Published on Mar 13, 2021 Updated 0 Hours ago

राष्ट्रपति बाइडेन को ये ज़िम्मा मिला है कि वो अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस लें लेकिन साथ में उन्हें तालिबान को जवाबदेह भी बनाना होगा और अफ़ग़ान सरकार और वहां की आम जनता को मुश्किल में अकेले नहीं छोड़ना है. दूसरे शब्दों में कहें तो ये बहुत बड़ा काम है.

अमेरिका-तालिबान समझौता: क्या होगा बाइडेन प्रशासन का अगला क़दम?

बाइडेन प्रशासन ने हाल में फरवरी 2020 के अमेरिका-तालिबान शांति समझौते की “समीक्षा के इरादे” का एलान किया है. अफ़ग़ानिस्तान में लगातार हत्या और हमलों को देखते हुए राष्ट्रपति बाइडेन के सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन के बारे में कहा गया है कि उन्होंने अफ़ग़ान अधिकारियों से इस समीक्षा की पुष्टि की है. अफ़ग़ान अधिकारियों ने इस एलान का स्वागत किया है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान के सभी पक्षों की क़तर में हुई बातचीत लगातार हिंसा, वैचारिक मतभेद और बढ़ते हुए अविश्वास की वजह से कोई ख़ास आगे नहीं बढ़ पाई है. 

तालिबान के साथ फरवरी 2020 के समझौते पर अमेरिका और नाटो ने दस्तखत किए थे. ये समझौता अमेरिका- जिसकी अगुवाई दूत ज़लमय ख़लीलज़ाद कर रहे थे- और तालिबान के अधिकारियों के बीच कई दौर की बातचीत का नतीजा था. नौ दौर की बातचीत के बाद तालिबान के नुमाइंदों के साथ समझौते के तौर पर ख़लीलज़ाद ने एलान किया कि अमेरिका 20 हफ़्तों के भीतर अफ़ग़ानिस्तान से अपने 5,400 सैनिकों को वापस लेगा. समझौते में ये वादा भी किया गया कि अफ़ग़ानिस्तान से अन्य अंतर्राष्ट्रीय सैनिकों की संख्या में भी आनुपातिक कटौती होगी. समझौते में ये भी कहा गया कि दोनों पक्ष अफ़ग़ानिस्तान के भीतर शांति वार्ता और क़ैदियों की अदला-बदली का समर्थन करेंगे. तालिबान इस बात के लिए भी सहमत हुआ कि वो हिंसा में कमी करेगा और अफ़ग़ानिस्तान की सरज़मीं पर अल क़ायदा और आईएसआईएस- खोरासन जैसे समूहों को अपनी गतिविधियों से रोकेगा. 

नौ दौर की बातचीत के बाद तालिबान के नुमाइंदों के साथ समझौते के तौर पर ख़लीलज़ाद ने एलान किया कि अमेरिका 20 हफ़्तों के भीतर अफ़ग़ानिस्तान से अपने 5,400 सैनिकों को वापस लेगा. 

इस समझौते की इस बात के लिए आलोचना की गई कि इसमें अफ़ग़ान सरकार को शामिल नहीं किया गया और तालिबान के मुक़ाबले अमेरिकी सरकार ने ज़्यादा वादे किए. कहा जाता है कि 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के बीच अपनी अपील बढ़ाने के लिए ट्रंप प्रशासन ने इस समझौते को आगे बढ़ाया. अफ़ग़ानिस्तान में आतंकी घटनाओं में बढ़ोतरी के बीच अक्टूबर 2020 में ख़लीलज़ाद ने एलान किया कि अमेरिका समझौते की शर्तों के सख़्ती से पालन के द्वारा “कार्रवाई को फिर से ठीक करने” के लिए तालिबान के साथ सहमत हुआ था. लेकिन फिर से ठीक करने की बात का उम्मीद के मुताबिक़ नतीजा नहीं निकला. 

अमेरिका और तालिबान के अधिकारियों के बीच बातचीत: 

जून 2013, दोहा दोहा में तालिबान ने मौजूदगी दर्ज कराई अफ़ग़ान सरकार द्वारा आपत्ति के बाद क़तर की ओर से अफ़ग़ानिस्तान का झंडा हटाने के बाद इस दफ़्तर को फ़ौरन ही बंद कर दिया गया. 
जनवरी 2016, दोहा दोहा संवाद पाकिस्तान ने तालिबान, चीन, अमेरिका और अफ़ग़ान अधिकारियों के बीच बातचीत शुरू होने की मेज़बानी की. 
21 सितंबर 2018 अमेरिकी विदेश विभाग ने ज़लमय ख़लीलज़ाद की नियुक्ति की ज़लमय ख़लीलज़ाद को तालिबान के साथ बातचीत के लिए मुख्य दूत नियुक्त किया गया. इस बातचीत का मक़सद अफ़ग़ानिस्तान की शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाना था. 
12 अक्टूबर 2018, दोहा अमेरिका और तालिबान के अधिकारियों के बीच पहले दौर की बातचीत  ख़लीलज़ाद ने पहली बार तालिबान के नुमाइंदों से मुलाक़ात की. 
14-16 नवंबर 2018, दोहा  दूसरा दौर पाकिस्तान की ओर से दो और अफ़ग़ान-तालिबान नेताओं को रिहा करने के बाद अच्छे माहौल में बातचीत हुई. 
17 दिसंबर 2018, यूएई  तीसरा दौर अफ़ग़ान-तालिबान के नुमाइंदों ने अबू धाबी में अमेरिकी अधिकारियों से मुलाक़ात की. 
8 जनवरी 2019  चौथा दौर (रद्द) तालिबान के अधिकारियों ने जगह में बदलाव का अनुरोध किया. 
25 फरवरी-12 मार्च 2019, दोहा  पांचवां दौर आख़िरी सहमति के बिना शांति प्रक्रिया ख़त्म. ख़लीलज़ाद ने कहा कि बातचीत आगे बढ़ी. 
1-9 मई 2019, दोहा छठा दौर ख़लीलज़ाद ने युद्धविराम का प्रस्ताव दिया लेकिन इस प्रस्ताव को तालिबान ने ठुकरा दिया. तालिबान ने सरकारी इमारतों और विदेशी संगठनों पर हमले जारी रखे. 
29 जून-9 जुलाई 2019, दोहा सातवां दौर शांति प्रक्रिया में सैनिकों को हटाने की योजना पर ज़्यादा बातचीत. 
3-12 अगस्त 2019, दोहा  आठवां दौर सैनिकों को हटाने की योजना आगे बढ़ने के बाद बातचीत में इस बात पर ज़ोर कि तालिबान हमले न करने की गारंटी दे. 
22-31 अगस्त 2019, दोहा नौवां दौर महत्वपूर्ण बातचीत ख़त्म, कहा गया कि इसमें “शांति के लिए रास्ते की रूप-रेखा” बनी.
2 सितंबर 2019, दोहा शांति समझौते के मसौदे का एलान ख़लीलज़ाद ने अफ़ग़ान नेताओं को अमेरिका-तालिबान समझौते का मसौदा दिखाया, एलान किया कि वो एक समझौते की “दहलीज़ पर” हैं. 
7 सितंबर 2019, दोहा राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्विटर के ज़रिए बातचीत रद्द की काबुल में नाटो के मिशन मुख्यालय में तालिबान के कार धमाके के बाद ट्रंप ने अचानक बातचीत रद्द कर दी.
29 फरवरी 2020, दोहा गवाह के तौर पर माइक पॉम्पियो की मौजूदगी में अमेरिकी दूत ज़लमय ख़लीलज़ाद और तालिबान के मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर के बीच फरवरी 2020 समझौते पर दस्तख़त समझौते के तहत अमेरिका अगले 3-4 महीनों में अपने सैनिकों की संख्या 13,000 से घटाकर 8,600 करेगा, बाक़ी अमेरिकी सैनिक 14 महीनों में हट जाएंगे. 
20 अक्टूबर 2020 समझौते में बदलाव की ओर  बढ़ती हिंसा के बाच ख़लीलज़ाद ने दोनों पक्षों की तरफ़ से समझौते को लेकर वादे में बदलाव का एलान किया. 
22 जनवरी 2021  बाइडेन के सलाहकार जेक सुलिवन ने समीक्षा का एलान किया  अमेरिका के सबसे बड़े सुरक्षा सलाहकार ने अफ़ग़ान सरकार के अधिकारियों के साथ सलाह के बाद फरवरी 2020 के समझौते की समीक्षा के इरादे का एलान किया.

स्रोत: बीबीसी, अल जज़ीरा, द न्यूयॉर्क टाइम्स और क्राइसिस इंटरनेशनल

काबुल में यथास्थिति


अफ़ग़ानिस्तान में हिंसा में बढ़ोतरी हुई है जबकि अफ़ग़ान पक्षों की आपसी बातचीत धीमी रफ़्तार से आगे बढ़ी है. तालिबान अपने वादे पर खरा नहीं उतरा क्योंकि पिछले कुछ महीनों में बड़ी हस्तियों की हत्या और जानलेवा हमलों में बढ़ोतरी हुई है. कोई आधिकारिक युद्धविराम नहीं हुआ है और फरवरी 2020 समझौते पर दस्तख़त के एक महीने के भीतर  अफ़ग़ान सुरक्षा बलों और आम नागरिकों पर हमले शुरू हो गए. आईएसआईएस- खोरासन ने भी आम नागरिकों को निशाना बनाकर हमले जारी रखे हैं और उसने अफ़ग़ानिस्तान के कई पूर्वी प्रांतों में अपनी मौजूदगी बढ़ाई है. इन हमलों और अमेरिकी सैनिकों की पूरी तरह वापसी को लेकर अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के बीच बेचैनी बढ़ गई है. 

अमेरिका के नये प्रशासन को एक ख़तरनाक स्थिति विरासत में मिली है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में सिर्फ़ 2,500 सैनिक बचे हुए हैं और तालिबान के साथ जिस समझौते पर दस्तख़त किया गया, उसका भविष्य अनिश्चित है. 

तालिबान और अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के नुमाइंदों के बीच बातचीत धीमी गति से आगे बढ़ रही है. अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया के लिए फरवरी 2020 के समझौते को ज़रूरी पहले क़दम के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन इसकी वजह से न तो अभी तक युद्धविराम हुआ है, न ही कोई हल निकला है. 12 सितंबर 2020 को दोहा में बातचीत शुरू हुई और तीन महीने के बाद दोनों पक्ष सिर्फ़ भविष्य की बातचीत के लिए नियमों और प्रक्रिया पर सहमत हुए हैं. प्रक्रिया पर ये दस्तावेज़ इंसाफ़ के उन तौर-तरीक़ों के बारे में बताता है जो विवादों के समाधान के लिए इस्तेमाल किए जाएंगे, सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी का वादा करता है, परस्पर सम्मान और दोनों पक्षों के बीच सूचना साझा करने का इसमें ज़िक्र है और बातचीत के मक़सद को तय करता है. तालिबान की ज़िद थी कि किसी भी विवाद के निपटारे के लिए सिर्फ़ सुन्नी हनफ़ी विचारधारा का इस्तेमाल किया जाए. पूर्व में बातचीत के आगे बढ़ने में ये विवाद की सबसे बड़ी वजह थी. अब इसका समाधान हो गया है. दोनों पक्ष इस बात के लिए तैयार हो गए हैं कि असहमति की स्थिति में वो एक साझा विवाद समाधान समिति बनाकर न्याय के अलग-अलग संदर्भों की सलाह लेंगे. अब जब एजेंडा तय हो गया है तो शांति प्रक्रिया का आगे बढ़ना काफ़ी हद तक हिंसक हमलों में कमी पर निर्भर करता है. शांति प्रक्रिया के आगे बढ़ने में एक अतिरिक्त चुनौती अफ़ग़ान सरकार में बंटवारा भी है. राष्ट्रपति ग़नी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच मतभेद क़ायम है. अब्दुल्ला अब्दुल्ला के गुट की तरफ़ से बातें हो रही हैं कि ग़नी को हटाकर एक अंतरिम सरकार बनाई जाए. बातचीत का दूसरा दौर 5 जनवरी, 2021 से शुरू हआ लेकिन दोनों पक्षों की तरफ़ से इसे बहुत ज़्यादा महत्व नहीं दिया जा रहा. इसकी वजह अमेरिकी प्रशासन में बदलाव और अफ़ग़ानिस्तान को लेकर बाइडेन की नीतियों में अनिश्चितता को बताया गया है. 

अमेरिका के नये प्रशासन को एक ख़तरनाक स्थिति विरासत में मिली है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में सिर्फ़ 2,500 सैनिक बचे हुए हैं और तालिबान के साथ जिस समझौते पर दस्तख़त किया गया, उसका भविष्य अनिश्चित है. 

बाइडेन प्रशासन के अगले क़दम 

राष्ट्रपति बाइडेन का प्रशासन फरवरी 2020 के समझौते की समीक्षा करते वक़्त एहतियात के साथ आगे बढ़ेगा. तालिबान पहले ही इस बात को दोहरा चुका है कि जिन बातों पर सहमति बनी है, नया प्रशासन उनसे भटके नहीं. वैसे तो तालिबान ने कई मौक़ों पर समझौते की शर्तों का साफ़ तौर पर उल्लंघन किया है लेकिन वो अमेरिका पर भी उल्लंघन का आरोप लगाता है. तालिबान दावा करता है कि अमेरिका उसके गढ़ हेलमंद प्रांत में “बहुत ज़्यादा” आसमान से हमले और बमबारी कर रहा है

अफ़ग़ानिस्तान के भीतर शांति वार्ता के लिए समर्थन जताने के अलावा बाइडेन प्रशासन को निश्चित तौर पर दोनों पक्षों को जवाबदेह बनाना चाहिए.

बाइडेन प्रशासन में भी ख़लीलज़ाद को मुख्य दूत के तौर पर बने रहने को कहा गया है. इसकी ख़ास वजह ये है कि समझौते के हिस्से के तौर पर दोनों पक्षों द्वारा किए गए कुछ वादों को सार्वजनिक नहीं किया गया है. स्थिति का समाधान करने के लिए बाइडेन प्रशासन के पास कुछ रास्ते बचे हैं. बाइडेन प्रशासन अफ़ग़ानिस्तान में 2,000 सैनिकों को बनाए रखने का फ़ैसला ले सकता है और पूरी तरह सैनिक हटाने से पहले वो दूसरे सहयोगी देशों के साथ सलाह कर सकता है. अफ़ग़ानिस्तान के भीतर शांति वार्ता के लिए समर्थन जताने के अलावा बाइडेन प्रशासन को निश्चित तौर पर दोनों पक्षों को जवाबदेह बनाना चाहिए. उसे अपने सैनिकों को पूरी तरह हटाने से पहले निश्चित तौर पर ये साफ़ करना चाहिए कि तालिबान समझौते को लेकर अपने वादे को पूरा करे. साथ ही तालिबान के साथ नेकनीयती में अफ़ग़ान सरकार की बातचीत और अंदरुनी बंटवारे पर विजय पाने के महत्व पर ज़ोर देना चाहिए. 

अमेरिका-तालिबान समझौते की एक सामान्य आलोचना इस बात के लिए की जाती है कि इसमें तालिबान को दंडित करने और शर्तों के उल्लंघन के लिए उसे जवाबदेह ठहराने का तौर-तरीक़ा नहीं है. बाइडेन प्रशासन समझौते की समीक्षा करते समय इस मक़सद के लिए आर्थिक पाबंदी को औपचारिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर विचार कर सकता है. इसके अलावा वो समझौते में बताए गए युद्धविराम पर फिर से चर्चा को अफ़ग़ानिस्तान के अंदरुनी राजनीतिक समाधान के लिए पूर्व शर्त के तौर पर विचार कर सकता है. ये दोबारा फिर से बताया जाना चाहिए कि और ज़्यादा सैनिकों की वापसी या अफ़ग़ान सरकार को और ज़्यादा समर्थन मुहैया कराए जाने से पहले पूर्व शर्त पर दोनों पक्ष सहमत हों. 

ये साफ़ नहीं है कि बाइडेन प्रशासन अमेरिका-तालिबान समझौते की समीक्षा को लेकर आगे कैसे बढ़ेगा. राष्ट्रपति बाइडेन को ये ज़िम्मा मिला है कि वो अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस लें लेकिन साथ में उन्हें तालिबान को जवाबदेह भी बनाना होगा और अफ़ग़ान सरकार और वहां की आम जनता को मुश्किल में अकेले नहीं छोड़ना है. दूसरे शब्दों में कहें तो ये बहुत बड़ा काम है. इस प्रक्रिया में अगला क़दम होगा ये समझना कि तालिबान के साथ समझौते में फेरबदल को लेकर कैसे आगे बढ़ा जाए. इस दौरान विवेक का इस्तेमाल करते हुए ये सुनिश्चित करना होगा कि शांतिपूर्ण राजनीतिक समाधान के ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान पर सवाल का जवाब दिया जाए. 


लेखक ORF में एक जूनियर फेलो है.

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