-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
भारत की नई राष्ट्रीय जल नीति में व्यक्त नए जल प्रशासन के अंतर्गत जल प्रबंधन को “एक बहु-अनुशासनात्मक और बहु-हितधारक दृष्टिकोण के माध्यम से चित्रित” किया गया है.
Image Source: Getty
केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने 2019 में एक नई राष्ट्रीय जल नीति का मसौदा तैयार करने के लिए मिहिर शाह के नेतृत्व में एक स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति का गठन किया था. इस समिति ने राष्ट्रीय जल नीति का मसौदा लगभग चार साल पहले ही प्रस्तुत कर दिया था. लेकिन तब से इस नीति मसौदे के दस्तावेज़ के बारे में लगभग चुप्पी ही नज़र आती है. यह ख़ामोशी भारत को उस दिशा में आगे बढ़ने से वंचित करती है जिसे मिहिर शाह ने जल प्रबंधन के लिए एक बहु-अनुशासनात्मक और बहु-हितधारक दृष्टिकोण के माध्यम से चित्रित एक "नए जल शासन प्रतिमान" के रूप में पेश किया है.
पिछले एक दशक से हमारा देश जल प्रशासन के क्षेत्र में दो विरोधी परिपेक्ष्यों के बीच के एक शांत संघर्ष का गवाह है. एक तरफ, केंद्रीय जल आयोग जैसे संस्थानों के नेतृत्व में मौजूदा जल वितरण प्रणाली नदियों और जल निकायों पर बांधों, बैराजों और डायवर्जन चैनलों जैसे संरचनात्मक इंटरवेंशन के माध्यम से जलापूर्ति को बेहतर करने की योजनाओं के पक्ष में है. यह दृष्टिकोण निहित औपनिवेशिक जल इंजीनियरिंग प्रतिमान का समर्थन करके उसे अपनाने और प्रचार करने में रुचि रखता है. इसके ठीक विपरीत इस पारंपरिक इंजीनियरिंग सोच को आधुनिक वाटर प्रोफेशनल्स यानी जल पेशेवरों द्वारा चुनौती दी गई है जो एक अधिक व्यापक और समग्र जल प्रशासन परिप्रेक्ष्य का समर्थन और प्रस्ताव करते हैं. यह सोच सामाजिक और पारिस्थितिक रूप से ज़्यादा, कई मायनों में, अवगत है और नए ज्ञान के संचय के प्रति सचेत होकर उभर रही है. यह नया उभरता हुआ प्रतिमान ज्ञान आधारित और अंतःविषय के ढांचे में सन्निहित है और इसे एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन अथवा इंटीग्रेटेड वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट (IWRM) के रूप में भी जाना जाता है .
पिछले पांच दशकों से जो सोच वैश्विक मूल्य निर्धारण का प्रतिनिधित्व करती है वह पारंपरिक जल आपूर्ति-वृद्धि योजनाओं से अलग हटकर नए तरीके से जल प्रबंधन पर जोर देती है और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की अखंडता को ध्यान में रखती है. 1970 के दशक के बाद से, दुनिया भर के वाटर प्रोफेशनल्स ने नदी-जल घाटी पर हो रहे हानिकारक प्रभावों का हवाला देते हुए पारंपरिक संरचनात्मक सोच पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है. यूरोपीय संघ (EU) और संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) ने काफ़ी पहले ही इस तरह के जल आधारित प्रोजेक्ट कार्य से हो रहे प्रकृति पर हस्तक्षेपों के हानिकारक प्रभावों को स्वीकार किया जिसके कारण रिवर सिस्टम पर और उस नदी से संबंधित सामुदायिक आजीविका पर गंभीर नुक़सान हो रहे थे. उन्होंने पाया कि संरचनात्मक हस्तक्षेपों ने प्राकृतिक इकोसिस्टम को प्रभावित किया है और इकोसिस्टम से संबंधित महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करने में सक्षम प्रकृति की क्षमता को हानि पहुंचाई है. यानी पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा मानव जाति को प्रदान की जाने वाली अमूल्य धरोहर जैसे की मत्स्य पालन, पानी, जलवायु का समन्वय, कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन आदि प्रक्रियाएं जिस पर घाटी में रहने वाला समाज निर्भर था उसे गंभीर चोट पहुंचाई है.
पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा मानव जाति को प्रदान की जाने वाली अमूल्य धरोहर जैसे की मत्स्य पालन, पानी, जलवायु का समन्वय, कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन आदि प्रक्रियाएं जिस पर घाटी में रहने वाला समाज निर्भर था उसे गंभीर चोट पहुंचाई है.
जैसे-जैसे समय के साथ समस्या का दायरा बढ़ता गया, इस दिशा में और भी सुधारात्मक कदम उठाए गए. यूरोपीय संघ (EU) द्वारा 2000 में वाटर फ्रेमवर्क डायरेक्टिव को अपनाए जाने के साथ ही पिछले एक दशक में फ्रांस, स्वीडन, फिनलैंड, स्पेन और यूनाइटेड किंगडम में लगभग 5,000 बड़े बांध और उसके जैसे संरचनात्मक इंटरवेंशंस को ख़त्म कर दिया गया है. वाटर फ्रेमवर्क डायरेक्टिव के अनुसार यूरोपीय संघ (EU) के सदस्य देश पानी की मांग के प्रबंधन के लिए (आपूर्ति केंद्रित सोच से हटकर) नई सोच को बढ़ावा देने के लिए बड़े कदम उठा रहे हैं जो पानी को प्रवाहित रखते हुए प्राकृतिक हाइड्रोलॉजिकल फ्लो व्यवस्था को बनाए रखने की कोशिश करते हैं. इससे नदियों और जल निकायों के पारिस्थितिक स्वास्थ्य को बेहतर करने में बहुत मदद मिल रही है. इसी तरह, अमेरिका, जो कभी संरचनावादी सोच का सबसे बड़ा हितैषी था और जो हूवर बांध और टेनेसी घाटी परियोजनाओं जैसे इंजीनियरिंग चमत्कारों की मिसाल था उसने हाल के दशकों में नदियों पर 1,000 से अधिक ऐसी संरचनाओं को हटा दिया है.
समाधान केवल बांध को हटाने और ख़त्म करने तक सीमित नहीं है. अब नदियों में पानी के संरक्षण के लिए संस्थागत तरीकों का भी उपयोग किया जा रहा है. उदाहरण के लिए, दक्षिण अमेरिकी देश चिली में भूमि के स्वामित्व से हटकर जल अधिकारों का लेन देन करने के लिए 1981 नेशनल वाटर कोड यानी राष्ट्रीय जल संहिता पेश की गई. इसी प्रकार किसानों के बीच जल उत्पादकता बढ़ाने और स्थायी जल प्रबंधन में योगदान करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित और सक्षम बनाने के लिए ऑस्ट्रेलिया में मुर्रे-डार्लिंग घाटी पर जल बाज़ार स्थापित किए गए हैं. सबसे हालिया उदाहरण कैलिफोर्निया में वाटर डेरिवेटिव ट्रेडिंग का शुरू किया जाना है जो पश्चिमी अमेरिका में पानी की उपलब्धता के ख़तरे को कम करने के लिए शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज प्लेटफॉर्म के माध्यम से 2019 में शुरू किया गया.
इस नई वैश्विक सोच और परिवर्तन के प्रति रुझान के ठीक विपरीत भारत की जल क्षेत्र में कार्यरत नौकरशाही ने उभरती हुई वैश्विक सोच के प्रति अपने प्रतिरोध को साफ़ व्यक्त किया है. नई दृष्टिकोण की ओर आगे बढ़ने के किसी भी प्रयास का इस नौकरशाही द्वारा जोरदार विरोध किया गया है जो दीर्घकालिक स्थिरता के मुद्दों की बजाय तत्काल आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देते हुए जल संसाधन विकास की कई पुरानी अवधारणाओं से जुड़े रहना चाहते हैं. हालांकि पिछले एक दशक में व्यापक जल प्रशासन की दिशा में देश को ले जाने के लिए कुछ विशेष पहल की गई है. दो महत्वपूर्ण विधेयक तैयार किए गए जिसमें ड्राफ्ट नेशनल वाटर फ्रेमवर्क बिल 2016 (NWFB) और मॉडल बिल फॉर द कंज़र्वेशन, प्रोटेक्शन, रेगुलेशन एंड मैनेजमेंट ऑफ़ ग्राउंडवाटर 2016 शामिल है. साथ ही, जल सुधारों के लिए 21वीं सदी के इंस्टीट्यूशनल आर्किटेक्चर शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी. केंद्रीय जल आयोग (CWC) और केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) जैसे मौजूदा शासन संस्थाओं को समाप्त करने और एक एकीकृत राष्ट्रीय जल आयोग के गठन की बात करने वाली अंतिम रिपोर्ट को जल संबंध नौकरशाही तंत्र के व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा जो न केवल ढांचागत संस्थान का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि भारत में जल शासन प्रणाली पर हावी संस्थागत विचार प्रक्रिया का भी प्रतिनिधित्व करता है. राष्ट्रीय जल नीति 2020 नवीनतम दस्तावेज़ है, जो समाचार पत्रों के लेखों के अनुसार जो ज़्यादातर मिहिर शाह द्वारा ही लिखे गए है, यह स्पष्ट करता है कि वह दस्तावेज़ परिवर्तन का आह्वान करता है. हालांकि वह दस्तावेज़ बहुत पहले प्रस्तुत किया गया था, वह अभी तक पेश नहीं किया गया है.
मिहिर शाह द्वारा लिखे गए लेखों की एक श्रृंखला में स्पष्ट किया गया है कि नई राष्ट्रीय जल नीति इस देश की जल नीति में परिवर्तनकारी साबित होने वाली है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि, हिमालय और प्रायद्वीपीय स्रोतों दोनों से, उद्गम करने वाली भारतीय नदियों को ब्रिटिश कालीन इंजीनियरिंग सोच द्वारा संचालित पुराने अदूरदर्शी चिंतन के कारण नुक़सान हुआ है. राज्यों के बीच का कावेरी जल विवाद पर न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए अंतिम निर्णय के साथ संबंधित समस्याएं, पश्चिम बंगाल में फरक्का बैराज के कारण बिहार में बाढ़ के आने का आरोप और नदियों को आपस में जोड़ने वाली परियोजनाओं के अनुमानित पारिस्थितिक प्रभाव, सभी इस सोच के अनुरूप हैं कि ब्रिटिश कालीन इंजीनियरिंग सोच की अंतर्निहित कमी केवल जल असुरक्षा को बढ़ाएगी और भविष्य की विकास चुनौतियों का सामना करना और जटिल बना देगी.
राष्ट्रीय जल नीति 2020 नवीनतम दस्तावेज़ है, जो समाचार पत्रों के लेखों के अनुसार जो ज़्यादातर मिहिर शाह द्वारा ही लिखे गए है, यह स्पष्ट करता है कि वह दस्तावेज़ परिवर्तन का आह्वान करता है.
नए उभरती सोच को अपनाने से भारत में जल प्रशासन के लिए एक प्रणाली केंद्रित दृष्टिकोण को अपनाने में मदद मिलेगी और इसमें सामान्य जल प्रबंधन और विशेष रूप से नदी घाटी योजनाओं का शासन दोनों शामिल हैं. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक पेपर में IWRM के सिद्धांतों का सारांश दिया गया है और उन्हें नई राष्ट्रीय जल नीति में शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. ये सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
यह केवल एक समग्र और एकीकृत मूल्यांकन ढांचे के माध्यम से संभव हो पाएगा जिसमें जल और इसके प्रवाह से जुड़ी आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी तंत्र की बातों का मूल्यांकन भी शामिल है.
जैसा कि पहले भी साफ़ किया गया है, यह एक उभरता प्रतिमान है और यह सब एक नीतिगत ढांचे को विकसित करने के लिए एक व्यापक दिशा प्रदान करता है. इन्हीं कारण से ऊपर व्यक्त बिंदुओं को सब कुछ नहीं माना जा सकता बल्कि यह नीतिगत सोच भविष्य की चुनौतियों की बेहतर समझ और समय के साथ प्राप्त ज्ञान के आधार पर परिवर्तित और बेहतर की जाएगी. उभरते प्रतिमान के इर्द गिर्द एक व्यापक सोच के रूप में उपरोक्त बातें केवल वर्तमान आधुनिक सोच को दर्शाने का काम करती हैं. इस लेख के लेखक ने 2020 में राष्ट्रीय जल नीति मसौदा समिति के सामने इन बिंदुओं को प्रस्तुत किया और लेखक को यह उम्मीद है कि नई राष्ट्रीय जल नीति के मसौदे में इन बिंदुओं का ध्यान रखा गया है. हालांकि, उन्हें शामिल किया गया है या नहीं यह केवल तभी पता चल सकता है जब नीति को जनता के सामने पेश किया जाए और उस पर चर्चा और बहस की जाए. यह प्रक्रिया आज बहुत ज़रूरी है क्योंकि जल प्रशासन और सुरक्षा पहले से ही भारत के विकास के रास्ते में एक बड़ी चुनौती है और अगर इसे प्रभावी ढंग से नहीं निपटा गया तो भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आएगी.
निलांजन घोष ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक निदेशक के पद पर कार्यरत हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Dr Nilanjan Ghosh is Vice President – Development Studies at the Observer Research Foundation (ORF) in India, and is also in charge of the Foundation’s ...
Read More +