कोविड-19 की बढ़ती चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए 24 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने 21 दिन के जिस लॉकडाउन का एलान किया था, वो आज ख़त्म हो जायेगा. शुरुआत में ही ये साफ़ था कि लॉकडाउन महामारी का इलाज नहीं है. ये एक कठोर क़दम था संक्रमण की कड़ी को रोकने का. साथ ही 21 दिन का बहुमूल्य अतिरिक्त समय हासिल करने का ताकि लॉकडाउन हटाने के बाद एक योजना तैयार करके संक्रमण को असरदार ढंग से रोका जा सके.
भारत के पास फरवरी में अनमोल समय था जब 30 जनवरी से 3 फरवरी के बीच केरल में सिर्फ़ तीन केस सामने आए थे. ये सभी वो छात्र थे जो वुहान से लौटे थे. कोरोना के मामलों का अगला चरण मार्च में शुरू हुआ जिसमें वो मरीज़ भी शामिल थे जो दुनिया के दूसरे हिस्सों से यात्रा करके लौटे थे. इस दौरान चीन में मरीज़ों का आंकड़ा 10,000 से बढ़कर 78,000 हो गया और बीमारी 60 देशों में फैल गई. इस दौरान दक्षिण कोरिया, इटली और ईरान कोरोना के बड़े केंद्र बन गये. इसके बावजूद कुछ ख़ास देशों से आने वाले लोगों के लिए स्क्रीनिंग के उपाय को छोड़कर आने वाले ख़तरे के लिए शायद ही कुछ किया गया. सभी देशों से आने वाले लोगों के लिए अनिवार्य स्क्रीनिंग की शुरुआत 4 मार्च को हुई. भारत के लिए सभी वीज़ा को उसके एक हफ़्ते बाद निलंबित किया गया. फिर 18 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों पर पाबंदी लगाई गई.
फरवरी में टेस्ट किट हासिल करने या उत्पादन करने की कोई योजना नहीं बनाई गई क्योंकि इस दौरान टेस्टिंग के मानदंडों को लेकर अंदरुनी बहस चल रही थी. जब पूरे विश्व में 6 मार्च को कोरोना के मरीज़ों की संख्या 1 लाख के पार हो गई (26 दिन बाद ये संख्या 10 लाख के पार हो गई), भारत स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों जैसे मास्क, ग्लव्स और प्रोटेक्टिव सूट के साथ-साथ ज़रूरी उपकरणों जैसे रेस्पिरेटर, वेंटिलेटर और आइसोलेशन वॉर्ड में पर्याप्त बेड की योजना बनाने के लिए जूझ रहा था.
मौजूदा आकलन के मुताबिक़ कोविड-19 का एक मरीज़ 2.9 लोगों को संक्रमित कर सकता है. संक्रमण की कड़ी तोड़ने का मतलब है कि इस संख्या को 1 से नीचे लाया जाए यानी इसमें दो-तिहाई से ज़्यादा की कटौती. अंतिम फ़ैसला सिर्फ़ आंकड़ों के आधार पर किया जा सकता है
इस बीच वायरस तेज़ी से फैल रहा था. 16 मार्च को 100 मामले पहुंचने के बाद ये 4 दिन में दोगुना होने लगा. 22 मार्च को ‘जनता कर्फ्यू’ के प्रयोग के बाद 25 मार्च को 21 दिन का लॉकडाउन शुरू हो गया. तब से पीएम मोदी 3 बार बोल चुके हैं, एक बार 29 मार्च को रेडियो पर मन की बात में जहां उन्होंने लॉकडाउन के दौरान हुई परेशानी को लेकर लोगों से ‘माफ़ी’ मांगी थी और उसके बाद 3 अप्रैल को जब उन्होंने लोगों से एकजुटता दिखाने के लिए 5 अप्रैल को रात 9 बजे 9 मिनट के लिए बल्ब बंद कर मोमबत्ती या दीया जलाने की अपील की थी और आज जब लॉकडाउन ख़त्म होने जा रहा हैं.
हम जानते हैं कि शुरुआती फ़ैसला संक्रमण की कड़ी को तोड़ने के इरादे से लिया गया था. तो क्या इसमें कामयाबी मिली है? मौजूदा आकलन के मुताबिक़ कोविड-19 का एक मरीज़ 2.9 लोगों को संक्रमित कर सकता है. संक्रमण की कड़ी तोड़ने का मतलब है कि इस संख्या को 1 से नीचे लाया जाए यानी इसमें दो-तिहाई से ज़्यादा की कटौती. अंतिम फ़ैसला सिर्फ़ आंकड़ों के आधार पर किया जा सकता है. ICMR के मुताबिक़ 3 अप्रैल को पूरे देश में सिर्फ़ 70,000 टेस्ट किए गए थे. आधिकारिक तौर पर जो आंकड़े जारी किए जा रहे हैं उसके मुताबिक़ चार दिनों में पॉज़िटिव मरीज़ों की संख्या अभी भी दोगुनी हो रही है. इन सीमित आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि संक्रमण की कड़ी अभी भी नहीं टूटी है. आने वाले दिनों में इन आंकड़ों को बढ़ाने की ज़रूरत है. ज़रूरत है कि जितने मामले आते हैं, उसका 100 गुना टेस्ट हो ताकि एक निश्चित नतीजे पर पहुंचा जा सके.
लेकिन इसके बावजूद ICMR टेस्ट को लेकर इधर-उधर की बातें कर रहा है. बेहद सटीक रियल टाइम रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमेरेज़ रिएक्शन टेस्ट (RRT-PCR) के अलावा एक तेज़ और आसान (हालांकि कम भरोसेमंद) एंटीबॉडीज़ की पहचान करने वाले सिरम टेस्ट को भी अब व्यापक स्वीकार्यता मिल रही है. ये टेस्ट पॉज़िटिव आने के बाद आगे PCR टेस्ट के ज़रिए इसे परखना होता है. लेकिन ICMR अनिर्णय की हालत में है और एंटीबॉडी टेस्ट को लेकर प्रोटोकॉल का अभी भी इंतज़ार हो रहा है.
24 मार्च को पीएम मोदी ने हेल्थकेयर सेक्टर को तुरंत मज़बूती देने के लिए 15,000 करोड़ रुपये के एक पैकेज का एलान किया था. इसका इस्तेमाल सुरक्षा उपकरणों और वेंटिलेटर ख़रीदने, क्वॉरन्टीन सेंटर बनाने और स्वास्थ्य कर्मियों की ट्रेनिंग में किया जाना था. बड़े पैमाने पर सामान मंगाए गए लेकिन डिलीवरी अभी तक रफ़्तर नहीं पकड़ सकी है. लॉकडाउन के दौरान घरेलू उत्पादन को बढ़ाना मुश्किल है क्योंकि कच्चा माल जैसे- फैब्रिक, ख़ास तरह के सिंथेटिक्स, ज़िप, प्रेशर वॉल्व इत्यादि मिलने में दिक़्क़त होती है. साथ ही कामगारों का मिलना और विदेशों से आयात में भी दिक़्क़त आ रही है.
जब लॉकडाउन का एलान किया गया था उस वक़्त 18% ज़िले (729 में से 132) प्रभावित थे लेकिन अब ये बीमारी 33% ज़िलों (238) में फैल चुकी है. कुछ इलाक़े बुरी तरह प्रभावित हैं जबकि कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां ये नहीं फैली है
ये सही है कि महामारी से युद्ध स्तर पर लड़ने की ज़रूरत है लेकिन बिना आंकड़ों और बिना सुरक्षा उपकरणों के ये आंख बंद कर और बिना हथियार के युद्ध लड़ने की तरह है. हर युद्ध में अप्रत्याशित चीज़ें होती हैं. लेकिन आर्थिक कड़ी पर लॉकडाउन का असर प्रवासी मज़दूरों के पलायन के रूप में होगा ये सोचा भी नहीं गया था. इसकी वजह से खाद्य सुरक्षा और पर्याप्त कल्याणकारी क़दमों को सुनिश्चित करने की नई चुनौती सामने आ गई है. आंशिक रूप से लॉकडाउन ख़त्म करने से आर्थिक दर्द कुछ कम होगा लेकिन संक्रमण की कड़ी को तोड़ने के मक़सद पर इसका ख़राब असर होगा. ये याद रखना महत्वपूर्ण है कि आर्थिक दर्द को पलटा जा सकता है लेकिन मौत को नहीं चाहे वो बीमारी से हो या दूसरी परेशानियों से.
ऐसे में लग रहा है कि सरकार आंशिक छूट पर विचार करेगी. इसके संकेत 2 अप्रैल को राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ पीएम मोदी की वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान मिले. लेकिन इसके बावजूद सभी राज्यों के लिए एक तरह की छूट को लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि ये बीमारी हर जगह एक तरह नही फैली है. जब लॉकडाउन का एलान किया गया था उस वक़्त 18% ज़िले (729 में से 132) प्रभावित थे लेकिन अब ये बीमारी 33% ज़िलों (238) में फैल चुकी है. कुछ इलाक़े बुरी तरह प्रभावित हैं जबकि कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां ये नहीं फैली है. ये वो इलाक़े हैं जहां 14 अप्रैल के बाद संभवत: छूट दी जाएगी ताकि आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हो सकें. लेकिन तब भी इन इलाक़ों में सावधानीपूर्वक निगरानी और टेस्टिंग की ज़रूरत पड़ेगी. इससे फसल कटाई में भी मदद मिलेगी.
तकनीक का व्यापक इस्तेमाल करने की ज़रूरत है. मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल से लोकेशन को ट्रैक किया जा सकता है. दूसरे देशों में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में इसका ख़ूब इस्तेमाल हो रहा है. लेकिन कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के साथ-साथ व्यापक टेस्टिंग भी हो. सड़कों पर आवागमन को पेट्रोल-डीज़ल की बिक्री से मिलाना चाहिए. इससे बीमारी को फैलने से रोकने में मदद मिलेगी. ज़िले मूलभूत प्रशासनिक यूनिट हैं और यहीं से जंग लड़ी और जीती जा सकती है.बीमारी की निगरानी के आधार पर योजना बनाने की ज़रूरत है ताकि इसे फैलने से रोका जा सके. ज़िले के स्तर पर रणनीति को अंजाम देना होगा जिसके लिए संसाधन जुटाने की ज़िम्मेदारी राज्य और केंद्र की है.
21 दिनों के लॉकडाउन में समय का जो फ़ायदा हुआ है वो आज ख़त्म होने वाला हैं. लॉकडाउन से कोविड-19 ख़त्म नहीं होगा और तब भी लोगों की और क़ुर्बानी की ज़रूरत पड़ेगी. लेकिन उम्मीद है कि 14 अप्रैल को पीएम मोदी राज्यों से सलाह के आधार पर विकसित वैज्ञानिक विश्लेषण, राष्ट्रीय स्तर पर मौजूद संसाधनों के आधार पर विकसित समझ के आधार पर राष्ट्र को एक रणनीति मुहैया कराने में कामयाब होंगे. इसी में एकजुटता की चाबी है मौजूदा वक़्त की ज़रूरत है.
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