Published on May 05, 2021 Updated 27 Days ago

5G के ट्रायल से हुआवेई को दूर रखने से भारत के महत्वपूर्ण मूलभूत ढांचा यानी दूरसंचार का क्षेत्र भरोसेमंद और सुरक्षित हाथों में रहेगा.

क्या 5G ट्रायल में #Huawei को बाहर करना, भारत के क्रिटिकल नेशनल सिक्योरिटी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए अपरिहार्य बन गया था?

भारत ने अपने यहां 5G तकनीक के ट्रायल के लिए जिन पांच कंपनियों को मंज़ूरी दी है, उसमें सबसे विवादास्पद और सबसे घुसपैठिया, चीन की दूरसंचार कंपनी हुआवेई शामिल नहीं है. चीन की कंपनियों को भारत के 5G नेटवर्क में शामिल होने की इजाज़त देनी चाहिए या नहीं. इस सवाल को लेकर कई बरस चले वाद विवाद, सरकार द्वारा इस विषय पर सोच-विचार करने के बाद और अपने इस अनिर्णय से राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े समुदाय को खिझाने के बाद आख़िरकार भारत ने इस मुद्दे पर ख़ुद को अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ के अधिकतर देशों के साथ खड़ा करने का फ़ैसला लिया, जिससे कि वो अपने संचार नेटवर्क को सुरक्षित और चीन की घुसपैठ से मुक्त रख सके. दूसरे शब्दों में कहें, तो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को भारत की जासूसी करने के मौक़े से वंचित कर दिया गया है. दूरसंचार कंपनी हुआवेई के चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से गहरे संबंध हैं और इसी वजह से दुनिया के कई देशों ने इस कंपनी को अपने यहां के संचार नेटवर्क से बाहर कर दिया है.

भारत में 5G स्पेक्ट्रम का परीक्षण

4 मई 2021 को भारत के दूससंचार मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में पांच कंपनियों- स्वीडन की एरिक्सन, फिनलैंड की नोकिया, दक्षिण कोरिया की सैमसंग और भारत की C-DOT और रिलायंस जियोइन्फोकॉम के देश में 5G तकनीक के ट्रायल में शामिल होने की इजाज़त दी गई थी. ये कंपनियां भारत में 5G तकनीक की पहले निर्माता और तकनीक सेवा प्रदाता होंगी. इनके ही उपकरणों पर भारत में 5G का नेटवर्क चलेगा. ये कंपनियां चार दूरसंचार सेवा कंपनियों: भारती एयरटेल, रिलायंस जियोइन्फोकॉम, वोडाफोन और MTNL को 5G तकनीक के उपकरण उपलब्ध कराएंगी. भारत में अगले छह महीनों के दौरान 5G स्पेक्ट्रम का परीक्षण किया जाएगा, जो शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाक़ों में होगा.

भारत में अगले छह महीनों के दौरान 5G स्पेक्ट्रम का परीक्षण किया जाएगा, जो शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाक़ों में होगा.

इसका एक मतलब ये होगा कि कुछ दिनों के लिए भारत को 5G के उपकरण ज़्यादा क़ीमतों पर ख़रीदने होंगे, क्योंकि, हुआवेई दुनिया में सबसे सस्ते 5G उपकरण उपलब्ध कराती है. हालांकि, धीरे धीरे हुआवेई के उपकरण भी महंगे होते जाते हैं. 5G के ट्रायल से हुआवेई को दूर रखने से भारत के महत्वपूर्ण मूलभूत ढांचा यानी दूरसंचार का क्षेत्र भरोसेमंद और सुरक्षित हाथों में रहेगा. चीन की दुनिया पर दादागीरी जमाने वाली महत्वाकांक्षाओं और भू-राजनीतिक स्तर पर भारत विरोधी रुख़ को देखते हुए ऐसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को चीन के हवाले करना आत्मघाती होता. हम चीन का भारत विरोधी रवैया गलवान घाटी में सैन्य आक्रामकता से लेकर पाकिस्तान के पाले आतंकवादियों को समर्थन देने और कई अन्य क्षेत्रों में देखते आए हैं. [1]

नियम आधारित व्यवस्था में विश्वास

हालांकि, चीन से ये ख़तरा हमारी 3488 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा के चलते है, लेकिन ये ख़तरा सिर्फ़ भारत तक सीमित नहीं है. चीन से कई अन्य ख़तरों के अलावा उसका जून 2017 में बना राष्ट्रीय ख़ुफ़िया क़ानून सबसे ख़तरनाक है, जो चीन के साथ व्यापार करने वाले हर देश पर असर डालने वाला है. इस क़ानून की चार धाराएं (7,9,12 और 14) ये सुनिश्चित करती हैं कि चीन की हर कंपनी और उसके नागरिक क़ानूनी तौर पर चीन की ख़ुफ़िया एजेंसियों से सहयोग करने को बाध्य हों. इस क्षेत्र में योगदान देने और चीन की सरकार के एजेंट के रूप में काम करने, ख़ुफ़िया एजेंसियों को सहयोग देने, उनका समर्थन और मदद करने के लिए चीन की सरकार उन्हें प्रोत्साहन भी देती है. चूंकि 5G तकनीक बेहद दख़ल देने वाली है, तो इससे किसी भी देश का दिल-जो उसका संचार का ढांचा है-एक ऐसी पार्टी के हवाले करने जैसा है, जिसकी न तो कोई नैतिकता है और न ही वो नियम आधारित व्यवस्था में विश्वास रखती है.

अब चूंकि सुरक्षा की नियामक व्यवस्थाएं लागू हो गई हैं, तो हुआवेई इन नियमों का पालन कर पाने में सक्षम नहीं है. हुआवेई की तरफ़ से जारी बयान का मतलब तो यही निकलता है.

लेकिन भारत नियम-क़ानूनों में विश्वास रखता है. और क़ानून के राज के अंतर्गत, किसी भी देश को इस तरह से बाहर नहीं किया जा सकता. पिछले साल भारत ने विश्व व्यापार संगठन के सामने एक प्रस्ताव रखा था. द एसेंसियल रिक्वायरमेंट्स फॉर ट्रांसमिशन टर्मिनल एक्विमेंट नाम के इस प्रस्ताव को विश्व व्यापार संगठन ने जून 2020 को स्वीकार किया था और ये अक्टूबर 2020 से लागू हो गया था. इस प्रस्ताव के महत्वपूर्ण नियमों में, ‘दूरसंचार नेटवर्क की सुरक्षा और उपभोक्ता के हितों का संरक्षण’ के साथ साथ ‘मानव स्वास्थ्य व सुरक्षा की हिफ़ाज़त’ शामिल हैं. इस प्रस्ताव के जारी होने के बाद, भारत ने दूरसंचार के उपकरणों का टेलीकॉम इंजीनियरिंग सेंटर द्वारा परीक्षण और प्रमाणित करना अनिवार्य बना दिया था.

इस नियामक व्यवस्था से ये सुनिश्चित हो जाता है कि चीन की कंपनियों और ख़ास तौर से इस क्षेत्र में विश्व की अग्रणी हुआवेई और इसकी मामूली प्रतिद्वंदी ZTE द्वारा भारत के संचार नेटवर्क में घुसपैठ करना और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए काम करना असंभव हो जाता है. इसका ये मतलब नहीं है कि अन्य कंपनियों जैसे कि नोकिया या एरिक्सन की तकनीकें दख़ल देने वाली नहीं हैं. लेकिन, इनकी घुसपैठ को रोकने के लिए अन्य व्यवस्थाएं जैसे कि स्वतंत्र न्यायपालिका है, जिनके ज़रिए लोकतांत्रिक देश आपस में संवाद करते हैं. लेकिन, हम ये बात चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के संदर्भ में नहीं कह सकते हैं. अब चूंकि सुरक्षा की नियामक व्यवस्थाएं लागू हो गई हैं, तो हुआवेई इन नियमों का पालन कर पाने में सक्षम नहीं है. हुआवेई की तरफ़ से जारी बयान का मतलब तो यही निकलता है.

5G तकनीकों के साथ साथ दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों को 5Gi का इस्तेमाल करने को भी प्रोत्साहित किया जाएगा. ये एक ऐसी तकनीक है, जिसकी वकालत भारत करता रहा है. इसका विकास IIT मद्रास के सेंटर ऑफ एक्सेलेंस इन वायरलेस टेक्नोलॉजी और IIT हैदराबाद ने मिलकर किया है. 5Gi तकनीक को संयुक्त राष्ट्र संघ की सूचना एवं संचार तकनीक की एजेंसी अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) से भी मंज़ूरी मिल चुकी है. इंटरनेशनल टेलीकॉम यूनियन विश्व के दूरसंचार नेटवर्कों के लिए तकनीकी मानक विकसित करती है.

देश में औद्योगिक क्रांति 4.0 की शुरुआत

अब चूंकि भारत में 5Gi तकनीक का परीक्षण चल रहा है, तो भारत ने तेज़ नेटवर्क के विस्तार की दिशा में एक और क़दम बढ़ा दिया है. इससे टेली-मेडिसिन, टेली-एजुकेशन, ऑग्यूमेंटेड रियालिटी, ड्रोन आधारित खेती, स्वचालित कारें और ऐसी ही अन्य तेज़ नेटवर्क पर आधारित महत्वपूर्ण सेवाओं की भारत में भी शुरुआत हो सकेगी. 5G की स्पीड 4G से दस गुना अधिक होगी. स्पेक्ट्रम की कार्यकुशलता तीन गुना अधिक होगी और नेटवर्क धीमा होने की शिकायत बेहद कम होगी. इससे देश में औद्योगिक क्रांति 4.0 की शुरुआत हो सकेगी. इस वजह से खेती से लेकर स्मार्ट शहरों और ट्रैफिक प्रबंधन व ‘इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स’ (IoT) जैसी सेवाएं दे पाना संभव होगा.

राजीव चंद्रशेखर वाला ढांचा

किसी एक कंपनी को ऐसी सेवा देने में ख़तरा इस बात का है कि आगे चलकर आप तकनीक को अपग्रेड करने या क्षमता के विस्तार के लिए उसी कंपनी के भरोसे रहने को मजबूर हो जाते हैं. अपनी ओर से भारत ऐसा तकनीकी ढांचा अपनाने की कोशिश कर रहा है, जिसे राजीव चंद्रशेखर ग़ैर विशेषज्ञता वाला ढांचा कहते हैं. भारत की इस शर्त से हुआवेई अपने आप ही अलग हो जाती है. राजीव चंद्रशेखर का कहना है कि, ‘आज दुनिया इस बात को लेकर बहुत जागरूक हो गई है कि उनके कारोबारी और ग्राहकों के इंटरनेट के इस्तेमाल करने के लिए एक भरोसेमंद नेटवर्क का होना कितना आवश्यक है. दूरसंचार विभाग और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को ऐसे कार्यक्रमों का विस्तार करने की ज़रूरत है, और ऐसे व्यापक माध्यम को सहयोग देने, प्रोत्साहित करने या मदद करने की ज़रूरत है, जो लंबी अवधिक की तकनीकी रणनीति के अंतर्गत आते हों- जिससे घरेलू तकनीकों को प्रोत्साहन मिलता हो, जो ओपन सोर्स पर आधारित हों और अन्य प्लेटफॉर्म के साथ तालमेल से काम कर सकें, जैसे कि OpenRAN-इन सभी का लक्ष्य भारत में वास्तविक तकनीकी क्षमता का विकास करना तो हो ही, इसके साथ साथ किसी विशेष तकनीक या मंच द्वारा भारत में इंटरनेट सेवाओं के कोर नेटवर्क पर एकाधिकार या प्रभुत्व ज़माने से रोकने की तैयारी भी करनी चाहिए.’ 

अपनी ओर से भारत ऐसा तकनीकी ढांचा अपनाने की कोशिश कर रहा है, जिसे राजीव चंद्रशेखर ग़ैर विशेषज्ञता वाला ढांचा कहते हैं.

ये तकनीकी पहलू एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक ज़रूरत को पूरा और समर्थन करता है. जैसा कि समीर सरन और अखिल देव कहते हैं, भारत को ऐसी शक्ति के डिजिटल और आर्थिक उभार में क़तई योगदान नहीं देना चाहिए, जो उसे नुक़सान पहुंचा रही हो: ‘चीन, भारतीय नागरिकों की जासूसी करना जारी रखेगा. अधिक चिंता की बात तो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की वो धूर्तता भरी क्षमता है, जिसके ज़रिए वो भारत के राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में दख़ल दे सकता है, या उन्हें प्रभावित कर सकता है. डोकलाम में तनातनी के दौरान भारत के सुरक्षा तंत्र को पता चला था कि चीन के स्वामित्व वाला UC ब्राउज़र भारत में एंड्रॉयड मोबाइल फोन पर कुछ ख़ास ख़बरों को फिल्टर कर रहा था जिससे कि लोगों के दृष्टिकोण और उनके निष्कर्ष को निर्धारित किया जा सके- ये डिजिटल युग के सूचना युद्ध की बेहतरीन मिसाल है. हाल ही में हमने देखा है कि चीन की आलोचना करने वाले कंटेंट को भारत द्वारा प्रतिबंधित चीन के कई ऐप्स से हटा लिया गया. इसके अलावा इन चीनी ऐप्स पर कई घटनाओँ और तस्वीरों में भी हेर-फेर होते देखा गया था.’

5G के परीक्षण से जुड़े इस नीतिगत क़दम से हमें ये उम्मीद है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी सभी वाणिज्यिक शाखाओं को भारत के महत्वूपर्ण ढांचे में शामिल होने से दूर रखा जाएगा. इससे पहले, नितिन गडकरी ने चीन की कंपनियों के भारत के राजमार्गों के ठेकों में बोली लगाने से प्रतिबंधित कर दिया था. अब चीन की कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए उन्हें भारत के लिए महत्वपूर्ण मूलभूत ढांचे से जुड़े अन्य क्षेत्रों जैसे कि बंदरगाह, ऊर्जा रेलवे जैसे भौतिक क्षेत्रों; सूचना तकनीक, इंटरनेट, ब्रॉडबैंड जैसे वर्चुअल सेक्टर; बैंकिंग और वित्त जैसे संस्थागत क्षेत्रों; और अन्य क्षेत्रों (अंतरिक्ष, परमाणु, सार्वजनिक स्वास्थ्य) में प्रवेश करने से रोका जाना चाहिए.

इस क़दम के लिए सरकार की तारीफ़ करने के साथ-साथ, हम आने वाले समय के लिए अभी भी आशंकित हैं कि कहीं ऐसे फ़ैसले उलट न दिए जाएं. कूटनीतिक स्तर पर कहीं कुछ लेन-देन न हो, किसी दूसरी सूची के माध्यम से कहीं इस नीति में बदलाव न हो…हुआवेई को मंज़ूरी न देने पर कोई समझौता नहीं होना चाहिए. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और देश के महत्वपूर्ण मूलभूत ढांचों और विशेष रूप से दूरसंचार क्षेत्र के क्षेत्र में चीन की घुसपैठ रोकना सर्वोपरि है. इसे भारत की हर सरकार को सुनिश्चित करना होगा, फिर वो चाहे किसी भी दल, विचारधारा या राजनीतिक ख़ेमे से ताल्लुक़ रखती हो. हुआवेई को बाहर कर दिया गया है- और आगे भी उसे बाहर ही रखना होगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.