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जैसे-जैसे वाशिंगटन बांग्लादेश में बंदरगाह विकास पर नज़र गड़ाए आगे बढ़ रहा है, ढाका को विकास के अवसरों को तेज होती महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा के जोख़िमों के साथ संतुलित करना जरूरी होगा.
हाल की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका क्वाड पोर्ट्स ऑफ द फ्यूचर पार्टनरशिप के तहत बांग्लादेश में एक बंदरगाह बनाना चाहता है. ये पहल अक्टूबर 2025 में आधिकारिक तौर पर शुरू हो रही है जो क्वाड (जिसमें ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं) द्वारा शुरू की गई एक महत्वपूर्ण साझेदारी है. इसका लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री संपर्क, लॉजिस्टिक्स की मजबूती और अच्छी गुणवत्ता वाले बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना है जिसके लिए टिकाऊ और मजबूत बंदरगाह बनाए जाएंगे. इस पहल के तहत, क्वाड देश अपने सामूहिक अनुभव और विशेषज्ञता का उपयोग करेंगे ताकि "अच्छी गुणवत्ता वाले बंदरगाहों के निर्माण में सरकार और निजी क्षेत्र दोनों के निवेश का तालमेल बैठाया जा सके, जानकारी का आदान-प्रदान किया जा सके और सबसे बेहतर तरीकों को साझा किया जा सके." ख़बर है कि अमेरिका ने बंदरगाह विकास की संभावनाओं पर चर्चा करने के लिए ढाका में मुख्य स्टेकहोल्डर्स के साथ एक शुरुआती बैठक की है और प्रस्ताव को अंतिम रूप देने से पहले एक विस्तृत अध्ययन करने के लिए योजना बनाए जाने की उम्मीद में है. बहरहाल, सितंबर की शुरुआत में चटोग्राम, जो बांग्लादेश का सबसे बड़ा बंदरगाह है, में अमेरिकी सेना के जवानों के एक बड़े दल के आने की भी ख़बर है. भले ही इस बंदरगाह विकास पहल में क्वाड के हित सबसे ऊपर लग रहे हैं लेकिन यह कदम बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने की अमेरिकी हितों का परिचायक भी है. इन सब कारणों के चलते यह क्षेत्र अब तेजी से बड़ी शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा का केंद्र बनता जा रहा है.
अमेरिका क्वाड पोर्ट्स ऑफ द फ्यूचर पार्टनरशिप के तहत बांग्लादेश में एक बंदरगाह बनाना चाहता है.
इसका लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री संपर्क, लॉजिस्टिक्स की मजबूती और अच्छी गुणवत्ता वाले बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना है
विशाल हिंद महासागर के उत्तर-पूर्वी हिस्से यानी बंगाल की खाड़ी का रणनीतिक महत्व हाल के वर्षों में बढ़ गया है और इसके मुख्य कारण खाड़ी के आस-पास के देशों का आर्थिक रूप से मुक्त व्यापार की ओर रुख़, चीन की इस क्षेत्र में बढ़ती मौजूदगी जो उसके पश्चिमी प्रांतों को समुद्र तक पहुंच प्रदान करती है और इंडो-पैसिफिक की अवधारणा का उभरना को माना जा रहा है. इन सब कारणों से खाड़ी का भूगोल भू-राजनीतिक रूप से अब महत्वपूर्ण हो गया है. यह हिंद और प्रशांत महासागरों को जोड़ता है, जहां से महत्वपूर्ण समुद्री संचार मार्ग यानी सी लेन्स ऑफ़ कम्युनिकेशन (SLOC) गुजरते हैं. यह मलक्का स्ट्रेट जैसे महत्वपूर्ण गलियारों के भी समीप है जो ऊर्जा, व्यापार और अन्य महत्वपूर्ण संसाधनों के लिए बहुत ज़रूरी है. एनर्जी इनसिक्योरिटी से भरे भविष्य में इस समुद्री क्षेत्र में पैर जमाने की होड़ मची हुई है. यह होड़ न केवल ऊर्जा के निर्बाध प्रवाह को सुरक्षित रखने की है बल्कि इस समुद्र में मौजूद हाइड्रोकार्बन भंडारों तक पहुंच सुरक्षित करने के लिए भी है. इस क्षेत्र में चीन के तेजी से बढ़ते प्रभुत्व को मौजूदा व्यवस्था के लिए ख़तरा माना जाता है इसलिए अमेरिका और जापान जैसे बाहरी देशों को खाड़ी के पास उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ साझेदारी करके इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बनानी पड़ रही है.
इस क्षेत्र में चीन के तेजी से बढ़ते प्रभुत्व को मौजूदा व्यवस्था के लिए ख़तरा माना जाता है इसलिए अमेरिका और जापान जैसे बाहरी देशों को खाड़ी के पास उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ साझेदारी करके इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बनानी पड़ रही है.
ऐसे सहयोगों में बंदरगाह विकास कई कारणों से सबसे आगे है. सबसे पहली बात, उच्च-दक्षता वाले बंदरगाह का बुनियादी ढांचा खाड़ी के सभी तटीय राज्यों के लिए एक आवश्यकता है क्योंकि वे अपने आयात और निर्यात के लिए सुचारू समुद्री परिवहन पर अत्यधिक निर्भर हैं और यह उनके राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में भी पर्याप्त योगदान देता है. समुद्री परिवहन वैश्विक व्यापार की रीढ़ की हड्डी समान है जिसमें 80 प्रतिशत से अधिक दुनिया का सामान समुद्र के रास्ते ले जाया जाता है. बंदरगाह इस कनेक्टिविटी के नोड्स हैं. हालांकि विकासशील देशों में अक्सर आवश्यक संसाधन या तकनीकी जानकारी की कमी होती है इसलिए उनके बंदरगाह विकास साझेदारी के रूप में विदेशी सहायता से बनाए जाते हैं. निवेश करने वाले देश के लिए बंदरगाह एक विदेशी अर्थव्यवस्था में प्रवेश बिंदु होते हैं जिनमें औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने, व्यापार और ऊर्जा की ज़रूरतों को सुरक्षित करने और नौसैनिक क्षमताओं को बढ़ाने की रणनीतिक क्षमता होती है. इस प्रकार बंदरगाह विकास गतिविधियों में शामिल होना एक पारस्परिक रूप से फ़ायदे का सौदा है जो न केवल कूटनीति को बल्कि आपसी सद्भावना को भी मजबूत करता है. बंदरगाह टर्मिनलों का स्वामित्व और संचालन ऐसी भागीदारी को और अनुकूलित करता है और इससे विदेशी देश को वाणिज्यिक लाभ भी मिलता है.
बंदरगाह रणनीतिक संपत्ति भी होती हैं क्योंकि इन सुविधाओं पर नियंत्रण का मतलब जहाज को बर्थिंग और अन्य सेवाओं के लिए प्राथमिकता देने के संबंध में निर्णय लेने की शक्ति मिल जाती है. सामरिक दृष्टि से देखा जाए तो इसका मतलब इसमें आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित करने या बाधित करने की क्षमता भी है, जिसमें ऊर्जा सुरक्षा से संबंध रखने वाली महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाएं भी शामिल हैं. संघर्ष के समय, इस क्षमता में कुछ जहाजों तक पहुंच को अवरुद्ध करने या प्रतिबंधित करने की क्षमता भी शामिल हो सकती है, जो व्यापक SLOC ढांचे के भीतर बंदरगाहों के भू-राजनीतिक महत्व को मजबूत करती है. इसके अलावा, वाणिज्यिक बंदरगाह आवश्यक नौसैनिक कार्य प्रदान कर सकते हैं जैसे कि ईंधन भरना, प्रोविशनिंग करना और जहाज की मरम्मत का कार्य इत्यादि. बंदरगाहों की एक खासियत और है कि वे एक समर्पित सैन्य अड्डे न होने के बावज़ूद संवेदनशील बुनियादी ढांचा जैसे कि संचार प्रणाली, रडार और हथियार के प्लेटफॉर्म स्थापित किए जा सकते हैं.
इन लाभों के अलावा, बांग्लादेश में बंदरगाहों के विकास और संचालन के कई अन्य फ़ायदे भी है. बंगाल की खाड़ी के त्रिकोणीय शिखर पर स्थित, बांग्लादेश इस समुद्री क्षेत्र में निगरानी के लिए एक आदर्श जगह है. भारत, म्यांमार, नेपाल और भूटान से इसकी निकटता भी इसे एक तटीय प्रवेश द्वार के साथ-साथ खाड़ी के भीतरी इलाकों की कनेक्टिविटी के केंद्र में होने का एक अद्वितीय भौगोलिक लाभ प्रदान करती है. इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि बांग्लादेश के बंदरगाहों ने अंतरराष्ट्रीय निवेश को आकर्षित किया है और देश के 90 प्रतिशत से अधिक समुद्री वाणिज्य को पूरा करने वाले चट्टोग्राम बंदरगाह में चीनी निवेश मौजूद है. देश के दूसरे सबसे बड़े मोंगला बंदरगाह में चीन और भारत दोनों की हिस्सेदारी है. जापान मटरबारी में गहरे समुद्र के बंदरगाह का विकास कर रहा है.
यह आश्चर्य की बात नहीं है कि बांग्लादेश के बंदरगाहों ने अंतरराष्ट्रीय निवेश को आकर्षित किया है और देश के 90 प्रतिशत से अधिक समुद्री वाणिज्य को पूरा करने वाले चट्टोग्राम बंदरगाह में चीनी निवेश मौजूद है.
अमेरिका ही अब तक एकमात्र ऐसी प्रमुख शक्ति था जिसके खाड़ी में अपने हित हैं लेकिन बंदरगाहों में उसका कोई निवेश नहीं था. उस बात के दो कारण थे. पहला, अमेरिकी साझेदारी अब तक अनिवार्य रूप से बुनियादी ढांचे के निवेश के बजाय राजनयिक, सुरक्षा और शासन चैनलों में निहित रही है. दूसरा, अगस्त 2024 में शासन परिवर्तन से पहले, अमेरिका की पूर्व अवामी लीग सरकार के साथ, जिसने पंद्रह वर्षों तक बांग्लादेश पर शासन किया था, एक अनियमित संबंध था और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण और मानवाधिकारों पर लगातार मतभेदों ने इस संबंध को तनावपूर्ण बना दिया था. कथित तौर पर, 2023 में, सेंट मार्टिन द्वीप में अमेरिकी रुचि की अफ़वाह थी, जिसके बदले में वाशिंगटन डी.सी. 2024 के चुनावों में अवामी लीग सरकार का समर्थन करेगा. हालांकि अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर द्वारा ऐसी अटकलों से इनकार किया गया था लेकिन द्वीप का रणनीतिक महत्व निर्विवाद है. खाड़ी के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित, यह चटोग्राम के कॉक्स बाज़ार में टेक्नाफ तट से लगभग 9 km दक्षिण में और उत्तर-पश्चिमी म्यांमार से 8 km पश्चिम में है. इस प्रकार यह बांग्लादेश में चीन द्वारा विकसित पनडुब्बी बेस BNS शेख हसीना, और म्यांमार के कोको द्वीप समूह में बीजिंग की ख़ुफ़िया सुविधा दोनों के निकट है और खाड़ी में निगरानी की सुविधा के लिए आदर्श स्थिति में है. हसीना के इन द्वीपों तक अमेरिका को पहुंच प्रदान करने से इनकार करने के चलते ही उन अटकलों को बल मिला कि उनके निष्कासन के पीछे भी विदेशी हाथ था.
हालांकि अब ढाका में सत्ता संभाल रही अंतरिम सरकार का अमेरिका के प्रति एक अलग दृष्टिकोण है और इस रुख़ का भी जनवरी 2025 में राजनीतिक परिवर्तन हुआ, लेकिन बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस को डेमोक्रेटिक पार्टी, अमेरिकी विपक्ष, के अनुकूल माना जाता है और उन्होंने रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प की चुनावी जीत का स्वागत एक पत्र के साथ किया जिसमें साझेदारी के लिए खुलेपन पर प्रकाश डाला गया था. हालांकि अमेरिकी विदेशी सहायता के रुकने से बांग्लादेश में कई विकास परियोजनाएं रुक गईं हैं और नए ट्रम्प प्रशासन द्वारा सभी विदेशी सहायता को रोके जाने के कुछ दिनों बाद यूनुस ने अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के बेटे एलेक्स सोरोस से मुलाकात की और इस मुलाकात में अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों पर चर्चा की गई. दोनों देशों ने अमेरिकी निर्यात को बांग्लादेश में बढ़ावा देने के तरीकों की पहचान करने के लिए काम करते हुए कई दौर की टैरिफ वार्ता भी की है. बांग्लादेश अमेरिकी कृषि उपज जैसे कि कपास, गेहूं, मक्का और सोयाबीन के आयात को बढ़ाना चाहता है. अमेरिका की बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट उद्योग में भी एक महत्वपूर्ण रूचि है क्योंकि अमेरिका बांग्लादेश के टेक्सटाइल निर्यात के लिए एकल-सबसे बड़ा बाज़ार है. चूंकि यह उद्योग बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को चलाता है इसलिए देश की नौकरियां प्रतिस्पर्धात्मकता और समग्र आर्थिक प्रदर्शन सीधे अमेरिकी बाज़ार की मांगों और व्यापार नीतियों, जिसमें टैरिफ भी शामिल है, द्वारा आकार लेती हैं. इसके ठीक विपरीत अमेरिका को बांग्लादेश के कम लागत वाले बड़े पैमाने पर उत्पादित कपड़ों तक पहुंच से भी लाभ होता है.
यह ध्यान देने योग्य है कि अमेरिकी बंदरगाह विकास पहल क्वाड के दायरे में है और यह संभावित रूप से अन्य क्वाड देशों के साथ प्रतिस्पर्धा में बदल सकती है, क्योंकि बंदरगाह, खासकर जो एक-दूसरे के करीब हैं, सबसे अधिक यातायात को आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं.
इसलिए बांग्लादेश में अमेरिका द्वारा विकसित या संचालित बंदरगाह पारस्परिक दोनों देशों के लिए फ़ायदेमंद होगा. हालांकि, यह बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में रणनीतिक प्रतिस्पर्धा को काफ़ी बढ़ा देगा, न केवल चीन के साथ, बल्कि भारत और जापान के साथ भी, जो पहले से ही बांग्लादेश के बंदरगाह विकास क्षेत्र में भारी निवेश कर चुके हैं. यह ध्यान देने योग्य है कि अमेरिकी बंदरगाह विकास पहल क्वाड के दायरे में है और यह संभावित रूप से अन्य क्वाड देशों के साथ प्रतिस्पर्धा में बदल सकती है, क्योंकि बंदरगाह, खासकर जो एक-दूसरे के करीब हैं, सबसे अधिक यातायात को आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं. यह जरूरी नहीं है कि वे क्षेत्रीय सहयोग के लिए बनाए गए हों, बल्कि राष्ट्रीय हितों के लिए होते हैं. ढाका को अपनी प्राथमिकताओं की रक्षा करते हुए अपने विकास में भागीदार देशों के बीच प्रतिस्पर्धी हितों को नेविगेट करने के लिए पर्याप्त राजनयिक चालाकी की आवश्यकता होगी, यह सुनिश्चित करते हुए कि वह अपने भू-राजनीतिक लाभों का अधिकतम फ़ायदा उठा सके. ढाका की राजनयिक समझ यह भी निर्धारित करेगी कि ये सब बातें सहयोग के लिए एक सेतु बनेंगे या ये बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा का एक फ्लैशपॉइंट बनेंगे.
सोहिनी बोस ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रेटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.
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Sohini Bose is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), Kolkata with the Strategic Studies Programme. Her area of research is India’s eastern maritime ...
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