Author : Don McLain Gill

Published on May 04, 2023 Updated 0 Hours ago
चीन को फिलीपींस के बारे में क्या समझने की ज़रूरत है?

चीन के विदेश मंत्री चिन गांग ने 21 से 23 अप्रैल के बीच फिलीपींस का दौरा किया था. उनका ये दौरा ऐसे अहम मौक़े पर हुआ है, जब दोनों देशों के रिश्ते कई उल्लेखनीय चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. चीन इस बात को लेकर चिंतित है कि फिलीपींस और अमेरिका का गठबंधन मज़बूत हो रहा है और दक्षिणी पूर्वी एशिया में अमेरिकी सेनाओं की मज़बूती, ताइवान की सुरक्षा के लिए ख़तरा बनती जा रही है. चीन के विदेश मंत्री तब फिलीपींस पहुंचे, जब उससे लगभग एक हफ़्ते पहले अमेरिका और फिलीपींस की सेनाओं के साझा वार्षिक युद्धाभ्यास बालिकाटन (BALIKATAN) की शुरुआत हुई थी. ये इत्तिफ़ाक़ भी इस बात का संकेत है कि वो फिलीपींस के साथ रिश्तों में तनाव को सीमित और कम करना चाहता है. हालांकि, जब तक चीन अपनी अहंकारी और आक्रामक क्षेत्रीय नीति को छोड़ेगा नहीं, तब तक इस बात की उम्मीद कम ही है कि ऐसे दौरों से फिलीपींस के साथ उसके रिश्तों में कोई अहम और स्थायी परिवर्तन देखने को मिलेगा.

जब फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डीनेंड मार्को जूनियर ने फिलीपींस की विदेश नीति को लेकर अपना नज़रिया पेश करना शुरू किया था, तो उन्होंने चीन को संदेह का लाभ देते हुए ज़ोर दिया था कि उनका देश अपने सबसे बड़े और नज़दीकी पड़ोसी के साथ अपने रिश्ते सक्रिय और सकारात्मक संवाद से आगे बढ़ाना चाहता है.

यहां इस बात का ज़िक्र करना उचित होगा कि जब फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डीनेंड मार्को जूनियर ने फिलीपींस की विदेश नीति को लेकर अपना नज़रिया पेश करना शुरू किया था, तो उन्होंने चीन को संदेह का लाभ देते हुए ज़ोर दिया था कि उनका देश अपने सबसे बड़े और नज़दीकी पड़ोसी के साथ अपने रिश्ते सक्रिय और सकारात्मक संवाद से आगे बढ़ाना चाहता है. इसीलिए, चीन के साथ अपने रिश्ते सुधारने का इरादा जताने के साथ ही मार्कोस की सरकार ने गेंद चीन के पाले में डाल दी थी. हालांकि, समस्या ये है कि चीन की मौजूदा सरकार अपनी राष्ट्रीय राजनीतिक शक्ति को मज़बूत करने के लिए आक्रामक विदेश नीति का दृष्टिकोण अपनाकर राष्ट्रवादी जज़्बात को भड़काने में विश्वास रखती है. इससे चीन की तरफ़ से कोई शांतिपूर्ण या फिर व्यवहारिक कूटनीति की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं, क्योंकि इससे चीन की सरकार अपने देश में कमज़ोर दिखने लगेगी. राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में ये राजनीतिक सच्चाई ये दिखाती है कि जब बात उसके राजनीतिक बयानों और ज़मीन पर उठाए जाने वाले असली क़दमों की आती है, तो चीन अपने रुख़ से पलट जाने के लिए बदनाम है.

जनवरी में शी जिपिंग और फर्डीनेंड मार्कोस जूनियर द्वारा दक्षिणी चीन सागर के तनाव के प्रबंधन को लेकर उल्लेखनीय वादे किए थे. इसके कुछ हफ़्तों बाद ही चीन, फिलीपींस की संप्रभुता और उसके विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) को लेकर अपने आक्रामक दांव-पेंचों की दिशा में लौट गया था. अभी हाल ही में, ताइवान में काम कर रहे फिलीपींस के लगभग दो लाख अप्रवासी नागरिकों की सुरक्षा को लेकर फिलीपींस में चीन के राजदूत के भड़काने वाले बयान को इस दुर्भाग्यशाली चलन का एक और संकेत कहा जा सकता है. चीन के साथ बढ़ते तनाव और उसके आक्रामक रवैये से निपटने के लिए तार्किक क़दम उठाते हुए, फिलीपींस ने भी अमेरिका का रुख़ किया, और उसके साथ अपने गठबंधन का प्रयोग अपनी क्षेत्रीय अखंडता की प्रभावी ढंग से सुरक्षा करने की अपनी क्षमता के विकास के लिए करना शुरू किया.

अगर चीन वाक़ई इस क्षेत्र में अच्छा माहौल बनाने का इच्छुक है, और ख़ास तौर से वो फिलीपींस से अपने रिश्ते बेहतर करना चाहता है, तो उसे अपनी अहंकारी महत्वाकांक्षाओं को परे रखते हुए, एक अच्छे पड़ोसी का बर्ताव करने की प्रतिबद्धता जतानी होगी.

हालांकि, हमें इस बात का ख़याल रखना होगा कि अमेरिका के साथ फिलीपींस का गठबंधन कोई लक्ष्य नहीं, बल्कि एक मक़सद हासिल करने का ज़रिया भर है. इसका मतलब ये है कि इस इलाक़े की बदलती भू-राजनीतिक तस्वीर और उठा-पटक को देखते हुए, अमेरिका की सबसे अहम भूमिका सुरक्षा देने वाले एक पारंपरिक देश की है. इसीलिए, फिलीपींस द्वारा अपना मक़सद हासिल करने, अपने इलाक़े की सुरक्षा करने की क्षमताओं में वृद्धि, सेना के आधुनिकीकरण के कार्यक्रम और रक्षा समीकरण के आयामों के लिहाज़ से अमेरिका के साथ गठबंधन का फ़ायदा उठाना तय ही था. इसका ये भी मतलब है कि भले ही फिलीपींस और अमेरिका साझा हितों और चिंताओं के क्षेत्रों में अपना सहयोग और बढ़ाना जारी रखेंगे. लेकिन, फिलीपींस अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों की बुनियाद ख़ुद को गठबंधन और गुटों की राजनीति में उलझाकर नहीं रखना चाहेगा.

ताइवान मसला

ये बात उस वक़्त स्पष्ट हो गई, जब फिलीपींस के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने कहा कि फिलीपींस, ताइवान के मामलों में दख़लंदाज़ी का बिल्कुल भी प्रयास नहीं करेगा. फिलीपींस को ये बात अच्छे से पता है कि अपनी भौगोलिक स्थिति, सामाजिक आर्थिक हालात और गठबंधन की संधि के तहत आने वाले अपने उत्तरदायित्वों के कारण, ताइवान की सुरक्षा की स्थिति फिलीपींस से बहुत हद तक जुड़ी हुई है. हालांकि, इसका ये मतलब नहीं है फिलीपींस, अमेरिका और चीन के बीच चल रहे सत्ता के संघर्ष की आग में और घी डालने या उसे भड़काने में कोई सक्रिय भूमिका अदा करेगा. फिलीपींस के प्राथमिक सुरक्षा हित, किसी और बात से ज़्यादा अपनी संप्रभुता और अपने संप्रभु अधिकारों की रक्षा में निहित हैं. यही वजह है कि चीन को फिलीपींस के साथ अपने रिश्तों को ज़्यादा सावधानी से संचालित करना चाहिए.

फिलीपींस की विदेश नीति इस मामले में स्वायत्त बनी हुई है कि पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बढ़ते सत्ता संघर्ष के बाद भी, चीन के साथ फिलीपींस कूटनीतिक और शांतिपूर्ण तरीक़ों से सक्रियता से संपर्क बनाना चाहता है, ताकि वो चीन के साथ अपने रिश्तों का और असरदार प्रबंधन कर सके और उसके साथ तनाव, ख़ास तौर से समुद्री क्षेत्र में किसी संभावित तनाव को कम कर सके. फिलीपींस कई बार ये बात दोहरा चुका है.

ऐसे में चीन जिस समस्या को उजागर करना चाहता है, वो दरअसल उसकी ही करनी का फल है. फिलीपींस के विशेष आर्थिक क्षेत्र में अपनी दबदबे वाली और आक्रामक गतिविधियों को जायज़ ठहराने के लिए चीन हमेशा ही फिलीपींस और अमेरिका की बढ़ती नज़दीकी का बहाना नहीं बना सकता है. ये न केवल अतार्किक है बल्कि ये इस बात का भी प्रतीक है कि फिलीपींस की नई सरकार की तरफ़ से दिए जा रहे संकेतों को समझने में चीन पूरी तरह नाकाम रहा है. गेंद अभी भी चीन के ही पाले में है. अगर चीन वाक़ई इस क्षेत्र में अच्छा माहौल बनाने का इच्छुक है, और ख़ास तौर से वो फिलीपींस से अपने रिश्ते बेहतर करना चाहता है, तो उसे अपनी अहंकारी महत्वाकांक्षाओं को परे रखते हुए, एक अच्छे पड़ोसी का बर्ताव करने की प्रतिबद्धता जतानी होगी. इसमें कोई शक नहीं है कि फिलीपींस, चीन के साथ अच्छे और उत्पादक रिश्ते चाहता है. लेकिन, फिलीपींस किसी भी सूरत में ख़ुद को इस क्षेत्र में चीन के संकुचित लक्ष्यों का मोहरा नहीं बनने देगा. क्योंकि चीन के ये लक्ष्य फिलीपींस की संप्रभुता और संप्रभु अधिकारों की क़ीमत पर ही हासिल हो रहे हैं.

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