वैसे तो जॉर्डन को मिडिल ईस्ट में एक अपेक्षाकृत स्थिर देश के रूप में देखा जाता है जिसे पश्चिमी देशों के बीच भी एक अच्छा दर्जा मिला हुआ है लेकिन वेस्ट बैंक और इज़रायल के साथ जॉर्डन के सीमा साझा करने के तथ्य का ये मतलब हो सकता है कि मौजूदा इज़रायल-हमास युद्ध उसकी सीमा तक फैल सकता है. किंग अब्दुल्ला और उनकी सरकार के अधिकारियों के द्वारा अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्रों में इज़रायल की कार्रवाई की व्यापक निंदा के परिणामस्वरूप इज़रायल के साथ जॉर्डन के संबंध अच्छे नहीं हैं. इस बात को लेकर सहमति है कि मौजूदा इज़रायल-ईरान छाया युद्ध (शैडो वॉर) के बीच जॉर्डन, इज़रायल (और उसके सहयोगियों) और 'एक्सिस ऑफ रेज़िस्टेंस' के गैर-सरकारी किरदारों के बीच संघर्ष का एक अखाड़ा बन गया है. जॉर्डन और फिलिस्तीन सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मोर्चों पर हमेशा से जुड़े हुए हैं और इसलिए गज़ा में किसी भी राजनीतिक उथल-पुथल का निश्चित रूप से जॉर्डन पर गंभीर असर होगा. इस पृष्ठभूमि में ये लेख गज़ा में मौजूदा युद्ध से पैदा हालात में जॉर्डन की स्थिति, अवसरों और चुनौतियों के बारे में बताता है.
ये लेख गज़ा में मौजूदा युद्ध से पैदा हालात में जॉर्डन की स्थिति, अवसरों और चुनौतियों के बारे में बताता है.
हाशमाइट साम्राज्य और उसका फिलिस्तीनी संबंध
आधुनिक जॉर्डन फिलिस्तीन के साथ अटूट रूप से जुड़ा हुआ है क्योंकि दोनों क्षेत्रों को अलग-अलग रूप में 1921 के बाद ही देखा जाने लगा जब इस क्षेत्र को ब्रिटिश शासन के आदेश के द्वारा विभाजित किया गया था और अपने संरक्षित क्षेत्र के रूप में ट्रांसजॉर्डन एमिरेट की स्थापना की गई थी. पूरे शासनादेश के दौरान हाशमाइट साम्राज्य के अब्दुल्लाह I ने ट्रांसजॉर्डन पर राज किया और 1946 में ब्रिटेन से आज़ादी हासिल करने के बाद औपचारिक रूप से वो राजा बन गए. 1948 में अरब-इज़रायल युद्ध के दौरान जॉर्डन ने दूसरे अरब देशों के साथ इज़रायल के ख़िलाफ़ युद्ध किया और वेस्ट बैंक पर कब्ज़ा जमाया. वेस्ट बैंक पर जॉर्डन के कब्ज़े के दौरान वेस्ट बैंक में रहने वाले सभी फिलिस्तीनियों ने आनन-फानन में जॉर्डन की नागरिकता हासिल की और संसद में राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्राप्त किया. मौजूदा समय में जॉर्डन की लगभग 50 से 60 प्रतिशत आबादी फिलिस्तीनी मूल की है और इसलिए गज़ा में वर्तमान युद्ध जॉर्डन के ज़्यादातर लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण और भावनात्मक मुद्दा है. इन लोगों का अभी भी वेस्ट बैंक और गज़ा- दोनों में रहने वाले लोगों के साथ पारिवारिक संबंध है.
इसके अलावा, छह दिनों के युद्ध के दौरान पूर्वी यरुशलम समेत वेस्ट बैंक का कब्ज़ा खोने के बाद भी यरुशलम में पवित्र मुस्लिम स्थल का नियंत्रण जॉर्डन के पास बना रहा. ये ऐसी भूमिका है जिसे हाशमाइट परिवार 1924 से निभा रहा है. 1983 में जॉर्डन के प्रस्ताव पर यरुशलम के पुराने शहर और उसकी दीवारों को ख़तरे में पड़ चुकी विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया. इस प्रस्ताव के मक़सद से पुराने शहर के लिए ख़तरे के रूप में जान-बूझकर धार्मिक संपत्ति की तबाही का ज़िक्र किया गया. इसके बाद यूनेस्को ने जॉर्डन से 1,00,000 अमेरिकी डॉलर की अंतरिम फंडिंग के साथ पुराने शहर में अपना महत्वाकांक्षी धरोहर संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया. ख़ास तौर पर अल-अक़्सा मस्जिद के संदर्भ में जॉर्डन ने विरासत मरम्मत के पांच प्रमुख चरणों के दौरान 2.1 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए हैं. जॉर्डन ने शांति, धार्मिक सह-अस्तित्व और यरुशलम के धार्मिक स्थलों के लिए सम्मान के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका पर ज़ोर दिया है. वर्तमान में, जैसा कि 1994 की जॉर्डन-इज़रायल शांति संधि में बताया गया है, जॉर्डन यरुशलम में मुस्लिम पवित्र स्थलों का आधिकारिक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संरक्षक है.
जॉर्डन ने शांति, धार्मिक सह-अस्तित्व और यरुशलम के धार्मिक स्थलों के लिए सम्मान के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका पर ज़ोर दिया है.
लोगों के बदलते रवैये के बीच इज़रायल के साथ शांति
जॉर्डन के फिलिस्तीन के साथ संबंध की वजह से ज़ाहिर तौर पर वहां अलग-अलग जगह लोगों ने विशाल प्रदर्शन आयोजित किए हैं. इन प्रदर्शनों के दौरान जॉर्डन में इज़रायल के दूतावास पर हमला करने की धमकी के कारण कई बार सुरक्षा बलों के साथ लोगों की भिड़ंत भी हुई. जॉर्डन की सरकार इन प्रदर्शनों से ख़ुश नहीं थी. इसका सबूत अम्मान में अक्टूबर और नवंबर 2023 के बीच फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शनों के दौरान 1,000 से ज़्यादा लोगों की गिरफ्तारी से मिलता है. हालांकि इज़रायल के ख़िलाफ़ लोगों की राय अरब स्प्रिंग के दौरान भड़की भावनाओं के स्तर तक पहुंचने के साथ जॉर्डन की सरकार इज़रायल की अपनी आलोचना को तेज़ करके लोगों की राय के साथ ख़ुद को जोड़ने की ज़रूरत को समझती है. किंग अब्दुल्ला II के द्वारा गज़ा में इज़रायल की कार्रवाई की सार्वजनिक निंदा से ये पता चलता है. उन्होंने दोहराया है कि इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच शांति के लिए दो देशों का समाधान इकलौता रास्ता है. इसके अलावा गज़ा में युद्ध को लेकर तेल अवीव से जॉर्डन के द्वारा अपने राजदूत को वापस बुला लेना और इज़रायल के साथ ऊर्जा के बदले पानी के समझौते को रद्द करने का एलान इज़रायल के ख़िलाफ़ उसके रवैये को दिखाता है.
इज़रायल की व्यापक आलोचना के बावजूद जॉर्डन अपने पड़ोसी के साथ एक संतुलन स्थापित कर रहा है जिसके साथ उसने 1994 में एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए थे. 13 अप्रैल को “इज़रायल पर ईरान के मिसाइल और ड्रोन हमले को नाकाम करने” के लिए अमेरिका के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में उसकी भागीदारी से इसका प्रमाण मिलता है. ईरान के हमले के दौरान अपने क्षेत्र से इज़रायल की तरफ जाने वाली कई मिसाइलों और ड्रोन को इंटरसेप्ट करने में जॉर्डन ने प्रमुख भूमिका निभाई. वैसे तो किंग अब्दुल्लाह II ने ज़ोर देकर कहा है कि उनका मक़सद इज़रायल की सुरक्षा करने के बदले अपनी संप्रभुता को सुरक्षित करना था लेकिन जॉर्डन की भागीदारी ने इज़रायल और अमेरिका के साथ उसकी राजनीतिक वफादारी का एक व्यापक संदेश दिया. हमलों के दौरान जॉर्डन की स्थिति उसको सबसे अधिक सहायता मुहैया कराने वाले देश अमेरिका के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बरकरार रखने के उसके उद्देश्य की वजह से भी है. जॉर्डन अमेरिका का एक करीबी सहयोगी रहा है और आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने इस साल अप्रैल में जॉर्डन के लिए 1.45 अरब अमेरिकी डॉलर की सहायता का ऐलान किया है. हमले के दौरान जॉर्डन के कदम इस शक पर भी आधारित हैं कि ईरान अपने सहयोगी संगठनों जैसे कि हमास और हिज़्बुल्लाह में जॉर्डन के युवाओं (मुस्लिम ब्रदरहुड से) की भर्ती कर रहा है.
मई में जॉर्डन ने ख़ुद को एक हथियार की साज़िश में घिरा पाया जिसे कथित तौर पर मुस्लिम ब्रदरहुड अंजाम दे रहा था.
ईरान और इज़रायल के बीच वर्तमान छाया युद्ध की वजह से जॉर्डन को एक व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष में घसीटने का ख़तरा बहुत ज़्यादा हो गया है. उदाहरण के लिए, मई में जॉर्डन ने ख़ुद को एक हथियार की साज़िश में घिरा पाया जिसे कथित तौर पर मुस्लिम ब्रदरहुड अंजाम दे रहा था. मुस्लिम ब्रदरहुड के बारे में कहा जाता है कि हमास के साथ उसके संबंध हैं. हालांकि बाद में इस साज़िश को नाकाम कर दिया गया. इस कोशिश को जॉर्डन को अस्थिर करने की कार्रवाई के तौर पर माना गया जबकि जॉर्डन वो देश है जो गज़ा संकट में एक क्षेत्रीय युद्ध का केंद्र बन सकता है क्योंकि वो अमेरिकी सैन्य अड्डे की मेज़बानी करता है और इज़रायल के अलावा सीरिया और इराक़ के साथ भी सीमा साझा करता है. सीरिया और इराक़- दोनों ही देशों में बड़ी संख्या में ईरान समर्थित मिलिशिया हैं. ज़ाहिर तौर पर जॉर्डन “इज़रायल एवं उसके सहयोगियों और ‘एक्सिस ऑफ रेज़िस्टेंस’ के हथियारबंद संगठनों के बीच क्षेत्रीय तनाव का एक अखाड़ा” बन गया है. हाल के दिनों में इसका नतीजा जॉर्डन की धरती पर अमेरिकी सैन्य कर्मियों की मौत के रूप में सामने आया. जॉर्डन और इज़रायल- दोनों ईरान और उसकी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं के साथ-साथ कट्टर इस्लामिक तत्वों से अपनी सुरक्षा पर ख़तरे का सामना करते हैं और इसलिए इज़रायल के साथ शांति जॉर्डन के लिए एक रणनीतिक इच्छा है.
आर्थिक चुनौतियां और संभावित शरणार्थी संकट
घरेलू मोर्चों की बात करें तो जॉर्डन को डर है कि गज़ा में युद्ध उसके नागरिकों के बीच हमास की लोकप्रियता में बढ़ोतरी करेगा और उस समय इस संगठन की हिम्मत बढ़ाएगा जब वो सितंबर में होने वाले संसदीय चुनाव की तैयारी कर रहा है. एक और बड़ी चुनौती संभावित फिलिस्तीनी शरणार्थी संकट की वजह से है जो उसके दरवाज़े पर खड़ा हो सकता है. फिलिस्तीन से आए रिफ्यूजी को एकीकृत करने के एक लंबे इतिहास के बावजूद जॉर्डन का नेतृत्व गज़ा में मौजूदा युद्ध के नतीजतन नए शरणार्थियों को स्वीकार न करने को लेकर अडिग है और उसने अपने क्षेत्र में किसी भी संभावित विस्थापन को लेकर सख्त नीति अपनाई है. जॉर्डन की झिझक के पीछे एक कारण उसकी सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं को लेकर बढ़ती शिकायत है. जूझती अर्थव्यवस्था, बहुत ज़्यादा सार्वजनिक कर्ज़ और युवाओं के बीच अधिक बेरोज़गारी से समस्याओं में और बढ़ोतरी हुई है. उदाहरण के लिए, हाशमाइट साम्राज्य ने इज़रायल-हमास युद्ध शुरू होने के बाद पर्यटन, जो उसकी अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ है, और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) में महत्वपूर्ण गिरावट देखी है. इस बात को लेकर आम सहमति है कि पूरे जॉर्डन साम्राज्य में बेरोज़गारी बढ़कर लगभग 22 प्रतिशत हो गई है.
इन जटिलताओं का सामना करने के लिए जॉर्डन को अपने राष्ट्रीय हितों, लोगों की भावनाओं और अपने अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों को रणनीतिक रूप से संतुलित करने की आवश्यकता होगी.
शरणार्थियों की आमद ने लंबे समय से जॉर्डन की राजनीतिक, आर्थिक और संसाधन से जुड़ी चुनौतियों को बढ़ा दिया है. 7 अक्टूबर को हमास-इज़रायल युद्ध शुरू होने के बाद ये अनुमान लगाया गया था जब जॉर्डन ने इज़रायल को चेतावनी दी थी कि गज़ा या वेस्ट बैंक से फिलिस्तीनियों का किसी भी तरह का विस्थापन हाशमाइट साम्राज्य के ख़िलाफ़ ‘युद्ध की घोषणा’ के समान होगा. वेस्ट बैंक के साथ लंबी सीमा साझा करने वाली जॉर्डन की भौगोलिक स्थिति ने स्पष्ट रूप से गज़ा में चल रहे युद्ध के अप्रत्यक्ष प्रभावों को लेकर उसकी कमज़ोरी बढ़ा दी है. इन कमज़ोरियों में गंभीर आर्थिक, वित्तीय और शरणार्थी संकट शामिल हैं. इज़रायल-हमास युद्ध ने जॉर्डन के हितों को उस ढंग से ख़तरे में डाल दिया है जो 1967 में वेस्ट बैंक पर जॉर्डन के नियंत्रण खोने के बाद से नहीं देखा गया है. युद्ध शुरू होने के बाद से इसका “जॉर्डन की सड़कों और उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा पर तत्काल असर” पड़ा है. वास्तव में जॉर्डन ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीन से जुड़ा हुआ है और इस क्षेत्र में किसी भी राजनीतिक उथल-पुथल का हाशमाइट साम्राज्य पर गंभीर असर पड़ेगा.
निष्कर्ष
मध्य पूर्व में जॉर्डन की स्थिति, ख़ास तौर पर फिलिस्तीन के साथ उसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध, उसे गज़ा में मौजूदा इज़रायल-हमास युद्ध के बीच एक अनिश्चित हालात में डालती है. इज़रायल के साथ जॉर्डन के जटिल संबंध, जिस पर शांति संधि और लोगों के बढ़ते असंतोष- दोनों का असर है, उन चुनौतियों को उजागर करते हैं जिसका सामना वो देश के आंतरिक दबाव और इज़रायल एवं उसके पश्चिमी सहयोगियों के बाहरी गठबंधन को संतुलित करने में करता है. शरणार्थी संकट का संभावित ख़तरा और युद्ध की वजह से आर्थिक तनाव, बेरोज़गारी और आर्थिक अस्थिरता समेत जॉर्डन के घरेलू मुद्दों को बढ़ाता है. इसके अलावा, जॉर्डन के सामने ईरान और उसके सहयोगियों से जुड़े एक व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष में शामिल होने का ख़तरा भी है जो हाशमाइट साम्राज्य को अस्थिर कर सकता है. वर्तमान संघर्ष और बदलती राजनीतिक गतिशीलता जॉर्डन में होने वाले चुनाव को और ज़्यादा प्रभावित कर सकती है क्योंकि लोगों की राय हमास के साथ सहानुभूति की है. जॉर्डन पर युद्ध का असर कई प्रकार से है. युद्ध उसकी घरेलू राजनीति, सुरक्षा गतिशीलता और अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को प्रभावित करता है. इन जटिलताओं का सामना करने के लिए जॉर्डन को अपने राष्ट्रीय हितों, लोगों की भावनाओं और अपने अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों को रणनीतिक रूप से संतुलित करने की आवश्यकता होगी.
सबीने अमीर यूनाइटेड किंगडम की ग्लास्गो यूनिवर्सिटी में पॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल रिलेशंस में डॉक्टोरल रिसर्चर हैं.
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