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Published on Oct 18, 2025 Updated 0 Hours ago

2-4 सितंबर 2025 में सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वॉन्ग के तीन दिवसीय भारत दौरे ने समुद्री सुरक्षा के महासंग्राम में एक नया रंग भर दिया. पहली बार सिंगापुर ने मलक्का जलसंधि की गश्त में भारत की भूमिका को हरी झंडी दिखाकर क्षेत्रीय सामरिक रिश्तों को और गहरा किया. बढ़ती समुद्री चुनौतियों के बीच यह कदम न सिर्फ सुरक्षा को बल्कि भरोसे को भी मजबूत करता नजर आता है.

मलक्का जलसंधिः समुद्र की सड़क पर भारत का नया ट्रैफिक कंट्रोल

Image Source: Getty Images

2-4 सितंबर 2025 तक सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वॉन्ग के तीन दिवसीय भारत दौरे को दोनों देशों के बीच बढ़ते विश्वास की ओर एक कदम कहा जा सकता है. वॉन्ग की इस यात्रा के दौरान  दोनों पक्षों ने व्यापक रणनीतिक साझेदारी के रोडमैप की पहचान की और पांच एमओयू पर हस्ताक्षर किए. इसमें सबसे महत्वपूर्ण कदम था- सिंगापुर ने मलक्का जलडमरूमध्य की गश्त (एमएसपी) में शामिल होने के लिए भारत के रुचि को औपचारिक रूप से स्वीकार किया.

 भारत 2004 से ही इस समुद्री क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान करने की पेशकश करता रहा है लेकिन भारत को यहां गश्त करने वाले दूसरे देशों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है. यह पहली बार है जब एक एमएसपी सदस्य ने भारत की रुचि पर गौर किया.

बता दें, भारत 2004 से ही इस समुद्री क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान करने की पेशकश करता रहा है लेकिन भारत को यहां गश्त करने वाले दूसरे देशों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है. यह पहली बार है जब एक एमएसपी सदस्य ने भारत की रुचि पर गौर किया. हालांकि, सिंगापुर ने भारत की महत्वाकांक्षाओं का समर्थन किया है लेकिन इस बात की संभावना बहुत कम है कि भारतीय नौसेना मलक्का जलसंधि में गश्त करते हुए दिखाई देगी. 

 

समुद्री सुरक्षा और भारत की सीमित भूमिका

मलक्का जलसंधि की गश्त के लिए चार तटवर्ती देशों ने एक समूह बना रखा है जिसमें इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड शामिल हैं. समुद्री डकैती और समुद्री लूट को रोकने के उद्देश्य से बना ये गश्ती समूह आतंकवाद से लेकर तस्करी तक कई समुद्री ख़तरों से निपटता है. इसमें तीन मुख्य घटक शामिल हैं: मलक्का जलसंधि समुद्री गश्त (एमएसएसपी), “आकाश में आंखें” यानी आइज़ इन द स्काई (ईआईएस) संयुक्त समुद्री हवाई गश्त और खुफिया विनिमय समूह (आईईजी). ऐसे में संयुक्त गश्त के लिए किसी भी नई व्यवस्था या एक पांचवें साझेदार को शामिल करने के लिए सभी चार देशों की मंजूरी ज़रूरी होगी.

 

मलक्का जलसंधि में गश्ती करने वाले देशों ने लंबे समय से इस जलक्षेत्र की निगरानी में किसी भी गैर-तटीय देश की भागीदारी को अस्वीकार कर दिया है. एमएसपी की स्थापना बहुत जल्दबाजी में की गई थी और इसका मुख्य कारण ये था कि अमेरिका इस क्षेत्र में समुद्री डकैती को काबू करने के लिए अपनी अगुवाई में निगरानी का प्रस्ताव लाया था. इसी प्रस्ताव को रोकने के लिए जल्दबाजी में एमएसपी का गठन किया गया. मार्च 2005 में जापानी स्वामित्व वाली टगबोट 'इदातेन' पर हुए हमले के बाद, टोक्यो ने भी मलक्का स्ट्रेट की निगरानी में मदद के लिए जापान कोस्ट गार्ड को भेजने का प्रस्ताव रखा लेकिन मलेशिया ने इसे नामंजूर कर दिया.

 

एमएसपी में भारत को शामिल करने के उदाहरण पहले भी रहे हैं. 1 जुलाई 2005 को लॉयड्स के संयुक्त युद्ध ज़ोखिम समिति द्वारा इस जलक्षेत्र को “उच्च-ज़ोखिम युद्ध क्षेत्र” के रूप में वर्गीकृत किया गया. इसके बाद, समुद्री सुरक्षा पर एक नए त्रिपक्षीय तकनीकी विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया. इसमें उन “फनल्स” की ओर जाने वाले देशों को शामिल करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया जिनकी सीमाएं दोनों जलसंधियों में जाती हैं. इसमें थाईलैंड और भारत जैसे देश शामिल हैं. हालांकि, बाद में थाईलैंड को इस समूह में शामिल किया गया लेकिन संप्रभुता के मुद्दों के कारण भारत को बाहर रखा गया. इस गश्ती समूह में शामिल होने की भारत की कोशिशों को 2018 में एक बार फिर झटका लगा. इस बार इंडोनेशिया ने इसे 'असंभव' घोषित किया.

 

मलक्का और सिंगापुर जलसंधि के तटीय देशों ने प्रायद्वीप में अपनी संप्रभुता बनाए रखने के प्रति संवेदनशील रुख़ अपनाया है, विशेष रूप से इंडोनेशिया और मलेशिया. उन्होंने संयुक्त गश्त की प्रारंभिक योजना को कम कर दिया और इसे सदस्य देशों की पारस्परिक संप्रभुता का सम्मान करने वाले समन्वित गश्त प्रारूप तक सीमित कर दिया. यहां तक कि ईआईएस संयुक्‍त समुद्री हवाई गश्त में भी संबंधित देश के विमान प्रायद्वीप की लंबाई में गश्त नहीं करते. इसके बजाय, सदस्य देशों के अधिकारी उसी विमान में सवार होकर गश्त करते हैं. 1970 के दशक में, उन्होंने इसे लेकर एक कानूनी सिद्धांत स्थापित किया जिससे उन्हें मलक्का और सिंगापुर जलसंधि पर विशेष क्षेत्राधिकार मिला. बाद में, 2005 में शंग्री-ला संवाद के दौरान, इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर – एमएसपी के प्रारंभिक सदस्य – इस पर सहमत हुए कि तटवर्ती राज्यों की जलसंधि की सुरक्षा में मुख्य जिम्मेदारी है. इसके साथ ही, ये भी कहा गया कि इस समुद्री आवागमन के लिए इस जलक्षेत्र के उपयोगकर्ता देश और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भी महत्वपूर्ण भूमिका है जो राष्ट्रीय संप्रभुता के सम्मान और अंतर्राष्ट्रीय कानून के पालन पर आधारित है. हालांकि, सिंगापुर हमेशा इस विचार के प्रति सहमत रहा है कि इस जलमार्ग की निगरानी सभी संबंधित पक्षों द्वारा की जा सकती है.

 

बढ़ते समुद्री खतरे

मलक्का जलसंधि में गश्त सिर्फ एमएसपी के सदस्यों तक सीमित रहना चाहिए. ये बात सुनने में भले ही सही लगती हो लेकिन इसने इस क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों को नजरअंदाज़ कर दिया है. 2025 के पहले छह महीनों में ही इस समुद्री क्षेत्र में सशस्त्र डकैती की 72 घटनाएं हुई हैं. 2024 में इसी अवधि में लूट की 62 घटनाएं हुईं थीं. एशिया में जहाजों के खिलाफ समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती से निपटने के लिए क्षेत्रीय सहयोग समझौते (ReCAAP) ने मलक्का जलसंधि के दक्षिण में बढ़ती समुद्री डकैती गतिविधियों के बारे में चेतावनी जारी की है. पहले इस क्षेत्र में समुद्री डकैती की ज़्यादातर घटनाएं गैर-हिंसात्मक होती थीं जिसमें हमलावरों का पता चलने पर वो भाग जाते थे लेकिन हाल की घटनाएं इस बात का संकेत देती हैं कि समुद्री डाकुओं के हथियार लेकर आने की संभावना अधिक है.

 भारत के समुद्र आधारित व्यापार का लगभग 60 प्रतिशत और इसके तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) आयात का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मलक्का जलसंधि के माध्यम से गुजरता है. भारतीय नौसेना ने खुद को हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में 'सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाला' और 'पसंदीदा सुरक्षा साथी' के रूप में साबित किया है. चाहे 2004 में आई सुनामी हो या फिर 2025 में सिंगापुर के जहाज पर लगी आग हो

भारत की भागीदारी है क्यों जरूरी?

एमएसपी में शामिल होने की भारत की इच्छा सबके लिए लाभकारी और स्वाभाविक है. अमेरिका और जापान के विपरीत भारत इस समुद्री क्षेत्र से जुड़ा हुआ देश है. भारतीय नौसेना के जहाज अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में मज़बूत उपस्थिति बनाए रखते हैं  जो मलक्का जलसंधि से सिर्फ 600 किमी दूर स्थित हैं. भारत के समुद्र आधारित व्यापार का लगभग 60 प्रतिशत और इसके तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) आयात का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मलक्का जलसंधि के माध्यम से गुजरता है. भारतीय नौसेना ने खुद को हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में 'सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाला' और 'पसंदीदा सुरक्षा साथी' के रूप में साबित किया है. चाहे 2004 में आई सुनामी हो या फिर 2025 में सिंगापुर के जहाज पर लगी आग हो, भारत हमेशा हिंद महासागर के तटवर्ती क्षेत्रों में की गई मानवीय सहायता वाला निर्णायक देश रहा है. भारत के पास अदन की खाड़ी और पश्चिमी अरब सागर में नौसैनिक बलों की सबसे बड़ी तैनाती है. 2024 में लाल सागर के पूर्व में भारतीय नौसेना के 100-दिन के समुद्री डकैती विरोधी मिशन के दौरान 35 सोमालियाई डकैतों को गिरफ्तार किया गया. भारतीय नौसेना का “मिशन-आधारित तैनाती” सिद्धांत बंदरगाहों में नहीं बल्कि उन स्थानों पर तैनात रहने की बात करता है “जहां कुछ एक्शन हो रहा है”. इस सिद्धांत ने भारतीय नौसेना को भारत के करीबी पड़ोसी क्षेत्रों से आगे जाकर अन्य क्षेत्रीय नौसेनाओं के साथ संपर्क करने में सक्षम बनाया है.

 

ऐसे में ये धारणा सही नहीं है कि एमएसपी में भारत की भागीदारी तटवर्ती देशों की संप्रभुता को नुकसान करेगी. ये धारणा मलक्का जलसंधि की 'सह-समन्वित' संरचना को 'साझा' संरचना समझने में गलतफहमी है. जिस तरह एमएसपी के मौजूदा सदस्य इंडोनेशिया और मलेशिया भी एक-दूसरे के क्षेत्रीय जल में नहीं हस्तक्षेप करते, वैसे ही भारत भी इस सिद्धांत का पालन करेगा. भारत क्षेत्रीय सीमाओं का सम्मान करते हुए समन्वित गश्त चला सकता है. इसके अलावा, यह खुफिया और निगरानी साझा करने में मदद कर सकता है, और समुद्री क्षेत्र की जागरूकता (एमडीए) प्रदान कर सकता है. भारत अंडमान और निकोबार कमांड का इस्तेमाल शीघ्र प्रतिक्रिया के लिए अग्रिम समुद्री अड्डे के रूप में भी कर सकता है.

 मलक्का जलसंधि गश्त में शामिल होने का मतलब हस्तक्षेप करना नहीं है. इससे तटीय देशों की संप्रभुता कम नहीं होती. दक्षिणपूर्वी एशिया के लिए, मलक्का जलक्षेत्र की सुरक्षा में भारत को शामिल करना भविष्य में ज़रूरी भी हो सकता है.

भारत पहले एमएसपी में अपनी भूमिका स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में असमर्थ था. 2018 में भारतीय नौसेना ने मलक्का जलसंधि के भीतर गश्त रखने की उम्मीद जताई थी, लेकिन उसके बाद से भारत ने अपने रुख़ को और स्पष्ट किया है. भारतीय विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) पी. कुमारन ने एमएसपी की औपचारिक सदस्यता की बजाय “समन्वय” और “सहयोग” की बात की है. भारत का ये बयान क्षेत्रीय संवेदनाओं को लेकर उसकी समझ और प्रभुत्व स्थापित करने की बजाय विश्वास बढ़ाने के लक्ष्य को दर्शाती है. भारत के निरंतर सद्भावना संकेत, बहुपक्षीय अभ्यासों से लेकर दक्षिणपूर्वी एशिया में नौसेना कूटनीति तक, क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा के प्रति उसकी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को स्पष्ट करते हैं. 2024 में भारतीय नौसेना की ईस्टर्न फ्लीट की सिंगापुर, वियतनाम, मलेशिया, फिलीपींस और ब्रुनेई की सद्भावना यात्राओं ने उसके समुद्री साझेदारी के बढ़ते नेटवर्क को गहरा करने के इरादे और कोशिशों को दिखाया.

मलक्का जलसंधि गश्त में शामिल होने का मतलब हस्तक्षेप करना नहीं है. इससे तटीय देशों की संप्रभुता कम नहीं होती. दक्षिणपूर्वी एशिया के लिए, मलक्का जलक्षेत्र की सुरक्षा में भारत को शामिल करना भविष्य में ज़रूरी भी हो सकता है. 


प्रिसी पटनायक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंद-प्रशांत अध्ययन केंद्र में पीएचडी स्टूडेंट हैं

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