Published on Oct 28, 2020 Updated 0 Hours ago

अमेरिका में नवंबर में होने वाले चुनाव चाहे कोई भी जीते, आने वाली सरकार के लिए, अमेरिकी विदेश नीति को प्रभावित करने वाली संरचनात्मक बाधाएं बनी रहेंगी. चीन, अमेरिका का प्रमुख प्रतिद्वंद्वी रहेगा, जिसके साथ संबंध जटिल और विरोधाभासी होंगे.

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2020: विदेश नीति के नज़रिए से आकलन

साल 2020 में जारी अमेरिकी चुनाव अभियान, कोविड-19 की महामारी रूपी राष्ट्रीय संकट के दौर में हो रहा है. संयुक्त राज्य अमेरिका के आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप का आरोप दोनों पक्षों की तरफ से सुनाई दे रहा है. एफबीआई का समर्थन प्राप्त डेमोक्रेट पार्टी, रूस पर अमेरिकी मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगा रहे हैं. कथित तौर पर, रूसी हैकर्स ने पंजीकृत अमेरिकी मतदाताओं के डेटा को कई राज्यों में ऑनलाइन पोस्ट कर दिया है. व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जा रहे, डेमोक्रेटिक पार्टी के विज्ञापनों में, जो ऑनलाइन भी वायरल हो रहे हैं, मतदाताओं को एक विकल्प दिया गया है: या तो वो वोट करने के लिए बाहर निकलें, या रूसी सीख लें, क्योंकि उनके अनुसार, रिपब्लिकन पार्टी के नेता ट्रंप यदि चुनाव जीतते हैं, तो संयुक्त राज्य में रूसी को राज्य भाषा का दर्जा मिल सकता है. अपने एक भाषण के दौरान, डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जो बाइडेन डेन ने कहा कि रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक दुश्मन है, जबकि चीन केवल एक प्रतिद्वंद्वी है, भले ही वह गंभीर प्रतिद्वंद्वी हो.

रिपब्लिकन पार्टी और डोनाल्ड ट्रंप की टीम ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए चीनी प्रयासों का उल्लेख किया है. हालांकि, ट्रंप अपने अभियान में लगातार इस बात पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश कर रहे हैं कि विदेश नीति को लेकर उनकी सफलताएं महत्वपूर्ण हैं.

इसके जवाब में, रिपब्लिकन पार्टी और डोनाल्ड ट्रंप की टीम ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए चीनी प्रयासों का उल्लेख किया है. हालांकि, ट्रंप अपने अभियान में लगातार इस बात पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश कर रहे हैं कि विदेश नीति को लेकर उनकी सफलताएं महत्वपूर्ण हैं. चुनावों से कुछ हफ्ते पहले, व्हाइट हाउस में इसराइल, यूएई और बहरीन के बीच संबंधों को सामान्य बनाने को लेकर एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर के लिए, एक समारोह आयोजित किया गया. ट्रंप ने यरुशलम को इसरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दी है, और अब वह अपने सहयोगी देशों को उस शहर में अपने दूतावासों को स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. व्हाइट हाउस में, सर्बिया और कोसोवो के बीच मतभेदों को हल करने के लिए भी एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे. ट्रंप मध्य पूर्व में एक नए राजनीतिक युग की शुरुआत करने को लेकर भी झिझक नहीं रहे हैं. यह भले ही एक अतिशयोक्ति की तरह लगता है, लेकिन ट्रंप लगभग 30 वर्षों में पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल में किसी नए क्षेत्र में कोई युद्ध शुरू नहीं किया. हालांकि, इस दौरान ट्रंप ने लगातार चीन पर दबाव बढ़ाया है, जो तेज़ी से आमने-सामने के टकराव का रूप ले रहा है. वहीं ईरान में सैन्य और राजनीतिक नेताओं को उकसाने और उनकी हत्या के प्रयासों के ज़रिए, ईरान पर भी अमेरिकी दबाव बढ़ा है. मध्य पूर्व में सैन्य और राजनीतिक दबाव के मिलेजुले रूप और स्थानीय रूप से किए गए मिसाइल हमलों को दबाव की रणनीति के रूप में इस्तेमाल करना भी ट्रंप प्रशासन की विदेश नीति की एक बानगी है.

हालांकि, रूस के साथ अमेरिका के संबंधों को लेकर, सब कुछ बेहतरीन हो ऐसा नहीं है. अमेरिका के शीर्ष नेता, ‘नॉर्ड स्ट्रीम-2’ गैस पाइपलाइन के निर्माण को समाप्त करने की पैरवी कर रहे हैं. साथ ही रूसी मिसाइल कार्यक्रम की सफलताओं के जवाब में, संयुक्त राज्य अमेरिका भी इस क्षेत्र में खुद को विकसित कर रहा है. इस बीच, चुनावों की अंतिम घड़ी में भी डेमोक्रेटिक पार्टी की विदेश नीति फिलहाल इतनी स्पष्ट नहीं है, खासकर रूस के साथ संबंधों के मुद्दों पर. न्यू स्टार्ट का विस्तार करने की लगातार बात की जा रही है, लेकिन इसी के साथ, यूरोप में रूसी प्रभाव को रोकने की आवश्यकता को लेकर भी डेमोक्रेटिक पार्टी मुखर है. बाइडेन इस बात का संकेत दे रहे हैं कि चीन और ईरान की ओर उनका रुख नरम पड़ सकता है, लेकिन उनकी टीम संयुक्त व्यापक क्रियान्वयन योजना (Joint Comprehensive Plan of Action- JCPOA) से हटने के ट्रंप सरकार के फैसले को उलटने की मंशा नहीं रखती है. इस बात की अधिक संभावना है कि यदि बाइडेन जीतते हैं तो उनकी टीम ट्रंप सरकार की उपलब्धियों को भुनाने की कोशिश करेगी, और सबसे गंभीर प्रतिबंधों को उठाने के बदले में चीन और ईरान से रियायतों की उम्मीद करेगी.

रूस के हितों के मद्देनज़र, प्रत्येक उम्मीदवार की जीत का क्या मतलब है?

डोनाल्ड ट्रंप की जीत की स्थिति में, सबसे अधिक संभावना इस बात की है कि हम वर्तमान स्थिति को ज़्यों का त्यों बना देखें. राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा अपनाई गई अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के तहत, रूस को संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों में से एक के रूप में पहचाना जाता है. यानी हमारे देशों के नेताओं के बीच मौजूद केमिस्ट्री और अच्छे संबंध इस मामले में निर्णायक भूमिका नहीं निभाते हैं. बाकी सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि ट्रंप की जीत कितनी कमज़ोर या मज़बूत रहती है. अगर यह जीत, पूरे ज़ोर-शोर से नहीं होती तो गतिरोध जारी रहेगा. कांग्रेस में मौजूद डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता, राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा शुरू की गई किसी भी पहल को उलटने की कोशिश करेंगे. लेकिन ट्रंप की जीत यदि ज़ोरदार रहती है, तो रूस के साथ उनके संबंधों का एक ही लक्ष्य रहेगा- सामरिक रियायतों के माध्यम से रूस को चीन से दूर करना, ताकि तनाव कम किया जा सके. इसमें START के विस्तार और कुछ प्रतिबंधों को उठाने के अलावा, व्यापार पर रोक को हटाना भी शामिल है. हालांकि, ट्रंप जिस प्रक्रिया में मुख्य रूप से शामिल होंगे, वह उन संधियों और दायित्वों का संशोधन है, जो उनके मुताबिक, अमेरिका को पीछे खींच रहे हैं. अमेरिका, यूरोपीय संघ को और मुख्य रूप से फ्रांस और जर्मनी को, ट्रांसअटलांटिक संबंधों के अवयवों को संशोधित करने की अनुमति नहीं देगा, भले ही वह रक्षा खर्च बढ़ाने का दबाव जारी रखे. इसके साथ ही अमेरिका की “लोकतंत्र को फैलाने” की पहल जारी रहेगी और वह यूरेशिया, विशेष रूप से पूर्वी यूरोप में “रूस को रोकने” के पथ पर रहेगा. सीआईए के अभियान भी जारी रहेंगे और वह मुख्य रूप से विदेश विभाग (जो पूर्व सीआईए निदेशक माइक पोम्पिओ के नेतृत्व में है) के समन्वय के साथ ही किए जाएंगे. बेलारूस में “रूसी लोगों” द्वारा एलेक्सी नवालनी को “ज़हर दिए जाने” को लेकर जो कहानियां प्रचलित हैं, वह इस बात का सबूत हैं कि “उकसावों की राजनीति” किस तरह काम कर रही है.

ट्रंप की जीत यदि ज़ोरदार रहती है, तो रूस के साथ उनके संबंधों का एक ही लक्ष्य रहेगा- सामरिक रियायतों के माध्यम से रूस को चीन से दूर करना, ताकि तनाव कम किया जा सके. इसमें START के विस्तार और कुछ प्रतिबंधों को उठाने के अलावा, व्यापार पर रोक को हटाना भी शामिल है.

यदि जो बाइडेन जीतते हैं, तो यह तस्वीर महत्वपूर्ण रूप से बदलेगी. वाशिंगटन की नौकरशाही शांत हो जाएगी और देश के अंदर दुश्मनों और गद्दारों की तलाश बंद कर देगी. इस संबंध में अमेरिकी विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए खुले पत्र का सामने आना महत्वपूर्ण है, जिसके हस्ताक्षरकर्ताओं में अमेरिकी राष्ट्रपति प्रशासन के कई पूर्व अधिकारी शामिल हैं. इस पत्र को लिखने वालों ने रूस में अमेरिकी हितों के बारे में आश्वस्त होने और संयुक्त राज्य अमेरिका, मास्को से क्या चाहता है, इसकी बेहतर समझ पैदा किए जाने पर ज़ोर दिया. इस पत्र से यह पता चलता है कि अमेरिका की रूस नीति, नफ़े-नुकसान की गणनाओं पर टिकी होने के बजाय, भावनाओं से अधिक प्रेरित है. यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यदि बाइडेन जीतते हैं, तो ट्रंप काल को अमेरिकी राजनीतिक प्रणाली की अस्थायी विफलता के रूप में देखा जाएगा. यह संभवतः रूस और अमेरिकी संबंधों में ठहराव स्थापित करेगा, जबकि प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी.

डेमोक्रेट पार्टी के नेता उस क्षति को सुधारना शुरू कर देंगे, जो उनके मुताबिक ट्रंप प्रशासन द्वारा अमेरिकी और यूरोपीय सहयोगियों को लेकर की गई है. यह रूस पर बयानबाज़ी के ज़रिए दबाव बनाए जाने के रूप में भी हो सकती है, लेकिन दबाव बनाने के बहुत से कारण या तरीके नहीं हो सकते, जब तक कोई पक्ष अपनी सीमा न लांघे या संबंधों में अंतिम विराम देने जैसी स्थिति न पैदा करे. मानवाधिकार और पर्यावरण के एजेंडे को एक नई गति मिलेगी. इसके अलावा बाइडेन प्रशासन, क्रीमिया और यूक्रेन के संघर्ष के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करेगा. इसी के साथ यह संभव है कि बाइडेन प्रशासन नई START संधि का विस्तार करने का निर्णय ले, लेकिन ट्रंप प्रशासन के प्रतिबंधों को समाप्त करने में जल्दबाज़ी न करे, जिसका उपयोग संभावित व्यापार सौदों के लिए संसाधन के रूप में किया जाएगा.

मानवाधिकार और पर्यावरण के एजेंडे को एक नई गति मिलेगी. इसके अलावा बाइडेन प्रशासन, क्रीमिया और यूक्रेन के संघर्ष के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करेगा. इसी के साथ यह संभव है कि बाइडेन प्रशासन नई START संधि का विस्तार करने का निर्णय ले, लेकिन ट्रंप प्रशासन के प्रतिबंधों को समाप्त करने में जल्दबाज़ी न करे,

हालांकि, अमेरिकी विदेश नीति को प्रभावित करने वाले संरचनात्मक अवरोध बने रहेंगे. सापेक्ष रूप से संसाधनों की कमी, नए प्रशासन को अमेरिकी सीमाओं से दूर, एक व्यापक विस्तारवादी अभियान को आगे बढ़ाने से रोकेगी. चीन एक प्रमुख प्रतिद्वंद्वी बना रहेगा, जिसके साथ अमेरिका के संबंध जटिल और विरोधाभासी होंगे. वाशिंगटन से निकले, एक नए किस्म के राजनीतिक स्वर से यूरोपीय सहयोगियों के बीच असहमति को बेअसर नहीं किया जा सकता है. अंतत: नए अमेरिकी प्रशासन का सामना तेज़ी से विविध और विकेंद्रीकृत होती दुनिया से होगा, जिसमें प्रतिद्वंद्वी शक्तियां ताकत और प्रभाव के लिए आमने-सामने होंगी.


यह लेख ‘वल्दाई क्लब’ के एक थिंक टैंक प्रोजेक्ट और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के बीच ऑनलाइन सहयोग का हिस्सा है.

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