Published on Jul 30, 2021 Updated 0 Hours ago

आने वाले दिनों में निश्चित रूप से डॉ. एस. नारायण का काम बढ़ने वाला है.

तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था को ‘रीबूट’ करने की ज़रूरत

तमिल एक प्राचीन भाषा है जो पुरातनता के मामले में संस्कृत की प्रतिद्वंदी है लेकिन आधुनिक युग में भी इसका इस्तेमाल होता है. तमिल भाषा एक सांस्कृतिक पहचान भी है. स्वतंत्रता के बाद 1947 में तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी भारतीय संघ के भीतर मद्रास राज्य बन गई. 1956 में मद्रास राज्य की सीमाओं में बदलाव किया गया जिसके तहत ग़ैर-तमिल भाषा वाले बाहरी क्षेत्रों को आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में मिलाया गया. 1969 में मद्रास राज्य का नाम तमिलनाडु रखा गया यानी तमिलों की भूमि.

तमिलनाडु अभी भी अपनी समृद्ध संस्कृति से जुड़ा हुआ है जो समृद्ध होने के साथ-साथ (और विरोधाभासी ढंग से) घोर अंतर्मुखी और अंतर्राष्ट्रीय है. सिर्फ़ भाषाई समानता हासिल करने के लिए क्षेत्र पर दावा छोड़ने की इच्छा दिखाती है कि तमिलनाडु सांस्कृतिक लगाव को कितना महत्व देता है. लेकिन तमिल बोलने वाले अलग-थलग रहने वाले लोग नहीं है. 1,000 साल से भी ज़्यादा पहले चोल वंश के तहत उनके समुद्री बेड़े ने आज के दक्षिण-पूर्व एशिया के हिस्सों में अपना असर स्थापित किया था. एक अनुमान के मुताबिक़ तमिल प्रवासियों (एनआरआई), जिनमें से ज़्यादातर खाड़ी देशों में रहते हैं, की संख्या 22 लाख के क़रीब बताई जाती है. दुनिया भर में फैले भारतीय मूल के 1 करोड़ 90 लाख लोगों में से भी 30 लाख लोग तमिल मूल के हैं जो दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में वर्चस्व रखने वाले कारोबारी अल्पसंख्यक हैं.

टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) के डैशबोर्ड पर तमिलनाडु तीसरा सर्वश्रेष्ठ राज्य है, वो हिमाचल प्रदेश के बराबर है और सिर्फ़ केरल से पीछे है. ये तमिलनाडु के टिकाऊ विकास और अच्छी क्वालिटी की सार्वजनिक सेवा के उचित मेलजोल को बताता है.

तमिलनाडु ने स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय दल (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) के दबदबे को 1967 में ही नामंज़ूर कर दिया और इस तरह उसने यहां की राजनीति में क्षेत्रीय दलों की प्रधानता को दिखाया. तब से तमिल क्षेत्रीय दलों- “पेरियार” ई.वी. रामास्वामी की जस्टिस पार्टी से निकली पार्टियां- ने तमिलनाडु पर राज किया है और वो तमिल संस्कृति के रक्षक के तौर पर प्रमुखता हासिल करते हैं.

टिकाऊ विकास

टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) के डैशबोर्ड पर तमिलनाडु तीसरा सर्वश्रेष्ठ राज्य है, वो हिमाचल प्रदेश के बराबर है और सिर्फ़ केरल से पीछे है. ये तमिलनाडु के टिकाऊ विकास और अच्छी क्वालिटी की सार्वजनिक सेवा के उचित मेलजोल को बताता है. तमिलनाडु की प्रति व्यक्ति आमदनी 18 बड़े राज्यों में सबसे ऊपर के एक-तिहाई राज्यों में है, महाराष्ट्र से ठीक आगे लेकिन गुजरात के पीछे (2018-19). ऑटोमोबाइल उत्पादकों के लिए तमिलनाडु आदर्श राज्य है, हालांकि कुछ ताज़ा ख़बरें बताती हैं कि टेस्ला भविष्य में अपने भारतीय उत्पादन के लिए गुजरात के मुंद्रा को प्राथमिकता दे रही है.

क्या तमिलनाडु अपनी बढ़त को बनाए हुए है?

दुख की बात ये है कि अगर रास्ते पर निर्भरता बनी रहे और रचनात्मक संहार का प्रतिरोध होता है तो गौरवशाली अतीत शानदार भविष्य सुनिश्चित करे ये ज़रूरी नहीं. प्रतिस्पर्धा के मामले में भविष्य में तमिलनाडु कितना लचीला है?

हम तमिलनाडु की तुलना उन सात राज्यों- आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और तेलंगाना- से कर रहे हैं जिनका मज़बूत प्रशासनिक ढांचा, एंटरप्रेन्योरशिप का इतिहास, 18 बड़े राज्यों के औसत से प्रति व्यक्ति ज़्यादा आमदनी और 2019-20 में राष्ट्रीय औद्योगिक मूल्य बढ़ोतरी में जिनका साझा हिस्सा दो-तिहाई से ज़्यादा है.

पैमाना

हम कुंद प्रतिनिधित्व का इस्तेमाल करते हैं- देश की क्षमता के लिए आर्थिक विकास और राजकोषीय घाटा; सामाजिक कल्याण के लिए न्यूनतम मज़दूरी; उद्योग में मूल्य बढ़ोतरी और बड़े आर्थिक विकास की ओर सफल बदलाव के लिए सेवा; और प्रतिस्पर्धा के लिए “अच्छी नौकरी” और निर्यात में हिस्सेदारी.

विकास

ऊपर बताए गए आठ में से पांच राज्यों, तमिलनाडु समेत, ने 2004-05 से 2011-12 के दौरान 8.2 प्रतिशत के सालाना जीडीपी विकास (राष्ट्रीय, स्थिर) से ज़्यादा विकास दर्ज किया जबकि तीन राज्यों ने राष्ट्रीय औसत से 1 प्रतिशत प्वाइंट नीचे का विकास दर्ज किया (तालिका 1).

उसके बाद के वर्षों में 2011-12 से 2019-20 के दौरान राष्ट्रीय विकास की रफ़्तार धीमी होकर 7 प्रतिशत सालाना पर पहुंच गई लेकिन इनमें से सभी राज्यों, केरल और महाराष्ट्र को छोड़कर, ने राष्ट्रीय औसत से ज़्यादा विकास को छुआ. गुजरात ने विकास के मामले में शानदार प्रदर्शन किया जबकि कर्नाटक ने रुझानों से हटकर विकास को तेज़ किया. लेकिन तमिलनाडु और तेलंगाना ने अपने पहले के, उच्च स्तर की आर्थिक बढ़ोतरी में महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की.

आर्थिक विकास के अलग-अलग रास्ते के पीछे नीतिगत सवाल ये है कि क्या गुजरात और कर्नाटक की तरह तमिलनाडु मंदी से मुक़ाबला करने में ज़्यादा लचीला हो सकता है? दो विकल्प अपने-आप समझ में आते हैं- परंपरागत, श्रम प्रधान निर्यात से विविधता और उद्योग एवं कृषि से सेवा अर्थव्यवस्था में बढ़ी हुई विविधता. तमिलनाडु इन दोनों क्षेत्रों में पीछे है.

राजकोषीय प्रबंधन

तमिलनाडु में राजकोषीय प्रबंधन बुरी तरह प्रभावित हुआ है क्योंकि सामाजिक न्याय से प्रेरित, व्यापक कल्याण प्रणाली, जिनमें बच्चों के लिए 50 के दशक के आख़िर से शुरू मिडडे मील से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता के द्वारा शुरू की गई “अम्मा की रसोई” शामिल हैं, को चलाने के लिए काफ़ी खर्च करता है.

2019-20 में तमिलनाडु का राजकोषीय घाटा सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 3.3 प्रतिशत था जिसकी तुलना केरल से की जा सकती है- केरल भी कल्याणकारी प्रशासन का एक उदाहरण है- लेकिन आंध्र प्रदेश के 4.6 प्रतिशत से कम है. लेकिन ये कर्नाटक के राजकोषीय घाटे 2.5 प्रतिशत, हरियाणा के 1.6 प्रतिशत या गुजरात के 1.8 प्रतिशत से काफ़ी ज़्यादा है. ऐसे में  राजकोषीय सुधार के साथ-साथ टैक्स जुटाने की कोशिश भी मददगार साबित होगी.

निर्यात में तमिलनाडु का ज़्यादा हिस्सा उसके श्रम आधारित उद्योगों की औद्योगिक बुनियाद के बारे में बताता है. लेकिन भविष्य में विकास पुराने उत्पादों के मुक़ाबले नई कंपनियों, स्टार्ट-अप्स और रसायन एवं फार्मास्यूटिकल्स में हाईटेक उत्पादों के ज़रिए फिर से औद्योगिकरण के लक्ष्य से होगा.

आंध्र और तेलंगाना ने 2019-20 में “अपने कर राजस्व” को जीएसडीपी के 6.7 प्रतिशत से बढ़ाकर कम-से-कम 7 प्रतिशत करके इंतज़ाम कर लिया. महाराष्ट्र तो 7.1 प्रतिशत तक पहुंच गया जबकि केरल के द्वारा जीएसडीपी के 7.7 प्रतिशत की वसूली ज़रूरी है. तमिलनाडु के द्वारा ग़ैर-कर राजस्व को जीएसडीपी के 0.7 प्रतिशत से बढ़ाना चाहिए क्योंकि केरल में ये आंकड़ा 1.7 प्रतिशत है जबकि तेलंगाना जीएसडीपी का 1.6 प्रतिशत ग़ैर-कर राजस्व वसूलता है. ग़ैर-कर राजस्व में बढ़ोतरी से राजकोषीय दबाव कम होगा और विकास के काम पर खर्च के लिए ज़्यादा रक़म होगी.

तमिलनाडु की देनदारी जीएसडीपी का 25 प्रतिशत है जो काफ़ी ज़्यादा है. महाराष्ट्र की देनदारी 17 प्रतिशत, कर्नाटक की देनदारी 19 प्रतिशत और गुजरात की देनदारी 20 प्रतिशत है. ज़्यादा देनदारी राजकोषीय लचीलापन कम करती है. दायित्व ज़्यादा होने पर कल्याणकारी योजनाओं और सार्वजनिक सेवाओं को जारी रखने की राज्य की क्षमता भी कम होती है जो तमिलनाडु का चरित्र हैं.

सामाजिक और आर्थिक न्याय

तमिलनाडु “सामाजिक न्याय” को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को खुलकर दिखाता है. तमिलनाडु ग्रामीण, ग़ैर-कृषि कामगारों के लिए न्यूनतम मज़दूरी के मामले में देश में केरल के बाद दूसरे पायदान पर है. हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात में मज़दूरी की दरें तमिलनाडु के मुक़ाबले 14 से 47 प्रतिशत तक कम हैं. ज़्यादा न्यूनतम मज़दूरी नये निवेश को नुक़सान पहुंचा सकती है जब तक कि उसी अनुपात में उत्पादकता नहीं हो.

औद्योगिक अवसर और नौकरियां

तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा औद्योगिक प्रतिष्ठान हैं. लेकिन मूल्य संवर्धन सबसे ज़्यादा महाराष्ट्र में है. सभी राज्यों के लिए कुल औद्योगिक मूल्य संवर्धन में महाराष्ट्र का योगदान 15 प्रतिशत है, इसके बाद 12 प्रतिशत के साथ गुजरात है जबकि तमिलनाडु का योगदान 10 प्रतिशत है.

उद्योगों के बड़े हिस्से के साथ महाराष्ट्र और गुजरात की तरह तमिलनाडु का अभी भी सेवा क्षेत्र की ओर बदलाव बाक़ी है

उदारीकरण के बाद सभी राज्यों के औद्योगिक मूल्य संवर्धन में इन आठ राज्यों का हिस्सा 1993-94 के 56 प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 में 67 प्रतिशत हो गया. महाराष्ट्र ने अपना औद्योगिक दबदबा बनाए रखा है लेकिन गुजरात ने औद्योगिक केंद्रीकरण के रुझान को सबसे आगे रखा है जबकि तमिलनाडु ने मौक़ा गंवाया है.

प्रतिस्पर्धा

निर्यात की क्षमता किसी राज्य के प्रतिस्पर्धा में बने रहने का सबूत है. इस मामले में तमिलनाडु का प्रदर्शन अच्छा है और निर्यात में उसका तीसरा सबसे बड़ा हिस्सा है. महाराष्ट्र के बड़े हिस्से के पीछे उसकी अर्थव्यवस्था और आबादी है जो कि तमिलनाडु से क़रीब 60 प्रतिशत ज़्यादा है. लेकिन तमिलनाडु की तरह आबादी और जीएसडीपी होने के बावजूद गुजरात का हिस्सा तमिलनाडु के मुक़ाबले दोगुना है.

पूर्वी समुद्र तट पर तमिलनाडु 2 और 3 प्रतिशत हिस्से के साथ आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के मुक़ाबले अच्छा प्रदर्शन करता है. कर्नाटक और केरल का हिस्सा बंदरगाह विहीन राज्यों हरियाणा और तेलंगाना के मुक़ाबले कम है.

निर्यात में तमिलनाडु का ज़्यादा हिस्सा उसके श्रम आधारित उद्योगों की औद्योगिक बुनियाद के बारे में बताता है. लेकिन भविष्य में विकास पुराने उत्पादों के मुक़ाबले नई कंपनियों, स्टार्ट-अप्स और रसायन एवं फार्मास्यूटिकल्स में हाईटेक उत्पादों के ज़रिए फिर से औद्योगिकरण के लक्ष्य से होगा.

सेवा, शहरीकरण और अच्छी नौकरियों में विकास

सेना बनाम उत्पादन में सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) में ज़्यादा हिस्सा मूल्य संवर्धन और “अच्छी” नौकरियों के लिए एक और विकल्प है.

जीएसडीपी में सेवा के मामले में सबसे बड़ा हिस्सा कर्नाटक का है, जो उद्योगों के मामले में इसके हिस्से के मुक़ाबले क़रीब तीन गुना है. उद्योगों के बड़े हिस्से के साथ महाराष्ट्र और गुजरात की तरह तमिलनाडु का अभी भी सेवा क्षेत्र की ओर बदलाव बाक़ी है. गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक सिटी इस परिदृश्य को निर्णायक रूप से बदल सकता है.

मूल्य संवर्धन में सेवा क्षेत्र का हिस्सा अच्छी नौकरियों के लिए एक कुंद प्रतिनिधि है. लेकिन ये मज़बूती से शहरीकरण और डिजिटल अर्थव्यवस्था से जुड़ा है जहां ज़्यादातर मूल्य संवर्धन वैश्विक स्तर पर हो रहा है.

ज्ञान पर आधारित अर्थव्यवस्था

इनोवेशन की संभावना और तैयारी पर एक रिपोर्ट उन संरचनात्मक मजबूरियों की पहचान करती है जो तमिलनाडु को उसके असली सामर्थ्य तक पहुंचने से रोकती है. तमिलनाडु की अच्छी क्वालिटी के तकनीकी वर्कफोर्स को अपनाने के लिए पर्याप्त “अच्छी” नौकरियां नहीं हैं क्योंकि रिसर्च एंड डेवलपमेंट से जुड़ी कंपनियों और संस्थानों में कम निवेश होता है. इसकी पुष्टि कम ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिज़ाइन के आवेदन, आम लोगों के कम इनोवेशन, स्टार्ट-अप्स या नये कारोबार के कम रजिस्ट्रेशन से होती है.

बाहरी मदद की मांग: आत्म-जागरुकता का संकेत

तमिलनाडु ने आर्थिक रणनीति के लिए बाहर से मदद मांगी है, नये वित्त मंत्री पलानिवेल त्यागराजन ने इस मामले में प्रोत्साहन दिया है. बैंकर रहे त्यागराजन तमिल राजनीति में करियर बनाने के लिए 2014 में अमेरिका से लौटे और अब मदुरै से विधायक हैं.

तमिलनाडु की अच्छी क्वालिटी के तकनीकी वर्कफोर्स को अपनाने के लिए पर्याप्त “अच्छी” नौकरियां नहीं हैं क्योंकि रिसर्च एंड डेवलपमेंट से जुड़ी कंपनियों और संस्थानों में कम निवेश होता है. 

मुख्यमंत्री की नई आर्थिक परामर्श परिषद में भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन; तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम; ग़रीबी और सरकार की ज़िम्मेदारी की समस्या के समाधान पर काफ़ी रिसर्च करने वाले प्रोफेसर ज्यां द्रेज़; नोबल पुरस्कर विजेता अर्थशास्त्री एस्थर डुफ्लो और पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव डॉ. एस. नारायण शामिल हैं.

कल्याणकारी राज्य को बेहतर बनाना

ये एक विडंबना है कि नव-उदारवादी और वामपंथी अर्थशास्त्रियों का एक मिश्रित समूह ऐसे मुख्यमंत्री को सलाह दे रहा है जिनका नाम एमके स्टालिन है. लेकिन हमारी विचारधारा से आगे की दुनिया में साम्यवाद ने ख़ुद जोसफ़ स्टालिन के यूएसएसआर से लंबी दूरी तय की है. इसे राष्ट्रपति पुतिन के “उदारवादी” रूस या राष्ट्रपति शी के “पूंजीवादी” चीन में देखा जा सकता है.

सरकार की अगुवाई में “सामाजिक न्याय” को लेकर ऐतिहासिक प्रतिबद्धता और फलते-फूलते प्राइवेट सेक्टर के साथ भविष्य के मुश्किल लक्ष्यों के बारे में संकल्प करने के लिए तमिलनाडु उर्वर ज़मीन है. ये संकल्प राजकोषीय स्थिरता और पर्याप्त कुशल, उद्देश्य के लिए उचित राज्य की क्षमता को सुनिश्चित करते हुए राजकोषीय तौर पर मज़बूत बीच का रास्ता है जो न तो विकास की बलि चढ़ाता है, न ही नागरिकों के आर्थिक अधिकारों को छीनता है. आने वाले दिनों में निश्चित रूप से डॉ. एस. नारायण का काम बढ़ने वाला है.

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