Author : Ramanath Jha

Published on Sep 03, 2022 Updated 0 Hours ago

बिहार के शहरीकरण में दर्ज होती गिरावट को सुधारने के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही के द्वारा और भी ज्य़ादा सटीक एवं ठोस उपाय अपनाए जाने की ज़रूरत हैं.

बिहार के शहरीकरण की प्रक्रिया में कैसे तेज़ी लायी जाये?

बिहार की अति सुस्त शहरीकरण की प्रक्रिया, राष्ट्रीय चिंता की एक प्रमुख वजह हो सकती है. राज्य में आर्थिक विकास के क्षेत्र में व्याप्त पिछड़ेपन को दर्शाने वाले ये प्रमुख कारक हैं. राष्ट्रीय शहरीकरण के सूचकांक 31.2 प्रतिशत की तुलना में, 2011 की जनगणना में बिहार के शहरीकरण का मानक मात्र 11.3  प्रतिशत ही दर्ज किया गया. एक तरफ जहाँ ये राज्य भारत की कुल जनसंख्या का 8.6  प्रतिशत दर्ज करती हैं, उसके पास देश के कुल शहरी जनसंख्या की भागीदारी सिर्फ़ 3.1  प्रतिशत ही है. इतनी विशाल जनसांख्यिकी वाले राज्य में ऐसी स्थिति का होना देश के अन्य हिस्सों या राज्यों पर भी घने कोहरे के समान है जो कि देश के विकासोन्मुखी रुख़ को पतन की राह पर ले जायेगी. 

एक तरफ जहाँ ये राज्य भारत की कुल जनसंख्या का 8.6  प्रतिशत दर्ज करती हैं, उसके पास देश के कुल शहरी जनसंख्या की भागीदारी सिर्फ़ 3.1  प्रतिशत ही है. इतनी विशाल जनसांख्यिकी वाले राज्य में ऐसी स्थिति का होना देश के अन्य हिस्सों या राज्यों पर भी घने कोहरे के समान है जो कि देश के विकासोन्मुखी रुख़ को पतन की राह पर ले जायेगी.

वर्ष 2019 में ऐसा अनुमान किया गया था कि बिहार राज्य जिसकी आबादी 125  मिलियन है, उसने जनसांख्यिकी के आधार पर महाराष्ट्र को भी पार कर दिया है, और उत्तर प्रदेश के बाद अब दूसरा सबसे ज्य़ादा आबादी वाला प्रदेश बन चुका है. उसी तरह से, 17.70  प्रतिशत के राष्ट्रीय वृद्धि के विपरीत, 2001 और 2011 के 25.42 प्रतिशत के बीच, बड़े प्रदेशों के मध्य बिहार ने सबसे ज्य़ादा जनसंख्या में वृद्धि दर्ज की है. इसके उलट उसके शहरीकरण का प्रतिशत देश के सभी राज्यों की तुलना में सबसे कम था. 3.4 के राष्ट्रीय दशकीय वृद्धि के प्रतिशत के विपरीत, बिहार में मात्र 0.8 प्रतिशत के दर से शहरी बढ़त को दर्ज किया गया. यह भी उल्लेखनीय है कि शहरीकरण के राष्ट्रीय स्तर और बिहार के शहरीकरण के स्तर के बीच का फासला भी लगातार बढ़ता ही जा रहा  है. 1961 में जहां 11.4 प्रतिशत का अंतर था वही, 2011 तक ये बढ़कर 19.9 प्रतिशत तक पहुंच गया है.  

धीमे विकास के पीछे की वजह

बढ़ती जनसंख्या और नगण्य शहरीकरण, ऐसे दो कारक हैं जिस वजह से राज्य से अधिकाधिक संख्या में लोग भारत के अन्य प्रदेशों में पलायन कर रहे हैं, जिसका प्रमाण है महामारी के बाद, जब हज़ारों की संख्या में बिहारी प्रवासी पैदल ही अपने गृह प्रदेश की ओर वापस निकल पड़े. एनएसएसओ (नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन) के 64वें राउंड के प्रवासी डाटा पर आधारित सन 2014 के अध्ययन में, यह पाया गया कि रोज़गार की तलाश की वजह से अपने प्रदेश से दूसरे प्रदेश में पलायन की संभावना सबसे ज्यादा बिहार में ही है. उसके उपरांत और बिल्कुल हाल ही 2011 की डी – सीरीज़ की जनसांख्यिकी की डेटा के परिणाम भी बिल्कुल ही पहले जैसा है और वो यह निष्कर्ष निकालती है कि, भारत के अन्य प्रदेशों की तुलना में बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां रोज़गार की वजह से सबसे ज्य़ादा पलायन होता है. बिहार के लगभग 55 प्रतिशत पुरुष रोज़गार की वजह से पलायन को विवश होते हैं. ये भारत के कुल अनुपात का लगभग दोगुना है. दिल्ली, झारखंड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तर-प्रदेश, हरियाणा और पंजाब इनके पलायन के लिए सबसे पसंदीदा गंतव्य है. आश्चर्यजनक रूप से, बिहार के शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्र से पलायन सबसे ज्य़ादा है, जो ये बतलाता है कि रोज़गार के साथ ही पलायन भी अवसरों के कारक जैसे शिक्षा और औद्योगिकीकरण से प्रेरित है.जनसंख्या में अधिक से अधिक वृद्धि और लगभग स्थिर शहरीकरण को देखते हुए, इसके बारे में अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार के शहरीकरण में होनेवाली किसी भी प्रकार की वृद्धि, उसके अंदरूनी विकास की वजह से हो रहा है और बिहार के स्थानीय स्त्री और पुरुष दोनों ही राज्य के बाहर के शहरों के विकास में ज्य़ादा योगदान दे रहे हैं और इसकी वजह उनका बड़ी संख्या में अपने गृहराज्य से होने वाला पलायन है. 

भारत के अन्य प्रदेशों की तुलना में बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां रोज़गार की वजह से सबसे ज्य़ादा पलायन होता है. बिहार के लगभग 55 प्रतिशत पुरुष रोज़गार की वजह से पलायन को विवश होते हैं. ये भारत के कुल अनुपात का लगभग दोगुना है. दिल्ली, झारखंड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तर-प्रदेश, हरियाणा और पंजाब इनके पलायन के लिए सबसे पसंदीदा गंतव्य है

समग्र आर्थिक समस्या, से त्रस्त राज्य में आउट माइग्रेशन की बढ़ी हुई घटना की थाह लेना मुश्किल नहीं है. ज़मीन की उच्च उर्वरता और जल संसाधनों की समृद्धि के बावजूद, राज्य में कृषि उत्पादन काफी कम है. कृषि पर अनुपातहीन रूप से उच्च निर्भरता, जो कि राज्य के लगभग 80 प्रतिशत श्रमशक्ति को सहारा प्रदान करती है, खेतीहर ज़मीन का गंभीर विखंडन और खेतीहर मज़दूर और किसानों के पास अपने पालन-पोषण के लायक ज़मीन का न होना, कृषि जनित उत्पादकता में बड़ी बाधा है. उच्च जनसंख्या में वृद्धि की वजह से, ज़मीन पर पड़ने वाले अनावश्यक दबाव के कारण, आजीविका के लिए लोगों को पलायन के लिए विवश होना पड़ता है, और हालात बदतर होते जाते हैं. दूसरी तरफ, औद्योगिक सेक्टर में, रोज़गार के काफी कम अवसर मौजूद हैं जिसकी एक बड़ी वजह इन औद्योगिक इकाईयों का राज्य में अपने जगह बनाने में मिली विफलता है. राज्य में औद्योगिक विकास को लेकर एक तरह से उदासीनता है, जिसका वजह यहां का माहौल है जिसे किसी भी तरह के औद्योगिक काम के अनुकूल नहीं माना जाता है. प्रचुर मात्रा में अवसर उपलब्ध होने के बावजूद भी यहाँ इसके फायदे लेने वाले लोग काफी कम हैं. वे कारक जो राज्य में दुर्बल निवेश के कारक बने हैं, वो भौतिक और सामाजिक बुनियादी ढांचे, कमज़ोर वित्तीय बाज़ार और क्रेडिट तक कम पहुँच, कुशल श्रमशक्ति का अभाव, सुरक्षा, लॉ एवं ऑर्डर संबंधी चिंता, और लाल फीताशाही आदि वजह रही हैं. बहुत ही कम औद्योगिक रोज़गार के साथ, शहरीकरण के मूल तत्व पूर्णतयाः गायब हैं.  

एक तरफ जहां कई कारणों ने मिलकर बिहार को देश के अन्य हिस्सों से अलग करने का काम किया है, उनके बीच विकास के अंतर की खाई को और भी चौड़ा कर दिया है. ये दृष्टव्य है कि कई महत्वपूर्ण तरीकों से राज्य की श्रमशक्ति का एक काफी बड़ा प्रतिशत कृषि के ऊपर आश्रित हैं और आबादी की एक काफी बड़ी संख्या मुख्यतः उद्योगों और विभिन्न सेवाओं में रोज़गार प्रदान करने पर टिकी हुई है. इसलिये अगर हमें राज्य के विकास के बार में कारगर कदम उठाने हैं तो सबसे ज़रूरी ये है कि हम राज्य की बड़ी आबादी का पूरी तरह से आजीविका पर निर्भर होना हमें कम करना होगा. इसके लिये पहली शर्त है राज्य का राज्य का शहरीकरण होना. वर्ष 2021 में, सदन के पटल पर बोलते हुए, राज्य के उपमुख्यमंत्री ने कहा था कि, शहरीकरण बिहार सरकार की सबसे पहली प्राथमिकता रही है. वे हाल ही में, शहरी स्थानीय निकायों की संख्या को बढ़ाने और चंद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की भौगोलिक क्षेत्र सीमा को और बढ़ाने की दिशा में, सरकार द्वारा उठाए गए संदर्भ में बोल रहे थे. उन्होंने आगे कहा कि शहरी आबादी के आकार को बढ़ाने से राज्य सरकार को नगर पंचायत, नगर-परिषद और म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के न्यायक्षेत्र के अंतर्गत शहरीकरण के प्रावधान करने में सहूलियत होगी, जो 15वीं वित्तीय कमीशन द्वारा की गई सिफारिशों के अलावा, उन्हे निवेश के लिए राजस्व स्त्रोतों को बढ़ाने की शक्तियों के साथ निहित करेंगे. शहरी विकास और आवास मंत्री ने आगे कहा “हमें नगरों में और भी नए नगर पंचायतों को सूचिबद्ध करके उन्हें शहरी विकास के अंतर्गत लाना होगा. राज्य के विकास के लिए ये अत्यंत ज़रूरी है.”

अगर हमें राज्य के विकास के बार में कारगर कदम उठाने हैं तो सबसे ज़रूरी ये है कि हम राज्य की बड़ी आबादी का पूरी तरह से आजीविका पर निर्भर होना हमें कम करना होगा. इसके लिये पहली शर्त है राज्य का राज्य का शहरीकरण होना.

उपर्युक्त निर्देशों के आधार पर, बिहार सरकार ने उन अर्ध-शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों को शहरी क्षेत्र के तौर पर नोटिफाई करने की अपनी पुरानी पद्धति में बदलाव की शुरुआत की है. इस नीति में महत्वपूर्ण बदलाव था उन क्षेत्रों की पहचान करना, जहां 50 प्रतिशत से कम की आबादी, कृषि संबंधी कार्यों में संलिप्त न हो. इस नई परिभाषा ने अतीत की उस परिभाषा को अपदस्थ कर दिया, जिसके अनुसार एक क्षेत्र को तभी शहरी घोषित किया जाता था, जब उसकी 25 प्रतिशत आबादी कृषि कार्य में संलिप्त हुआ करती थी. कैबिनेट द्वारा सर्वसम्मति से लिए गए निर्णय से पहले बिहार में 200,000 से ज्य़ादा की जनसंख्या वाले 12 ‘नगर निगम’ थे, जिनमें 40,000 से 200,000 तक की आबादी थी. 42 ‘नगर परिषद’ जिनकी आबादी भी 40 हज़ार से दो लाख तक की थी, और 88 नगर पंचायत थे. अब, ‘नगर निगम’ की संख्या 17 निर्धारित की गई है, जिसमें 74 ‘नगर परिषद’ और 191 नगर पंचायत हैं.   

आगे की राह 

बिहार सरकार की ये पहल, एक स्वास्थ्यवर्धक शहरीकरण के प्रतिशत को कायम करने में सहायक होगी और उसके परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधि में आंशिक बढ़ोत्तरी दर्ज भी हो सकती है. हालांकि, बिहार में शहरीकरण की परेशानी काफी जटिल है और इसका किसी विंडो ड्रेसिंग जैसी प्रक्रिया से समाधान नहीं होने वाला है. औद्योगिकीकरण की कमी, जो की निचले स्तर के शहरीकरण और आर्थिक विकास की कमी के पीछे का मूल कारण है, इनसे निपटने के लिए राज्य को एक समुचित सुधार के पैकेज की ज़रूरत है. राज्य के लिए किये गए एक अध्ययन में , विश्व बैंक नें चार मुख्य बिन्दु की पहचान की: इनमें बिहार का निवेश योग्य पर्यावरण; लोक प्रशासन और प्रक्रियात्मक सुधार, ख़ासकर के उन नियमों के विरुद्ध जो निर्णय लेने वाली अथॉरिटी के नीचे के प्रतिनिधिमंडल को बाधित करे; डिज़ाइनों का मज़बूतीकरण खास करके स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में, बजट प्रबंधन और फिस्कल रिफॉर्म; पब्लिक लॉ एंड ऑर्डर (सार्वजनिक कानून और व्यवस्था); आदि के क्षेत्र में, उसके कोर सोशल सर्विस का सफलतापूर्वक निष्पादन करेंगे. 

यूएनडीपी के अनुसार, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (एचडीआई – मानव विकास सूचकांक) की सूची में बिहार का सबसे नीचे रहना अब भी जारी है, और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, हिंसक अपराधों के चार्ट में सबसे ऊपर. राज्य को जनसंख्या बढ़ोत्तरी पर रोक लगानी चाहिए, सामाजिक जाति के लचीलेपन से बाहर आना चाहिए और इसके औद्योगिक विकास में तेजी लानी चाहिए.

हालांकि, बिहार की मुक्ति खुद से ही प्राप्त नहीं की जा सकती है. राज्य को इस बदतर स्थिति से बाहर निकालने के लिए जितने भी प्रयत्न भारत सरकार द्वारा अबतक की गई है वो पर्याप्त नहीं हैं. यूएनडीपी के अनुसार, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (एचडीआई – मानव विकास सूचकांक) की सूची में बिहार का सबसे नीचे रहना अब भी जारी है, और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, हिंसक अपराधों के चार्ट में सबसे ऊपर. राज्य को जनसंख्या बढ़ोत्तरी पर रोक लगानी चाहिए, सामाजिक जाति के लचीलेपन से बाहर आना चाहिए और इसके औद्योगिक विकास में तेजी लानी चाहिए. इन सभी में, शहरीकरण की एक भूमिका है – जनसंख्या को कम करने के लिए, जातिगत कठोरता और आर्थिक विकास को कम करने के लिए. बिहार में विकास और विकास में गति लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों को संयुक्त रूप से काम करना पड़ेगा. निश्चित तौर पर देश कभी भी दोबारा हज़ारों की संख्या में बिहारी अप्रवासियों को गुस्सा, बेबसी और निराशा में अपने-अपने घरों की तरफ़ लौटते हुए नहीं देखना चाहेगा. 

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