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पूरी दुनिया में उद्यमियों और राजनेताओं के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता, यानी आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस (AI) की खोज सबसे बड़ी रणनीतिक प्राथमिकता बन गई है. सरकारी और निजी क्षेत्र इसमें अभी जितना निवेश कर रहे हैं, उतना आज से पहले कभी नहीं हुआ था. उद्योग जगत और स्टार्टअप जहां अपनी तरक्क़ी और फ़ायदे के लिए AI के व्यावसायिक उपयोग के अवसर तलाश रहे हैं, वहीं सरकारों का ध्यान वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने या बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय क्षमताओं को विकसित करने और अपनी सुरक्षा व हितों की रक्षा पर है. यह तो समय ही बताएगा कि AI को लेकर इस तरह का उत्साह वास्तव में कितना उचित था. फिलहाल, वैश्विक अर्थव्यवस्था में AI की हिस्सेदारी इस दशक के अंत तक खरबों डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है और इसे विकसित करने वाले अक्सर इसके विकास की तुलना ‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ से करते हैं, जिससे इसके नियंत्रण और प्रसार को लेकर आशंकाएं गहराने लगती हैं. इस लेख में यह पड़ताल की गई है कि अमेरिका द्वारा हाल ही में बनाई गई AI निर्यात नियंत्रण नीति किस तरह AI के ज़िम्मेदारपूर्ण संचालन को लेकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग में रुकावट बन सकती है? इस नीति का अमेरिका, बहुसंख्यक देशों और वैश्विक आर्थिक व सुरक्षा व्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ सकता है.
इस लेख में यह पड़ताल की गई है कि अमेरिका द्वारा हाल ही में बनाई गई AI निर्यात नियंत्रण नीति किस तरह AI के ज़िम्मेदारपूर्ण संचालन को लेकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग में रुकावट बन सकती है
नियंत्रण की पहेली
अभी अमेरिका स्थित कंपनियां AI प्रौद्योगिकी के कई प्रमुख अवयवों के वैश्विक बाजार को नियंत्रित करती हैं, ख़ास तौर से AI मॉडल वेट (AI मॉडल के प्रदर्शन को तय करने वाले पैरामीटर) और उन्नत कंप्यूटेशन चिप (यह विशेष ग्राफिक्स प्रोसेसिंग हार्डवेयर होता है, जो AI मॉडल को जटिल, समानांतर गणना करने में सक्षम बनाता है). इसीलिए, अमेरिका के पास विशेषाधिकार है, लेकिन वह शायद इस बात को लेकर उलझन में भी है कि उसके AI अवयवों या उत्पादों तक किसकी पहुंच हो और किन नियमों व शर्तों पर उसे इसकी अनुमति दी जाए. मगर यदि ऐसा कुछ तय किया जाता है, तो न केवल अमेरिका के भीतर लोगों, उद्यमों और संस्थानों के लिए, बल्कि दुनिया भर की आबादी और उद्योगों के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गंभीर आर्थिक और सुरक्षा संबंधी ख़तरा पैदा हो सकता है. माना यही जाता है कि AI की आर्थिक व जनहित क्षमता और इसके बेरोकटोक प्रसार से होने वाले सुरक्षा ख़तरों को बढ़ा-चढ़कार नहीं बताया जाता, इसलिए अमेरिकी नेतृत्व को अपनी विदेश नीति में इस तरह के फैसले लेने से पहले इसके नफ़ा-नुक़सान का आकलन कर लेना चाहिए.
निश्चय ही, अक्टूबर, 2022 से लेकर दिसंबर, 2024 तक अमेरिका ने AI निर्यात पर एक के बाद दूसरे कई नियंत्रण लगाए थे, जिसे समझा जा सकता है. उस समय मुख्य रूप से चीन जैसे देशों पर नज़र थी, जो लोकतंत्र, मानवाधिकारों और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा करने की अमेरिकी प्रतिबद्धता के अनुरूप काम नहीं कर रहा था. बेशक, यह माना जा सकता है कि चीन, रूस या उन सभी देशों के लिए अमेरिका अपने नियंत्रण बढ़ाए, जो उन मुल्कों की मदद कर रहे हैं, जिनको अमेरिकी हथियार प्रतिबंध के तहत किनारे कर दिया गया है. हालांकि, इसके लिए भी देशों की पहचान अटकलों के बजाय ठोस सबूतों के आधार पर होनी चाहिए. मगर बाइडन प्रशासन के आख़िरी दिनों में पेश किए गए नए AI निर्यात नियंत्रण नियम अत्यधिक भय और अविश्वास को दर्शाते हैं.
वास्तव में, दुनिया की लगभग तीन चौथाई आबादी को महत्वपूर्ण AI इंफ्रास्ट्रक्चर तक पहुंचने से रोकने संबंधी इस फैसले को कहीं अधिक न्यायसंगत बनाने की ज़रूरत है. अगर ऐसा नहीं किया गया, तो अमेरिकी विदेशी नीति पर सवाल उठ खड़े होंगे
इन नए नियमों के तहत दुनिया के एक बड़े हिस्से (करीब 150 देशों) को अमेरिकी चिप और मॉडल वेट नहीं मिल सकेंगे. इसे कई तरह से रोक दिया गया है. कोई इन देशों के बारे में कह सकता है कि ‘अमेरिकी हितों के साथ इनका तालमेल कमज़ोर है, अमेरिकी विरोधियों के साथ इनके संबंध मज़बूत हैं और इनकी विदेश नीतियां कहीं अधिक अस्थिर हैं’, जैसा कि कुछ विश्लेषकों ने कहा भी है. मगर ये ऐसे तर्क हैं, जो कमोबेश सभी देशों पर लागू होते हैं. इसे ख़ास तौर पर यह देखते हुए भी स्वीकार नहीं किया जा सकता कि इन प्रतिबंधों के निशाने पर भारत भी है, जबकि भारत ‘क्वाड’ (अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया का समूह) का एक अहम सदस्य है और हाल के वर्षों में अमेरिका के साथ उसकी मज़बूत रणनीतिक साझेदारी विकसित हुई है. वास्तव में, दुनिया की लगभग तीन चौथाई आबादी को महत्वपूर्ण AI इंफ्रास्ट्रक्चर तक पहुंचने से रोकने संबंधी इस फैसले को कहीं अधिक न्यायसंगत बनाने की ज़रूरत है. अगर ऐसा नहीं किया गया, तो अमेरिकी विदेशी नीति पर सवाल उठ खड़े होंगे, क्योंकि ऐसा करने से वैश्विक आर्थिक और सुरक्षा ढांचा पर ख़तरा पैदा हो सकता है.
नए AI निर्यात नियंत्रण नियमों ने वैश्विक AI पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर भय और अविश्वास का माहौल बनाना शुरू भी कर दिया है. ये नियम अमेरिकी AI चिप बाजार को कमज़ोर तो कर ही सकते हैं, साथ ही वैश्विक AI आपूर्ति श्रृंखलाओं के भीतर मौजूद गहरी विषमताओं को दूर करने और अधिक सुरक्षित, महफ़ूज व न्यायसंगत दुनिया बनाने के लिए AI विश्वास व सुरक्षा मानकों पर वैश्विक सहयोग को आगे बढ़ाने की ट्रंप प्रशासन की नेक नीयत के ख़िलाफ़ भी हैं. इसी कारण, नए नियमों को देखकर लगता है कि वाशिंगटन अपनी भूमिका बदल रहा है. यह G7 में बनी सहमति और मार्च, 2024 व जून, 2024 के संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्तावों (जिनका मक़सद दुनिया में AI और डिजिटल विभाजन को ख़त्म करना है) की अनदेखी भी मानी जा रही है. AI निर्यात नियंत्रण नीति से अमेरिका की भू-राजनीतिक हैसियत कमज़ोर हो सकती है, दुनिया के कई देशों के लिए एक विश्वसनीय व भरोसेमंद साझेदार के रूप में उसकी प्रतिष्ठा ख़त्म हो सकती है और वे सभी महत्वपूर्ण फ़ायदे ख़त्म हो सकते हैं, जो उसके AI उद्योग को वैश्विक मुकाबले में मज़बूत बनाने और छोटी व लंबी अवधि वाली आर्थिक व सुरक्षा कमजोरियों से अपने हितों की रक्षा करने में मदद कर सकते हैं.
प्रसार से जो लाभ मिलेगा
भारत और ब्राजील जैसे देशों के साथ रणनीतिक सहयोग से अमेरिका वैश्विक AI विभाजन को पाटने के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा बना सकता है और AI सॉफ्टवेयर व अन्य तंत्रों के लिए तकनीकी मदद उपलब्ध करा सकता है, जिससे उसकी भू-राजनीतिक स्थिति मज़बूत बन सकती है. ऐसा करके वह अपने तकनीकी व प्रौद्योगिकी नेतृत्व पर दूसरे देशों का भरोसा बना सकता है. वह न सिर्फ अपने मज़बूत सहयोगियों की संख्या बढ़ा सकता है, बल्कि वैश्विक AI स्पर्धा में चीन जैसे देशों या उसके नेतृत्व वाले विरोधी गठबंधनों से पैदा होने वाले ख़तरे को भी कम कर सकता है.
AI समानता और सुरक्षा के प्रयासों का नेतृत्व यदि अमेरिका नहीं करेगा, तो उसके मज़बूत विकल्प के बिना दुनिया भर के देश आर्थिक मुश्किलों का सामना कर सकते हैं और अपने आर्थिक व विकास उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अपनी प्राथमिकताएं व साझेदारी बदलने को बाध्य हो सकते हैं.
इसके अलावा, विभिन्न देशों या क्षेत्रों को वह इस शर्त पर सहायता के लिए राजी कर सकता है कि प्रमुख AI बचाव व सुरक्षा संबंधी पहलों पर वे वाशिंगटन के साथ ही सहयोग करेंगे. यह AI के लिए वैश्विक नियम व मानक बनाने के काम में अमेरिकी नेतृत्व को मज़बूत बनाएगा. यह अमेरिका के महत्वपूर्ण AI बुनियादी ढांचे की चोरी या कमज़ोर पड़ने के ख़तरे को कम कर सकता है और अमेरिकी AI कंपनियों के लिए अधिक अनुकूल वैश्विक नियम बनाने में मदद कर सकता है. अमेरिका AI शोध और विकास संबंधी अपनी गतिविधियों के लिए डेटा की सीमा-पार साझेदारी से जुड़े समझौतों की शर्त भी रख सकता है. मीडिया में पहले से ही भारत के लिए यह सुझाव दिए जा रहे हैं कि वह ‘अपने महादेश जैसे आकार के डेटासेट को व्यवस्थित करे और ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) पाने के लिए अमेरिका के साथ मोल-भाव में इसका इस्तेमाल करे’. इसके अलावा, अमेरिका विदेशी बाजारों में अपने AI उत्पादों और सेवाओं के लिए आयात-शुल्क शून्य करवा सकता है, साथ ही अमेरिकी संस्थाओं के लिए उन क्षेत्रों में शोध या विनिर्माण सुविधाएं उपलब्ध कराने का मौका हासिल कर सकता है, जहां कम कीमत पर AI प्रतिभा मौजूद है. ऐसे देशों में भारत भी शामिल है, जहां डेटा विज्ञान और मशीन लर्निंग में कुशल पेशेवरों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. इन रणनीतियों का लाभ उठाकर, अमेरिका अपनी कंपनियों को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बना सकता है, जिससे उसके AI उद्योग के विकास और विस्तार में तेज़ी आएगी.
अमेरिका अपने समर्थन की शर्त में ‘अधिक व्यापक (गैर AI) उद्देश्य’ भी जोड़ सकता है, जैसे कि उन्नत कंप्यूटिंग के बदले वाशिंगटन अपनी विदेश नीति की प्रमुख प्राथमिकताओं पर सहयोग मांग सकता है. इसका एक उदाहरण चीनी आयात पर निर्भरता कम करना या अमेरिकी निर्यात पर शुल्क कम करना हो सकता है. इतना ही नहीं, अमेरिका नियंत्रण नीति बदलकर AI-पिछड़े देशों को AI संबंधी तैयारी करने में मदद कर सकता है, जिससे अमेरिकी AI हार्डवेयर, सॉफ़्टवेयर और समाधानों के लिए नए बाजार मिल सकते हैं. यह AI प्रतिभा और उच्च मूल्य वाले डेटासेट की वैश्विक आपूर्ति को भी समृद्ध बना सकता है, जिसका लाभ अमेरिकी कंपनियां AI को उन्नत बनाने में उठा सकती हैं.
निष्कर्ष
यदि वाशिंगटन अपनी नई AI निर्यात नियंत्रण नीति को लागू करने की दिशा में बढ़ता है, तो AI का ज़िम्मेदारपूर्ण संचालन एक आदर्शवादी महत्वाकांक्षा बनकर रह जाएगा. AI समानता और सुरक्षा के प्रयासों का नेतृत्व यदि अमेरिका नहीं करेगा, तो उसके मज़बूत विकल्प के बिना दुनिया भर के देश आर्थिक मुश्किलों का सामना कर सकते हैं और अपने आर्थिक व विकास उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अपनी प्राथमिकताएं व साझेदारी बदलने को बाध्य हो सकते हैं. इसका मतलब यह हो सकता है कि AI विकास में नैतिकता व सुरक्षा संबंधी फ़िक्र हाशिये पर जा सकती है और ज़िम्मेदारीपूर्ण AI संचालन को लेकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग का सार्थक प्रयास पटरी से उतर सकता है. इन सबसे दुनिया पर दूरगामी आर्थिक व सुरक्षा ख़तरा बढ़ सकता है. इसीलिए, ट्रंप प्रशासन को स्थिति के बिगड़ने से पहले अपनी इस नीति पर फिर से विचार कर लेना चाहिए.
(राज शेखर नैसकॉम में लीड रिस्पॉन्सिबल एआई पद पर हैं, जो भारत में ज़िम्मेदारपूर्ण AI की व्यापक शुरुआत करने और उसे अपनाने का रोडमैप तैयार करने के नैसकॉम के प्रयासों को आगे बढ़ा रहे हैं)
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