Published on Feb 10, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत अपनी चौकसी में कमी नहीं कर सकता क्योंकि चीन सैनिकों को बढ़ाने की योजना बना रहा है.

चीन की ‘शांति वाली चाल’ के झांसे में हमें क्यों नहीं पड़ना चाहिए?

एक साल तक ज़ोरदार कूटनीति के बाद चीन से जो संकेत मिल रहे हैं, उससे पता चलता है कि जो बाइडेन के अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर काम-काज संभालने के बाद उसका लहजा नरम हो रहा है. चीन किन परिस्थितियों में किसका हाथ थामता है, यही उसकी सोच के बारे में बताता है.

अमेरिका के साथ संबंधों के भविष्य का पता लगाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए चीन के विदेश मामलों के उप मंत्री ले यूचेंग ने 20वीं सदी में चीन-अमेरिका के संबंधों को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हार्वर्ड के दो विद्वानों- हेनरी किसिंजर और एज़रा वोगेल की यादें ताज़ा की. चीन और जापान के उदय को दस्तावेज़ों में दर्ज करने वाले एज़रा वोगेल तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चीन नीति के खुले तौर पर आलोचक थे. दिसंबर में उनके निधन से पहले उन्होंने एक खुली चिट्ठी लिखी जिसका शीर्षक था ‘चीन एक दुश्मन नहीं है’. कई विद्वानों ने उनकी इस चिट्ठी का समर्थन किया. ले ने कहा कि चीन-अमेरिका संबंध पिछले चार वर्षों में “अविश्वास के जाल” और “नफ़रत के ज़हर” की वजह से बिगड़ गए हैं और दोनों शक्तियों को ग़लत रास्ते से दूर हटना चाहिए.

एक तरफ़ जहां राजनयिकों ने मेल-मिलाप की कोशिश की वहीं उनके बॉस राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने विश्व आर्थिक मंच के एक ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि दुनिया भरोसा बनाने के लिए “रणनीतिक संचार” को अपनाए. इन बयानों से लगता है कि चीन शांति का पाठ पढ़ा रहा है.

क्या चीन शांति का पाठ पढ़ा रहा है?

जनवरी में चीन और अमेरिका के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के 42 वर्ष पूरे हुए. चाइनीज़ पीपुल्स एसोसिएशन फॉर पीस एंड डिसआर्मामेंट और कार्टर सेंटर द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन चर्चा के दौरान बोलते हुए अमेरिका में चीन के राजदूत क्यूई तियानकाई ने 1979 में डेंग शियाओपिंग के अमेरिका दौरे की याद दिलाई. क्यूई ने कहा कि अमेरिका में कुछ लोगों ने अमेरिका की चीन नीति को हाईजैक करने और संबंधों को संघर्ष की तरफ़ ले जाने की कोशिश की. एक तरफ़ जहां राजनयिकों ने मेल-मिलाप की कोशिश की वहीं उनके बॉस राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने विश्व आर्थिक मंच के एक ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि दुनिया भरोसा बनाने के लिए “रणनीतिक संचार” को अपनाए. इन बयानों से लगता है कि चीन शांति का पाठ पढ़ा रहा है.

इस चालबाज़ी का मतलब क्या है?

पहला, चीन अमेरिका की नीतियों से सीख रहा है. अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने लगातार चीन का ज़िक्र “कम्युनिस्ट” चीन के तौर पर किया. ऐसा करके उन्होंने चीन के शासन की वैधता पर सवाल उठाए. पॉम्पियो ने 1930 के दौरान अमेरिका की नीतियों से ये सीखा जब अमेरिका “नाज़ी” जर्मनी को लेकर इस तरह का अंतर करता था. चीन के हिसाब से देखें तो कथित तौर पर ट्रंप के भड़काऊ भाषण के बाद कैपिटल हिल में उनके समर्थकों की तोड़-फोड़ और उसके बाद ट्रंप के महाभियोग ने उदारवादी अमेरिकी संभ्रांत के दिलों में ट्रंप को अवांछित व्यक्ति बना दिया है. इस समय चीन के लिए पूरब और पश्चिम के बीच पुल का काम करने वाले वोगेल और किसिंजर की यादों को ताज़ा करना जंचता है. इसके अलावा डेंग शियाओपिंग के 1979 के अमेरिकी दौरे में घुड़सवारों के मुक़ाबले और नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के जॉनसन स्पेस सेंटर में उनकी तस्वीरों ने अमेरिकी संभ्रांत वर्ग में चीन की अच्छी छवि बनाई. ऐसे लोग ज़ोर देकर ये भी कह सकते हैं कि दोनों देशों के बीच “पुराने संबंध” में ट्रंप की चीन विरोधी नीति एक भूल थी.

दूसरा, “वॉल्फ वॉरियर” कूटनीति चीन की घरेलू मजबूरियों का नतीजा थी. चीन की सत्ता पर अधिकार जमाने के बाद माओ ने ढिंढोरा पीटा कि उनका देश दुनिया के सामने मज़बूती से खड़ा रहा. माओ के नक्शे-क़दम पर चलने वाले शी से भी यही उम्मीद की गई कि वो ट्रंप की कठोरता का उसी अंदाज़ में जवाब देंगे. अब ट्रंप की राजनीतिक पूंजी के कथित तौर पर कम होने के बाद चीन शायद अपनी सौम्यता दिखाने की कोशिश कर रहा है. बीते अक्टूबर में प्यू रिसर्च सेंटर ने एक सर्वे का नतीजा जारी किया था. इसके मुताबिक़ 14 देशों के लोग मानते हैं कि चीन कोविड-19 के प्रकोप से अनाड़ियों की तरह निपटा और चीन को लेकर नकारात्मक सोच ख़तरनाक स्तर तक पहुंच गई है. इन नतीजों से पता चला कि अमेरिका में चीन को लेकर प्रतिकूल सोच बढ़ रही है. चीन इस बात को नहीं भूला है कि 1980 के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के द्वारा सोवियत संघ को “आधुनिक दुनिया में दुष्ट” के तौर पर बताने से वहां के शासन को लेकर ख़राब राय बनी. मिखाइल गोर्बाचेव के द्वारा सोवियत संघ की सरकार के काम-काज में पारदर्शिता बढ़ाने को लेकर ‘ग्लासनोस्त’ और सोवियत संघ के सिस्टम के पुनर्निर्माण के लिए ‘पेरेस्त्रोइका’ की नीति अपनाने के बाद भी “दुष्ट साम्राज्य” की छवि को बदला नहीं जा सका. रीगन का चिढ़ाना सोवियत संघ के अंत की पूर्व सूचना थी. महामारी की शुरुआत से भारतीय सीमा, दक्षिणी चीन सागर और ताइवान में चीन के आक्रामक रुख़ को लेकर कई देशों ने पलटवार किया. बाइडेन प्रशासन ने संकेत दिए हैं कि वो ट्रंप प्रशासन की नीतियों को जारी रखेगा. बाइडेन प्रशासन ने चीन के द्वारा “अपने पड़ोसियों को धमकाने की मौजूदा कोशिशों” पर चिंता भी जताई है. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन तो इस हद तक बोल चुके हैं कि अमेरिका को इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि ताइवान और हांग कांग को धमकी देने के लिए चीन को क़ीमत चुकानी पड़े. चीन के कूटनीतिक हाव-भाव में बदलाव की एक वजह ये भी है कि उसे लग रहा है कि अमेरिका के समर्थन से जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के पलटवार का एक साथ मुक़ाबला करना बुद्धिमानी नहीं है.

महामारी की शुरुआत से भारतीय सीमा, दक्षिणी चीन सागर और ताइवान में चीन के आक्रामक रुख़ को लेकर कई देशों ने पलटवार किया. बाइडेन प्रशासन ने संकेत दिए हैं कि वो ट्रंप प्रशासन की नीतियों को जारी रखेगा. बाइडेन प्रशासन ने चीन के द्वारा “अपने पड़ोसियों को धमकाने की मौजूदा कोशिशों” पर चिंता भी जताई है.

एक शांतिप्रिय देश की छवि दिखाने में लगा चीन

तीसरा, चीन ख़ुद को “नरम” और शांति का प्रस्ताव देने वाला देश दिखाकर काफ़ी कुछ हासिल कर सकता है. महामारी के बाद पश्चिमी देशों में चीन को अलग-थलग करने को लेकर तमाम चर्चाओं के बावजूद यूरोपियन यूनियन दिसंबर 2020 में चीन के साथ निवेश समझौते को लेकर आगे बढ़ा. ये बाइडेन के लिए शर्मिंदगी की बात है. चीन ने यूरोपियन यूनियन की ऑटोमोबाइल और बीमा कंपनियों के लिए काफ़ी हद तक बाज़ार में पहुंच का वादा किया है. अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच दीवार खड़ी करने के बाद चीन को लगता है कि अभी नहीं तो बाद में अमेरिका की कंपनियां बाइडेन पर दबाव डाल सकती हैं कि वो चीन के साथ बातचीत का रास्ता खोलें. अमेरिका के ख़ज़ाने पर बोझ और उसकी अर्थव्यवस्था पर चोट को देखते हुए बाइडेन उस चीन के साथ समझौते के लिए मजबूर हो सकते हैं जो “सहयोग” की बात कर रहा है. लंबे समय में ये हो सकता है कि चीन को अलग-थलग करने की कोशिश का कोई नतीजा नहीं निकले. कई देशों में 2020 में लॉकडाउन के बावजूद पिछले साल चीन में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) बढ़कर 163 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. इस तरह चीन को सबसे ज़्यादा फ़ायदा हुआ. चीन और हांग कांग को मिलाकर शेयर बाजार के ज़रिए रिकॉर्ड 119 अरब अमेरिकी डॉलर इकट्ठा किए गए. संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन के दौरान इसी समय के दौरान अमेरिका में एफडीआई 49% गिरकर 134 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया.

चौथा, चीन के लिए अनपेक्षित मोर्चों पर चिंता की बात है. काफ़ी किंतु-परंतु के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम ने वुहान में छान-बीन शुरू कर दी. यहां तक कि वुहान के उस रिसर्च संस्थान का भी दौरा किया जो नोवल कोरोना वायरस की उत्पति को लेकर सुर्खियों में रहा है. चीन में विशाल पूंजी निवेश के बावजूद यहां के योजना बनाने वाले एक बार फिर 2021 के लिए जीडीपी का लक्ष्य तय करने से परहेज कर रहे हैं. वसंत उत्सव के दौरान चीन के लोग अपने नज़दीकियों के बीच रहने के लिए यात्रा करते हैं. महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई जीतने की शुरुआती ख़ुशी के बावजूद महामारी के ताज़ा मामलों में बढ़ोतरी ने यात्रा की योजनाओं को तहस-नहस कर दिया है. प्रशासन एक बार फिर पाबंदियों पर उतर गया है. वसंत उत्सव के पहले दिन यानी 28 जनवरी को 2019 के मुक़ाबले यात्रा में 60% कमी देखी गई. जिस वक़्त चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का शताब्दी समारोह मनाने और उसकी उपलब्धियों का प्रचार करने की योजना बनाई जा रही है, उस वक़्त लोगों के मिलने-जुलने पर पाबंदी का कोई भी नतीजा चिंता की बड़ी वजह है.

चीन के हिसाब-किताब के मुताबिक़, अगर बाइडेन चीन के अनुकूल जवाब नहीं देते हैं तो वो उन्हें उस ख़राब व्यक्ति की तरह पेश करेगा जिसने “समझौते” की अपील ठुकरा दी.

बड़ा सवाल ये है कि क्या हम चीन की “शांति वाली चाल” के झांसे में पड़ सकते हैं? ऐसा लगता नहीं है. चीन के बड़े नेताओं ने संबंधों को बेहतर बनाने का ज़िम्मा पूरी तरह बाइडेन पर दे दिया है. इस तरह उन्होंने किसी भी ग़लती के लिए ख़ुद को दोषमुक्त कर लिया है. कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य यांग जीची ने अमेरिका-चीन संबंध पर राष्ट्रीय समिति के सामने 1 फरवरी को अपने भाषण में ऐसी बातें कही. चीन के हिसाब-किताब के मुताबिक़, अगर बाइडेन चीन के अनुकूल जवाब नहीं देते हैं तो वो उन्हें उस ख़राब व्यक्ति की तरह पेश करेगा जिसने “समझौते” की अपील ठुकरा दी. वैसे तो विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रेखांकित किया है कि तीन बातें– सम्मान, संवेदनशीलता और हित- चीन-भारत के बीच संबंधों को दुरुस्त करने के लिए ज़रूरी हैं, लेकिन चीन अभी भी यही कह रहा है कि सीमा के मुद्दों को द्विपक्षीय संबंधों से नहीं जोड़ा जा सकता है. सीमा पर सैनिकों के जमावड़े और संघर्ष के नये क्षेत्रों को भारत रोक नहीं सकता है. दोनों देशों की सेना के बीच 20 जनवरी को सिक्किम के नाकू ला में भिड़ंत हुई. चीन सशस्त्र सेना में भर्ती को दोगुना करने की योजना बना रहा है. 2021 से चीन साल में दो बार रंगरूटों की भर्ती करेगा. वैश्विक शक्ति के रूप में अमेरिका के उदय का क़रीब से अध्ययन करने वाला चीन लगता है कि राष्ट्रपति थियोडोर रूज़वेल्ट के सिद्धांत को अपना रहा है: “प्यार से बोलो और बड़ा डंडा अपने पास रखो; तुम बहुत आगे जाओगे.”

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