पांच सहस्त्राब्दी पहले, कुरुक्षेत्र के मैदान में, दो को छोड़कर आर्यावर्त के बाकी सभी योद्धाओं के बीच लड़े गए महाभारत के युद्ध के समाप्त होने के बाद, जब सम्राट युधिष्ठिर ने वेद व्यास से पूछा कि वह अपने साम्राज्य का पुनिर्निर्माण किस तरह करें, तो व्यास ने उनसे कहा कि वह इस बारे में सेनापति भीष्म की सलाह लें। गंगा और सम्राट शांतनु के पुत्र, गुरु परशुराम के शिष्य, प्रशासक-योद्धा-चिंतक-उत्कृष्ट रणनीतिकार, ऐतिहासिक महत्व वाले भीष्म, युद्धभूमि में शर शैय्या पर लेटे हुए हैं, जागृत अवस्था में उस उचित समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब उनकी आत्मा उनके शरीर को छोड़कर प्रस्थान कर सके। उनकी मृत्यु के साथ ही हर प्रकार के विवेक, समूचे ज्ञान, धर्म के बारे में समस्त दृष्टिकोण, राजधर्म, राजसी कर्तव्य भी चले जाएंगे।
और युद्ध?
इसके बाद भीष्म और युधिष्ठिर के बीच वार्तालाप 18 पर्व वाले महाभारत ग्रंथ का सबसे लम्बा पर्व है। इस शांति पर्व में 12,890 पद्य हैं, जो पूरे महाभारत के महत्वपूर्ण संस्करण के कुल 73,640 पद्यों वाले मूलपाठ के छठवें भाग से भी कुछ अधिक है। मोटे तौर पर इस पर्व को तीन भागों में बांटा जा सकता है, राजधर्म पर्व (राजधर्म के नियम, प्रशासन), आपदाधर्म पर्व (आपातकालीन स्थितियों,आपदाओं के नियम) और मोक्षधर्म पर्व (मोक्ष के नियम, तत्व मीमांसा), हालांकि यह एक आदर्श सम्मिश्रण है इनमें से प्रत्येक दूसरे को प्रभावित करता है, लेकिन धर्म इनको जोड़ने वाला तत्व और निरंतर दोहराया जाने वाला मूलभाव है।
आज यदि भीष्म जीवित होते, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी युद्ध के बारे में उनके चार प्रश्न पूछते।
पहला, क्या भारत को पाकिस्तान के साथ युद्ध करना चाहिए? यूं तो पाकिस्तान पिछले सात दशकों से इस्लाम को हथियार की तरह इस्तेमाल करके भारत के खिलाफ युद्ध लड़ता आया है, 72 हूरों का लालच देकर और आत्मघाती जेहादियों को चारे की तरह इस्तेमाल करता आया है। दोनों देशों के बीच होने वाला पाँचवाँ तकनीकी युद्ध कुछ अलग होगा। पहले चार युद्ध, जो 1947, 1965, 1971 और 1999 के दौरान लड़े गए थे, उनमें भारत ने पाकिस्तान को हराकर घर भेज दिया था। अपने स्तर पर, भारत गरीबी और साक्षरता से निपटने, रोज़गार की समस्या का हल करने, आर्थिक प्रगति करने और सभ्यतागत कथानक तैयार करने जैसी अन्य समस्याओं को सुलझाने में व्यस्त रहा। जिस तरह कुत्ते वाहनों के पीछे भागते हैं, उसी तरह पाकिस्तान, भारत को पीछे खींचने की कोशिश करता रहा, जबकि हम पिछले सात दशकों में अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाते हुए आज विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए है, अपने सभ्यतागत चिन्हों का विस्तार किया और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अपनी पैंठ बढ़ाते चले गए। बर्दाश्त की भी एक हद होती है, और जैसा कि पहले चर्चा की जा चुकी है, वह हद कब की पार हो चुकी है। पाकिस्तान हमें हजार जख्म दे चुका है, शिशुपाल की तरह ही पाकिस्तान के भी पापों का घड़ा भर चुका है और भारत की राजसिक अवस्था का उदय हो चुका है।
भीष्म का उत्तर कुछ ऐसा रहा होता। राष्ट्र की, और इसके माध्यम से उसकी जनता की रक्षा करना, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार का पहला धर्म है। (वह ‘सम्राट’ शब्द का उपयोग करते हैं, लेकिन अब हम 21वीं सदी की शासन प्रणालियों की बात कर रहे हैं।) उन्होंने मोदी को सम्प्रभुता की छह अनिवार्य आवश्यकताओं के बारे में याद दिलाया होता। पहली, शत्रु सशक्त हो, तो मित्रता करना चाहिए। दूसरी, जो समान रूप से ताकतवर हो, तो उससे युद्ध करना। तीसरी, जो कमजोर हो, तो उसके क्षेत्र पर आक्रमण करना। चौथी और पांचवीं, यदि कमज़ोर अपने किले में हो, तो डेरा डालना और सुरक्षा का प्रयास करना। और छठी, शत्रु के मुख्य अधिकारियों के बीच फूट डालना।
भय,असुरक्षा और मनमर्जी वाले इस्लाम के जहरीले मिश्रण से प्रेरित पाकिस्तानी सत्ता मरने की इच्छा की गिरफ्त में रही है। उसने आतंक का निर्माण करने वाले एक व्यवस्थित उद्योग का सृजन किया है, जहां बेरोजगारों को उपकरणों के तौर पर इस्तेमाल किया है, जबकि अपने परिवारों को लंदन में सुरक्षित रखा है। भीष्म के लिए, यह भी एक तरह का अधर्म होता। उन्होंने मोदी से कहा होता कि यह एक धर्मयुद्ध है। पिछले तीन दशकों से, जब से पाकिस्तान ने अपने हथकंडे बदलकर आतंकवाद का इस्तेमाल अपने राष्ट्र की नीति के तौर पर करना शुरू किया है, तभी से इसका मुकाबला न करके भारत ने सिर्फ तकलीफें भुगती हैं। यदि आपने युद्ध से मुंह मोड़ा, तो भीष्म कहते, इससे आपकी जनता पर, आपके सैनिकों पर, आपके सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर, आपके राष्ट्र की सरजमीं पर हिंसा का एक और दौर शुरू हो जाएगा। इसलिए, न्यायसंगत रूप से अपनी जनता की रक्षा करो और युद्ध में — संघर्ष में अपने शत्रु का सफाया करो।
दूसरा, यह युद्ध किस प्रकार का होना चाहिए? पाकिस्तान लगातार सीमा पार से आतंकवादियों को यहां भेज रहा है, ताकि वे आतंकवादी हमलों को अंजाम देकर भारतीय नागरिकों और सैनिकों की जान ले सकें। वह लगातार इन्हें सुरक्षा दे रहा है और पाकिस्तान के भीतर से ही — प्रत्यक्ष रूप से आईएसआई (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) के जरिए, जो सरकार के भीतर एक और सरकार है तथा परोक्ष रूप से — मसूद अजहर की अगुवाई वाले जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) — 14 फरवरी 2019 को पुलवामा हमले के लिए जिम्मेदार — हाफिज मुहम्मद सईद की अगुवाई वाले लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) 2001 के संसद हमले और 2008 के मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार और 1993 के मुंबई बम धमाकों का मास्टरमाइंड दाऊद इब्राहिम — जैसे नॉन स्टेट एक्टर्स के जरिए —न आतंकवादियों की कारगुजारियों पर नजर रख रहा है। ये तीनों पाकिस्तान में, सेना की हिफाजत में खुले आम घूमते हैं। इसलिए, जब भीष्म ने कुरु सेना का नेतृत्व किया था, तब से अब तक लड़ाई का मैदान बदल चुका है — यह युद्ध क्षत्रीय बनाम क्षत्रीय नहीं है; यह सरकार द्वारा सृजित, सैनिकों द्वारा संरक्षित आतंकवादी हैं, जो मासूम नागरिकों की जान ले रहे हैं। आप इस युद्ध को किस तरह लड़ते?
हालांकि, इस बारे में भीष्म का उत्तर कालातीत रहता कि जो शत्रुओं का विनाश चाहता है, उसे शत्रुओं को पहले से चौकन्ना नहीं करना चाहिए। बालाकोट में भारत ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया था, जब उसने नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्तान पर बम बरसाया था। इतना ही नहीं, राष्ट्र को अपना क्रोध या डर या खुशी को भी जाहिर नहीं करना चाहिए — अनेक पदों की जिम्मेदारी संभाल रहे चीन के नेता शी जिनपिंग यह काम बखूबी करते हैं और भारत अपने लोकतांत्रिक दबावों के कारण यह काम बहुत बुरी तरह करता है। भीष्म ने यह भी कहा होता कि शत्रु की बात पर विश्वास किये बगैर ऐसा दिखावा करना चाहिए कि उस पर पूरी तरह भरोसा किया जा रहा है, उससे मीठे वचन बोलने चाहिए, कभी भी कुछ अप्रिय नहीं करना चाहिए। भारत का सार्वजनिक व्यवहार नियंत्रित रहा है, उसके कथानक मीडिया द्वारा लीक हो रहे हैं।
विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को लौटा कर, पाकिस्तान ने अपनी चाल बहुत अच्छे से चली है। वह तनाव में कमी चाहता है, आक्रामकता को शांत करना चाहता है, नैतिक रूप से उच्च स्तर प्राप्त करना चाहता है—उसके बाद फिर से आतंकवाद की ओर लौट जाना चाहता है। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि पाकिस्तान अपने देश में मौजूद आतंकवाद के बुनियादी ढांचे को तबाह करने की दिशा में एक मिलीमीटर भी आगे बढ़ेगा या अजहर, सईद और दाऊद को दंडित करेगा। इसकी अनदेखी करके, नुकसान का जोखिम उठाते हुए और पाकिस्तान के लिए तिकड़म की गुंजाइश न छोड़ते हुए, भारत ने इस बारे में भी बहुत अच्छी भूमिका निभाई है।
भारतीय नीति निर्माताओं पर एक और दबाव टेक्नोलॉजी का भी है। ऐसे दौर में जब सोशल मीडिया विश्व में सबसे कम लागत पर सूचनाएं प्रसारित करने वाली व्यवस्था बन चुका है, तो ऐसे में गुस्सा महज एक क्लिक की दूरी पर है।
ऐसी स्थिति में, जब आसानी से राजसिक उफान उठ रहा है, जिसे पहले कभी अनुभव नहीं किया गया था, तो ऐसे में युद्ध का एक हिस्सा अब मनोवैज्ञानिक कार्रवाइयों के जरिए ऑनलाइन तरीकों का रुख कर चुका है। पाकिस्तान की ओर से, इस तरह की बातचीत सेना द्वारा नियंत्रित होती है। भारत की ओर, कथानक समूहों द्वारा नियंत्रित होती है — एक ओर शांति प्रेमी समूह है, तो दूसरी तरफ न्याय की मांग करने वाला समूह है, बीच में बहुत बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है, जो यह सब देख रहे हैं। जब हर तरह की बातचीत सार्वजनिक हो रही हो और हर एक कार्य की समालोचना हो रही हो, तो ऐसे में सरकार गोपनीयता बरतते हुए कैसे काम करे?
अगर चुनाव सिर पर नहीं मंडरा रहे होते, तो भीष्म कहते कि भारत को लम्बे अर्से तक इंतजार करना चाहिए और उसके बाद उचित अवसर मिलते ही, जब दुश्मन को किसी हमले का ख्वाबो-ख्याल तक न हो, उसका नाश कर देना चाहिए। यही अवसर सफलता की कुंजी है — एक बार जब यह मौका निकल जाता है, तो दोबारा हाथ नहीं आता। पाकिस्तान अपने आतंकवादियों के जरिए ऐसा बखूबी करता आ रहा है। भारत को भी यही खेल खेलने की जरूरत है, लेकिन धर्मसम्मत साधनों से। भीष्म कहते, जहां एक ओर जीत निर्णायक होनी चाहिए, वहीं दूसरी ओर बड़ी तादाद में सैनिकों का मारा जाना कोई अच्छा विचार नहीं है। आखिर में वह कहते, गुस्से से उत्तेजित और माफी से वंचित नौजवान केवल फसाद चाहते हैं। इसी के मद्देनजर भीष्म, मोदी से कहते कि वह मीडिया — परम्परागत और सोशल मीडया — दोनों को नजरअंदाज करें और कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करें। मीडिया मैनेजमेंट का जिम्मा अपने किसी वरिष्ठ मंत्री — मीडिया से अच्छे संबंध रखने वाले अरुण जेटली को, शांत और स्थिर निर्मला सीतारमण को या समझदार और व्यवहारिक दृष्टिकोण रखने वाली सुषमा स्वराज को सौंप दें।
तीसरा, सबसे बेहतरीन जीत कौन सी होगी? पाकिस्तानी नेताओं को नाक रगड़वाना आसान होगा, लेकिन इससे शायद कोई नतीजा न निकल सके। पाकिस्तान के आतंकी डीएनए को देखते हुए, उसकी अच्छी मंशाएं भी हमेशा बरकरार नहीं रह सकतीं। सबसे बड़ा सवाल यही है: आतंकवादियों को निर्यात करने वाले अपने विशाल उद्योग के साथ पाकिस्तान क्या करेगा? आर्थिक समृद्धि और सामाजिक सम्मान तक की इस यात्रा में पम्परागत बदलाव के प्रोत्साहन बहुत कम हैं। उसका दर्जा यकीनन दोनों स्तरों — उसके निजी आमदनी और साथ ही साथ जीवन शैलियों पर कम रहेगा, अवधारणा के स्तर पर, उन्हें ऐसे कायरों की तरह देखा जाएगा, जिन्होंने ‘जेहाद’ का त्याग कर दिया।
भीष्म के पास इस जटिल हालात के लिए भी शायद जवाब होता। वह सबसे पहले कहते कि पाकिस्तान के अनैतिक और अधार्मिक भागों के साथ मुकाबला करके, मोदी को युद्ध के बिना जीत हासिल करने का प्रयास करना चाहिए।
युद्ध में हासिल की गई विजयों का विवेकशील लोग बढ़-चढ़कर बखान नहीं करते। गहन राजनयिक सम्पर्कों के जरिए, मोदी उनकी सलाह का पहले से ही पालन कर रहे हैं। उन्होंने दुनिया भर के राजनयिकों को हर घटनाक्रम की जानकारी दी है — पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद, बालाकोट हमले से पहले और उसके बाद। सफलता सबके सामने हैं: चीन सहित पूरे विश्व का रुख बदल चुका है और वह पाकिस्तान को सीधे रास्ते पर आने के लिए दबाव बना रहा है।
चौथा, अब जबकि कूटनीतिक विजय पहले ही हासिल की जा चुकी है और सैन्य संकल्प स्पष्ट रूप से बता दिया गया है — यहां तक कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की ओर से दी गई छिपी हुई परमाणु हथियारों की धमकी (“मैं भारत से पूछता हूं: जो हथियार आपके पास हैं और जो हथियार हमारे पास हैं, उनके साथ क्या हम सचमुच ऐसा गलत फैसला लेने का खतरा उठा सकते हैं?”) — के बावजूद भारत को आतंकवाद के गैंग्रीन को मिटा देना चाहिए। असंभावित परिदृश्य में, यदि पाकिस्तान शांति की जगह युद्ध का विकल्प चुनता है, तो उसकी अर्थव्यवस्था एक हफ्ते में नहीं, तो एक महीने में अपने आप तबाह हो जाएगी। भीष्म ने मोदी से कहा होता कि उसका सम्मान निचोड़ लो। लेकिन भारत क्योंकि आक्रांता नहीं है, वह सिर्फ अपने नागरिकों की हिफाजत कर रहा है, तो वह भला उसको क्या निचोड़ेगा?
दो विचार हैं। पहला, आतंकवादियों की तिकड़ी — दाऊद इब्राहिम, मसूद अजहर और हाफिज मोहम्मद सईद को भारत के हवाले कर दो, ताकि हम उन्हें दंडित कर सकें। दूसरा, पाकिस्तान के भीतर मौजूद आतंकवादी शिविरों को नष्ट करते हुए यह दिखा दो कि आतंकवाद को सरकार की नीति के तौर पर इस्तेमाल करने का पाकिस्तान का मंसूबा अब खत्म हो चुका है; भारत और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की ओर से एक टीम को नतीजों की पुष्टि करनी चाहिए। पाकिस्तान बालाकोट को अपनी परिपक्वता के लम्हे के तौर पर देख सकता है, जब वह आखिरकार सभ्य देशों के समुदाय में शामिल होने का फैसला करे।
अपनी बात समाप्त करते हुए भीष्म ने मोदी से कहा होता कभी पीछे मत हटो। राष्ट्र और उसके नागरिक सबसे पहले हैं; बाकि सब कुछ उसके बाद है। अपनी पूरी ऊर्जा, अपनी पूरी इच्छा शक्ति से उसकी सुरक्षा करो, वे कहते, यही आपका पहला धर्म है।
यह धर्म युद्ध है, अच्छाई और बुराई के बीच धर्म युद्ध है, इसे हर तरीके से लड़ो, अपने पास मौजूद हर साधन-सेना, कूटनीतिक, संचार, आर्थिक साधनों — का इस्तेमाल करो — और इस युद्ध में जीत हासिल करो। हमारा देश बहुत लम्बे अर्से से पाकिस्तान के आतंकवादी हमलों की मार झेल रहा है। आज, राष्ट्र अपने तमस्, आलस्य को त्याग रहा है और राजसिक अवस्था को अपना रहा है। वह तकलीफ उठाना चाहता है। वह सहायता करना चाहता है। उसे यह युद्ध जीतना है। इस ऊर्जा को जाया मत होने दो — अपनी जनता को निराश मत करो, उन्हें फिर से बलि का बकरा बनने पर मजबूर मत करो।
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