Author : Sushant Sareen

Expert Speak Raisina Debates
Published on Sep 19, 2024 Updated 1 Days ago

जैसे जैसे बलूचिस्तान में अशांति बढ़ रही है, वैसे वैसे चीन अपने समीकरणों को नए सिरे से साधने की कोशिश कर रहा है: चीन के सामने बड़ा सवाल यही है कि पाकिस्तान, उसके लिए कितना उपयोगी रह गया है और चीन को पाकिस्तान में कितना कुछ दांव पर लगाना चाहिए?

बलूचिस्तान में चीन की CPEC परियोजना का लड़खड़ाना यानी डूबते जहाज़ का संकेत!

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बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) के बेहद जटिल, ज़बरदस्त तालमेल वाले और काफ़ी तबाही मचाने वाले ऑपरेशन हेरोफ की वजह से पैदा हुए झटके अब तक पूरे पाकिस्तान में महसूस किए जा रहे हैं, वो भी उस वक़्त जब पाकिस्तान की सरकार और वहां की फौज, बलोच बग़ावत को कुचलने के अपने आज़माए हुए मगर नाकाम नुस्खे को और सख़्ती से लागू करने की कोशिश कर रही है. वैसे तो बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री, जिन्हें फौजी तंत्र का मोहरा माना जाता है, उन्होंने अपने सूबे में बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान चलने के संकेत दिए हैं. लेकिन, पाकिस्तान के केंद्रीय गृह मंत्री मोहसिन नक़वी ने उनसे अलग राय व्यक्त की और कहा कि बलूचिस्तान में सैन्य अभियान की आवश्यकता नहीं है. मोहसिन नक़वी के मुताबिक़, बलूचिस्तान के उपद्रव से निपटने के लिए तो वहां का एक थाना प्रभारी ही पर्याप्त है. हालांकि, बलूचिस्तान की समस्या अगर इतनी ही आसान होती, तो इसका हल तो बहुत समय पहले ही निकाल लिया जाता. इसके बजाय आज पूरा बलूचिस्तान सूबा बग़ावत की ऐसी आग में झुलस रहा है, जिसको बड़े पैमाने पर जनसमर्थन हासिल है. हालात इस मोड़ तक जा पहुंचे हैं कि बलूचिस्तान के पूर्व मुख्यमंत्री और वहां के बड़े राजनेता अख़्तर मेंगल ये कहने को मजबूर कर दिया कि आज की तारीख़ में न तो मुख्यधारा के नेता और न ही डॉक्टर माहरंग बलोच जैसे ज़िद्दी सामाजिक कार्यकर्ता और बलोच यकजहती कमेटी ही प्रासंगिक रह गए हैं. अख़्तर मेंगल को यक़ीन है कि पाकिस्तानी फ़ौज को अब उग्रवादियों से सीधे बात करने की ज़रूरत पड़ेगी, क्योंकि अब दबदबा उन्हीं का है. 

पिछले कई वर्षों से चीन, बलूचिस्तान के लगातार बिगड़ते हालात पर नज़र बनाए हुए है और उसकी फ़िक्र बढ़ती जा रही है. एक दशक पहले जब चीन ने बेहद महत्वाकांक्षी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर से पर्दा उठाया था, तब पाकिस्तान ने इसे अपने लिए एक ऐसा जादुई नुस्खा बताया था, जो उसकी तमाम आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी मसलों को चुटकी बजाते हुए सुलझा देगा.

पिछले कई वर्षों से चीन, बलूचिस्तान के लगातार बिगड़ते हालात पर नज़र बनाए हुए है और उसकी फ़िक्र बढ़ती जा रही है. एक दशक पहले जब चीन ने बेहद महत्वाकांक्षी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर से पर्दा उठाया था, तब पाकिस्तान ने इसे अपने लिए एक ऐसा जादुई नुस्खा बताया था, जो उसकी तमाम आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी मसलों को चुटकी बजाते हुए सुलझा देगा. वहीं चीन ने अपनी तरफ़ से इस आर्थिक गलियारे का दर्जा बढ़ाकर इसे राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की ‘सबसे अहम’ परियोजना क़रार दिया था. चीन की योजना थी कि वो CPEC का इस्तेमाल करके पाकिस्तान का पुनर्निर्माण करेगा और वहां स्थिरता स्थापित करेगा. लेकिन, चीन का ये दांव कारगर नहीं साबित हुआ है. इसके उलट, आज चीन और पाकिस्तान के बीच आर्थिक गलियारा वहां अस्थिरता का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है. इसकी वजह से पाकिस्तान क़र्ज़ के जाल में फंस गया है, क्योंकि उसके ऊपर बड़ी महंगी महंगी परियोजनाएं इस गलियारे के तहत थोपी गईं. इसकी वजह से CPEC का पाकिस्तान पर नकारात्मक सियासी असर हुआ है. ये बात बलोचों जैसे हाशिए पर पड़े तबक़ों के बीच चीनियों के प्रति ग़ुस्से के रूप में दिखाई दे रही है.

 

लड़खड़ाती योजनाएं

 

BRI की दूसरी परियोजनाओं की तरह ही चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी लड़खड़ा रहा है. ये गलियारा बलूचिस्तान के ग्वादर से गिलगित बाल्टिस्तान के खुंजेराब दर्रे तक जाता है. आज इस गलियारे को लेकर, सिर्फ़ इसके दोनों छोरों पर ही नहीं, बल्कि पूरे पाकिस्तान में गंभीर समस्याएं खड़ी हो रही हैं. CPEC की कुछ समस्याएं तो पाकिस्तान और उसके क़ब्ज़े वाले हर इलाक़े की तरह आम हैं. मसलन, घटिया नीति निर्माण, लागू करने में नाकारापन, राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक क़िल्लत और प्रशासन का आलस. लेकिन, गिलगित बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान में तो इस गलियारे के सामने सबसे बड़ी चुनौती सुरक्षा से जुड़ी है. पाकिस्तान के एक पत्रकार के मुताबिक़, गिलगित से ग्वादर तक (G2G) का ये गलियारा अब आतंकियों के हमलों का मुख्य निशाना बन गया है…[जो] चीन को पाकिस्तान में CPEC की पूरी संभावनाओं का दोहन करने से रोकने के लिए किए जा रहे हैं.

पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले गिलगित बाल्टिस्तान इलाक़े में सांप्रदायिक तनाव, आर्थिक मुसीबतों और राजनीतिक उथल पुथल की वजह से अशांति बढ़ती जा रही है. पाकिस्तान को चीन से जोड़ने वाला ये पूरा इलाक़ा, पाकिस्तान विरोधी आतंकवादी संगठनों के फलने फूलने का उर्वर क्षेत्र बन गया है.

गिलगित बाल्टिस्तान आज सांप्रदायिक संघर्ष का एक प्रमुख मोर्चा बनकर उभर रहा है. वहां पर तहरीक़ ए तालिबान पाकिस्तान और इस्लामिक स्टेट खुरासान (ISKP) जैसे दूसरे जिहादी आतंकवादी संगठन सक्रिय हो गए हैं. इन आतंकवादियों के निशाने पर चीनी नागरिक भी हैं. वैसे तो पाकिस्तानियों का रुझान यही है कि वो इन आतंकी हमलों को CPEC के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय साज़िश बताकर अपना पल्ला झाड़ लें. लेकिन, हक़ीक़त कहीं ज़्यादा पेचीदा है. चीन को निशाना बनाने के पीछे जिहादियों की अपनी वैचारिक और रणनीतिक शिकायतें और वजहें हैं. पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले गिलगित बाल्टिस्तान इलाक़े में सांप्रदायिक तनाव, आर्थिक मुसीबतों और राजनीतिक उथल पुथल की वजह से अशांति बढ़ती जा रही है. पाकिस्तान को चीन से जोड़ने वाला ये पूरा इलाक़ा, पाकिस्तान विरोधी आतंकवादी संगठनों के फलने फूलने का उर्वर क्षेत्र बन गया है. ज़ाहिर है कि इस इलाक़े में काम करने वाले चीनी नागरिक इन जिहादियों के लिए वाजिब लक्ष्य बन गए हैं, क्योंकि उनको निशाना बनाकर आतंकवादी संगठन, चीन और पाकिस्तान के बीच दरार डाल पाते हैं. पिछले साल मार्च में बेशम में चीन के इंजीनियरों पर आत्मघाती हमले से पहले से ही ये कहा जा रहा था कि तमाम परियोजनाओं में काम कर रहे चीन के कर्मचारियों पर गंभीर ख़तरे की आशंका जताई जा रही थी.

 

चीन के नज़रिए से बलूचिस्तान के हालात तो और भी ख़राब हैं. बलूचिस्तान सूबे में बड़े पैमाने पर विद्रोह की आग सुलग रही है. आज पाकिस्तान के सुरक्षा बलों पर हमले रोज़मर्रा की बात बन चुके हैं. बलोच लड़ाके अब चीनियों पर सिर्फ़ बलूचिस्तान में ही नहीं, बल्कि कराची में भी हमले कर रहे हैं. इन हमलों की वजह से ही CPEC की ज़्यादातर बड़ी परियोजनाएं लक्ष्य से काफ़ी पीछे चल रही हैं. पाकिस्तान में आर्थिक गलियारा हो या दूसरी परियोजनाएं, सभी में चीन का निवेश या तो बंद हो गया है, या बहुत कम हो गया है. CPEC का मुख्य आधार ग्वादर बंदरगाह अब तक पूरी तरह से चालू नहीं हो सका है. इस बंदरगाह पर कोई कारोबारी जहाज़ आ या जा नहीं रहे हैं. हालात इस मकाम पर पहुंच गए हैं कि पाकिस्तान की हुकूमत ने सभी सरकारी विभागों को मजबूर करना शुरू कर दिया है कि वो अपने आयात का 50 प्रतिशत कारोबार ग्वादर बंदरगाह से ज़रिए मंगाएं, ताकि यहां जहाज़ों की आवाजाही तो बढ़ाई जा सके. ग्वादर ऐसा क़िला बन गया है, जहां से सुरक्षा कारणों की वजह से स्थानीय बलोचों को पूरी तरह से दूर रखा जा रहा है. चीन और उसके पाकिस्तानी हरकारों के प्रति नाराज़गी आज अपने शीर्ष पर है. क्योंकि, स्थानीय लोगों से बड़े बड़े वादे किए गए थे और उन्हें जो ख़्वाब दिखाए गए थे, उनमें से अधिकतर छलावा साबित हुए हैं.

बलोच नागरिक, चीनियों को नए उपनिवेशवादियों की तरह से देखते हैं. ग्वादर बंदरगाह को जिस तरीक़े से विकसित किया गया, उससे बलोचों की ये सोच मज़बूत हुई है कि पाकिस्तान और चीन, बलूचिस्तान के संसाधनों का दुरुपयोग कर रहे हैं और स्थानीय समुदायों को इसका ज़रा भी लाभ नहीं मिल रहा है.

बलोच नागरिक, चीनियों को नए उपनिवेशवादियों की तरह से देखते हैं. ग्वादर बंदरगाह को जिस तरीक़े से विकसित किया गया, उससे बलोचों की ये सोच मज़बूत हुई है कि पाकिस्तान और चीन, बलूचिस्तान के संसाधनों का दुरुपयोग कर रहे हैं और स्थानीय समुदायों को इसका ज़रा भी लाभ नहीं मिल रहा है. आज की तारीख़ में बलूचिस्तान में जहां भी चीनी नागरिक रहते हैं, वहां स्थानीय लोगों को आने जाने के लिए परमिट लेना पड़ता है और पूरे इलाक़े में फैले चीनी ठिकानों से गुज़रने के लिए बलोचों को रोज़मर्रा की अपमानजनक सख़्त सुरक्षा जांच से गुज़रना पड़ता है. बलूचिस्तान में ऐसी नस्लवादी नीतियों की वजह से ही चीनी नागरिक हाल के बलोच राजी मुची या फिर ‘हक़ दो तहरीक़’ जैसे राजनीतिक प्रतिरोध आंदोलनों को हवा दे रहे हैं. इन नीतियों की वजह से ही बलोच लड़ाकों को, पाकिस्तान के सैन्य बलों और चीन की परियोजनाओं और कर्मचारियों को निशाना बनाने वाले अपने सैन्य अभियानों को जायज़ ठहराने का मौक़ा मिल रहा है.

 

चीन के लिए पाकिस्तान का आर्थिक गलियारा (CPEC) बहुत बड़े असमंजस का विषय बन गया है. राजनीतिक रूप से तो ये पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ है. इसके ज़रिए पाकिस्तान के सुदूर इलाक़ों में रहने वालों को लुभाने के बजाय अब उनकी नाराज़गी और बढ़ गई है और उसके निशाने पर ख़ुद चीन आ गया है. CPEC को गेम-चेंजर बताने बाड़े बड़े बड़े दावे पूरी तरह खोखले साबित हुए हैं. वैसे तो पाकिस्तान, अभी भी चीन के लिए सामरिक रूप से काफ़ी अहम बना हुआ है. लेकिन, आर्थिक तौर पर वो बहुत नुक़सानदेह साबित हुआ है. आर्थिक गलियारे की जो परियोजनाएं चल भी रही हैं, उनसे चीन को बहुत घाटा हो रहा है. पाकिस्तान, इनके नाम पर लिए गए क़र्ज़ों को समय पर वापस नहीं कर पा रहा है. CPEC के तहत स्थापित की गई बिजली परियोजनाओं का तो ख़ास तौर से बुरा हाल है. आर्थिक गलियारे की कामयाबी के लिए ज़रूरी कई अहम परियोजनाएं अटकी पड़ी हैं. फिर भी पाकिस्तान न केवल चीन को नई परियोजनाओं (जिनमें से कई तो वित्तीय रूप से अनुपयोगी हैं) में अरबों डॉलर का निवेश करने के लिए कह रहा है, बल्कि वो CPEC के दूसरे प्रोजेक्ट के क़र्ज़ों की शर्तों पर भी नए सिर से बातचीत के लिए कह रहा है. हालांकि, चीन अपने ‘लौह बिरादर’ के लिए भी आर्थिक गलियारों के पुराने ठेकों पर नए सिरे से वार्ता करने को तैयार नहीं है. CPEC से जुड़े आर्थिक नुक़सान और सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंताओं की वजह से चीन का निवेश धीमा पड़ता जा रहा है.

 

चीन को दोहरा नुकसान

 

जहां तक चीनियों की बात है, तो पाकिस्तान में पैसे गंवाना तो पहले से बुरी बात थी, पर अब तो चीनी नागरिकों की जानें भी जा रही हैं, जो चीन को क़तई स्वीकार्य नहीं है. अब चीन के अधिकारी पाकिस्तान को खुलकर ये बात कह रहे हैं. चीनी अधिकारियों ने साफ़ कर दिया है कि पाकिस्तान में आगे जो भी निवेश होगा, वो न केवल सुरक्षा के हालात बेहतर होने पर निर्भर करेगा, बल्कि इसके लिए राजनीतिक स्थिरता और मीडिया में ‘दोस्ताना’ माहौल भी बनाना होगा. जहां तक पाकिस्तान के मुख्यधारा के मीडिया की बात है, तो वहां की फौज पहले से ही उसे अपना पालतू बना चुकी है. लेकिन, राजनीतिक स्थिरता अभी भी दूर की कौड़ी बनी हुई है. एक असैन्य सरकार की आड़ में फौज का शासन लागू करने की कोशिशें कामयाब नहीं हो रही हैं. इसके उलट, इन्हीं वजहों से अस्थिरता बढ़ती जा रही है. पाकिस्तान के सुरक्षित माहौल बनाना भी मुश्किल और चुनौतीपूर्ण साबित होता जा रहा है, फिर चाहे फौजी लिहाज से हो या आर्थिक नज़रिए से. आज पाकिस्तान में चीन का 21 अरब डॉलर का निवेश है, और, पाकिस्तान सुरक्षा के लिए केवल 20 करोड़ डॉलर ख़र्च करने के लिए ही तैयार है. वैसे तो पाकिस्तान ने CPEC की परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए फौज की दो नई डिवीज़नें खड़ी की हैं. लेकिन, जितने बड़े स्तर पर हिंसा बढ़ रही है, उनसे इतने सैनिक भी पर्याप्त नहीं लग रहे हैं.

चीन के अधिकारी पाकिस्तानियों से कह रहे हैं कि वो अपनी व्यवस्था दुरुस्त करें और उनकी परियोजनाओं और नागरिकों की हिफ़ाज़त सुनिश्चित करें. कुछ वर्षों पहले ऐसी ख़बरें आई थीं की चीनियों ने बलोच अलगाववादियों से बातचीत के लिए अपने रास्ते खोल लिए हैं.

चीन के अधिकारी पाकिस्तानियों से कह रहे हैं कि वो अपनी व्यवस्था दुरुस्त करें और उनकी परियोजनाओं और नागरिकों की हिफ़ाज़त सुनिश्चित करें. कुछ वर्षों पहले ऐसी ख़बरें आई थीं की चीनियों ने बलोच अलगाववादियों से बातचीत के लिए अपने रास्ते खोल लिए हैं. कहा जाता है कि चीन, बलोच उग्रवादियों को लुभाने और अपनी परियोजनाओं और नागरिकों पर हमले रोकने के लिए बलोचों को रिश्वत भी दे रहा है. हालांकि, चीन को इसका कोई ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ. क्योंकि हमले और बढ़ ही गए हैं. इसी वजह से चीनियों के पहले के रुख़ के मुक़ाबले अब काफ़ी तब्दीली आ गई है. पहले जहां चीनियों को ये लग रहा था कि बातचीत और रिश्वत से वो उग्रवादियों से अपनी बातें मनवा लेगा. लेकिन, अब चीनी अधिकारी पाकिस्तान पर दबाव बना रहे हैं कि वो बलोचों के ख़िलाफ़ बड़ा सैन्य अभियान चलाएं ताकि सुरक्षा के ख़तरों को दूर किया जा सके. पिछले साल मई में पाकिस्तान के अख़बार बिज़नेस रिकॉर्डर ने अपने पहले पन्ने पर ये ख़बर छापी थी कि चीन ने पाकिस्तान से कहा है कि वो आतंकवादियों के ख़िलाफ़ ज़र्ब-ए-अज़्ब की तरह का नया सैन्य ऑपरेशन शुरू करे. ये ख़बर छपने के कुछ घंटों के भीतर ही इसको अख़बार की वेबसाइट और यहां तक कि ई-पेपर से भी हटा दिया गया था. लेकिन, इसके कुछ हफ़्तों बाद ही पाकिस्तान की सरकार ने ऑपरेशन अज़्म-ए-इस्तेहकाम के नाम से एक बड़ा सैन्य अभियान शुरू करने का एलान किया था. इसके कुछ दिनों बाद ही आम लोगों की तरफ़ से इस नए सैनिक अभियान का कड़ा विरोध होने की वजह से सरकार को पीछे हटना पड़ा और ये सफाई देनी पड़ी कि ये कोई बड़ा सैन्य ऑपरेशन नहीं था, बल्कि आतंकवादियों के ख़िलाफ़ ख़ुफ़िया जानकारी के आधार पर चलाया जाने वाला सीमित ऑपरेशन है.

 

दुविधा

 

अब चीन और पाकिस्तान दोनों ही दुविधा में हैं. पाकिस्तान की नज़र से देखें, तो अगर कोई बड़ा सैन्य अभियान शुरू किया जाता है, तो बलूचिस्तान में पहले से कहीं ज़्यादा उथल-पुथ मच जाएगी. वैसे बलूचिस्तान में 2001 से ही किसी न किसी रूप में फौजी अभियान चलता ही आया है. हालांकि, पाकिस्तान के अधिकारी ये दावा कर रहे हैं कि नया ऑपरेशन बहुत बड़ा नहीं होगा; लेकिन, लक्ष्य आधारित अभियान तो रुके ही नहीं हैं और साफ़ है कि वो असरदार भी नहीं साबित हुए हैं. बलोच अलगाववादियों का सफाया तो क्या ही होता, अब वो ज़्यादा ताक़तवर, सक्षम और घातक हो गए हैं. अब वो हुकूमत के मुख्य विरोधी हो गए हैं और उन्होंने पाकिस्तान के सामने संवाद की अपनी शर्तें रख दी हैं. वो तब तक बात नहीं करेंगे, जब तक पाकिस्तान, बलूचिस्तान से अपने सैनिक नहीं हटा लेता. जहां तक बड़े सैन्य ऑपरेशन का सलाह है, तो अब वो कोई विकल्प रह नहीं गया है. इससे पाकिस्तानी फौज पर दबाव और बढ़ जाएगा. क्योंकि वो पहले से ही तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (TTP) से मुक़ाबला कर रही और आतंकवादियों की घुसपैठ कराकर भारत से तनाव बढ़ा रही है. सैन्य अभियान शुरू हुआ, तो आर्थिक गतिविधियां ठप हो जाएंगी. जब तक ये ऑपरेशन चलेगा, तब तक बलूचिस्तान ही नहीं, पूरे पाकिस्तान में कोई नया निवेश नहीं होगा. सैन्य अभियान बहुत महंगे सौदे साबित होते रहे हैं, ख़ास तौर से पाकिस्तान के लिए, जिसका ख़ज़ाना तो पहले से ही ख़ाली है.

 

अब चीन के सामने दुविधा ये है कि वो पाकिस्तान के ऊपर कब तक अपने पैसे लुटाता रहे. किसी ऐसी सामरिक नीति की आर्थिक क़ीमत क्या होगी, जो पाकिस्तान जैसे परजीवी को एक साझीदार और सहयोगी बनाए रखने के लिए लागू की जा रही है. ऐसे संकेत हैं कि पाकिस्तान को पैसे देने के मामले में चीन काफ़ी कंजूसी बरतने लगा है. हालांकि, चीन के सामने खड़ी दुविधा दोहरी है. वो अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना BRI को डूबने नहीं दे सकता, क्योंकि ऐसा हुआ तो इसका असर दूसरे देशों में चल रही BRI की परियोजनाओं पर भी पड़ेगा. हालांकि, BRI के ध्वजवाहक यानी CPEC को जारी रखना भी चीन के लिए जान और माल दोनों के लिहाज से काफ़ी महंगा साबित हो रहा है. दूसरी दुविधा ये है कि चीन के लिए पाकिस्तान की सामरिक क़ीमत भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि पाकिस्तान अपने पैरों पर ही खड़ा नहीं हो पा रहा है. इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान की बुरी आदत ये है कि वो चीन का डर दिखाकर अमेरिका को लुभाता है और अमेरिका के नाम पर चीन से और पैसे हासिल करने की कोशिश करता है. ऐसे में इस बात पर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि चीन अब नए सिरे से इस बात का मूल्यांकन कर रहा है कि पाकिस्तान उसके लिए कितना उपयोगी है और चीन को उस पर कितनी रक़म क़ुर्बान करनी चाहिए.

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