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हाल ही में ट्रंप 2.0 में रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र का दौरा किया था. उनके इस दौरे ने केवल क्षेत्र में अमेरिकी सहयोगी देशों की आशंकाओं को समाप्त करने का काम किया.
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हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक लिहाज़ से वॉशिंगटन के फिलीपींस और जापान के साथ रिश्ते बहुत अहम हैं और देखा जाए तो इसके पीछे दो कारण हैं. पहला यह कि अमेरिका इन देशों के साथ अपने प्रगाढ़ संबंधों के ज़रिये इंडो-पैसिफिक में चीन के बढ़ते दबदबे को रोकना चाहता है और दूसरा यह कि वॉशिंगटन ऐसा करके क्षेत्र में मची भू-राजनीतिक उथल-पुथल को शांत कर स्थिरता लाना चाहता है. अमेरिका की यूएस-इंडो-पैसिफिक कमांड (US-INDOPACOM) हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जापान और फिलीपींस जैसे देशों के साथ सैन्य सहयोग, संयुक्त सैन्य अभ्यास और सैन्य बलों की रणनीतिक तैनाती के माध्यम से पारस्परिक संबंधों को मज़बूत करने और उन्हें आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती है.
वर्तमान परिस्थितियों पर नज़र डालें, तो स्पष्ट हो जाता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार के विदेश नीति से जुड़े फैसलों के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है. यानी ट्रंप प्रशासन कभी भी और कुछ भी फैसले ले लेता है, जिससे न सिर्फ़ वैश्विक अनिश्चितिता का माहौल पनपता है, बल्कि इससे दूसरे देशों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों पर भी काफ़ी असर पड़ता है. इससे लगता है कि वैश्विक सुरक्षा में अमेरिका अपनी भागीदारी से बच रहा है और अपने क़दम पीछे खींच रहा है. ट्रंप ने जब दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति का पदभार संभाला, तो दुनिया के कई क्षेत्रों में उठापटक मची थी और देशों के बीच भीषण संघर्ष चल रहे थे, इसमें लंबे अर्से से चल रहा यूक्रेन-रूस युद्ध और गाज़ा संकट शामिल हैं. इसके अलावा राष्ट्रपति बनने से पहले जिस प्रकार से ट्रंप ने बयानबाज़ी की थी, उससे इस बात की आशंकाएं गहरा गई थीं कि अमेरिका वैश्विक स्तर पर रक्षा और कूटनीतिक संबंधों में अपनी भूमिका में बदलाव करेगा, यानी दूसरे के पचड़ों में ज़्यादा नहीं पड़ेगा. इन्हीं सब बातों से ऐसी अटकलों को बल मिला कि अमेरिका इंडो-पैसिफिक में अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हट सकता है या कहें कि अपनी भूमिका में बदलाव ला सकता है. भू-राजनीतिक तनावों, ख़ास तौर पर चीन के साथ चल रही खींचतान की वजह से अमेरिका को लेकर इस तरह की आशंकाओं को और तेज़ी मिली.
पीट हेगसेथ इस दौरान हवाई में स्थित US-INDOPACOM मुख्यालय गए थे, इसके अलावा उन्होंने फिलीपींस और जापान का भी दौरा किया था. उनके इस दौरे का मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ज़रूरी सामरिक प्रतिबद्धताओं के प्रति अमेरिका की गंभीरता को प्रकट करना था
इन वास्तविकताओं के मद्देनज़र अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ का हिंद-प्रशांत क्षेत्र का पहला आधिकारिक दौरा बहुत अहम था. विशेष रूप से हेगसेथ का दौरा सिर्फ़ यह जताने के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं था कि इस क्षेत्र के देशों के साथ अमेरिका के रिश्ते अहम भी हैं और मज़बूती भी हैं, बल्कि इसका सांकेतिक महत्व इससे भी कहीं ज़्यादा था. पीट हेगसेथ इस दौरान हवाई में स्थित US-INDOPACOM मुख्यालय गए थे, इसके अलावा उन्होंने फिलीपींस और जापान का भी दौरा किया था. उनके इस दौरे का मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ज़रूरी सामरिक प्रतिबद्धताओं के प्रति अमेरिका की गंभीरता को प्रकट करना था, साथ ही मौज़ूदा साझेदारियों और गठजोड़ों को मज़बूती प्रदान करना था. उनकी इस यात्रा के दौरान क्षेत्र में बदलते सुरक्षा वातावरण के लिहाज़ से आवश्यक रक्षा क्षमताओं को विकसित करने के बारे में ठोस उपाय भी किए गए. ज़ाहिर है कि इस तरह के क़दम क्षेत्र में दीर्घकालिक सहयोग के सुनिश्चित करने के लिए बेहद ज़रूरी हैं. कहने का मतलब है कि हिंद-प्रशांत के हालिया दौरे में अमेरिकी विदेश मंत्री हेगसेथ ने तीन प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जिनमें रक्षा के मामले में तैयारियों को धार देना और सैन्य आधुनिकीकरण को बढ़ाना, रक्षा-औद्योगिक सहयोग का विस्तार करना और विपरीत हालातों में जवाबी हमले की क्षमता को नए सिरे से स्थापित करना, यानी दुश्मन में भय का माहौल पैदा करने की मुकम्मल तैयारी करना शामिल हैं.
फिलीपींस विजिट के दौरान रक्षा मंत्री हेगसेथ ने मनीला में रक्षा-औद्योगिक सहयोग को प्राथमिकता देने वाली योजनाओं का ऐलान किया. इन योजनाओं में फिलीपींस के साथ मिलकर मानव रहित रक्षा प्रणालियों का उत्पादन करने वाली योजनाएं और लॉजिस्टिक्स सहयोग को बढ़ाने वाली योजनाएं भी शामिल हैं. ज़ाहिर है कि फिलीपींस तेज़ी के साथ अपनी सेना के आधुनिकीकरण में जुटा हुआ है, ऐसे में सैन्य क्षेत्र में अमेरिका की तरफ दी जाने वाली मदद कहीं न कहीं समुद्री क्षेत्र में फिलीपींस की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने और तटीय रक्षा को मज़बूती प्रदान करने में लाभदायक साबित होगी. गौरतलब है कि अमेरिका ने पहले ही फिलीपींस के साथ होने वाले आगामी बालिकतन संयुक्त सैन्य अभ्यास में भाग लेने के लिए अपनी भूमि-आधारित एंटी-शिप मिसाइल प्रणाली यानी नेवी-मरीन एक्सपेडिशनरी शिप इंटरडिक्शन सिस्टम (NMESIS) को भेजने की घोषणा की. इसके अलावा, यूएस स्पेशल ऑपरेशन फोर्सेज के जवान बैटनेस आईलैंड्स में फिलीपींस मरीन फोर्सेज के जवानों के साथ प्रशिक्षण ग्रहण करेंगे. यह आईलैंड ताइवान के दक्षिण में स्थित है और वहां से केवल 120 मील की दूरी पर है. ज़ाहिर है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे तनाव में ताइवान का मुद्दा एक बड़ी वजह बना हुआ है. कहा जा रहा है कि अमेरिका और फिलीपींस के बीच होने वाले बालिकतन संयुक्त सैन्य अभियान के 40 साल के इतिहास में इस बार का सैन्य अभ्यास यानी बालिकतन 2025 बेहद ख़ास होगा. इस बार के साझा सैन्य अभियान में फिलीपीन द्वीपसमूह के सभी इलाक़ों में यानी फिलीपींस के जमीनी क्षेत्रों से लेकर दक्षिण चीन सागर तक में व्यापक स्तर पर युद्ध जैसे हालात बनाकर दोनों देशों की सेनाओं द्वारा सघन अभ्यास किया जाएगा और सैन्य क्षमताओं को परखा जाएगा.
ज़ाहिर है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे तनाव में ताइवान का मुद्दा एक बड़ी वजह बना हुआ है. कहा जा रहा है कि अमेरिका और फिलीपींस के बीच होने वाले बालिकतन संयुक्त सैन्य अभियान के 40 साल के इतिहास में इस बार का सैन्य अभ्यास यानी बालिकतन 2025 बेहद ख़ास होगा.
फिलीपींस को दक्षिण चीन सागर में बार-बार चीनी आक्रामकता का सामना करना पड़ता है. ऐसे में फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर का प्रशासन अमेरिका के साथ अपने गहरे व ऐतिहासिक संबंधों को और अधिक सशक्त करना चाहता है. फिलीपींस के रक्षा मंत्री गिल्बर्टो टेओडोरो जूनियर के मुताबिक़ चीन का आक्रामक रवैया उनके देश की सुरक्षा के लिए तो बेहद चिंताजनक है ही, लेकिन फिलीपींस के इलाक़ों में चीनी घुसपैठ से पूरे क्षेत्र के लिए ख़तरा पैदा हो गया है. फिलीपींस के साथ म्यूचुअल डिफेंस ट्रीटी (MDT) यानी पारस्परिक रक्षा समझौते के दायरे का विस्तार करने एवं इन्हैंस्ड डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट (EDCA) यानी संवर्धित रक्षा सहयोग समझौते को सशक्त करने से अमेरिका को इस क्षेत्र में अपनी सैन्य मौज़ूदगी बढ़ाने में मदद मिली है. EDCA के तहत अमेरिका अपने सैनिकों को फिलीपींस के सैन्य ठिकानों पर तैनात कर सकता है. इतना ही नहीं, इन समझौते की बदौलत ही अमेरिका को फिलीपींस के सामरिक दृष्टि से प्रमुख स्थानों पर, ख़ास तौर पर ताइवान और दक्षिण चीन सागर के निकट स्थित ठिकानों पर अपनी सेना टुकड़ियों और युद्धपोतों को तैनात करने में सहूलियत हुई है.
जापान दौरे में अमेरिकी रक्षा मंत्री वीट हेगसेथ ने वहां के रक्षा मंत्री जनरल नाकातानी से भेंट की. इस मुलाक़ात के दौरान हेगसेथ ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जापान को एक बेहद ज़रूरी और महत्वपूर्ण साझीदार बताते हुए पूरे रीजन में उसकी अहम भूमिका को लेकर काफ़ी कुछ कहा. मौज़ूदा वक़्त में जापान में लगभग 54,000 अमेरिकी सैन्य जवान तैनात हैं, जो हवाई में स्थिति यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड को रिपोर्ट करते हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन और जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा के बीच वर्ष 2024 में एक समझौता हुआ था. इसी समझौते के तहत दोनों देश इस इंडो-पैसिक कमांड का मुख्यालय जापान में स्थापित करने और इसे अधिक ताक़तवर बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं. इस बदलाव का मकसद मुख्य रूप से यूनाइटेड स्टेट्स फोर्सेज जापान (USFJ) को एक संयुक्त फोर्स हेडक्वार्ट्स में परिवर्तित करना है. ऐसा करने से हिंद-प्रशांत में किसी आपात स्थिति के दौरान, जब सेनाओं को त्वरित कार्रवाई करने की ज़रूरत पड़ेगी, तब अमेरिकी सेना की कार्यक्षमता में इज़ाफा होगा और वह बगैर समय गंवाए मोर्चा संभाल कर जवाबी कार्रवाई करने में सक्षम होगी. टोक्यो में हेगसेथ ने कहा कि इस योजना के प्रथम चरण पर कार्य पहले से चल रहा है. इसके साथ ही उन्होंने जापान में अमेरिकी मिलिट्री कमान्ड को 'वार-फाइटिंग' हेडक्वाटर्स में परिवर्तित करने की योजना के बारे में भी बताया. हेगसेथ के दौरे के दौरान ही अमेरिका और जापान ने बियोन्ड विजुअल रेंज AMRAAM हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के साझा उत्पादन की योजनाओं को तेज़ी गति से आगे बढ़ाने और गोला-बारूद व सैन्य साज़ो सामान की कमी को पूरा करने के लिए SM-6 सतह से हवा में मार करने वाली रक्षा मिसाइलों के उत्पादन पर सहयोग की संभावनाएं तलाशने पर भी सहमति जताई. इसके अलावा, दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच हुई चर्चा के दौरान पूर्वी चीन सागर के साथ-साथ जापान के दक्षिण-पश्चिमी द्वीपों तक अमेरिकी सेनाओं की ज़्यादा से ज़्यादा पहुंच स्थापित करने की संभावनाओं पर भी बातचीत हुई.
हेगसेथ के दौरे के दौरान ही अमेरिका और जापान ने बियोन्ड विजुअल रेंज AMRAAM हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के साझा उत्पादन की योजनाओं को तेज़ी गति से आगे बढ़ाने और गोला-बारूद व सैन्य साज़ो सामान की कमी को पूरा करने के लिए SM-6 सतह से हवा में मार करने वाली रक्षा मिसाइलों के उत्पादन पर सहयोग की संभावनाएं तलाशने पर भी सहमति जताई.
ज़ाहिर है कि जापान ने अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों शिंज़ो आबे और फुमियो किशिदा की अगुवाई में रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में अहम सुधारों को अंज़ाम दिया है और सैन्य आधुनिकीकरण पर ज़ोर दिया है. देखा जाए तो जापान द्वारा रक्षा क्षेत्र में किए गए यह प्रयास कहीं न कहीं इंडो-पैसिफिक में अमेरिकी रणनीतिक लक्ष्यों के मुताबिक़ हैं. अगर जापान की ओर से अपनी सैन्य क्षमताओं में बढ़ोतरी की बात की जाए, तो उसने युद्ध की स्थित में जवाबी आक्रमण की क्षमता हासिल करने और लंबी दूरी की मिसाइलों के निर्माण में निवेश करने के साथ ही ज़्यादा ताक़तवर एवं आक्रामक सेना के विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है. ताइवान जलडमरूमध्य में ख़ास तौर पर तनाव बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते वॉशिंगटन और टोक्यो पारस्परिक सैन्य तालमेल को सशक्त करने की दिशा में लगातार जुटे हुए हैं.
अमेरिकी रक्षा मंत्री हेगसेथ ने मनीला पहुंचने से पहले 24 से 26 मार्च 2025 तक हवाई में स्थित यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड यानी INDOPACOM मुख्यालय का भी दौरा किया था. यहां पर उन्होंने पूरे क्षेत्र के सुरक्षा हालातों और सुरक्षा चुनौतियों के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की, साथ ही उन्होंने क्षेत्र में अमेरिकी साझीदारियों एवं गठबंधनों के बारे में भी जानकारी जुटाई. हेगसेथ ने INDOPACOM में सैन्य बलों की अलग-अलग शाखाओं यानी आर्मी, नौसेना, वायु सेना, मरीन कॉर्प्स और अंतरिक्ष सेना के अधिकारियों व जवानों से मुलाक़ात की. इस मुलाक़ातों के दौरान हेगसेथ ने सैन्य कर्मियों को किसी भी अभियान के लिए हमेशा मुस्तैद रहने के महत्व के बारे में बताया और उनसे ऐसे हालातों का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहने को कहा. गौरतलब है कि अमेरिकी सेना के एकीकृत लड़ाकू कमांडों में INDOPACOM सबसे बड़ा है और सामरिक नज़रिये से भी सबसे महत्वपूर्ण है. INDOPACOM न केवल पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य अभियानों को संचालित करता है और उनकी निगरानी करता है, बल्कि जापान और फिलीपींस जैसे सहयोगी देशों के साथ तालमेल स्थापित करने में भी अहम भूमिका निभाता है. INDOPACOM का सबसे अहम कार्य क्षेत्र में एक एकीकृत डिटरेंस यानी निरोध क्षमता को सशक्त करना है और इसके लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी भागीदार देशों के साथ मिलकर काम करना है. इसका मकसद यह है कि क्षेत्र में अगर कोई भी दुश्मन राष्ट्र आंख दिखाने की कोशिश करता है, ख़ास तौर पर अगर चीन अगर कोई आक्रामक कार्रवाई को अंज़ाम देता है, तो उसके ख़िलाफ़ बगैर समय गंवाए ज़ोरदार जवाबी कार्रवाई की जा सके और उसके मंसूबों को कुचला जा सके.
हिंद-प्रशांत रीजन में जैसे-जैसे सुरक्षा चुनौतियां बढ़ती जाएंगी, निसंदेह तौर पर मनीला और टोक्यो के साथ वॉशिंगटन की साझेदारी और गहरी होती जाएगी. कहने का मतलब है कि अमेरिका का फिलीपींस और जापान के साथ यह सहयोगी रिश्ता आने वाले दिनों में पूरे इंडो-पैसिफिक में स्थिरता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएगा
देखा जाए तो फिलीपींस दक्षिण चीन सागर में अमेरिका को अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज़ कराने के लिए सुरक्षित ठिकाने उपलब्ध कराता है. इसी तरह से जापान पूर्वोत्तर एशिया और विशाल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य अभियानों के लिए एक अहम केंद्र के रूप में काम करता है, यानी जापान के ज़रिये अमेरिकी इन इलाक़ों में अपने अभियानों को बखूबी चला सकता है. इसके साथ ही, INDOPACOM यह सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के जो भी गठबंधन हैं, वो हर लिहाज़ से पूरी तरह से तैयार रहें, ताकि ज़रूरत पडने पर क्षेत्रीय चुनौतियों और ख़तरों का डटकर मुक़ाबला करने में सक्षम हों. हिंद-प्रशांत रीजन में जैसे-जैसे सुरक्षा चुनौतियां बढ़ती जाएंगी, निसंदेह तौर पर मनीला और टोक्यो के साथ वॉशिंगटन की साझेदारी और गहरी होती जाएगी. कहने का मतलब है कि अमेरिका का फिलीपींस और जापान के साथ यह सहयोगी रिश्ता आने वाले दिनों में पूरे इंडो-पैसिफिक में स्थिरता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएगा. हेगसेथ का कहना है कि "...'अमेरिका फर्स्ट' का मतलब सिर्फ़ अमेरिका के हितों की रक्षा ही नहीं है." उनका यह बयान बताता है कि राष्ट्रपति ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति बहुत व्यापक है और यह केवल हर जगह अमेरिका के वर्चस्व को बनाए रखने की नीति नहीं है, बल्कि इसमें अमेरिका के अपने हितों को प्राथमिकता देने के साथ-साथ वैश्विक सुरक्षा से जुड़े मामलों में अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करना और ज़िम्मेदारी को गंभीरता से निभाना भी शामिल है. हेगसेथ ने अपने इस बयान के ज़रिये एक प्रकार से अमेरिकी साझेदार देशों की चिंताओं और आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की है. ज़ाहिर है कि राष्ट्रपति ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान सहयोगी देशों में इस बात का बहुत भय है कि कहीं अमेरिका बहुपक्षीय सुरक्षा गठजोड़ों से मुंह न फेर ले और वैश्विक सुरक्षा प्रतिबद्धताओं से अपने क़दम वापस न खींच ले.
प्रत्नाश्री बसु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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Pratnashree Basu is an Associate Fellow, Indo-Pacific at Observer Research Foundation, Kolkata, with the Strategic Studies Programme and the Centre for New Economic Diplomacy. She ...
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