Author : Girish Luthra

Published on Oct 26, 2023 Updated 0 Hours ago

यूके द्वारा उठाए गए हालिया क़दम हिंद-प्रशांत के साथ बढ़ते जुड़ाव और इस रणनीति में रफ़्तार भरने का साफ़ इरादा दिखाते हैं.

नई राह पर यूनाइटेड किंगडम: हिंद-प्रशांत को प्राथमिकता

मार्च 2021 में यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने ‘सुरक्षा, रक्षा, और विदेश नीति पर एकीकृत समीक्षा’ जारी की, जिसमें ‘प्रतिस्पर्धी युग में ग्लोबल ब्रिटेन’ को लेकर उसके दृष्टिकोण, प्राथमिकताओं और रणनीतियों को रेखांकित किया गया था. वैसे तो इसमें ब्रिटेन के राष्ट्रीय लक्ष्यों से मेल खाने वाले क्षेत्रों के व्यापक दायरे को शामिल किया गया, लेकिन नीतिगत तौर पर नए रुख़ के नज़रिए से दो पहलू उल्लेखनीय हो जाते हैं. पहला, चीन के साथ सद्भाव और सामंजस्य के पुराने रुख़ से अलग हटना; और दूसरा, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ जुड़ाव को गहरा करने और वहां पहले से ज़्यादा सक्रिय भूमिका निभाने को लेकर उसका निर्णय. इस दस्तावेज़ में ब्रिटेन ने ‘हिंद-प्रशांत झुकाव: एक रूपरेखा’ शीर्षक से एक अलग खंड को शामिल किया, जिसमें ज़ोर देते हुए कहा गया कि “हम हिंद-प्रशांत में सबसे व्यापक और सबसे एकीकृत उपस्थिति वाला यूरोपीय भागीदार बनेंगे.

इस दस्तावेज़ में ब्रिटेन ने ‘हिंद-प्रशांत झुकाव: एक रूपरेखा’ शीर्षक से एक अलग खंड को शामिल किया, जिसमें ज़ोर देते हुए कहा गया कि “हम हिंद-प्रशांत में सबसे व्यापक और सबसे एकीकृत उपस्थिति वाला यूरोपीय भागीदार बनेंगे.

बहरहाल ‘झुकाव’ वाली इस रूपरेखा को संदेह की नज़रों से देखा गया, और कुछ मामलों में इस पर अविश्वास भी जताया गया. इसकी वजह ये है कि पिछले कुछ वर्षों में हिंद-प्रशांत के क्षेत्र को लेकर यूके आम तौर पर अलग-थलग और पीछे हटा हुआ था, और ख़ासतौर से यहां के मसलों को लेकर परिधि पर खड़ा था. इस नई रणनीति के हिसाब से आगे बढ़ने को लेकर यूके की गंभीरता और उसके पास मौजूद क्षमता को लेकर सवाल उठाए गए हैं. इसके बावजूद, यूके सरकार ने कुछ नए क़दम उठाए और हिंद-प्रशांत से जुड़े पूर्व के कार्यक्रमों के साथ आगे बढ़ना शुरू किया. सितंबर 2021 में पश्चिमी प्रशांत पर केंद्रित अनौपचारिक सुरक्षा गठजोड़ ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका) के गठन की घोषणा ने इस बात के सबसे स्पष्ट संकेत दे दिए कि ये ‘झुकाव’ महज़ रणनीति पत्र से कहीं आगे की क़वायद है. इससे ये संकेत भी मिले कि “सुरक्षा, समृद्धि और मूल्यों को चीन की ओर से पेश व्यवस्थागत चुनौतियों का जवाब देने के लिए उसका सामना करने वाली क्षमताओं को बढ़ाने को लेकर” योजनाओं को भागीदारियों और गठजोड़ों के ज़रिए ज़मीन पर उतारा जाएगा. यूके, चीन के ख़िलाफ़ बचावकारी क़वायदों में ऑकस के ज़रिए योगदान देना चाहता है, जिसने उभरती टेक्नोलॉजी और औद्योगिक क्षमताओं में रक्षा सहभागिता का विस्तार करने के लिए पिछले दो वर्षों में अनेक क़दम उठाए हैं.

हिंद-प्रशांत का महत्व

यूके की ‘पैंतरे बदलने’ वाली नीति के कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियां महामारी के चलते आई आर्थिक सुस्ती और रूस-यूक्रेन युद्ध से और जटिल हो गईं. इसके साथ ही वैश्विक और क्षेत्रीय सामरिक वातावरण में भी तेज़ बदलाव आ गए. यूके के लिए इसका मतलब था अमेरिका की अपरिहार्यता बरक़रार रहना, यूरोपीय संघ की अहमियत जारी रहना और हिंद-प्रशांत का महत्व बना रहना. इसी के मुताबिक रणनीति की नए सिरे से व्याख्या की गई. मार्च 2023 में ‘इंटीग्रेटेड रिव्यू रिफ्रेश 2023: रिस्पॉन्डिंग टू ए मोर कंटेस्टेड एंड वोलेटाइल  वर्ल्ड’ के नाम से एक व्यापक दस्तावेज़ प्रकाशित किया गया. इसमें तमाम भौगोलिक क्षेत्रों, सेक्टरों और विषयवस्तुओं पर व्यापक रणनीतिक ढांचे को अपडेट किया गया. ये दस्तावेज़ चीन से जुड़ी चुनौती पर पहले से ज़्यादा मुखर है. हिंद-प्रशांत को पूरी अहमियत देते हुए इसमें ‘झुकाव’ रणनीति की घोषणा के बाद से इस दिशा में हासिल प्रगति को रेखांकित किया गया है. इन कामयाबियों में ऑस्ट्रेलिया, जापान, कोरियाई गणराज्य, न्यूज़ीलैंड, सिंगापुर और वियतनाम के साथ मुक्त व्यापार समझौते शामिल हैं. इसमें गहरे होते अनेक द्विपक्षीय संबंधों, भारत और इंडोनेशिया के साथ भागीदारी रोडमैप, आसियान के साथ संवाद भागीदार के दर्जे, आसियान क्षेत्रीय मंच और ADM प्लस में शामिल होने के लिए किए गए आवेदन, CP-TPP में शामिल होने के लिए वार्ताओं में हो रही प्रगति, रॉयल नेवी द्वारा क्षेत्र में तैनातियों, डिजिटल भागीदारियों और हरित परिवर्तनों पर एक साथ मिलकर काम करने की क़वायदों को रेखांकित किया गया. इसमें स्पष्ट किया गया कि यूरो-अटलांटिक क्षेत्र प्रमुख प्राथमिकता बना रहेगा, और उसके बाद हिंद-प्रशांत पर ज़ोर रहेगा. कुल मिलाकर ‘रिफ्रेश’ दस्तावेज़ ने प्रदर्शित किया कि हिंद-प्रशांत के साथ यूके का जुड़ाव अच्छी तरह से आगे बढ़ रहा है, और इसमें रफ़्तार भरने का स्पष्ट इरादा मौजूद है.

गहराती चीन-विरोधी भावना, हिंद-प्रशांत ढांचे के साथ तालमेल बिठाने को लेकर बढ़ती सर्वसम्मति के साथ-साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती और अप्रत्याशित घटनाओं के ख़िलाफ़ मज़बूत लचीलेपन को लेकर व्यापक सहमतियों ने इस रुझान को पुख्ता किया है.

पिछले ढाई वर्षों में यूके की नई रणनीतिक दिशा मज़बूती से स्थापित हो गई है. इस दौरान कूटनीतिक और सहकारी उपकरणों पर आधारित परिणामों पर ज़ोर रहा है. गहराती चीन-विरोधी भावना, हिंद-प्रशांत ढांचे के साथ तालमेल बिठाने को लेकर बढ़ती सर्वसम्मति के साथ-साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती और अप्रत्याशित घटनाओं के ख़िलाफ़ मज़बूत लचीलेपन को लेकर व्यापक सहमतियों ने इस रुझान को पुख्ता किया है. यूके की संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स की विदेश मामलों की समिति की एक हालिया रिपोर्ट (30 अगस्त को जारी) में हिंद-प्रशांत ‘झुकाव’ रणनीति के उभार और प्रगति का विस्तृत आकलन किया गया है. कार्यान्वयन को लेकर उठाए गए क़दमों को स्वीकार करते हुए इसमें अनेक सिफ़ारिशें की गई हैं. इन प्रस्तावों में- अंतर-सरकारी दृष्टिकोण, दीर्घकालिक उद्देश्यों और परिणामों पर ध्यान केंद्रित करना, क्वॉड में शामिल होने की कोशिश करना, रक्षा सहयोग की ‘स्ट्रैंड-बी’ गतिविधियों के लिए जापान और कोरिया गणराज्य को ऑकस में शामिल होने का न्योता देना, जापान को आख़िरकार ऑकस में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना, ताइवान को CP-TPP में शामिल करने के लिए अभियान चलाना, ताइवान के मुद्दे पर चीन को नाराज़ नहीं करने से जुड़े अत्यधिक सावधानी भरे रुख़ का त्याग करना और अपनी चीन रणनीति के ग़ैर-गोपनीय (अनक्लासिफाइड) संस्करण को जारी करना- शामिल हैं. ये रणनीति उस व्यापक मूल्यांकन से उभरी है जिसके मुताबिक भले ही यूरो-अटलांटिक का क्षेत्र सबसे बड़ी प्राथमिकता हो, लेकिन दीर्घकालिक ख़तरे की आशंका चीन से ही है. यूके की संसद की ख़ुफ़िया और सुरक्षा समिति ने जुलाई 2023 में चीन पर एक और रिपोर्ट पेश की. इसमें इस बात को रेखांकित किया गया है कि अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं की खोज का चीनी दृष्टिकोण, चीन को यूके की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बना देता है. रिपोर्ट में विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का ब्योरा दिया गया है, जिनमें जासूसी, दख़लंदाज़ी, धौंस जमाने वाली कार्रवाइयां, और निवेश शामिल हैं. ग़ौरतलब है कि यूरोप के किसी अन्य देश की तुलना में यूके में चीन से सबसे ज़्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आता है. रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि चीन के ख़िलाफ़ प्रतिक्रिया और एहतियाती कार्रवाइयां धीमी और अपर्याप्त रही हैं, लिहाज़ा उसकी काट के लिए संसाधनों के पर्याप्त आवंटन के साथ पूर्व सक्रियता वाले दृष्टिकोण की सिफ़ारिश की गई है. ये तमाम रिपोर्ट संकेत करते हैं कि हिंद-प्रशांत और चीन को लेकर पूरी तात्कालिकता के साथ योजनाओं को आगे बढ़ाने की ज़रूरत पर राजनीतिक झुकाव बढ़ रहा है. आने वाले महीनों में ‘रिफ्रेश’ में दर्शाई गई प्राथमिकताओं के क्रियान्वयन में बढ़ी हुई गतिशीलता दिखाई देने के आसार हैं.

निष्कर्ष

इसके अलावा, भारत-यूके व्यापक रणनीतिक भागीदारी और भारत-यूके भावी संबंधों पर 2030 रोडमैप के लक्ष्यों को पूरा करने वाली क़वायदों को भी उच्च प्राथमिकता दी जा रही है. इस साझा रोडमैप, यूके की एकीकृत समीक्षा और हिंद-प्रशांत के लिए उसकी योजनाओं को एक सांचे में और पारस्परिक रूप से मज़बूती लाने वाली प्रक्रिया के तौर पर देखना आवश्यक है. फ़िलहाल भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर जारी वार्ताओं पर ध्यान दिया जा रहा है, और इसके जल्द साकार होने की उम्मीद की जा रही है. हालांकि यहां ये रेखांकित करना ज़रूरी है कि 2030 रोडमैप के तहत कार्रवाई की अनेक अन्य महत्वपूर्ण श्रृंखलाओं को भी आगे बढ़ाया जा रहा है.

फ़िलहाल भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर जारी वार्ताओं पर ध्यान दिया जा रहा है, और इसके जल्द साकार होने की उम्मीद की जा रही है.

हिंद-प्रशांत की ओर झुकाव’ से जुड़ी शब्दावली सामने आने के बाद से बहस का मुद्दा भी रही है. इससे कइयों को ये लगता है किसी अन्य अहम इलाक़े की क़ीमत पर हिंद-प्रशांत की ओर ध्यान दिया जाएगा. ‘रिफ्रेश’ दस्तावेज़ में इसका ज़िक्र तो है लेकिन ऐसा लगता है कि इस शब्दावली पर उतना ज़ोर नहीं दिया गया है. विदेशी मामलों की समिति की ताज़ा रिपोर्ट में भी इस शब्दावली के इस्तेमाल से परहेज़ करने की सिफ़ारिश की गई है. भले ही आधिकारिक भाषा में ‘झुकाव’ का प्रयोग बंद हो जाए, लेकिन हिंद-प्रशांत की ओर यूके का भारी रुझान जारी रहने की संभावना है. उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वर्षों में ये प्राथमिकता ज़्यादा स्थायी और पहले से अधिक विश्वसनीय हो जाएगी.


वाइस एडमिरल गिरीश लूथरा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में प्रतिष्ठित फेलो हैं.

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Girish Luthra

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Vice Admiral Girish Luthra is Distinguished Fellow at Observer Research Foundation, Mumbai. He is Former Commander-in-Chief of Western Naval Command, and Southern Naval Command, Indian ...

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