अंग्रेजी इंटरनेट की संपर्क भाषा बनी हुई है. हालांकि, अंग्रेजी-उन्मुख प्लेटफार्मों के स्थानीय विकल्प उभरने के साथ, यह यथास्थिति जल्द ही बदल सकती है.
इंटरनेट बहुत बड़ा समकारक (इक्वलाइज़र) नहीं है. बुनियादी ढांचे की खाई का बाक़ायदा दस्तावेजीकरण किया गया है : इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (आईटीयू) ने ‘डिजिटली वंचित से डिजिटली सशक्त को अलग करने वाली ‘महा खाई’’ की माप-जोख की है. 2020-21 में इंटरनेट को अपनाये जाने में दो-अंकों में हुई वृद्धि (ख़ासकर एशिया और अफ्रीका में) के बावजूद, सबसे कम विकसित देशों में कनेक्टिविटी 27 फ़ीसद ही है. ब्रॉडबैंड तक पहुंच से वंचित 2.9 अरब लोगों में से 96 फ़ीसद, विकासशील दुनिया में रहते हैं. जो विकासशील या सबसे कम विकसित देशों से हैं उन्हें ऑनलाइन आने पर एक कहीं ज़्यादा हानिकारक अवरोध से पार पाना होता है, वह है भाषा.
अंग्रेजी इंटरनेट की संपर्क भाषा या सेतु भाषा बनी हुई है. दुनिया का केवल 19 फ़ीसद हिस्सा पहली या दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी बोलता है, जबकि 61 फ़ीसद ऑनलाइन सामग्री अंग्रेजी में है.
अंग्रेजी इंटरनेट की संपर्क भाषा या सेतु भाषा बनी हुई है. दुनिया का केवल 19 फ़ीसद हिस्सा पहली या दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी बोलता है, जबकि 61 फ़ीसद ऑनलाइन सामग्री अंग्रेजी में है. भले हम इस तथ्य को कारण मान लें कि हो सकता है अंग्रेजी नहीं बोलने वाली आबादी अपनी अंग्रेजी-भाषी समकक्षों जितनी कनेक्टेड न हो, तब भी असमानता बहुत स्पष्ट है : इंटरनेट यूजर्स में से लगभग 26 फ़ीसद, अंग्रेजी को अपनी प्राथमिक भाषा के रूप में इस्तेमाल करते हैं.
सामग्री (कंटेंट) के मुक़ाबले भाषाई अवरोध ज़्यादा गहरे तक जाता है. व्यापक रूप से उपलब्ध केवल चार कोडिंग भाषाएं हैं जो बहुभाषी हैं. इसके अलावा, अफ़सोसनाक बात यह है कि, चूंकि ज़्यादातर कोडर्स के लिए अंग्रेजी प्रवेश द्वार का काम करती है, इसलिए गैर-अंग्रेजीभाषी देशों से निकलीं रूबी और लुआ जैसी आधुनिक कोडिंग भाषाएं भी अंग्रेजी शब्दावली का इस्तेमाल करती हैं.
इस समस्या का एक हिस्सा यह है कि ख़ुद इंटरनेट अंग्रेजी-भाषी अमेरिका का एक उत्पाद है. लिहाज़ा, कई लोग उस वक़्त को बार-बार याद करते हैं जब वेब समान सोच वाले लोगों का स्व-शासित समुदाय हुआ करता था, राजनीतिक तिकड़मबाजियों (पॉलिटिकिंग) से मुक्त, मगर यह अतीतमोह एक स्वभावत: असमावेशी निर्मिति के लिए है. जैसा कि 2019 का वायर्ड का यह लेख सटीक ढंग से कहता है :
दो दशक से भी पहले काहिरा में हुई ‘इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइन्ड नेम्स एंड नंबर्स’ (आईसीएएनएन) की एक बैठक में, भागीदारों ने गैर-अंग्रेजी डोमेन नामों की तत्काल ज़रूरत की ओर इशारा किया. अंतरराष्ट्रीयकृत डोमेन नामों (आईडीएन) का पहला प्रोटोकॉल 2003 में इंटरनेट इंजीनियरिंग फोर्स (आईईटीएफ) द्वारा प्रस्तावित किया गया.
‘‘वेब का शुरुआती वादा’ केवल अपने उन अंग्रेजी-भाषी यूजर्स के लिए था, जो या तो मूल अंग्रेजी-भाषी थे या जिनकी एक किस्म की अभिजात शिक्षा तक पहुंच थी जो गैर-अंग्रेजी के प्रभुत्व क्षेत्रों में दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी बोलनेवाले तैयार करती है… वेब का शुरुआती वादा, बहुत से लोगों के लिए, एक तरह की धमकी ही ज़्यादा था – अंग्रेजी बोलो या इस नेटवर्क से बाहर छूट जाओ.’
दो दशक से भी पहले काहिरा में हुई ‘इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइन्ड नेम्स एंड नंबर्स’ (आईसीएएनएन)[ii] की एक बैठक में, भागीदारों ने गैर-अंग्रेजी डोमेन नामों की तत्काल ज़रूरत की ओर इशारा किया. अंतरराष्ट्रीयकृत डोमेन नामों (आईडीएन) का पहला प्रोटोकॉल 2003 में इंटरनेट इंजीनियरिंग फोर्स (आईईटीएफ) द्वारा प्रस्तावित किया गया. लेकिन 2009 में जाकर आईसीएएनएन ने कांजी व हिरगाना (जापानी), हांज़ी (चीनी), और अरबी समेत विभिन्न आईडीएन का संचालन परीक्षण शुरू किया. 2021 तक, आईसीएएनएन 43 देशों व क्षेत्रों के 62 स्ट्रिंग सुपुर्द कर चुका था.
चित्र 1 : आवंटित आईडीएन का मानचित्र (जून 2021) (स्रोत)
अगले एक अरब इंटरनेट यूजर्स का बड़ा हिस्सा विकसित अंग्रेजी-भाषी दुनिया से नहीं होगा, लेकिन उन तक उनका अनुभव उन प्लेटफार्मों के ज़रिये पहुंचेगा जो प्राथमिक रूप से अंग्रेजी बोलनेवालों की ख़िदमत करते हैं; वेब पर नयी अवधारणाओं और सेवाओं के साथ हाथ आजमाने की उनकी क्षमता मुट्ठी भर कोडिंग भाषाओं तक सीमित होगी, और जो सामग्री उनकी मातृभाषा में है उसे पाने के लिए उन्हें जूझना पड़ सकता है.
बहरहाल, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर, यह वर्चस्व बीते एक दशक में साफ़ तौर पर दूसरी जगह खिसक चुका है, इसमें कुछ भूमिका स्मार्टफोन के प्रसार की है. अंग्रेजी-उन्मुख प्लेटफार्मों के स्थानीय विकल्पों – जैसे दक्षिण कोरिया में ऐप्स की काकाओ और नैवर फैमिली, दक्षिण-पूर्व एशिया में ग्रैब, अर्जेंटीना में टरिंगा!, चीन में वीबो और टिक टॉक/वेईशिन, भारत में मोज – की लोकप्रियता में उछाल आ रहा है, और कुछ मामलों में तो ये अपने घरेलू बाज़ार से वैश्विक प्लेटफार्मों को बेदख़ल कर रहे हैं. लेकिन अब भी संपर्क भाषा (अंग्रेजी) के अतीत का बोझ बना हुआ है. स्थानीय ऐप्स से उम्मीद की जाती है कि वे अंग्रेजी बोलनेवालों को सेवा दें. इसके अलावा, गूगल वगैरह के जोड़ की बड़ी कोडिंग टीम या यूजर बेस नहीं होने के लिए उन्हें नीचा दिखाया जाता है.
वर्ल्ड वाइड वेब की संरचना अंग्रेजी बोलनेवालों के पक्ष में रही है और कई तरह से अब भी ऐसा है. हालांकि, यह यथास्थिति हमेशा ऐसे ही बनी नहीं रहेगी.
[i] Calculations for number of native speakers (first and second language) as percentage of world population are the author’s own, based on population count as of January 1, 2022.
[ii] ICANN is a non-profit multistakeholder group that deliberates standards for domain names.
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Trisha Ray is an associate director and resident fellow at the Atlantic Council’s GeoTech Center. Her research interests lie in geopolitical and security trends in ...