्री मील चौड़े इस जलडमरूमध्य का 17 समुद्री मील इलाक़ा अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र कहा जाता है.

यह जलसंधि सैन्य जहाज़ों और जंगी विमानों की आवाजाही का भी एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है. निगरानी करने और गोपनीय जानकारी जुटाने के लिहाज़ से भी ये महत्वपूर्ण ठिकाना है. सुशिमा जलसंधि की आर्थिक, सुरक्षा संबंधी और सांस्कृतिक अहमियत के साथ ये समुद्री क्षेत्र पर्यावरण की दृष्टि से भी काफ़ी महत्वपूर्ण है. इसकी विशेष भौगोलिक स्थिति और समुद्री धाराएं इसे विविध प्रकार के समुद्री जीवों की प्रजातियों की रिहाई का ठिकाना बनाती है. इस जलसंधि में जीवों की ऐसी कई प्रजातियां आबाद है, जिनके अस्तित्व पर ख़तरा मंडरा रहा है. इन जीवों में कोरिया स्टर्जन, जापानी मछली और काले सागर की ब्रीम मछली शामिल है. इस जलसंधि का इलाक़ा मछलियों की कई प्रजातियों को पकड़ने का भी ठिकाना है, जिससे ये एक्वाकल्चर और मछली पकड़ने का भी ज़रूरी ठिकाना बन जाता है.

ये जलसंधि किसके लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

मुख्य रूप से सुशिमा जलसंधि जापान के तेल आयात के प्रमुख समुद्री मार्ग के रूप में सबसे अहम है. सुशिमी जलसंधि, जापान की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि जापान का 90 फ़ीसद तेल और गैस का आयात इसी रास्ते से होकर गुज़रता है. जापान की अर्थव्यवस्था तेल के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है और उसकी ज़रूरत का लगभग सारा तेल मध्य पूर्व से आता है, जो मलक्का जलसंधि और दक्षिणी चीन सागर से होते हुए सुशिमा जलसंधि और पूर्वी चीन सागर में दाख़िल होता है. इसका नतीजा ये हुआ है कि अगर इस जलसंधि से होकर तेल के प्रवाह में कोई बाधा पड़ती है, तो इससे जापान की अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सुरक्षा पर गहरा असर पड़ सकता है. जापान के फुकुओका समेत पश्चिमी बंदरगाह सुशिमा जलसंधि के ज़रिए ही बाक़ी दुनिया से जुड़े हुए हैं और ये जापान के होन्शु और क्यूशू द्वीपों के बीच समुद्री संचार के मार्ग का महत्वपूर्ण अंग होने के साथ ही नज़दीक की कानमोन जलसंधि के ज़रिए सेटो अंतर्देशीय समुद्री व्यापारिक मार्ग का भी अटूट हिस्सा है. इस जलसंधि के इर्द गिर्द गश्त लगाने और यहां की सुरक्षा के लिए जापान की समुद्री सुरक्षा एजेंसी ज़िम्मेदार है, जो जापान के नागरिकों और उसकी संपत्तियों की हिफ़ाज़त और सुरक्षा सुनिश्चित करती है. 

दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था समुद्री व्यापार पर बहुत अधिक निर्भर है और उसका ज़्यादातर आयात और निर्यात, विशेष रूप से जापान, चीन और दक्षिणी पूर्वी एशिया से कारोबार समुद्र के रास्ते, सुशिमा जलसंधि से होकर गुज़रता है. दक्षिण कोरिया के अधिकतर जलमार्ग सुशिमा जलडमरूमध्य से होकर ही गुज़रते हैं. इसमें से भी विशेष रूप से अमेरिका के पश्चिमी तट के बंदरगाहों, जैसे कि सिएटल और सैन फ्रांसिस्को से होने वाला कारोबार. सुशिमा द्वीप, जो इस जलसंधि के बीच में पड़ता है, उसका कोरियाई प्रायद्वीप से सांस्कृतिक और आर्थिक लेन-देन का लंबा इतिहास रहा है. चोसियोन वंश के शासनकाल के दौरान इस द्वीप ने, कोरिया और जापान के रिश्तों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी और वो कई ऐतिहासिक लड़ाइयों का मैदान रहा है.

दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था समुद्री व्यापार पर बहुत अधिक निर्भर है और उसका ज़्यादातर आयात और निर्यात, विशेष रूप से जापान, चीन और दक्षिणी पूर्वी एशिया से कारोबार समुद्र के रास्ते, सुशिमा जलसंधि से होकर गुज़रता है. दक्षिण कोरिया के अधिकतर जलमार्ग सुशिमा जलडमरूमध्य से होकर ही गुज़रते हैं.

इस इलाक़े में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में सुशिमा जलसंधि महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है, क्योंकि अमेरिका, जापान का अहम साझीदार है. जापान सागर और प्रशांत महासागर के द्वार के तौर पर सुशिमा जलसंधि की सामरिक स्थिति, इसे अमेरिका के लिए बेहद महत्वपूर्ण बनाने में योगदान देती है. चूंकि ये जलसंधि अमेरिकी सैन्य बलों और आपूर्तियों के जापान में प्रवेश करने के दरवाज़े का काम करती है, और कोरियाई युद्ध के बाद से ही दक्षिण कोरिया में उसकी सैन्य उपस्थिति के रखरखाव में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है, तो ये बंदरगाह और जलसंधि अमेरिका के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इसी वजह से इस जलसंधि से होकर आवाजाही की स्वतंत्रता बनाए रखने में अमेरिका की बहुत दिलचस्पी है, जिससे उसके नौसैनिक जहाज़ बिना किसी बाधा के यहां से आ-जा सके.

सुशिमा जलसंधि, जापान, दक्षिणी कोरिया और अन्य क्षेत्रीय देशों के साथ चीन के व्यापार का भी अहम समुद्री मार्ग है. चीन एक ऐसा एक व्यापारिक देश है, जो अपने उत्पाद पूरी दुनिया भर के बाज़ारों में पहुंचाने के लिए समुद्री मार्गों पर निर्भर है. इसीलिए ये समुद्री संकरा मार्ग चीन के लिए भी आवाजाही का महत्वपूर्ण रास्ता है. उत्तरी पूर्वी एशिया में चीन की नौसैनिक रणनीति के लिहाज़ से भी ये जलसंधि काफ़ी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके माध्यम से चीन अपने तटीय क्षेत्रों से परे भी अपनी नौसैनिक ताक़त का प्रदर्शन कर सकता है. कहा जाता है कि रूस के साथ मिलकर चीन लगातार सुशिमा जलसंधि से होकर आवाजाही की स्वतंत्रता और समुद्री संप्रभुता की परिधि को और बढ़ाने पर उसी तरह ज़ोर देता रहा है, जैसा वो दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर में करता आया है.

रूस के लिए भी प्रशांत महासागर तक नौसैनिक पहुंच बढ़ाने के लिहाज़ से सुशिमा जलसंधि काफ़ी अहम सामरिक ठिकाना है. पूर्वी एशिया के बाज़ारों तक अपनी सीधी पहुंच के कारण, सुशिमा जलसंधि, रूस के लिए भी एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग है. दक्षिण कोरिया, चीन और जापान को निर्यात होने वाले रूस के तेल और गैस को वहां पहुंचने के लिए इस जलसंधि से होकर गुज़रना ही होगा. सुशिमा जलसंधि जापान के साथ रूस के कूटनीतिक संबंधों के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण है. जापान के उत्तर में स्थित कुरील द्वीप समूह, जिनका रख-रखाव रूस करता है, वो काफ़ी लंबे समय से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का मुद्दा बने हुए है.

ख़तरे, उनका निपटारा और साझेदारियां

सुशिमा जलसंधि के सामने पांच बड़े ख़तरे है, जिनसे आपसी सहयोग के ज़रिए निपटा जा सकता है. पहला ये संकरा समुद्री मार्ग बेहद व्यस्त रहता है और यहां पर जहाज़ों के टकराने या अटक जाने जैसे समुद्री ख़तरे का अंदेशा रहता है, जिससे समुद्र में तेल फैलने और पर्यावरण संबंधी दूसरी आपदाएं आ सकती है. हादसों और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए इस क्षेत्र के देशों ने समुद्री परिवहन और मौसम के हालात की जानकारी साझा करने की एक व्यवस्था स्थापित की है. समुद्री सुरक्षा बढ़ाने और ऐसे हादसे रोकने के लिए देशों ने घटना की जानकारी देने और जांच के लिए भी प्रोटोकॉल लागू किए है.

दूसरा, इस जलसंधि में स्थित कई छोटे जज़ीरों पर मालिकाना हक़ को लेकर जापान और दक्षिण कोरिया के बीच सीमा विवाद चला आ रहा है. इन विवादों के सशस्त्र संघर्ष में तब्दील होने का डर है, जिससे इस जलसंधि की सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा हो सकता है. लियानकोर्ट रॉक्स को लेकर विवाद का लंबा इतिहास रहा है, जो बीसवीं सदी तक जाता है और इसका जापान और दक्षिण कोरिया के रिश्तों ही नहीं, क्षेत्रीय स्थिरता पर भी व्यापक असर पड़ सकता है.

इस जलसंधि में स्थित कई छोटे जज़ीरों पर मालिकाना हक़ को लेकर जापान और दक्षिण कोरिया के बीच सीमा विवाद चला आ रहा है. इन विवादों के सशस्त्र संघर्ष में तब्दील होने का डर है, जिससे इस जलसंधि की सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा हो सकता है.

तीसरा, उत्तर कोरिया की सैन्य गतिविधियां इस जलसंधि के लिए काफ़ी बड़े ख़तरे की जड़ बन सकती है. उत्तर कोरिया की नौसेना इस क्षेत्र में समुद्र के भीतर अभियान चलाने के लिए बदनाम है, जिससे इस इलाक़े में जहाज़ों की आवाजाही के लिए बड़ा ख़तरा पैदा होने का डर होता है. उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण भी इसी क्षेत्र से होकर गुज़रते है. चौथा, ये जलसंधि मछली पकड़ने का महत्वपूर्ण ठिकाना है. चीन और उत्तर कोरिया के जहाज़ों द्वारा अवैध रूप से मछली पकड़ने की समस्या लंबे समय से बनी हुई है. इससे न केवल यहां मछलियों के भंडार बनाए रखने के लिए ख़तरा पैदा होता है, बल्कि वैधानिक रूप से मछली पकड़ने वाली नौकाओं की सुरक्षा के लिए भी ख़तरा पैदा होता रहता है. पांचवां, जलवायु परिवर्तन में इस बात की काफ़ी क्षमता है कि वो समुद्री धाराओं और मौसम के स्वरूप को बदल दे. इससे सुशिमा जलसंधि की सुरक्षा और यहां से होकर जहाज़ गुज़रने की क्षमता पर असर पड़ सकता है. समुद्र का बढ़ता स्तर और बार बार तूफ़ान आने से तटीय क्षेत्र में कटाव से समुद्री मार्गों और बंदरगाहों जैसे अहम मूलभूत ढांचों को क्षति पहुंच सकती है. इस क्षेत्र के देशों ने समुद्री पर्यावरण की निगरानी और प्रबंधन के लिए एक व्यवस्था स्थापित की है. इसमें तेल के रिसाव और दूसरे ख़तरनाक तत्वों को समुद्र में फैलने से रोकना, दुर्घटना होने पर उससे निपटने की व्यवस्था और समुद्री पर्यावरण पर प्रदूषण के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए संसाधनों और कर्मचारियों के बीच तालमेल स्थापित करना शामिल है.

समुद्री सुरक्षा को मज़बूत बनाने के लिए गोपनीय जानकारियां साझा करने और सुरक्षा के ख़तरों से निपटने के लिए आपसी समन्वय बनाने के लिए इस क्षेत्र के देशों द्वारा एक साझा मंच स्थापित किया गया है. इसमें नौसैनिक गश्त और निगरानी के अभियान में तालमेल और समुद्री डकैती, तस्करी और सुरक्षा के अन्य मुद्दों पर जानकारी साझा करना भी शामिल है.

अमेरिका, चीन और रूस के बीच भू-राजनीतिक तनाव के कारण पैदा हुई अनिश्चितताओं ने एक अहम समुद्री मार्ग के रूप में सुशिमा जलसंधि की महत्ता को और बढ़ा दिया है. क्योंकि इन तनावों से जापान और दक्षिण कोरिया; जापान और रूस; और जापान एवं चीन के बीच पहले से चले आ रहे तनाव फिर से सिर उठा सकते है. इसीलिए, सुशिमा जलसंधि से सुरक्षित और मुक्त रूप से आवाजाही सुनिश्चित करना, हिंद प्रशांत क्षेत्र में सहयोग की रूपरेखा के तहत समुद्री सुरक्षा बनाए रखने के प्रयासों का अहम तत्व है. 

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