Author : Ayjaz Wani

Expert Speak Raisina Debates
Published on Apr 28, 2025 Updated 0 Hours ago

पहलगाम आतंकी हमला कश्मीर में अमन बहाली से उपजी पाकिस्तानी सेना की हताशा को दिखा रहा है. कश्मीर के विकास को रोकने के लिए पाकिस्तानी सेना आतंकवाद को फिर से ज़िंदा करने की कोशिश कर रही है

कश्मीर को लेकर पाकिस्तान सेना की बेचैनी बेनकाब

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22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले से सारा देश दुखी और गुस्से में है. पहलगाम कस्बा दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित है. इस आतंकी हमले में 26 बेकसूर सैलानियों की जान गई जबकि कई अन्य घायल हो गए। लश्कर--तैयबा (एलईटी) से जुड़े संगठन रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली है. यह आतंकी घटना फरवरी 2019 के पुलवामा हमले के बाद कश्मीर में हुआ अब तक का सबसे भीषण हमला है. पुलवामा हमले में 40 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे. पहलगाम आतंकी हमले की गूंज पूरे देश में सुनाई दे रही है. सभी धर्म और मज़हब के कश्मीरी लोगों ने इस बर्बर हमले के ख़िलाफ एकजुट होकर प्रदर्शन किया. कश्मीर में पाकिस्तान के आतंकी हमलों की निंदा की. कश्मीर घाटी में पिछले 35 साल से हिंसा और आतंकवाद की घटनाएं हो रही हैं, लेकिन ये पहला मौका है, जब किसी आतंकी हमले के ख़िलाफ पूरे कश्मीर में बंद का ऐलान किया गया. आतंकवाद की निंदा करते हुए विरोध प्रदर्शन हुए. न्याय की मांग बढ़ती जा रही है. घाटी में आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. हमले के विरोध में मोमबत्ती जलाकर जुलूस (कैंडल मार्च) निकाले जा रहे हैं. लोग कह रहे हैं कि ये हमला इस्लामिक शिक्षा के ख़िलाफ है.

पहलगाम हमला पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों और सैन्य प्रतिष्ठान की बढ़ती हताशा को दर्शाता है. इस हताशा की वजह है कश्मीर घाटी में आतंकवाद के लिए समर्थन की कमी, कूटनीतिक अलगाव, घरेलू दबाव और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में लगातार बढ़ रही अशांति और विद्रोह की भावनाएं.

पहलगाम हमला पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों और सैन्य प्रतिष्ठान की बढ़ती हताशा को दर्शाता है. इस हताशा की वजह है कश्मीर घाटी में आतंकवाद के लिए समर्थन की कमी, कूटनीतिक अलगाव, घरेलू दबाव और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में लगातार बढ़ रही अशांति और विद्रोह की भावनाएं. 2019 में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद पिछले पांच-छह साल में कश्मीर में बदलते हालात ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर को छद्म युद्ध की कमान संभालने और पहलगाम हमले में सीधे तौर पर शामिल होने के लिए मज़बूर किया है. मदरसे के छात्र रह चुके असीम मुनीर ने 15 अप्रैल को इस्लामाबाद के एक कार्यक्रम में भाषण देते हुए पाकिस्तानियों से दो-राष्ट्र सिद्धांत को कायम रखने की गुज़ारिश की और दावा किया कि कश्मीर "हमारी गले की नस है, ये हमारी गले की नस रहेगी, हम इसे नहीं भूलेंगे". कश्मीरियों का समर्थन करते रहेंगे. 18 अप्रैल को लश्कर कमांडर सैफुल्लाह मूसा ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के रावलकोट शहर में एक रैली. मूसा ने ऐलान किया कि नई दिल्ली की सरकार कश्मीर में जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) बदलना चाहती है. मूसा ने कहा कि "जिहाद जारी रहेगा, बंदूकें भड़केंगी और कश्मीर में सिर कलम करना जारी रहेगा".

आज के कश्मीर की हकीक़त

2019 में अनुच्छेद 370 और 35- के ख़त्म होने के बाद कश्मीर घाटी के लोग आतंकवाद की छाया से काफ़ी हद तक मुक्त हुए हैं. कश्मीरियों के मन में भी मुख्यधारा से जुड़ने की लालसा बढ़ी. व्यापक भारतीय राष्ट्र और उसकी संस्कृति को आत्मसात करने की आकांक्षा बढ़ी. आतंकी घटनाओं और स्थानीय आतंकवादियों की भर्ती में गिरावट आई. 2021 में इस तरह की 120 घटनाएं हुईं, जो 2024 में घटकर सिर्फ़ 7 रह गई. ये परिदृश्य कश्मीर में पिछली अवधियों की तुलना में एक महत्वपूर्ण अंतर को उजागर करता है. आतंकी संगठनों में स्थानीय युवाओं की भर्ती में गिरावट, कड़ी सुरक्षा व्यवस्था और ओवर ग्राउंड वर्कर्स (ओजीडब्ल्यू) के समर्थन की कमी ने पाकिस्तान को बड़ी संख्या में विदेशी आतंकवादियों को कश्मीर भेजने के लिए मज़बूर किया है. 2024 में जम्मू और कश्मीर में मारे गए 68 आतंकवादियों में से 42 विदेशी थे. ये आतंकवादी एम-4 कार्बाइन असॉल्ट राइफलों, नाईट विज़न गॉगल्स और साथ ही पाकिस्तानी सेना द्वारा आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले अत्यधिक एन्क्रिप्टेड दूरसंचार उपकरणों से लैस थे. घाटी में ज़मीनी समर्थन की कमी और शहरी क्षेत्रों में सुरक्षा बलों का सामना करने में नाकामी ने आतंकवादियों को सुरक्षाबलों से भिड़ने के लिए घने जंगलों का चुनाव करने के लिए मज़बूर कर दिया. 2020 के बाद आतंकवादियों को कश्मीर घाटी से पीर पंजाल रेंज और जम्मू के दक्षिण में स्थानांतरित होने के लिए मज़बूर होना पड़ा. यहां से वो गुरिल्ला रणनीति का इस्तेमाल करते हुए सुरक्षाबलों पर हमला करते हैं और फिर अगले हमले के लिए संगठित होने के लिए पहाड़ी क्षेत्र के घने जंगलों में वापस चले जाते हैं.

2019 के बाद से जम्मू-कश्मीर में बड़ा आर्थिक परिवर्तन हुआ. इसके साथ ही पिछले तीन वर्षों में पर्यटन उद्योग में आए उछाल के कारण जम्मू-कश्मीर की आर्थिक विकास दर 7.8 प्रतिशत हो गई है, जो राष्ट्रीय औसत 7.77 प्रतिशत से थोड़ा ज़्यादा है. आर्थिक विकास दर में इस वृद्धि में पर्यटन क्षेत्र का सबसे ज़्यादा योगदान है. होमस्टे परियोजना जैसी सरकारी पहलों के माध्यम से हज़ारों स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के तहत हर इकाई के लिए विशेष मदद मिलती है.

पाकिस्तान की बढ़ती हताशा

कश्मीर हमेशा से पाकिस्तानी सेना प्रतिष्ठान और पाकिस्तान की सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण नैरेटिव और राजनीतिक रणनीति के रूप में काम करता रहा है. कश्मीर मुद्दे की आड़ में पाकिस्तान अपने यहां राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक कठिनाइयों से प्रभावी तरीके से ध्यान हटाता रहा है. पिछले चार साल में, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में मंदी आई है. वर्तमान समय में पाकिस्तान पर सेना की पकड़ को तहरीक--तालिबान (टीटीपी), बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ) द्वारा चुनौती दी जा रही है. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से टीटीपी ने अपने हमले तेज़ कर दिए हैं. तालिबान शासन के पहले 21 महीनों में पाकिस्तान में आतंकी हमलों में 73 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. खैबर पख़्तूनवा में सबसे ज़्यादा 279.8 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जो 2021 में 572 घटनाओं से बढ़कर 2024 में 2,173 घटनाओं तक पहुच गई. इसी तरह बीएलए और बीएलएफ ने विभिन्न मोर्चों से पाकिस्तानी प्रतिष्ठानों, विशेष रूप से पाकिस्तानी सेना के ख़िलाफ अपने हमले तेज़ कर दिए हैं.

भारत को लेकर कश्मीरियों की धारणाओं में बदलाव की वजह से बदली परिस्थितियों ने पाकिस्तान को भी अपनी रणनीति बदलने पर मज़बूर किया. अब पाकिस्तान प्रॉक्सी आतंकवादी समूहों के माध्यम से अशांति भड़काने और कट्टरपंथ को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.

कश्मीर घाटी में बेहतर होती आर्थिक स्थिति, शांतिपूर्ण माहौल, पर्यटन क्षेत्र में उछाल ने स्थानीय लोगों की धारणा भी बदलनी शुरू कर दी. अब वो भारत के ख़िलाफ रुख़ नरम करने लगे. भारत को लेकर कश्मीरियों की धारणाओं में बदलाव की वजह से बदली परिस्थितियों ने पाकिस्तान को भी अपनी रणनीति बदलने पर मज़बूर किया. अब पाकिस्तान प्रॉक्सी आतंकवादी समूहों के माध्यम से अशांति भड़काने और कट्टरपंथ को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. पाकिस्तान ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भारत विरोधी गतिविधियों को तेज़ कर दिया. अक्टूबर 2024 में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने 2,000 से अधिक चिंताजनक पोस्ट की सूचना दी, जिनमें भारत विरोधी बातें थीं. 2023 में इसी अवधि के दौरान इस तरह की सिर्फ 89 सोशल मीडिया पोस्ट की सूचना दी गई थी. हालांकि, पाकिस्तानी अपनी साज़िश में सफल नहीं हुए, क्योंकि कश्मीर और वहां के लोग 2019 के बाद उनके जीवन में आई खुशियों का लुत्फ ले रहे थे. कश्मीर एक बार फिर से छुट्टी बिताने के लिए देश के सबसे पसंदीदा स्थलों में से एक के तौर पर उभर रहा था. देशी और विदेशी दोनों सैलानियों के लिए कश्मीर पसंदीदा पर्यटक स्थल बन गया था. इतना ही नहीं पाकिस्तानी आतंकवादी समूह और उनके समर्थक भी कश्मीर को लेकर हो रही सकारात्मक बातों को रोक नहीं पा रहे थे. समय-समय पर विदेशी राजनयिकों और गणमान्य व्यक्तियों द्वारा नए कश्मीर की सराहना की जा रही थी.

कश्मीर में बने इस सब सकारात्मक माहौल के बीच पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर ने देश की सुरक्षा चुनौतियों पर निराशा व्यक्त करते हुए और अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए नई चाल चली. उन्होंने द्विराष्ट्र सिद्धांत पर बात करते हुए विभाजनकारी बयानबाजी को फिर से ज़िंदा कर दिया. असीम मुनीर ने आतंकवादी गुटों का मनोबल बढ़ाने के लिए कश्मीर को पाकिस्तान की "गले की नस" भी बताया. ये बयान कश्मीर में कथित जनसांख्यिकीय परिवर्तन की पृष्ठभूमि को लेकर ही था, क्योंकि कुछ ही दिन पहले रावलकोट में आयोजित एक रैली में लश्कर कमांडर सैफुल्लाह मूसा ने इसका समर्थन किया. इन दोनों के बयान टीआरएफ और उसके आतंकवादियों के लिए एक संकेत था. उसी पर काम करते हुए रेजिस्टेंस फोर्स के आतंकवादियों ने लोकप्रिय पर्यटन स्थल को निशाना बनाने, कश्मीर की आर्थिक वृद्धि को नुकसान पहुंचाने और भय का माहौल बनाने के मक़सद से पहलगाम में हमला किया. ये हमला घाटी में आतंकवाद की रणनीति को बनाए रखने के लिए आतंकी भर्ती को प्रेरित करने के लिए पर्याप्त था. इस हमले का एक उद्देश्य छद्म युद्ध को बनाए रखने, हालात सामान्य करने की कोशिशों में बाधा पहुंचाना और जम्मू-कश्मीर का देश के साथ एकीकरण में रुकावट पैदा करना था. आसिफ मुनीर को फरवरी 2019 में पुलवामा हमले का भी जिम्मेदार बताया जाता है. उस वक्त असीम मुनीर पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का नेतृत्व कर रहे थे. अक्टूबर 2018 से जून 2019 तक आईएसआई चीफ रूप में उनके कार्यकाल के दौरान कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि हुई और कश्मीरी युवाओं में कट्टरपंथ बढ़ा.

निष्कर्ष

पहलगाम आतंकी हमले के दौरान पर्यटकों के नाम और उनकी धार्मिक पहचान पूछकर हत्या करना पाकिस्तान की व्यापक रणनीति का एक हिस्सा है. पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान का मक़सद मुख्य रूप से भारतीय समाज के भीतर विभाजन को बढ़ावा देना है. पाकिस्तान का इरादा इस हमले के भारतीय समाज में सांप्रदायिक विभाजन को और भी गहरा करना है. गौर करने वाली बात ये है कि पहलगाम आतंकी हमले में सिर्फ एक कश्मीरी मुसलमान की जान गई. ये कश्मीरी नागरिक भी तब मारा गया, जब उसने एक आतंकवादी से हथियार छीनने की कोशिश की.

ऐसे में भारत के लिए रणनीतिक स्पष्टता हासिल करना महत्वपूर्ण है. भारत को ये देखना चाहिए कि कश्मीरियों के कम समर्थन के बावजूद पाकिस्तान किस तरह प्रॉक्सी वॉर जारी रख पाता है.

पिछले पांच सालों में नई दिल्ली ने कश्मीर में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, जिसमें कश्मीरी युवाओं का 35 साल के संघर्ष के बाद पहली बार आतंकवाद के खिलाफ सड़कों पर उतरना शामिल है. अब दिल्ली को जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवाद से निपटने के लिए पाकिस्तानी सेना की बदनीयती को उजागर करने के लिए कूटनीतिक कोशिशें बढ़ानी चाहिए. एशिया प्रशांत समूह के भीतर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की मदद से के मनी लॉन्ड्रिंग पर रोक लगानी चाहिए. इसके अलावा, भारत को पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी का इस्तेमाल करना चाहिए. इस वक्त पाकिस्तान को कश्मीरी लोगों का समर्थन अपने न्यूनतम स्तर पर है. ऐसे में भारत के लिए रणनीतिक स्पष्टता हासिल करना महत्वपूर्ण है. भारत को ये देखना चाहिए कि कश्मीरियों के कम समर्थन के बावजूद पाकिस्तान किस तरह प्रॉक्सी वॉर जारी रख पाता है.


अयाज़ वानी (पीएचडी) ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

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Ayjaz Wani

Ayjaz Wani

Ayjaz Wani (Phd) is a Fellow in the Strategic Studies Programme at ORF. Based out of Mumbai, he tracks China’s relations with Central Asia, Pakistan and ...

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