नए साल के मौक़े पर शी जिनपिंग ने राष्ट्र के नाम जो संदेश दिया, उसमें निश्चित रूप से उत्साह भरी बातें थीं. शी जिनपिंग ने कहा कि, ‘हीरे को तराशकर ही उसे चमकदार बनाया जा सकता है.’ जिनपिंग का इशारा, वर्ष 2020 की ओर था जब चीन ने कोविड-19 की महामारी का सामना करते हुए उस पर जीत हासिल की थी. कोविड-19 ही नहीं, चीन ने लगातार बढ़ते अमेरिका के विरोधी रुख़ और अपनी अर्थव्यवस्था में आई तेज़ गिरावट जैसी चुनौतियों का भी डटकर सामना किया था. शी जिनपिंग ने अपने भाषण में, ‘आत्मविश्वास से भरे और लचीला रुख़ अपनाने वाले चीन के उन नागरिकों’ की भी जमकर तारीफ़ की जिनसे वो पिछले एक साल के दौरान अपने 13 सूबों के दौरे में मिले थे. क़दमताल करते हुए स्वास्थ्य कर्मी या फिर गहरे पैठ जमाए बैठी ग्रामीण क्षेत्र की ग़रीबी के उन्मूलन के लिए काम करने वाले लोगों को भी जिनपिंग से तारीफ़ के दो बोल सुनने को मिले.
वर्ष 2021, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. ये कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना का शताब्दी वर्ष है. इत्तेफ़ाक़ से इसी साल चीन की तेरहवीं पंचवर्षीय योजना का भी समापन हो रहा है. इस योजना के तमाम लक्ष्यों में से दो का ज़िक्र प्रमुख तौर पर किया जाता है-चीन में ‘भयंकर ग़रीबी का पूरी तरह से उन्मूलन और देश में मध्यम दर्जे के समृद्ध समाज का निर्माण करना’. वर्ष 2019 में चीन की प्रति व्यक्ति आय बढ़कर दस हज़ार डॉलर के पार कर गई. जिसके चलते चीन प्रति व्यक्ति आमदनी के मामले में मलेशिया, रूस मेक्सिको और सर्बिया से आगे निकल गया है. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि विश्व बैंक की उच्च आमदनी वाले देश की परिभाषा के तहत किसी भी देश की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आमदनी 12 हज़ार 500 डॉलर होनी चाहिए.
वर्ष 2021, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. ये कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना का शताब्दी वर्ष है. इत्तेफ़ाक़ से इसी साल चीन की तेरहवीं पंचवर्षीय योजना का भी समापन हो रहा है.
चीन का अगला शताब्दी समारोह वर्ष 2049 में पड़ेगा, जब पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की स्थापना के सौ बरस पूरे होंगे. उस शताब्दी समारोह के लिए तो चीन ने और भी महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर रखे हैं. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी तब तक देश को एक ‘मज़बूत, लोकतांत्रिक सभ्य, सौहार्दपूर्ण और आधुनिक समाजवादी देश’ बनाने के लिए काम कर रही है. हालांकि, इस राह में कई चुनौतियां भी खड़ी हैं. अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बावजूद, चीन की अर्थव्यवस्था उम्मीद के मुताबिक़ उस रास्ते पर नहीं चली है, जिसकी अपेक्षा नीति नियंताओं ने की थी. सरकार के मालिकाना हक़ वाली कंपनियों में सुधार अभी भी बड़ी समस्या बना हुआ है. लेकिन, चीन ने उदारीकरण के ज़रिए एक महत्वपूर्ण लक्ष्य ज़रूर हासिल किया है. उदारीकरण के ज़रिए चीन स्वयं को भयंकर ग़रीबी के दौर से उबारने में कामयाब रहा है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए चीन ने बहुत पैसा ख़र्च किया है. जैसा कि चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने शी जिनपिंग के भाषण के हवाले से लिखा था कि चीन की व्यवस्था की सबसे बड़ी ख़ूबी ये है कि इसे ‘बड़े प्रोजेक्ट के लिए एक राष्ट्रव्यापी ढांचे और संसाधनों को एकजुट करके मिले जुले प्रयास करने का लाभ हासिल है. ‘ चीन का अपनी कामयाबी का ये जश्न तब और चटख़ हो गया, जब उसने कोविड 19 जैसी महामारी से उबरकर अपनी अर्थव्यवस्था को वर्ष 2020 के मध्य तक दोबारा प्रगति की पटरी पर लाने में सफलता प्राप्त की.
इससे भी बड़ी बात ये है कि अमेरिका के कड़े विरोध के बावजूद चीन ने पिछले साल के आख़िरी महीने में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी यूरोपीय संघ से व्यापार और निवेश की संधि करने में सफलता हासिल की. इससे पहले चीन ने नवंबर 2019 में दक्षिणी पूर्वी एशियाई और हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ RCEP व्यापार समझौता किया था. भले ही आज ये कहा जा रहा है कि चीन का बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट नाकाम साबित हुआ है. लेकिन, संकेत इसी बात के मिल रहे हैं कि चीन इस प्रोजेक्ट को भी संतुलित करने में सफल रहा है.
ये बात ही अपने आप में महत्वपूर्ण है कि चीन को यूरोपीय संघ के साथ निवेश का समझौता करने में सफलता मिली. ये एक तरह से चीन का सामरिक तख़्तापलट ही कहा जाएगा
हालांकि, यूरोपीय संघ के साथ निवेश समझौते के तहत चीन ने यूरोपीय संघ के निवेशकों के लिए अभूतपूर्व स्तर पर अपने यहां के बाज़ार के द्वार खोलने का वादा किया है. यही नहीं, समझौते के तहत चीन ने यूरोपीय कंपनियों को भरोसेमंद तरीक़े से चीन की कंपनियों के साथ बराबरी से मुक़ाबला करने का अवसर देने का भी वादा किया है. अभी इस समझौते को यूरोपीय संघ की संसद से मंज़ूरी मिलनी बाक़ी है. आशंका इसी बात की है कि वहां पर चीन के साथ इस समझौते का कुछ लोग विरोध करेंगे. लेकिन, चूंकि जर्मनी और फ्रांस, चीन के साथ इस समझौते का मज़बूती से समर्थन कर रहे हैं, तो इस संधि को मंज़ूरी मिलने की उम्मीद अधिक है. ये बात ही अपने आप में महत्वपूर्ण है कि चीन को यूरोपीय संघ के साथ निवेश का समझौता करने में सफलता मिली. ये एक तरह से चीन का सामरिक तख़्तापलट ही कहा जाएगा. इससे ये भी पता चलता है कि चीन को लेकर यूरोपीय संघ और अमेरिका के बीच फ़ासला बढ़ता जा रहा है. यूरोप के देश अभी भी यही मानते हैं कि चीन के साथ संबंधों के मसले पर आर्थिक और सामरिक हितों को अलग अलग करके निभाया जा सकता है. और हां, इस समझौते से यूरोपीय देशों के नेताओं का चीन की हर बात पर यक़ीन कर लेने का बचकानापन भी ज़ाहिर होता है. चीन के मसले पर अगर आज यूरोप, अमेरिका से अलग रुख़ अपना रहा है, तो इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ही ज़िम्मेदार माना जाना चाहिए. क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने बड़ी हिकारत के साथ यूरोपीय संघ से रिश्ते निभाए थे.
वैश्विक मंच पर चीन की नाकामी
आर्थिक मसले निश्चित रूप से अमेरिका और चीन के रिश्तों पर असर डालेंगे. क्योंकि, अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन अपने देश की अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने पर पूरा ज़ोर लगा रहे हैं. इसका इशारा हमें तब मिला था, जब न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज से अचानक चीन की तीन कंपनियों को बाहर करने का ऐलान किया गया. फिर, शेयर बाज़ार ने इससे इनकार कर दिया. लेकिन, अगले ही दिन चीन की इन तीन कंपनियों को न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज से डीलिस्ट कर दिया गया था. ये मिसाल अमेरिका के उस ख़ौफ़ को ज़ाहिर करती है कि अगर उसने अपने यहां के बाज़ार से चीन की कंपनियों को निकाल फेंका, तो जवाब में चीन भी ऐसा ही करेगा और अमेरिकी कंपनियों के चीन के बाज़ार के दरवाज़े बंद हो जाएंगे. अपने वित्तीय क्षेत्र में सुधार के तहत चीन ने वर्ष 2020 में अमेरिकी कंपनियों और वित्तीय संस्थानों के चीन में कारोबार करने की राह सुगम की थी. चीन द्वारा अपने बाज़ार के दरवाज़े अमेरिकी कंपनियों के लिए बंद करने की आशंका को देखते हुए ही एरिक्सन के CEO ब्योर्ज एकहोम ने चीन की हुआवेई और ZTE टेलीकॉम कंपनियों पर स्वीडन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने के लिए लॉबीइंग की थी. हो सकता है कि एरिक्सन, हुआवेई की कारोबारी प्रतिद्वंदी हो. लेकिन, एक हक़ीक़त ये भी है कि एरिक्सन की कुल बिक्री का दस प्रतिशत चीन के कारोबार से ही आता है.
लेकिन एक क्षेत्र ऐसा है, जहां नाकामी चीन को लगातार परेशान कर रही है. उसका लक्ष्य ये है कि दुनिया के तमाम देश चीन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक वैश्विक नेता मान लें और वो अपनी सॉफ्ट पावर की मदद से अपनी छवि को चमका सके. कोविड-19 की महामारी के शुरुआती दौर में इससे निपटने में चीन की गड़बड़ियों ने चीन की छवि को ख़राब कर दिया है. जहां तक सॉफ्ट पावर की बात है, तो एक के बाद एक देश के साथ चीन के संबंध सुधरने के बजाय ख़राब होते जा रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन कई देशों के ख़िलाफ़ लगातार आक्रामक नीतियों पर चल रहा है. निश्चित रूप से चीन की इन हरकतों का एक दूसरा पहलू भी है-फिर चाहे दक्षिणी चीन सागर हो या हॉन्ग कॉन्ग पर सख़्ती या फिर पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियां-हर मामले में चीन की सरकार को घरेलू स्तर पर काफ़ी वाहवाही मिली है.
चीन की सरकार ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर हो रही हर रिसर्च पर बेहद कड़ा शिकंजा कसा हुआ है. यही नहीं, चीन की सरकार लगातार, ‘वायरस की किसी अन्य देश में उत्पत्ति’ की थ्योरी को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है.
कोविड-19 महामारी से शुरुआती दौर पर निपटने में नाकामी से चीन के अधिकारियों ने अब तक कोई सबक़ नहीं सीखा है. ये बात इस मिसाल से उजागर होती है कि जब विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम कोविड-19 के वायरस की उत्पत्ति की पड़ताल के लिए वुहान जाना चाहती थी, तो चीन ने पहले उसे वीज़ा देने से ही इनकार कर दिया. हैरानी की बात नहीं है कि चीन कोविड को लेकर अपने हक़ में माहौल बनाने में जी-जान से जुटा है. वो बार बार यही दोहरा रहा है कि ये वायरस चीन में फ्रोज़ेन फूड या उन विदेशी खिलाड़ियों के ज़रिए पहुंचा, जो अक्टूबर 2019 में वुहान में हुए वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स में हिस्सा लेने गए थे. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ को वर्ष 2020 की समीक्षा पर दिए गए एक इंटरव्यू में चीन के विदेश मंत्री वैंग यी ने 2 जनवरी को कहा था कि, ‘एक के बाद एक अनुसंधान ये इशारा कर रहे हैं कि इस महामारी की शुरुआत दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग-अलग समय पर हुई थी.’
शुरुआती आनाकानी के बाद आख़िरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम को वुहान जाने का वीज़ा चीन ने दे दिया था. लेकिन, पहले इस टीम को क्वारंटीन कर दिया गया. इसके बाद जब WHO की टीम ने पड़ताल की, तो उसे चीन में कोरोना वायरस की उत्पत्ति के ठोस सबूत नहीं मिले. समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक़, चीन की सरकार ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर हो रही हर रिसर्च पर बेहद कड़ा शिकंजा कसा हुआ है. यही नहीं, चीन की सरकार लगातार, ‘वायरस की किसी अन्य देश में उत्पत्ति’ की थ्योरी को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है. वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों को भारी मात्रा में पूंजी उपलब्ध कराई गई है. लेकिन, इस रिसर्च से निकले हर नतीजे को सार्वजनिक किए जाने से पहले चीन की कैबिनेट द्वारा नियुक्त की गई टास्क फोर्स से मंज़ूरी लेनी होती है. ये टास्क फ़ोर्स ‘सीधे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आदेश पर काम करती है.’
ये बर्ताव किसी ऐसे देश का क़तई नहीं हो सकता, जो कोविड-19 की महामारी की शुरुआत की गहराई तक जाकर छानबीन करना चाहता है. ये बात सच है कि ट्रंप प्रशासन के कट्टर अधिकारियों ने चीन पर आरोप लगाने के लिए ज़बरदस्ती कुछ सबूत जुटाने के प्रयास किए थे. लेकिन, इस मामले की विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बिना किसी बाधा के जांच करने की राह में जिस तरह चीन ने रोड़े अटकाए हैं, उससे वैज्ञानिकों को अब तक पता नहीं चल सका है कि दुनिया पर अभी भी क़हर बरपा रहे इस वायरस के फैलने की शुरुआत कहां से हुई थी. चीन द्वारा अपनी छवि चमकाने और ख़ुद को एक ज़िम्मेदार अंतरराष्ट्रीय किरदार के तौर पर पेश करने की कोशिशों को इस हरकतों से नुक़सान ही पहुंचता है. फ़ायदा नहीं होता.
मेड इन चाइना 2025 की योजना
हालांकि, कोविड-19 की महामारी अभी चीन और बाक़ी दुनिया को लंबे वक़्त तक डराने वाली है. फिर भी चीन वर्ष 2021 में अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए लगातार कोशिश करता रहेगा. चीन को उम्मीद है कि वो अपने यहां बौद्धिक संपदा की अदालत, एक विशेष वित्तीय अदालत स्थापित करने के साथ साथ, हैनान और शेनझेन में नए मुक्त व्यापार क्षेत्र स्थापित करके विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकेगा. अंतरिक्ष के क्षेत्र में चीन की योजना इस साल 40 से ज़्यादा मिशन भेजने की है. इनमें से सबसे अहम चीन का अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करना है. चीन के सैन्य औद्योगिक कार्यक्रमों के भी तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ने की संभावना जताई जा रही है. चीन द्वारा इस साल अपने चौथे एयरक्राफ्ट कैरियर की बुनियाद रखे जाने की भी उम्मीद है. इस एयरक्राफ्ट कैरियर में विद्युत चुंबकीय लॉन्चर लगाए जाने की संभावना है. इसके अलावा चीन नए तरह की फ्रिगेट भी बनाने जा रहा है, जिसमें इलेक्ट्रिक प्रोपल्ज़न का इस्तेमाल किया जाएगा. चर्चाएं तो ये भी हैं कि चीन बहुत जल्द नई पीढ़ी का लड़ाकू हवाई जहाज़ बनाने की दिशा में भी काम शुरू करने वाला है.
इस साल चीन की चौदहवीं पंचवर्षी योजना की शुरुआत होने वाली है. इसके ज़रिए चीन एक के बाद एक कई प्रमुख लक्ष्य हासिल करना चाहता है. वर्ष 2025 यानी, 14वीं पंचवर्षीय योजना के आख़िरी साल और मेड इन चाइना 2025 योजना के ज़रिए चीन ये उम्मीद लगा रहा है कि वो अपनी अर्थव्यवस्था को उच्च स्तर के विकास की राह पर आगे बढ़ा सकेगा. इसकी ख़ूबियां इनोवेशन और वैज्ञानिक उपलब्धइयां होंगी. ऐसे में इस बात से हैरानी नहीं होनी चाहिए कि वर्ष 2022 में जब चीन की कम्युनिस्ट पर्टी की बीसवीं कांग्रेस बैठेगी, तो शी जिनपिंग ये सुनिश्चित करना चाहेंगे कि वो इस बैठक में पार्टी और देश के नेता के तौर पर एक और कार्यकाल पर मुहर लगवा सकें.
अब चीन अपने मक़सद हासिल करने में सफल होता है या नाकाम रहता है, दोनों ही सूरतों में इसके जियोपॉलिटिकल प्रभावों की अनदेखी कर पाना बहुत मुश्किल होगा. अब जबकि चीन विदेश नीति के मोर्चे पर अपने बढ़ते प्रभाव की नुमाईश कर रहा है, तो चीन के विदेश मंत्री वैंग यी के शब्दों में कहें तो, ‘हमें उम्मीद है कि जो बाइडेन प्रशासन एक सही दृष्टिकोण अपनाने की राह पर लौटेगा, चीन के साथ वार्तालाप शुरू करेगा और द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने के साथ साथ सहयोग को दोबारा शुरू करेगा.’ दुनिया के तमाम देशों के साथ संबंधों में से अमेरिका के साथ उसके रिश्ते सबसे महत्वपूर्ण है और चीन को ये बात बहुत अच्छे से पता है. चीन और अमेरिका अपने संबंध किस तरह निभाते हैं, उसका असर निश्चित रूप से पूरी दुनिया पर पड़ेगा.
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