Author : Shivani Pandey

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Published on Apr 16, 2024 Updated 0 Hours ago

ब्रिटेन से मिलने वाले पैसों के अलावा इस योजना से रवांडा को और कोई फायदा नहीं होगा. अप्रवासियों की वजह से ब्रिटेन के सामने जो चुनौतियां पैदा हुई हैं, वो समस्याएं अब रवांडा झेलेगा जबकि ब्रिटेन को शरणार्थियों की आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी जिम्मेदारियों से छुटकारा मिल जाएगा. 

ब्रिटेन की रवांडा योजना: शरणार्थी समस्या का समाधान या एक गलत मिसाल?

Source Image: Peter Nicholls/Reuters

उपनिवेशवाद के ख़त्म होने और भूमंडलीकरण की वजह से बड़े पैमाने पर अप्रवासन की जो प्रक्रिया शुरू हुई, उसके पश्चिम देशों में गंभीर दीर्घकालिक प्रभाव दिख रहे हैं. पश्चिमी देशों में अप्रवासन एक बड़ा राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दा बनकर उभरा है. इसे आधार बनाकर कई देशों में दक्षिणपंथी राजनीति लोकप्रिय होती जा रही है. अप्रवासियों के ख़िलाफ लोगों को भड़काकर घरेलू वोटरों का समर्थन हासिल किया जा रहा है.

अमेरिका में होने वाली चुनावी बहसों में अप्रवासन एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है. इसी बीच कनाडा ने 2024 में अपने स्टूडेंट वीज़ा में 35 प्रतिशत की कटौती कर दी है. ऑस्ट्रेलिया ने भी जून 2025 तक अप्रवासियों का कोटा आधा करने का लक्ष्य रखा है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने वादा किया है कि वो भी अप्रवासन पर रोक लगाएंगे. उन्होंने इसकी शुरुआत विवादास्पद रवांडा शरण योजना और रवांडा सुरक्षा (शरण और अप्रवासन) विधेयक से कर दी है.

इस बात पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या ब्रिटेन की रवांडा योजना की ज़रूरत है और इसका शरणार्थियों पर बने इंटरनेशनल प्रोटोकॉल पर क्या असर पड़ेगा.


हालांकि कई अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों, कंजर्वेटिव और लेबर पार्टी ने इस योजना की आलोचना की है लेकिन प्रधान मंत्री ऋषि सुनक अपने रुख पर कायम हैं. इसकी वजह ये है कि ब्रिटेन में अवैध रूप से लगातार बढ़ रही अप्रवासियों की संख्या घरेलू राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन गई है. इस योजना के जो भी मकसद बताए गए हैं, उससे अलग हटकर देखें तो इस बात पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या ब्रिटेन की रवांडा योजना की ज़रूरत है और इसका शरणार्थियों पर बने इंटरनेशनल प्रोटोकॉल पर क्या असर पड़ेगा.


रवांडा योजना क्या है?

2022 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने ब्रिटेन और रवांडा के बीच पांच वर्षीय शरण समझौता किया. अप्रवासन और आर्थिक विकास साझेदारी (रवांडा योजना)के तहत किए गए इस समझौते का मकसद असुरक्षित और अनधिकृत रास्तों से ब्रिटेन में हो रहे अवैध अप्रवासन को रोकना था. खासकर उस अप्रवासन को रोकना जो छोटी नावों के ज़रिए इंग्लिश चैनल (समुद्री मार्ग) के रास्ते से होता है. गैरकानूनी तरीके से ब्रिटेन में घुसने के लिए जब इन अत्यधिक ज़ोखिम वाले रास्तों का सहारा लिया जाता है तो इससे कई बार मौतें भी होती हैं और इस क्षेत्र में मानव तस्करी को भी बढ़ावा मिलता है. यही वजह है कि रवांडा प्लान के तहत ब्रिटेन में गैरकानूनी तरीके से चुके लोगों को प्रवासन की प्रक्रिया के तहत शरण देने और कुछ को वापस रंवाडा भेजने की योजना है.

लेकिन मानवाधिकार के लिए काम करने वाले वकीलों ने इस योजना को ब्रिटेन की अदालतों में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने नॉन रिफॉलमेंट सिद्धांत के उल्लंघन पर चिंता जताई. नॉन रिफॉलमेंट सिद्धांत के मुताबिक अगर कोई नागरिक किसी देश में शरण मांगता है तो फिर उसके और शरण देने वाले देश के बीच एक तरह ये अनुबंध हो जाता है कि उसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर उस देश में वापस नहीं भेजा जाएगा, जहां से वो आया है और जहां जाति, धर्म, नस्ल, राष्ट्रीयता, किसी खास सामाजिक समूह का सदस्य होने या किसी राजनीतिक मत की वजह से उसकी ज़िंदगी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ख़तरा है. मानवाधिकार को लेकर रवांडा का जितना घटिया रिकॉर्ड है, उसे देखते हुए ये कहा जा सकता है कि ब्रिटेन में शरण मांगने वालों को तीसरे देश के तौर पर भी रवांडा में पुनर्वास करना सही नहीं होगा.

कोर्ट के इस फैसले को नाकाम करने के लिए सुनक सरकार ने अपनी "स्टॉप बोट" मुहिम को विधेयक का रूप देने का फैसला किया. सरकार ने रवांडा सुरक्षा (शरण और अप्रवासन)विधेयक पेश करके तीसरे देश के तौर पर रवांडा को शरणार्थियों के लिए सुरक्षित देश घोषित कर दिया. जनवरी 2024 में इस विधेयक को हाउस ऑफ लॉर्ड्स में पहले दौर की मंजूरी मिल चुकी है.

रवांडा प्लान के तहत ब्रिटेन में गैरकानूनी तरीके से आ चुके लोगों को प्रवासन की प्रक्रिया के तहत शरण देने और कुछ को वापस रंवाडा भेजने की योजना है.


छोटी नावों के ज़रिए हर साल हज़ारों शरणार्थी ब्रिटेन में आते हैं. हालांकि ब्रिटेन सरकार ने अभी ये तय नहीं किया है कि वो कितनी शरणार्थियों को रवांडा भेजेगी लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक रवांडा ने शुरुआती पांच साल तक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर हर साल 1,000 शरणार्थियों को लेने पर सहमति दी है.

एक कमज़ोर कोशिश

अप्रवासियों का मुद्दा ब्रिटेन के टॉप-3 चुनावी मुद्दों में से एक है. 2020 तक विदेशी मूल के ब्रिटिश नागरिकों की संख्या 9.4 मिलियन थी. जो ब्रिटेन की कुल आबादी को 14 प्रतिशत है. रवांडा योजना का मकसद अनियमित अप्रवासियों को आने से रोक कर इस समस्या का समाधान करना है. मज़ेदार बात ये है कि अगर साल 2020 को छोड़ दिया जाए तो ब्रिटेन आने वाले अप्रवासियों में गैरकानूनी अप्रवासियों की संख्या 10 प्रतिशत से कम ही रही. ऐसे में ये कहा जा सकता है रवांडा योजना ब्रिटेन में अप्रवासन की मूल समस्या का समाधान नहीं हो सकती. अब जबकि ब्रिटेन में जनवरी 2025 में आम चुनाव होने की उम्मीद है तो रंवाडा योजना का फायदा चुनावी रणनीति में दिख सकता है. ऋषि सुनक की अप्रूवल रेटिंग में जिस तरह की गिरावट रही है, उसे देखते हुए वो रवांडा योजना के तहत खुद को एक ऐसे मज़बूर नेता के तौर पर पेश कर सकते हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे, खासकर अप्रवासन नीति को लेकर बहुत सख्त हैं.


शरणार्थियों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (1951)और 1967 में इसे लेकर बने प्रोटोकॉल का सदस्य होने के नाते ब्रिटेन इस बात के लिए बाध्य है कि उसे उत्पीड़न, यातना और दुर्व्यवहार के शिकार किसी भी शरणार्थी को शरण देनी होगी. रवांडा योजना उसकी इस अन्तर्राष्ट्रीय बाध्यता को बेअसर करने की एक कोशिश है. गैरकानूनी शरणार्थियों में सबसे ज्यादा, करीब 54.19 प्रतिशत, संख्या ईरान, इराक, सीरिया और अफगानिस्तान के लोगों की है. इन देशों में वास्तव में बड़े पैमाने नागरिक और सियासी तौर पर उथल-पुथल है. ऐसे में ब्रिटेन की रवांडा योजना उन शरणार्थियों को शरण मिलने की राह में रुकावट पैदा कर सकती है, जिन्हें वाकई इसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत है और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के तहत जिन्हें शरण देने के लिए ब्रिटेन बाध्य है.

नव उपनिवेशवाद की छाया?

8 दिसंबर 2023 को ब्रिटेन ने रवांडा सरकार को 240 मिलियन पाउंड रकम दी. ये रकम उन शरणार्थियों को लेकर थी, जिन्हें ब्रिटेन से रवांडा पुनर्वसित किया गया. वित्त वर्ष 2024-25 में रवांडा को ब्रिटेन 50 मिलियन पाउंड की अतिरिक्त मदद देगा. ब्रिटेन ने रवांडा के आर्थिक विकास में भी मदद का वादा किया है. शरणार्थियों पर संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त (UNHCR) के असिस्टेंट हाई कमिश्नर ने ब्रिटेन की इस नव उपनिवेशवादी सोच पर निराशा जताई है.

नव उपनिवेशवादी स्कॉलर क्वामे न्क्रुमा ने कई दशक पहले ही इस रणनीति की तुलना उन लोगों से की थी, जिन्हें बिना जिम्मेदारी के सत्ता दी जाती है. ब्रिटेन की रवांडा योजना क्वामे के तर्क को सही ठहराती है. इस योजना के ज़रिए ब्रिटेन अपनी आर्थिक ताकत का इस्तेमाल कर उन कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का बोझ गरीब अफ्रीकी देश को हस्तांरित कर रहा है, जिन जिम्मेदारियों को अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के हिसाब से ब्रिटेन को पूरा करना था. ब्रिटेन से मिलने वाले पैसों के अलावा इस योजना से रवांडा को और कोई फायदा नहीं होगा. अप्रवासियों की वजह से ब्रिटेन के सामने जो चुनौतियां पैदा हुई हैं, वो समस्याएं अब रवांडा झेलेगा जबकि ब्रिटेन को शरणार्थियों की आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी जिम्मेदारियों से छुटकारा मिल जाएगा.

रवांडा योजना उसकी इस अन्तर्राष्ट्रीय बाध्यता को बेअसर करने की एक कोशिश है. गैरकानूनी शरणार्थियों में सबसे ज्यादा, करीब 54.19 प्रतिशत, संख्या ईरान, इराक, सीरिया और अफगानिस्तान के लोगों की है.

रवांडा की क्या तैयारियां?

ब्रिटेन इस बात पर खामोश है कि आखिर कितने शरणार्थियों को रवांडा भेजा जाएगा. इसके साथ ही ये भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि शरणार्थियों की जो भीड़ रवांडा भेजी जाएगी, उसके लिए वो कितना तैयार है. क्या रवांडा के पास पूर्वाग्रह रहित शरणार्थी नीति है? कॉन्गो के साथ चल रहा रवांडा का संघर्ष इन शरणार्थियों पर क्या असर डालेगा? इराक, ईरान, सीरिया और अफगानिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को रवांडा में कितनी सुरक्षा मिलेगी? क्या रवांडा के पास इतनी सामाजिक और आर्थिक क्षमता है कि वो इन शरणार्थियों को शिक्षित कर सकें. उन्हें रोजगार मुहैया कर सके. उन्हें रवांडा के समाज के साथ घुलने-मिलने में मदद कर सके.

रवांडा में विकास के जो भी सूचकांक हैं, उनका अध्ययन करने पर नई कहानी सामने आती है. जनसंख्या घनत्व के मामले में रवांडा पूरे अफ्रीका में दूसरे नंबर पर है. रवांडा में बेरोजगारी दर 16.80 प्रतिशत है (बेरोजगारी दर के मामले में अफ्रीका में बारहवें नंबर पर). ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 125 देशों में ये 96वें नंबर पर आता है. 57 प्रतिशत जनता को ही पीने का साफ पानी उपलब्ध है. जीडीपी के मामले में ये वैश्विक स्तर पर 141वें और अफ्रीका में 30वें नंबर पर है. मानवाधिकार पर नज़र रखने वाले संगठनों ने इस बात पर चिंता जताई है कि रवांडा में राजनीतिक स्वतंत्रता बहुत कम है. विरोधियों का उत्पीड़न होता है. रवांडा योजना पर बहस भी बहुत कम हुई है. ऐसा कहा जा रहा है कि रवांडा के लोग शरणार्थियों को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं. चूंकि रवांडा में नागरिक और राजनीतिक आज़ादी पर अंकुश हैं, इसलिए सरकारी दमन के डर से वो खुलकर अपनी बात नहीं कह पा रहे हैं.

ऐसे में ब्रिटेन की रवांडा योजना पर सवाल खड़े हो रहे हैं. ब्रिटेन ने इस बात पर ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया कि इन शरणार्थियों को रवांडा भेजने का रवांडा की अर्थव्यवस्था पर, वहां के समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा. इस बात का भी ख्याल नहीं रखा गया कि शरणार्थियों का क्या होगा.

दुनिया के लिए एक गलत मिसाल

रवांडा प्लान अपनी तरह की पहली ऐसी योजना है, जहां आर्थिक साझेदारी को शरणार्थियों के हस्तांतरण से जोड़ा गया है. विकसित देश अपनी आर्थिक ताकत का इस्तेमाल कर जिस तरह अप्रवासन की समस्या को विकासशील और गरीब देशों के सिर मढ़ रहे हैं, उससे एक गलत मिसाल स्थापित हो रही है. यूरोप के कुछ और देश भी इस तरह की योजना की तैयारी कर रहे हैं. डेनमार्क, जर्मनी और इटली भी अपने यहां के शरणार्थियों को इसी तरह गरीब देशों में भेजने की योजना बना रहे हैं. हालांकि रवांडा योजना को लागू करने में जिस तरह की देरी हो रही है, उसे देखते हुए रवांडा के राष्ट्रपति ने इसके कार्यान्वयन पर चिंता जताई है. ऐसे में ब्रिटिश पीएम सुनक के पास ये मौका है कि वो इस योजना पर पुनर्विचार करें और कुछ वैकल्पिक समाधान खोजें.

क्या रवांडा के पास इतनी सामाजिक और आर्थिक क्षमता है कि वो इन शरणार्थियों को शिक्षित कर सकें. उन्हें रोजगार मुहैया कर सके. उन्हें रवांडा के समाज के साथ घुलने-मिलने में मदद कर सके.

अप्रवासन एक मानवीय संकट है. अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को इसे लेकर एक दीर्घकालिक रणनीति बनानी चाहिए. ब्रिटिश सरकार ने फ्रांस, इटली, तुर्किये, अल्बानिया के साथ समझौता कर अपनी सीमाओं पर नियंत्रण की जो पहल की है, वो अप्रवासन को लेकर एक सकारात्मक नीति है. ब्रिटिश सरकार को चाहिए कि वो यूरोपियन कमीशन और शरणार्थियों पर यूएन के उच्चायुक्त के अलावा इंटरपोल के साथ मिलकर मानव तस्करी के संगठित अपराध को ख़त्म करें. यूरोपियन यूनियन को भी चाहिए कि इस महाद्वीप के देशों के बीच खुली सीमाएं होने की वजह से जो शरणार्थी संकट खड़ा होता है, उसे रोकने के लिए वो अपने बॉर्डर के नियंत्रण और नियमन के लिए नीतियां बनाएं.

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