Published on Feb 17, 2021 Updated 0 Hours ago
कमोडिटी ट्रांजैक्शन टैक्स को ख़त्म करना क्यों ज़रूरी है?

1 जुलाई 2013 को जबसे कमोडिटी डेरिवेटिव्स की ट्रेडिंग पर कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (सीटीटी) लगाया गया तब से ही इस कारोबार से जुड़े लोग और उनसे जुड़ा पूरा इकोसिस्टम इस टैक्स से कमोडिटी व्यापार के आकार और बाज़ार की गुणवत्ता पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभावों को लेकर मुखर रहा है. वैसे लगता है कि वायदा बाज़ार में ग़ैर-कृषि वस्तुओं की बिक्री पर 0.01 फ़ीसदी की दर से लगाई जाने वाली लेवी को लेकर सरकार का पक्ष तीन प्रमुख तर्कों पर आधारित रहा है: बेहिसाब सट्टेबाज़ी पर लगाम कसना, राजस्व का एक सतत स्रोत तैयार करना और कमोडिटी डेरिवेटिव्स बाज़ार को ज़मीन पर सिक्योरिटीज़ मार्केट की तर्ज़ पर समझकर उसके मुताबिक कदम उठाना. इस परिकल्पना के पीछे ये तथ्य भी शामिल है कि 2013 में प्रतिभूति बाज़ार की गतिविधियां एक दशक के बाद परिपक्व होकर हमारे सामने आ गई हैं.

लगभग हर बजट से पहले कमोडिटी डेरिवेटिव्स सेक्टर से सीटीटी हटाने को लेकर आवाज़ उठती रही है. यहां तक कि 2020-21 के बजट प्रस्तावों से पहले भी बाज़ार सहभागियों ने वित्त मंत्री से ऐसी ही अपील की थी. 

लगभग हर बजट से पहले कमोडिटी डेरिवेटिव्स सेक्टर से सीटीटी हटाने को लेकर आवाज़ उठती रही है. यहां तक कि 2020-21 के बजट प्रस्तावों से पहले भी बाज़ार सहभागियों ने वित्त मंत्री से ऐसी ही अपील की थी. हालांकि, दुर्भाग्यवश न सिर्फ़ इस अपील पर कोई ध्यान नहीं दिया गया बल्कि वित्त विधेयक 2020 में कॉमेक्सेस के लिए हालात और बदतर ही हो गए. सीटीटी को इसके और आगे बढ़ाते हुए 1 अप्रैल 2020 से इंडेक्स के वायदा कारोबार और वस्तुओं के वैकल्पिक बाज़ार (जहां वास्तविक वस्तुओं का व्यापार होता है) पर भी लागू कर दिया गया. इस पृष्ठभूमि में इस लेख के लेखकों द्वारा की गई एक शोध परियोजना के नतीजों के आधार पर सीटीटी पर चल रही मौजूदा बहसों का चित्रण किया गया है. इस सिलसिले में कमोडिटी डेरिवेटिव्स बाज़ार पर सीटीटी के प्रभावों का अध्ययन किया गया है और इसे जल्द ही ओआरएफ के शोध पत्र के रूप में प्रकाशित किया जाएगा.

शुरुआत में ही इस बात को रेखांकित करना ज़रूरी है कि लगभग चार दशकों के प्रतिबंध के बाद कमोडिटी डेरिवेटिव्स मार्केट को भारत में दो प्रमुख गतिविधियां शुरू करने की मंज़ूरी दी गई थी. ये गतिविधियां थीं- मूल्य जोखिम प्रबंधन या हेजिंग और मूल्य प्रकटीकरण. इन दो क्रियाओं को दिमाग़ में रखते हुए इस शोध पत्र में जिन प्रश्नों के उत्तर तलाशे गए वो निम्नांकित हैं:

  1. क्या सीटीटी ने बाज़ार के आकार और अस्थिरता पर असर डाला है?
  2. क्या सीटीटी ने बाज़ार में हेजिंग और मूल्य प्रकटीकरण से जुड़े क्रियाकलापों को प्रभावित किया है?

इन प्रश्नों के जवाब की तलाश में मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया (जिसका कमोडिटी डेरिवेटिव्स के ग़ैर-कृषि क्षेत्र पर दबदबा रहता है) पर 5 ग़ैर-कृषि वस्तुओं के संदर्भ में जनवरी 2006 से दिसंबर 2019 तक दैनिक ट्रेडिंग से जुड़े आसानी से उपलब्ध आंकड़ों (परिमाण, मूल्य आदि) का अध्ययन किया गया. ये वस्तुएं हैं- एल्युमिनियम, तांबा, कच्चा तेल, सोना और चांदी.

आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि पूरे ग़ैर-कृषि खंड में जिन वस्तुओं पर सीटीटी लगाया गया है उनके दैनिक और सालाना टर्नओवर में गिरावट देखी गई है. टेबल 1 से स्पष्ट है कि एल्युमिनियम, तांबा, सोना और चांदी में 2012 (सीटीटी युग से पहले) और 2019 (सीटीटी युग के बाद मगर महामारी से पहले) औसतन दैनिक टर्नओवर में कमी दर्ज की गई. हालांकि, ज़ाहिर तौर पर कच्चे तेल के टर्नओवर में बढ़ोतरी दर्ज की गई लेकिन ये बढ़त भ्रमित करने वाला है और इस पर मूल्य के प्रभावों की मौजूदगी का असर है. इसे सांख्यिकीय तौर पर “गैर-असुधार्यता’’ के तौर पर जाना जाता है. इस समस्या से पार पाने के सांख्यिकीय तौर-तरीके मौजूद हैं. इसके लिए “मूल्य” के चर को स्थिर बनाकर “पक्षपात” को दूर किया जाता है या फिर टर्नओवर को स्थिर मूल्य पर गिना जाता है. एक बार मूल्य से जुड़े पक्षपात को मूल्य के आंकड़ों में “गैर-स्थिर” मानकर गिने जाने से हम पाते हैं कि सभी वस्तुओं के लिए टर्नओवर के मोल में कमी आई है और ये गिरावट सांख्यिकीय तौर पर अहम है.

टेबल 1: औसतन दैनिक टर्नओवर में परिवर्तन (2012 और 2019)

Commodity Aluminium Copper Crude Oil Gold Silver
Average daily turnover in 2012 (crore INR) 649.5 5146.9 9446.5 12192.5 14056.2
Average daily turnover in 2019 (crore INR) 442.9 1912.7 9621.9 6099.7 3714.9
% change in daily turnover in current prices -31.81 -62.84 1.86 -49.97 -73.57
Turnover change after removing “non-stationarity” in prices Declined in 2019 Declined in 2019 Declined in 2019 (though at current prices it is increasing) Declined in 2019 Declined in 2019

इसके ठीक बाद हमने जो सवाल किया वो ये था कि क्या सीटीटी लागू होने के बाद से तरलता में बदलाव आया है. ग़ौरतलब है कि तरलता बाज़ार की कार्यक्षमता का एक महत्वपूर्ण संकेतक होती है क्योंकि एक तरल बाज़ार को लेन-देन की निम्न लागत पर कारोबार की सुविधा से जोड़कर देखा जाता है. तरल बाज़ार में भागीदारों (हेजर्स, सट्टेबाज़ों, दैनिक-ट्रेडर्स, स्कैल्पर्स, जॉबर्स आदि) के लिए प्रवेश करना और उससे बाहर निकलना आसान होता है. यहां विचार के लिए ली गई पांच वस्तुओं के संदर्भ में बाज़ार में उपलब्ध तरलता पर सीटीटी के प्रभावों को समझने के लिए हमने हुई-ह्यूबेल अनुपात का सहारा लिया. दरअसल ये अनुपात तरलता से परस्पर संबद्ध होता है. लिहाजा, इस अनुपात का उच्च स्तर एक बेनक़द बाज़ार को दर्शाता है. हुई-ह्यूबेल तरलता अनुपात का उच्च स्तर ये दर्शाता है कि क़ीमतों में भारी फ़ेरबदल परिमाण में छोटे बदलावों, खुली श्रेणियों और टर्नओवर से जुड़ा होता है. हमारे विश्लेषण में एक कृत्रिम चर प्रतिगमन समीकरण का इस्तेमाल सीटीटी पर प्रभाव दर्शाने वाले कृत्रिम तरीकों द्वारा किए जाने पर हमने पाया कि सीटीटी लागू होने के बाद हुई-ह्यूबेल अनुपात में बढ़ोतरी दर्ज की गई. सिर्फ़ सोना इसका अपवाद रहा, जिसमें कोई अहम बदलाव दर्ज नहीं किया गया. इससे स्पष्ट है कि पांच में से चार वस्तुओं के संदर्भ में सीटीटी के चलते लेन-देन की लागत में बढ़त की वजह से तरलता में गिरावट देखी गई. दिलचस्प रूप से जहां एक ओर हमने बाज़ार की अस्थिरता पर सीटीटी के प्रभावों की पड़ताल करते हुए क़ीमतों में अस्थिरता का अनुमान लगाया था, वहीं दूसरी ओर हमने पाया कि सभी वस्तुओं के लिए अस्थिरता में बढ़ोतरी हुई. हालांकि, चांदी के मामले में इसके प्रमाण कमज़ोर प्रतीत हो रहे हैं.

सीटीटी की वजह से टर्नओवर और तरलता में गिरावट आई है. नतीजतन इसका हेजिंग की प्रभावशीलता और सोना, चांदी और तांबे जैसी अहम वस्तुओं के लिए मूल्य प्रकटीकरण की क्रियाओं पर बुरा असर पड़ा है. 

अब एक अहम प्रश्न खड़ा होता है: जोखिम प्रबंधन या हेजिंग के प्रभाव का मामला. सूक्ष्म-स्तर पर विशुद्ध हेजर्स के लिए ये एक बुनियादी चिंता है. चुनी गई वस्तुओं के वायदा बाज़ार में सीटीटी से हेजिंग की प्रभावक्षमता पर पड़े असर की पड़ताल के लिए हमने एडरिंग्टन फॉर्मूला का प्रयोग करते हुए इकोनोमेट्रिक विश्लेषण के ज़रिए इसका अनुमान लगाया. सीटीटी के असर के चलते कच्चे तेल, सोना और चांदी में हेजिंग के प्रभाव में गिरावट दर्ज की गई. ये टेबल 2 से स्पष्ट होता है.

सीटीटी से पहले और सीटीटी के बाद के चरणों में हेजिंग के प्रभावों का आकलन

Estimate Aluminium Copper Crude Oil Gold Silver
Pre – CTT phase Hedging effectiveness 0.6272 0.1843 0.696 0.7503 0.743
Post – CTT phase Hedging Effectiveness 0.6967 0.5711 0.6228 0.7237 0.6977
Inference from a statistical significance perspective (Chow test p-value at 1% level) Change is not statistically significant Increased over time Declined after CTT Declined after CTT Declined after CTT

मूल्य प्रकटीकरण के व्यापक स्तर वाले क्रियाकलापों पर सीटीटी के प्रभाव की परख के लिए हमने गरबाडे-सिल्बर इकोनोमेट्रिक फ्रेमवर्क का इस्तेमाल किया. जैसे कि मूल्य प्रकटीकरण एक ऐसी घटना है जिसमें बाज़ार में भौतिक रूप वाले बाज़ार से समाहित की गई सूचनाओं के विभिन्न प्रकारों और समूचे तौर पर कमोडिटी इकोनॉमी से दूसरे बाज़ारों के लिए संदर्भ मूल्य तय करने में मदद मिलती है. प्राथमिक उत्पादकों, बाज़ार के मध्यवर्ती किरदारों और कॉरपोरेट आदि को अपने कृषि या फसल संबंधित कार्यों, स्टोरेज और मार्केटिंग आदि से जुड़े अहम निर्णय लेने में भी इससे मदद मिलती है. लिहाजा ऐसी उम्मीद की जाती है कि एक प्रभावी वायदा बाज़ार में भौतिक बाज़ारों के भविष्य की झलक मिले. हमारे इकोनोमेट्रिक फ्रेमवर्क से खुलासा हुआ है कि तांबा, सोना और चांदी के लिए मूल्य प्रकटीकरण क्रियाकलाप में सीटीटी लगाए जाने की वजह से कमी दर्ज की गई. हालांकि, यही बात तांबा और एल्यूमीनियम पर खरी नहीं उतरती है.

इस मामले में यहां से अब आगे कैसे बढ़ें?

निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि इसमें कोई शक नहीं है कि सीटीटी ने हेजिंग की कुल लागत को बढ़ाया है. हेजर्स या बाज़ार के दूसरे भागीदारों के लिए लेन-देन की लागत में वृद्धि निश्चित तौर पर न सिर्फ़ वस्तुओं के विनिमय के लिए बल्कि कुल मिलाकर देश की कमोडिटी इकोनॉमी के लिए एक प्रतिकूल कदम है. सीटीटी की वजह से टर्नओवर और तरलता में गिरावट आई है. नतीजतन इसका हेजिंग की प्रभावशीलता और सोना, चांदी और तांबे जैसी अहम वस्तुओं के लिए मूल्य प्रकटीकरण की क्रियाओं पर बुरा असर पड़ा है. इनमें से चांदी और तांबे का औद्योगिक क्षेत्र के कच्चे माल के तौर पर बेहद अहम इस्तेमाल होता है. भारत में घरेलू मकसद से और मूल्यवान वस्तु के रूप में सहेज कर रखने के लिए सोने के प्रति दीवानगी जगज़ाहिर है. कच्चे तेल और एल्युमिनियम के प्रति चिंताएं इसके मुक़ाबले ज़रा कम हैं. जहां तक कच्चे तेल का सवाल है तो वायदा एक्सचेंज में जिस क़िस्म के कच्चे तेल का कारोबार होता है उस क़िस्म का भारत में शायद ही आयात होता हो. दूसरी ओर एल्युमिनियम कारोबार की मात्रा इतनी सीमित है कि इसका भौतिक बाज़ार की ट्रेडिंग पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता. ऐसे में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस में वायदा कारोबार को जारी रखने की उपयोगिता पर फिर से विचार किए जाने की ज़रूरत है.

इसका असर अर्थव्यवस्था के अंदर समूचे कमोडिटी वैल्यू-चेन पर पड़ना तय है! वैसे एक प्रभावी कमोडिटी डेरिवेटिव्स बाज़ार द्वारा अपने मूल्य प्रकटीकरण क्रियाकलापों के ज़रिए बाज़ार का एकीकरण हो सकता था.

बहरहाल, डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग जैसे जोखिम प्रबंधन के माध्यम का दो कारकों की वजह से महत्व है:

  1. प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के मंत्र के हिसाब से विनिर्माण क्षेत्र के एक बड़े केंद्र का निर्माण
  2. फौरी तौर पर आरसीईपी से निकल जाने के बावजूद भारत लंबे समय तक वैश्वीकरण की ताक़तों से दूर नहीं रह सकता.

ऐसे में स्पष्ट है कि भारत को विश्वस्तरीय डेरिवेटिव्स विनिमय बाज़ार की आवश्यकता है. इनके ज़रिए यहां जोखिम प्रबंधन की बेहतरीन सुविधाएं उपलब्ध हो सकेंगी. अक्सर ये बात कही जाती है कि श्रम बाज़ार में सुधारों पर अमल न हो पाने, प्रत्यक्ष करों और जीएसटी की जटिलताओं से जुड़े मुद्दों, आपूर्ति-श्रृंखला के मामले में युक्तिसंगत नीतियों के अभाव जैसी वजहों से भारत में कारोबार करने में “लेन-देन की लागत” कुल मिलाकर पहले से ही काफ़ी ज़्यादा है. ऐसे में सीटीटी ने इस लागत को और बढ़ाने का काम किया है क्योंकि इसके ज़रिए हेजिंग की लागत बढ़ गई है. इसका असर अर्थव्यवस्था के अंदर समूचे कमोडिटी वैल्यू-चेन पर पड़ना तय है! वैसे एक प्रभावी कमोडिटी डेरिवेटिव्स बाज़ार द्वारा अपने मूल्य प्रकटीकरण क्रियाकलापों के ज़रिए बाज़ार का एकीकरण हो सकता था. लेकिन इसके रास्ते में सीटीटी एक बाधा बनकर खड़ी हो गई है और इसका समूची मूल्य-श्रृंखला पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे में इसको पूरी तरह से ख़त्म किए जाने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं. इसके द्वारा जो राजस्व हासिल हो रहा है वो बाज़ार में भागीदारी करने वालों और मूल्य-श्रृंखला के बाक़ी हिस्सेदारों को आ रही लागत के मुक़ाबले काफ़ी कम है!

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