UNSC के अध्यक्ष के तौर पर भारत का लक्ष्य समुद्री सुरक्षा बढ़ाना: वैश्विक रोडमैप युक्त नेतृत्व की कल्पना
अगस्त 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में “समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का एक विषय” पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में खुली बहस हुई. ये एक महत्वपूर्ण अवसर था क्योंकि पहली बार एक उच्च-स्तरीय वैश्विक मंच पर समुद्री सुरक्षा की चर्चा “समग्र रूप से एक विशेष एजेंडे के तौर पर” हुई. पहले भी कई अवसरों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने समुद्री सुरक्षा के अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा की और प्रस्ताव पारित किए हैं लेकिन ऐसे ज़रूरी एजेंडे पर एक उच्च-स्तरीय मंच पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करना और बयान देना एक बदलती हुई नई विश्व व्यवस्था में भू-सामरिक स्थायित्व की रूप-रेखा को आकार देने वाले इस मुद्दे के बारे में बहुत ज़रूरी संतुलन को बनाए रखने के सामरिक महत्व के बारे में बताता है. इस संदर्भ में ये दलील दी जाती है कि ऐसे महत्वपूर्ण समय में जब महासागर सुरक्षा चिंताओं और ख़तरे का सामना कर रहे हैं, तब समुद्री सुरक्षा के लिए व्यापक दृष्टिकोण तैयार करने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के अध्यक्ष के रूप में भारत का नेतृत्व उपयुक्त और सामयिक रहा है.
भारत की तटीय सीमा काफ़ी लंबी है और भारत हिंद महासागर, मलक्का स्ट्रेट और अस्थिर इंडो-पैसिफिक समुद्री गलियारे के महत्वपूर्ण चौराहे पर मौजूद है जो उन्हें पैसिफिक के विस्तृत समुद्र से जोड़ता है.
ये इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में फिर से जीवित करने के अलावा बहुपक्षीय सहयोग और शासन व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता की भावना के साथ उभरती हुई समुद्री चुनौतियों का असरदार ढंग से समाधान करने की ज़रूरत दिखाता है. इससे स्थापित अंतर्राष्ट्रीय क़ानून और ज़्यादा स्वीकार होते हैं और उन्हें प्रोत्साहन मिलता है जो 1982 की संयुक्त राष्ट्र समुद्री क़ानून की संधि (यूएनसीएलओएस) में दिखती है. ये दावा भारत की अनूठी भौगोलिक स्थिति से और भी प्रेरित होता है क्योंकि भारत की तटीय सीमा काफ़ी लंबी है और भारत हिंद महासागर, मलक्का स्ट्रेट और अस्थिर इंडो-पैसिफिक समुद्री गलियारे के महत्वपूर्ण चौराहे पर मौजूद है जो उन्हें पैसिफिक के विस्तृत समुद्र से जोड़ता है. ये सीधे तौर पर भारत की सामरिक भू-राजनीति, सुरक्षा, आर्थिक और समुद्री व्यापार की चिंताओं पर असर डालती है.
हिंद-प्रशांत को लेकर भारत की चिंता
एक-दूसरे पर निर्भरता के समकालीन वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक युग में ये एक तथ्य है कि समुद्री रास्ते बढ़ी हुई सुरक्षा चिंताओं का सामना कर रहे हैं क्योंकि समुद्री डकैती, आतंकवाद और कई देशों के बीच समुद्री विवाद की वजह से वो असुरक्षित हैं. इंडो-पैसिफिक समुद्री क्षेत्र की सामरिक संवेदनशीलता भारत के लिए तात्कालिक चिंता के कारण हैं. इसकी वजह भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और भारत के आस-पड़ोस में चीन के आक्रामक बर्ताव के साथ-साथ समुद्री डकैती और आतंकवाद की वजह से बृहत्तर हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा का ख़तरा है. इसके अलावा दक्षिणी चीन सागर में सैन्य विवाद और विस्तृत पैसिफिक पर इसका अनपेक्षित परिणाम समुद्री सुरक्षा के लिए और भी ख़तरे हैं. इस तरह की निरंतर समुद्री अस्थिरता लंबे समय के लिए ठीक साबित नहीं हो रही है और ये वैश्विक समुद्री व्यापार के रास्तों के लिए गंभीर ख़तरा भी है. इस संदर्भ में भारत की तरफ़ से एक सुरक्षित समुद्री क्षेत्र बरकरार रखने के लिए समन्वित वैश्विक रोडमैप के आह्वान, जो वास्तव में बढ़े हुए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और शासन व्यवस्था में पारदर्शिता से साफ़ तौर पर दिखता है, की व्यापक तौर पर प्रशंसा हुई है. इसे कोविड-19 के बाद उभरती हुई विश्व व्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण माने जाने जाने वाले वैश्विक समुद्री संतुलन को प्रभावी रूप से हासिल करने के लिए समय के अनुकूल और उपयुक्त हस्तक्षेप बताया गया है.
दक्षिणी चीन सागर में सैन्य विवाद और विस्तृत पैसिफिक पर इसका अनपेक्षित परिणाम समुद्री सुरक्षा के लिए और भी ख़तरे हैं. इस तरह की निरंतर समुद्री अस्थिरता लंबे समय के लिए ठीक साबित नहीं हो रही है और ये वैश्विक समुद्री व्यापार के रास्तों के लिए गंभीर ख़तरा भी है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की चर्चा, जो संयुक्त राष्ट्र के सबसे बड़े अंग के द्वारा समुद्री सुरक्षा पर पहली स्वतंत्र रूप से चर्चा है, में भारत ने समुद्री सुरक्षा के मुद्दे पर ज़बरदस्त ढंग से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक गंभीर दृष्टिकोण और दिशा प्रदान की है. भारत ने साझा समुद्री विरासत के व्यापक संरक्षण और इस्तेमाल को सुनिश्चित करते हुए समुद्री क्षेत्र के अभिन्न भाग के रूप में जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं पर ज़ोर डाला है. इस लक्ष्य की तरफ़ क़दम उठाते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के तौर पर पांच सिद्धांतों का प्रस्ताव दिया जो समुद्री सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी हैं. ऐसे सिद्धांत वैध समुद्री व्यापार की बाधाओं को दूर करते हैं, उत्तरदायी समुद्री संपर्क को प्रोत्साहन देते हैं, समुद्री विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के आधार पर निपटाते हैं, प्राकृतिक आपदाओं और ग़ैर-सरकारी किरदारों के द्वारा उत्पन्न ख़तरों का साझा तौर पर सामना करते हैं और समुद्री वातावरण और संसाधनों का संरक्षण करते हैं.
वैश्विक स्तर पर समुद्री गलियारों को मुक्त और खुला बनाने और इस तरह साझा प्रगति को आसान करने में वैध समुद्री व्यापार से बाधाओं को दूर करने की एक बड़ी भूमिका है. पीएम मोदी ने सावधान और सुरक्षित समुद्री क्षेत्र को बढ़ावा देने में भारत के नेतृत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, “आज के संदर्भ में भारत ने इस खुले और समावेशी लोकाचार पर आधारित SAGAR (सिक्युरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रिजन) के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है. इस दृष्टिकोण के द्वारा हम अपने क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा के लिए एक समावेशी संरचना की स्थापना करना चाहते हैं. ये दृष्टिकोण एक सकुशल, सुरक्षित और स्थायी समुद्री क्षेत्र का है. मुक्त समुद्री व्यापार के लिए ये भी ज़रूरी है कि हम एक-दूसरे के नाविकों के अधिकारों का पूर्ण रूप से सम्मान करें.”
विवादास्पद समुद्री झगड़ों को निपटाने के मुद्दे पर भारतीय प्रधानमंत्री ने दावे के साथ कहा कि “उनका समाधान शांतिपूर्ण ढंग से और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक़ करना चाहिए.” उन्होंने आगे ये भी जोड़ा कि “वैश्विक शांति और स्थायित्व को सुनिश्चित करते हुए पारस्परिक विश्वास और भरोसे को बढ़ावा देने के लिए ये बेहद महत्वपूर्ण है.”
विवादास्पद समुद्री झगड़ों को निपटाने के मुद्दे पर भारतीय प्रधानमंत्री ने दावे के साथ कहा कि “उनका समाधान शांतिपूर्ण ढंग से और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक़ करना चाहिए.” उन्होंने आगे ये भी जोड़ा कि “वैश्विक शांति और स्थायित्व को सुनिश्चित करते हुए पारस्परिक विश्वास और भरोसे को बढ़ावा देने के लिए ये बेहद महत्वपूर्ण है.” महत्वपूर्ण बात ये है कि समुद्री सुरक्षा पर भारत के दावे, जिसमें दक्षिणी चीन सागर में चीन की आक्रामक कार्रवाई का अंतर्निहित संदर्भ शामिल है, में प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों और 1982 की संयुक्त राष्ट्र समुद्री क़ानून की संधि (यूएनसीएलओएस) के अनुसार जहाज़ों के आने-जाने की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ाने का अनुरोध अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से किया गया है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के द्वारा भारत की कोशिशों का काफ़ी हद तक समर्थन किया गया है. अमेरिका ने ख़ास तौर पर कहा है कि दक्षिणी चीन सागर और विस्तृत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र अवैध समुद्री दावों को आगे बढ़ाने के लिए ख़तरनाक मुठभेड़ों और भड़काऊ कार्रवाइयों का सामना कर रहे थे. इनका उद्देश्य अवैध समुद्री दावों को आगे बढ़ाना है जिससे पड़ोस के देशों को डराया जाता है और इस तरह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में देशों की संप्रभुता को कमज़ोर किया जाता है.
भारत की ऐतिहासिक पहल
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जिस तीसरे सिद्धांत की भारत ने वक़ालत की वो अलग-अलग देशों के द्वारा साझा तौर पर ग़ैर-सरकारी किरदारों के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं से समुद्र को ख़तरे से निपटना है. इस संदर्भ में हिंद महासागर के विशाल हिस्से में भारत के नेतृत्व की भूमिका सुरक्षा प्रदान करने वाले के तौर पर निर्णायक और प्रभावी रही है. चौथा सिद्धांत समुद्री वातावरण और समुद्री संसाधन को प्लास्टिक के कूड़े और तेल के फैलाव जैसे अनियंत्रित प्रदूषण से संरक्षित करने की ज़रूरत है. भारत का पांचवां सिद्धांत उत्तरदायी समुद्री संपर्क का आह्वान करता है. इसके लिए व्यवहार्य संरचना को शामिल करने की ज़रूरत है जो वैश्विक नियमों और मानकों के विकास के अनरूप समुद्री व्यापार को बढ़ावा देगा.
महत्वपूर्ण बात ये है कि अगस्त 2021 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के तौर पर भारत के द्वारा समुद्री सुरक्षा बढ़ाने की तरफ़ भारत का सामयिक उल्लेख इस मुद्दे पर उसकी पहले की पहल और अनुकरणीय दृष्टिकोण से मेल खाता है. इस मामले की तरफ़ नवंबर 2019 में 14वीं पूर्वी एशिया शिखर वार्ता के दौरान भारत ने इंडो-पैसिफिक महासागर की पहल (आईपीओआई) का प्रस्ताव दिया था जिसे मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रेरित करने के मामले में एक ऐतिहासिक हस्तक्षेप समझा जाता है. इस पहल के तहत समुद्री सुरक्षा के सात स्तंभों पर ध्यान दिया गया था जिनमें समुद्री पर्यावरण; समुद्री संसाधन; क्षमता निर्माण और संसाधन साझा करना; आपदा के जोखिम में कमी और प्रबंधन; विज्ञान, तकनीक और अकादमिक सहयोग; और व्यापार संपर्क और समुद्री परिवहन शामिल हैं. भारत के नेतृत्व में इंडो-पैसिफिक महासागर की पहल का व्यापक स्वभाव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के द्वारा स्थापित पांच सिद्धांतों के साथ पूरी तरह से मेल खाते हैं. इस तरह ये और भी ज़्यादा मज़बूत भू-राजनीतिक संरचना बनती है जिसमें समुद्री सुरक्षा, साझा प्रगति, प्रादेशिक अखंडता और अंतर्राष्ट्रीय नियम आधारित प्रणाली को सुनिश्चित करने की शक्ति और क्षमता है. इस संरचना में समुद्री संपर्क, सामरिक एवं आर्थिक सहयोग और अस्थिर इंडो-पैसिफिक गलियारे में टिकाऊ बुनियादी ढांचे के विकास को शुरू करना शामिल हैं. इस तरह एक मज़बूत रोडमैप पर विचार किया गया है जिसमें बृहत्तर हिंद महासागर क्षेत्र और उससे आगे बेहद ज़रूरी शक्ति के संतुलन और भू-रणनीतिक समानता को स्थापित किया गया है.
इसी तरह भारत के व्हाइट शिपिंग इंफॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर का कई देशों को हाइड्रोग्राफिक सर्वे सपोर्ट और समुद्री सुरक्षा में दिए गए प्रशिक्षिण के साथ क्षेत्रीय और वैश्विक पैमाने पर साझा समुद्री क्षेत्र को बढ़ाने में ऐतिहासिक पहल रहा है.
इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र के सबसे बड़े मंच पर समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने की भारत की वक़ालत बेहद महत्वपूर्ण इंडो-पैसिफिक में स्थायित्व, समुद्री सुरक्षा और प्रादेशिक अखंडता स्थापित करने में बहुपक्षीय सहयोग को प्रोत्साहन देने की तरफ़ उसकी सामरिक भागेदारी के मुताबिक़ है. ये क्वॉड- भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का एक विशेष समूह- की संरचना में भारत की केंद्रीय भूमिका से व्यक्त होता है. क्वॉड में मज़बूत सैन्य सहयोग के साथ समुद्री संपर्क, समुद्री सुरक्षा और व्यापार जैसे क्षेत्रों में सामरिक सहयोग की नई संभावनाओं की पहचान को आगे बढ़ाना शामिल है. इसका उद्देश्य एक मुक्त, खुले एवं समावेशी इंडो-पैसिफिक समुद्री क्षेत्र को सुनिश्चित करना है जहां प्रादेशिक अखंडता और साझा समृद्धि उल्लेखनीय है और जिसमें व्यापक हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सीमावर्ती प्रदेश भी शामिल हैं. इसके साथ-साथ बेहद महत्वपूर्ण हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) में भू-रणनीतिक सहयोग को सहारा देने में भारत का स्थायी और निर्णायक हस्तक्षेप एशिया, अफ्रीका और उससे आगे के क्षेत्र को जोड़ने वाले बृहत्तर हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा प्रदान करने में मज़बूत रूप से पहले जवाब देने वाले के तौर पर भारत की संभावना को और ज़्यादा प्रेरित करता है. इसी तरह भारत के व्हाइट शिपिंग इंफॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर का कई देशों को हाइड्रोग्राफिक सर्वे सपोर्ट और समुद्री सुरक्षा में दिए गए प्रशिक्षिण के साथ क्षेत्रीय और वैश्विक पैमाने पर साझा समुद्री क्षेत्र को बढ़ाने में ऐतिहासिक पहल रहा है.
इस तरह का विश्वसनीय हस्तक्षेप प्रभावशाली ढंग से वैश्विक समुद्री सुरक्षा बढ़ाने की तरफ़ दुनिया की कोशिश के संचालन में भारत की प्रतिबद्धता, शासनकला और क्षमता का प्रदर्शन करता है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की उच्चस्तरीय खुली बहस की अध्यक्षता करते हुए प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी सही ढंग से भारत के दृढ़ संकल्प और निश्चय को दिखाता है. ये दिखाता है कि भारत समुद्री सुरक्षा पर एक मज़बूत संरचना तैयार करने की तरफ़ एक वैश्विक रोडमैप की परिकल्पना में एक अग्रणी भूमिका निभाएगा. ये बताता है कि भारत वैध समुद्री गतिविधियों की रक्षा और उनका समर्थन करते हुए समुद्री क्षेत्र में परंपरागत और ग़ैर-परंपरागत ख़तरों का विरोध करेगा.
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