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Published on Jun 02, 2025 Updated 0 Hours ago

सीरिया पर दशकों से लगे अमेरिकी प्रतिबंधों के हटने के बाद इस युद्ध-ग्रस्त देश में पुनर्निर्माण के प्रयास और मध्य-पूर्व (पश्चिम एशिया) में सत्ता के बदल रहे समीकरण सुर्खियों में आ गए हैं.

अमेरिका ने सीरिया और मिडिल ईस्ट के लिए लगाए प्रतिबंध हटाये: क्या है मतलब?

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अमेरिका ने हाल ही में सीरिया पर से अपने प्रतिबंध हटाने की घोषणा की है. इससे सीरियाई नागरिकों और पूर्व तानाशाह व राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार के पतन के बाद देश के घटनाक्रमों पर नज़र रखने वाले पर्यवेक्षकों में खुशी की लहर दौड़ गई है. इन प्रतिबंधों को क्यों हटाया गया है और इसका घरेलू व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, इसी का आकलन इस लेख में किया गया है.

परिचय 

सीरिया पर अमेरिकी प्रतिबंध 1979 से लागू हैं, जब उसने लेबनान पर क़ब्ज़ा जमा लिया था. 1980 के दशक में, तत्कालीन यूरोपीय समुदाय (EC) ने भी सीरिया पर प्रतिबंध लगाए, हालांकि कुछ समय बाद इनको हटा लिया गया. 9/11 के बाद के दौर में, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इराक, ईरान और उत्तर कोरिया को ‘बुराई की धुरी’ कहा, तो उन्होंने असद के नेतृत्व वाले सीरिया को ईरान का प्रमुख सहयोगी बताया और 2004 में उस पर प्रतिबंध लगा दिए. 2011 आते-आते, जब सीरियाई लोगों ने असद शासन के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन शुरू किया, जिसके कारण उनका बर्बर तरीक़े से दमन भी किया गया, राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सीरिया पर बहुत कड़े प्रतिबंध लगाए. अरब देशों और यूरोपीय संघ ने भी इसी तरह के कदम उठाए. उस वक्त सीरियाई हुकूमत की विदेशी संपत्ति ज़ब्त करने, सीरिया में अमेरिकी निवेशों पर पूरी तरह से रोक लगाने और पेटोलियम आयात पर प्रतिबंध जैसे कड़े कदम उठाए गए.

 9/11 के बाद के दौर में, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इराक, ईरान और उत्तर कोरिया को ‘बुराई की धुरी’ कहा, तो उन्होंने असद के नेतृत्व वाले सीरिया को ईरान का प्रमुख सहयोगी बताया और 2004 में उस पर प्रतिबंध लगा दिए.

सीरिया पर आर्थिक प्रतिबंध हमेशा से रहे हैं, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था की आधुनिक प्रकृति होती है- एक-दूसरे से जुड़ना, इसीलिए सभी देश ऐसे प्रतिबंधों को लेकर कहीं अधिक संवेदनशील होते हैं. ऐसा इसलिए भी होता है, क्योंकि परिसंपत्तियों को ज़ब्त करना और केंद्रीय बैंकों को निशाना बनाना न सिर्फ आर्थिक लेन-देन को बुरी तरह प्रभावित करता है, बल्कि निर्यात के माध्यम से कमाई कर सकने की देश की क्षमता को भी प्रभावित करता है और उसके नागरिकों की आर्थिक स्थिरता को कमज़ोर बनाता है.

 

इन प्रतिबंधों के उद्देश्य अलग-अलग होते हैं और इनसे कई तरह के लक्ष्य साधे जाते हैं, जैसे- देश की विदेशी या घरेलू नीतियों को प्रभावित करना, उसके कार्य या व्यवहार की सख़्त नैतिक निंदा करना या ख़ास नीतिगत कदम उठाने से रोकना. सीरिया की बात करें, तो ‘अरब स्प्रिंग’ के बाद असद शासन का अपने नागरिकों पर क्रूर कार्रवाई करना प्रतिबंध का एक प्रमुख कारण था. इस तरह के प्रतिबंधों का मक़सद देश को आर्थिक रूप से अपंग बनाना होता है, ताकि वह ख़ास नीतियों के पालन करने में असमर्थ हो जाए.

 

इस तरह के उपायों को आमतौर पर उपयोगी ही माना जाता है, पर इस बारे में व्यापक बहस भी होती है कि प्रतिबंध वास्तव में किसे प्रभावित करते हैं? सीरिया के मामले में इन प्रतिबंधों से सबसे अधिक प्रभावित वहां के वही नागरिक थे, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय समुदाय बचाने की कोशिश कर रहा था. इसके अलावा, सीरियाई प्रवासी भी अंतरराष्ट्रीय लेन-देन के लिए सीरियाई मुद्रा का इस्तेमाल न कर सकने के कारण अपने देश की अर्थव्यवस्था से बाहर कर दिए गए थे, जबकि इनमें कुशल श्रमिकों का एक ऐसा वर्ग भी था, जो देश के विकास में योगदान दे सकता था. इसके विपरीत, सरकार से जुड़े कुलीन वर्ग, व्यवसायी और सरकारी अधिकारियों ने इन प्रतिबंधों से बचने के तरीक़े खोज लिए थे, जिससे काले बाजार बनने लगे, और नागरिकों का और अधिक शोषण हुआ. करियायतेंई लोग अपनी कमाई के लिए नशे की तस्करी जैसे काले कारोबार में भी जुट गए.

 

सऊदी अरब को लाभ, अमेरिकी शर्तें और सीरिया को 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इन प्रतिबंधों को हटाने की घोषणा सऊदी अरब में की, जिस पर क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने काफी प्रसन्नता दिखाई. इससे इस बात का पता चलता है कि इस फ़ैसले के पीछे कौन सी ताक़त लगी हुई थी. सऊदी अरब, जो सीरिया की ईरान से नज़दीकी के कारण लंबे समय से उससे अलग हो गया था, अब अपने प्रभाव को बढ़ाने और सीरिया में ईरान की मौजूदगी को प्रतिबंधित करने की पैरवी कर रहा है.

इसके लिए, सऊदी राजशाही ने कई उपाय किए हैं. सबसे पहले उसने दिसंबर 2024 में पद संभालने वाले सीरियाई राष्ट्रपति अहमद अल-शरा की कम से कम दो बार मेज़बानी की. फिर, उसने सीरिया के पुनर्निर्माण प्रयासों को बिना किसी ‘शर्त’ (रकम की कोई सीमा नहीं) मदद करने का वायदा किया. तीसरा, उसने यह वायदा भी किया कि वह सीरिया पर विश्व बैंक का कर्ज़ा चुकाएगा, ताकि इस युद्ध-ग्रस्त देश को अंतरराष्ट्रीय कर्ज़दाता फिर से कर्ज़ देना शुरू कर सकें. और चौथा, ट्रंप प्रतिबंध हटा सकें, इसके लिए उसने अपने संसाधनों का व्यापक इस्तेमाल किया. यहां तक कि अतिरिक्त कदम उठाते हुए उसने अमेरिका के साथ कई अरबों के रक्षा सौदों पर भी सहमति जताई.

बदले में, अल-शरा ने हाल के महीनों में सऊदी सरकार से कई वायदे किए हैं. उन्होंने सीरिया की क्रांति को सऊदी अरब की सीमा में दाख़िल होने से रोकने का वायदा किया. यह आंदोलन सऊदी अरब के लिए एक बड़ी चिंता का कारण रहा है, क्योंकि वह अपने शासक परिवार के लिए किसी तरह का ख़तरा पसंद नहीं करता. इसके अलावा, सीरियाई सरकार ने सऊदी अरब में कैप्टागन ड्रग की तस्करी पर नकेल कसने के लिए कदम उठाए हैं और अभी वहां रह रहे सीरियाई शरणार्थियों को वापस बुलाने पर सहमति जताई है. हालांकि, सऊदी अरब की इन कोशिशों से अल-शरा और सीरियाई नागरिक समाज द्वारा प्रतिबंध हटाने के लिए किए गए प्रयास कमतर साबित नहीं होते, क्योंकि इन प्रतिबंधों का सीरियाई नागरिकों के रोजमर्रा के जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है. अल-शरा अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने के लिए लगातार ट्रंप प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों से आग्रह करते रहे हैं. इसी तरह, नागरिक समाज के कई अन्य लोगों ने भी इसके लिए उल्लेखनीय प्रयास किए और अपने संसाधनों का इस्तेमाल किया.

अमेरिका ने सीरिया के सामने कई मांगें रखी हैं, जिनमें देश में इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक ऐंड सीरिया (ISIS) को फिर से उभरने से रोकना, सीरिया के उत्तर-पूर्वी हिस्से में ISIS की कैदख़ानों पर नियंत्रण करना और अमेरिका द्वारा वांछित किसी भी आतंकवादी को सरकार या सरकारी पदों पर आने से रोकना शामिल है.

अमेरिका ने सीरिया के सामने कई मांगें रखी हैं, जिनमें देश में इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक ऐंड सीरिया (ISIS) को फिर से उभरने से रोकना, सीरिया के उत्तर-पूर्वी हिस्से में ISIS की कैदख़ानों पर नियंत्रण करना और अमेरिका द्वारा वांछित किसी भी आतंकवादी को सरकार या सरकारी पदों पर आने से रोकना शामिल है. हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण मांग अमेरिका का यह आग्रह रहा है कि सीरिया ‘अब्राहम एकोर्ड’ (अब्राहम समझौता) में शामिल हो. गौर करने की बात है कि अल-शरा ने पहले कहा था कि यह तब तक नहीं हो सकता, जब तक इजरायल गोलान हाइट्स में सीरियाई इलाकों पर से क़ब्ज़ा नहीं छोड़ता, जिसे सीरिया एक गैर-कानूनी कार्रवाई मानता है. फिर भी, उन्होंने अब एक ऐसे देश के निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है, जो किसी के लिए ख़तरा न पैदा करे, इजरायल के लिए भी नहीं.

 

सीरिया के पुनरुद्धार और क्षेत्रीय पुनर्गठन का मार्ग

सीरिया पर प्रतिबंधों को हटाने से क्षेत्र की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय, दोनों राजनीति कई तरह से प्रभावित होगी. इस पूरे घटनाक्रम के अहम किरदार सीरियाई लोग हैं, जिनको इन प्रतिबंधों के हटने के बाद अपने राष्ट्र को फिर से बनाने और सम्मान पाने का मौका मिलेगा. अगर इस योजना पर काम होता है, तो सीरियाई शरणार्थियों और प्रवासियों की वापसी भी संभव हो सकेगी, जो पहले आर्थिक प्रतिबंधों के कारण घर नहीं लौट पाए थे.

दूसरा, अब जरूरी व अनिवार्य मानवीय मदद तुरंत सीरिया पहुंच सकेगी और युद्ध-ग्रस्त देश में लोगों को फिर से बसाने में सहायता मिल सकेगी. प्रतिबंधों को हटाने से अंतरराष्ट्रीय निवेश का रास्ता भी खुल सकेगा, जो यहां के आर्थिक सुधार और बुनियादी ढांचे के विकास में सहायता कर सकता है. हालांकि, यहां बाहरी दख़ल बढ़ने को लेकर चिंताएं भी हैं, जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए, क्योंकि आशंकाएं जताई जा रही हैं कि सहायता या निवेश की आड़ में अन्य देश यहां अपने एजेंडे को लागू करने की कोशिश कर सकते हैं.

तीसरा, अगर सीरिया अब्राहम एकोर्ड पर हस्ताक्षर करता है, तो इससे समझौते की पहुंच और प्रभाव का विस्तार होगा, साथ ही सऊदी अरब व संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों की भूमिका भी बढ़ जाएगी. ये देश अमेरिका के साथ अपने संबंधों के कारण प्रतिबंधों को हटाने में मददगार साबित हुए हैं. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि सीरिया की आज़ादी ख़त्म हो जाएगी. राष्ट्रपति अल-शरा एक व्यावहारिक विदेश नीति का पालन करते रहे हैं. वह सामरिक व रणनीति संतुलन बनाते हुए सऊदी अरब के प्रतिद्वंद्वी तुर्कीये जैसी अन्य क्षेत्रीय ताक़तों के साथ भी रिश्ता बनाकर रखते हैं.

अगर सीरिया अपनी मौजूदा व्यवस्था के अनुसार आगे बढ़ता है, तो उसके लिए स्थायी शांति पाने और अपने नागरिकों के लिए आर्थिक तरक्क़ी सुनिश्चित करने की संभावना अधिक है.

चौथा, राष्ट्रों की इस मंडली में शामिल होने से ईरान जैसे देशों और हिज़बुल्लाह जैसे गुटों की पकड़ कमज़ोर होगी, जिससे वे सीरियाई क्षेत्र का उपयोग इजरायल के ख़िलाफ़ हमले करने के लिए नहीं कर पाएंगे. इसका इंतजार तो अमेरिका लंबे समय से कर रहा है.

मगर हां, सीरिया का इजरायल के करीब आना जिहादी गुटों को नाराज़ कर सकता है, जो इस देश को चरमपंथी हमलों से निशाना बना सकते हैं. इससे नई सरकार के सामने महत्वपूर्ण सुरक्षा चुनौतियां पैदा होंगी, जिनका उसे समाधान निकालना होगा.

संक्षेप में कहें, तो सीरिया पर प्रतिबंधों को हटाने से दशकों से चले आ रहे गतिरोधों का अंत हो सकेगा और देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण अवसर पैदा हो सकेंगे. इससे भले ही सीरियाई लोगों को काफी राहत मिल सकेगी, लेकिन इसके लिए उनको कई शर्तों से भी जूझना पड़ सकता है, क्योंकि अमेरिका और सऊदी अरब जैसे देश ईरान जैसे दुश्मन मुल्कों का प्रभाव सीमित करना चाहते हैं. इसके अलावा, सीरिया अपनी विदेश नीति का फिर से मूल्यांकन कर सकता है, और उसका ख़ास तौर से इजरायल के साथ अधिक शांतिपूर्ण रिश्ते की ओर कदम बढ़ाना मध्य-पूर्व, यानी पश्चिम एशिया की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि इन सबसे सीरिया की संप्रभुता ख़त्म हो जाएगी. अगर सीरिया अपनी मौजूदा व्यवस्था के अनुसार आगे बढ़ता है, तो उसके लिए स्थायी शांति पाने और अपने नागरिकों के लिए आर्थिक तरक्क़ी सुनिश्चित करने की संभावना अधिक है.


(मोहम्मद सिनान सियेच ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में नॉन-रेजिडेंट एसोसिएट फेलो हैं)

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