Author : Devashish Dhar

Published on May 07, 2019 Updated 0 Hours ago

शहरी सहनशीलता की सबसे ख़ास बात है कि शहरी केंद्रों पर भविष्य के दबावों को समझना और इन दबावों के आघात में बदलने पर निबटने के लिए रणनीतियां बनाना.

शहरी सहनशीलता, वो औज़ार जिसमें है शहरों को बाहरी हमलों से बचाने की ताक़त!

शहरों के बारे में सोचें — वह कैसे बने, फले-फूले, आपस में जुड़े, और सभी मोर्चों पर जबर्दस्त रूप से आगे बढ़े हैं. शहर क्यों बनाए गए इसके अनगिनत कारण थे — औपनिवेशिक महत्वाकांक्षाएं; समुद्री-संपर्क; प्राचीन व्यापार मार्ग, जिसमें गुलामी भी शामिल थी; सीखने के केंद्र; आर्थिक वृद्धि; प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र; और धार्मिक महत्व. इस प्रकार, ऐसे अनेक कारण हैं कि शहर क्यों बने लेकिन इसके कारण बहुत कम हैं कि वे बिना किसी ठोस वजह के अचानक से गायब क्यों हो गए.

राष्ट्रीय और स्थानीय अर्थव्यवस्था में बदलाव, कमजोर ढांचागत सुविधाएं, बढ़ता हुआ प्रदूषण का स्तर और भौतिक सुरक्षा का अभाव किसी भी शहर को धीरे-धीरे पतन की ओर ले जाता है. हालांकि, जलवायु संबंधी घटनाएं शहरों के लिए तबाही ला सकती हैं और मिनटों में उनको धराशायी कर सकती हैं. मुंबई और चेन्नई की बाढ़, नेपाल का भूकंप, उत्तराखंड की बाढ़ ऐसे कुछ उदाहरण हैं जहां हमारे सदियों पुराने शहर लकवाग्रस्त हो गए और वहां जा कर रहना नामुमकिन हो गया है. शहर वाकई में खतरे में हैं. एक अनुमान के मुताबिक, हर साल पूर्वी एशिया के शहरों में लगभग 460 लाख लोग बाढ़ और तूफ़ान के खतरे में हैं. अनेक तटीय शहर, ख़ास-तौर पर एशिया में, समुद्र तल बढ़ने के कारण जल-समाधि के खतरे को देख रहे हैं.[i]

साल 2017 में जब दक्षिण-पूर्व एशिया के शहरों ढाका, मुंबई और चेन्नई में बाढ़ आयी तो 1,000 लोग मारे गए और 450 लाख लोगों को जीविका, घर और सेवाओं का नुकसान उठाना पड़ा.

राष्ट्रीय और स्थानीय अर्थव्यवस्था में बदलाव, कमजोर ढांचागत सुविधाएं, बढ़ता हुआ प्रदूषण का स्तर और भौतिक सुरक्षा का अभाव किसी भी शहर को धीरे-धीरे पतन की ओर ले जाता है.

यह हमें सोचने को मजबूर करता है कि क्यों हमें अपने शहरों की जलवायु सहनशीलता की फ़िक्र करनी चाहिए? इसके चार प्रमुख कारण हैं.

पहला, मानव के इतिहास के पहली बार 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी शहरों में रह रही है. यह संख्या बढ़ती जा रही है और इसलिए आबादी का ज्यादा भाग शहरों की सहनशीलता के अभाव के कारण खतरे में है. शहरों पर किसी भी तरह का आघात ग्लोबल वैल्यू चेन, ऊर्जा आपूर्ति, आवागमन और दूरसंचार के अलावा सूचनाओं के लेन-देन में गड़बड़ी कर देगा.

दूसरा, मोटे तौर पर शहर वैश्विक जीडीपी में तीन-चौथाई का योगदान देते हैं. वे वैश्विक अर्थव्यवस्था को चलाते हैं. हजारों साल से समृद्धि और इंसानों के रहन-सहन के स्तर को बढ़ाने के प्रमुख वाहक रहे हैं. शोधार्थी रहे एडवर्ड ग्लेसर की ‘ट्रायंफ ऑफ़ द सिटी’ ने यह स्थापित किया था कि कैसे शहर हमारी सबसे बड़ी खोज थे और कैसे उन्होंने हमें ज्यादा समृद्ध, स्मार्ट, हरियाली से भरपूर, सेहतमंद और प्रसन्नता से भरपूर जीवन जीने के लायक बनाया. जलवायु का आघात और वास्तविक खतरे की उपेक्षा मानवता की इस आगे बढ़ती प्रगति को धक्का पहुंचा सकते हैं.

तीसरा, सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (संवहनीय विकास लक्ष्य) 2030 ने एक महत्वाकांक्षी एजेंडा निश्चित किया है. शहरी सहशीलता किसी भी एसडीजी की सफलता को पीछे से सहारा देती है. लक्ष्य 1.5 और 13.1 खुल कर सहनशीलता की भूमिका को दर्शाते हैं, ख़ास तौर पर ग़रीब और कमजोर लोग के लिए, लेकिन कोई भी यह अनुमान नहीं लगा रहा है कि सहनशीलता पूरे एसडीजी में एक महत्वपूर्ण भाग है.[ii] उदाहरण के लिए ढांचागत सुविधाओं के लिए 9.1 का लक्ष्य रखा गया है, खाद्य प्रणाली पर 2.4, प्राकृतिक आपदाओं के लिए 11.5 का लक्ष्य. ये सभी लक्ष्य सहनशीलता पर जोर देते हैं. इन एसडीजी को हासिल करने के लिए शहर ही केंद्रबिंदु हैं, जो इसे गहराई से सहनशीलता से जोड़ते हैं.

चौथा, 2016-2040 के दौरान दुनिया भर में शहरी केंद्रों की तरफ से 94 बिलियन डॉलर के ढांचागत निवेश की जरूरत होगी. भारत की ओर ही देख लें — गैस पाइपलाइन, हाईवे, हाई स्पीड रेल, डेडिकेटेड फ्राइट कॉरिडोर, भारतमाला और सागरमाला, आवास, पानी और साफ़-सफाई और मेट्रो यातायात प्रणाली सभी शहरी केंद्रित निवेश हैं. एक अनुमान के मुताबिक भारत के 70% शहरों का निर्माण होना अभी बाकी है.[iii]

कुछ ही पहल ऐसी हो रही हैं जो शहरी सहनशीलता पर केंद्रित हैं जैसे 100 सहनशील शहर, संयुक्त राष्ट्र का इस विषय पर संवाद को मुख्यधारा में लाने का प्रयास और नेशनल डिज़ास्टर रेज़िलिएंस एजेंसी या राष्ट्रीय आपदा सहनशीलता एजेंसी में भी शामिल करना एक बड़ा कदम है. साफ़ तौर पर ये विशेष प्रयास चुनौती से निबटने के लिए जरूरी बदलाव से अभी भी दूर हैं. आपदा संकट में कमी के लिए सेंडई फ्रेमवर्क आपदा के लिए सहनशील ढांचागत सुविधाओं की भूमिका पर बात करता है. यहां तक कि नवम्बर 2016 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपदा संकट में कमी पर एशियाई मंत्रीस्तरीय बैठक का उद्घाटन करते हुए आपदा के प्रति सहनशील ढांचागत सुविधाओं के लिए गठबंधन शुरू करने का आह्वान किया था. देखने में ये सारी योजनाएं काफी अच्छे और सोचे-समझे कदम लग रहे हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि हम इस दिशा में मजबूत, समग्र और महत्वाकांक्षी कदम उठाएं.

शहरी सहनशीलता पर गठबंधन के ऊपर विचार किया जाना चाहिए और उभरते हुए देशों को उस पर ठोस काम करना चाहिए. शहरी सहनशीलता की सबसे ख़ास बात है कि शहरी केन्द्रों पर भविष्य के दबावों को समझना और इन दबावों के आघात में बदलने पर निबटने के लिए रणनीतियां बनाना. भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आपदाओं के खतरे वाले देशों में से एक है और भारत के लिए इस मामले में आगे बढ़ना एक समझदारी भरा कदम होगा. भारत के पास अब मजबूत ताकत का आधार है जिससे सभी पक्ष के लोगों को शामिल करने का विज़न वास्तविकता के धरातल पर उतारा जा सकता है जैसे हमने अंतर्राष्ट्रीय सौर संघ के साथ किया था.

शहरी सहनशीलता की सबसे ख़ास बात है कि शहरी केन्द्रों पर भविष्य के दबावों को समझना और इन दबावों के आघात में बदलने पर निबटने के लिए रणनीतियां बनाना.

गठबंधन से जानकारी का लेन-देन हो सकेगा ताकि देश, शहर, शिक्षा से जुड़ा हुआ समुदाय और निजी क्षेत्र एक दूसरे से सीख सकें. चाइना स्पंज सिटी में निवेश कर रहा है, ऑस्टिन स्मार्ट ग्रिड बना रहा है जो आपदा के समय ऊर्जा उपलब्ध कराएंगे, ओंटारियो पीने के पानी और बाढ़ को घटाने के लिए लो-इम्पैक्ट विकास मानक बना रहा रहा है और बाढ़ की रोकथाम के लिए नीदरलैंड नदियों के लिए कक्ष बना रहा है. इस बारे में जानकारी का लेन-देन करने का ये सही समय है. [iv] इस प्लेटफॉर्म पर तकनीकी जानकारी, खतरे का आकलन, वित्तीय जरूरतें और पूँजी की कीमत, मानकों का निर्धारण, क्षमता निर्माण और पुनर्निर्माण और चीजों को वापिस बहाल करने की प्रणालियां आदि महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा करने की जरूरत होगी.

शहरी सहनशीलता की मांग और चाह दृढ़ता से स्थापित हो चुकी है. अब वास्तव में कदम उठाने का समय आ चुका है ताकि आने वाले उस संकट से बचा जा सके जो अपने शुरुआती संकेत दिखा चुका है. शहर हमारी लिए उस चारदीवारी के समान है जो हमें हमारे बीते हुए कल में जाने से रोकती है और शहरी सहनशीलता वह औज़ार है जिससे हम अपने शहरों को, उनपर होने वाले हमलों और भारी नुकसान से बचा सकते हैं.


[i] Resilient cities — what would it mean for the cities in the Global South?, September 2018, Oxford Policy Managament.

[ii] Resilience in the SDGs: Developing an indicator for Target 1.5 that is fit for purpose, ODI, August 2015.

[iii] Six Big Reasons We Focus on Cities, December 2014.

[iv] Eight Ways Cities Are Building Climate Resilience, International Institute for Sustainable Development.

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