Published on Oct 13, 2023 Updated 0 Hours ago

पूरा इतिहास दिखाता है कि युद्धों में अनुकूलन बेहद अहम होता है, और फ़िलहाल रूस और यूक्रेन के साथ-साथ हमास और इज़रायल के बीच जारी संघर्ष भी इससे अलग नहीं हैं.

यूक्रेन-रूस और हमास-इज़रायल युद्ध: सफलता के लिए अनुकूलन ज़रूरी

यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध ने जंग लड़े जाने और तमाम दांवपेचों को अमल में लाने से जुड़े विभिन्न पहलुओं और आयामों की ओर ध्यान खींचा हैजैसा कि पूरे इतिहास में देखा गया है युद्ध के लिए अनुकूलन बेहद ज़रूरी होता हैमौजूदा वक़्त में रूस और यूक्रेन के साथसाथ हमास और इज़रायल के बीच जारी संघर्ष भी इससे अलग नहीं हैअनुकूलन से जुड़ी ये क़वायद सामरिकपरिचालन संबधीसंगठनात्मक और तकनीकी स्वरूप में सामने  सकती हैबहरहालयहां हम ख़ुद को अनुकूलन के तकनीकी आयाम तक ही सीमित रखते हैंआम तौर पर सबसे अत्याधुनिक और उन्नत टेक्नोलॉजियों पर ही विशेषज्ञों और आम लोगों का ध्यान जाता हैनिम्नतम या कम उन्नत तकनीक उस तरह से ध्यान नहीं खींचती हैं जैसा सबसे उन्नत क्षमताएं करती हैंहमारी आंखों के सामने जारी दो युद्धों– रूसयूक्रेन संघर्ष और हमासइज़रायल टकराव में ऐसी टेक्नोलॉजियों का प्रयोग दिखाई दे रहा हैजो एक मामले में काफ़ी आधुनिक हैंजबकि दूसरे मामले में उतनी उन्नत नहीं हैं. फिर भीक्षमताओं के दोनों उपसमूह चाहे वो प्राथमिक स्तर के हों या उन्नतघातक और प्रभावी साबित हुए हैंसबसे पहले रूसयूक्रेन संघर्ष पर ग़ौर करते हैंजिसमें रूस ने हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम (HIMARS) से लैस यूक्रेन को प्राप्त क्षमता लाभ के प्रति ख़ुद को अनुकूलित कर लिया हैइस प्रणाली का निर्माण अमेरिका में हुआ है और वहां से यूक्रेन को इसकी आपूर्ति की गई हैअत्याधुनिक HIMARS एक मल्टीपल रॉकेट लॉन्च सिस्टम (MRLS) हैजिन्हें लंबी दूरी तक सटीक निशाना लगाकर मार करनेआसानी से लानेले जानेगतिशीलता और कारगर बने रहने की वजहों से जाना जाता है.  

हमारी आंखों के सामने जारी दो युद्धों- रूस-यूक्रेन संघर्ष और हमास-इज़रायल टकराव में ऐसी टेक्नोलॉजियों का प्रयोग दिखाई दे रहा है, जो एक मामले में काफ़ी आधुनिक हैं, जबकि दूसरे मामले में उतनी उन्नत नहीं हैं.

आमतौर परकाफ़ी दूर स्थित रूसी ठिकानों के ख़िलाफ़ अमेरिका द्वारा आपूर्ति की गई HIMARS बेहद प्रभावी साबित हुई हैनतीजतन 2022 के आख़िरी चार महीनों में रूसी बलों को भारी नुक़सान उठाना पड़ाइस तरह उन्हें उत्तरी यूक्रेन में खारकीव इलाक़े से पीछे हटने को मजबूर होना पड़ाएक वक़्त बादजनवरी 2023 की शुरुआत से रूस ने यूक्रेन की ओर से पेश चुनौती के ख़िलाफ़ ख़ुद को अनुकूलित करते हुए IB75 पेनिसिलिन काउंटरआर्टिलरी सिस्टम्स और कामिकाज़ी जर्मेनियम-2 मानव रहित हवाई वाहनों (UAVs) की तैनाती करके जवाब दियादरअसल कामिकाज़ी जर्मेनियम-2 UAVs ईरान द्वारा आपूर्ति किए गए शहीद-136 ड्रोन्स हैंउन्हें कुछ इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि जब तक उसे हमले के लिए कमांड ना मिले वो अपने लक्ष्य पर मंडराते रहते हैंरूस ने इन्हें उपग्रह से निर्देशित किए जाने के लिए अनुकूलित किया हैनतीजतन इन ड्रोनों की मारक क्षमता काफ़ी बढ़ गई हैबाखमुत की लड़ाई मेंजिसमें आख़िरकार रूसियों की जीत हुई थी, IB75 काउंटरआर्टिलरी सिस्टम का प्रयोग किया गया थाइस प्रणाली ने IB75 पेनिसिलिन से हमले का पता लगाने और रोकने की यूक्रेनी क्षमता को बेअसर करने में मदद की थीक्योंकि इसमें रेडार का प्रयोग नहीं किया गया थाअगर रेडार का प्रयोग होता तो इसका पता लगाकर इसे रोका जा सकता थापेनिसिलिन पूरी तरह से स्वचालित है और थर्मोअकॉस्टिक सेंसर्स और ऑप्टिकल कैमरे का इस्तेमाल करता हैजो आर्टिलरी सिस्टम को जवाबी इलेक्ट्रॉनिक उपायों के प्रति प्रतिरोधी बना देता हैसाथ ही ये यूक्रेनी हवाई रक्षा (AD) की पहचान सीमा से काफ़ी नीचे चला जाता हैयूक्रेनी हवाई रक्षा प्रणाली सिर्फ़ 50 किमी या उससे अधिक दूरी पर स्थित लक्ष्यों का ही पता लगा सकती हैइस तरह वो पेनिसिलिन की टोह भी नहीं लगा सकते50 किमी से कम दूरी वाले लक्ष्यों को भेदने की बात तो दूर की कौड़ी है.       

बहरहाल, IB75 की प्राथमिक हद इसका 25 किमी का परिचालन घेरा या दायरा हैइसके मायने ये हैं कि ये लंबी दूरी तक सटीक निशाना लगाकर मार करने की HIMARS की क्षमताओं से कतई मेल नहीं खा सकताऔर ये आमतौर पर शहरी रणक्षेत्रों और घने जंगी माहौलों के लिए उपयुक्त या प्रभावी हैये ज़ाहिर करता है कि रूस बाखमुत पर क़ब्ज़ा करने में क्यों सक्षम हुआपेनिसिलिन के प्रभावी उपयोग के अलावा रूस की सशक्त इलेक्ट्रॉनिक जंगी क्षमताओं ने रेडार पर आधारित यूक्रेनी हवाई रक्षा को काफ़ी हद तक प्रभावी रूप से जाम करने में कामयाबी पा लीकुल मिलाकर इन तमाम क्षमताओं के प्रयोग ने रूसियों को कम से कम आंशिक तौर पर यूक्रेनी बलों को पूरब में और आगे बढ़ने से रोकने में कामयाबी दिलाई हैइसके अलावा हाल ही में रूसियों ने बारूदी सुरंगों से भरपूर अपनी ज़मीनी सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए शहीद-136s या जर्मेनियम-2s जैसे मानवरहित हवाई वाहनों का प्रयोग किया है. शहीद-136s को हथियारों से लैस करने के साथसाथ उन्हें रूस के ओरलान-10 ड्रोनों के भारीभरकम बेड़े के साथ जोड़े जाने से समन्वित होकर तोपों से हमले करना मुमकिन हो सका हैओरलान-10 ड्रोन हवाई टोही पहरेदारों या गश्ती दलों के तौर पर काम करता हैइनके पास एक बड़े भूभाग में निगरानी करने की क्षमता मौजूद होती हैसाथ ही शहीद-136s के साथ मंडराने वाले हथियारों को यूक्रेन की ज़मीनी इकाइयों पर हमले करने की छूट मिल गई और उन्हें रूसी रक्षा इंतज़ामों में घुसपैठ करने से रोका जा सकाइसने रूसी सेना को यूक्रेन के जवाबी हमलों के ख़िलाफ़ भूक्षेत्रों की रक्षा करने में वास्तविक लाभ पहुंचाए हैंजबकि यूक्रेनी बलों को बड़ी चोट पहुंचाने में भी कामयाबी मिली है.

कुल मिलाकर इन तमाम क्षमताओं के प्रयोग ने रूसियों को कम से कम आंशिक तौर पर यूक्रेनी बलों को पूरब में और आगे बढ़ने से रोकने में कामयाबी दिलाई है. इसके अलावा हाल ही में रूसियों ने बारूदी सुरंगों से भरपूर अपनी ज़मीनी सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए शहीद-136s या जर्मेनियम-2s जैसे मानवरहित हवाई वाहनों का प्रयोग किया है.

इसके बावजूदयूक्रेनियों ने भी ख़ुद के तौरतरीक़े विकसित करके अपने आप को अनुकूलित कर लिया हैभले ही ये क़वायद सबसे उन्नत तकनीक के साथ ना होलेकिन वो रूसी ठिकानों पर हमले करने में कामयाब रहे हैंपश्चिम द्वारा आपूर्ति किए गए सटीक और आर्टिलरी हथियारों की कमी को पूरा करने के लिए यूक्रेन ने फर्स्ट पर्सन व्यू (FPV) ड्रोन का इस्तेमाल करके एक नयानवेला और अनोखा तरीक़ा अपनाया हैये ड्रोनचीन जैसी जगहों से हासिल किए गए तैयार घटकों से बनाए गए हैं. FPVs इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग से बचने के लिए एनालॉग सिग्नल्स का प्रयोग करते हैंदरअसल डिजिटल सिग्नल्स इस तरह की जैमिंग के लिहाज़ से सबसे ज़्यादा असुरक्षित होते हैंये सामरिक ड्रोन स्वसंचालित ग्रेनेड लेकर चलते हैंजो रूस के सबसे उन्नत युद्धक टैंक– T-90 के कवच को भी भेद सकते हैंजिसे ज़ाहिर तौर पर भारतीय सेना भी बड़ी संख्या में संचालित करती हैयूक्रेन ने मौजूदा रणभूमि में इन ड्रोनों को इतने प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया हैजिससे यूक्रेनियों के अमेरिका में निर्मित महंगे एंटीटैंक जैवलिन मिसाइलों के प्रयोग से दूर हटने के आसार बन गए हैं.

हमासइज़रायल संघर्ष में अनुकूलन

आख़िर मेंबेहद घातक दक्षता के साथ गाज़ा पट्टी पर इज़रायली सुरक्षा को भेदने में निम्न तकनीक वाले साधनों के इस्तेमाल को लेकर हमास की कामयाबी में अनुकूलता बेहद अहम रही हैगाज़ा पट्टी पर नियंत्रण करने वाला आतंकी संगठन हमास इस हद तक व्यवस्थित रहा कि वो इज़रायल के लाजवाब सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGINT) और कम्युनिकेशंस इंटरसेप्शन की पकड़ से ख़ुद को बचा ले गयाबहुत संभव है कि इज़रायली निगरानी और टोह से बचने के लिए इन आतंकियों ने छोटीछोटी टीमों में काम कियाऔर विस्फोटकों और मोटरचालित हैंड ग्लाइडर्स के मिलेजुले स्वरूप का इस्तेमाल करके उन्हें गाज़ा और इज़रायल को अलग करने वाली ऊंची दीवारों को भेदने के लिए प्रशिक्षण दिया गयाएक बार घुसपैठ पूरा हो जाने के बाद हमले को विनाशकारी क्रूरता वाले प्रभाव से अंजाम दिया गयाजिससे इज़रायली पूरी तरह से हक्केबक्के रह गए.       

इसमें भारतीय सशस्त्र बलों के लिए भी एक सीख छिपी है, जो ना केवल अनुकूलन के स्पष्ट कारण से, बल्कि पाकिस्तान और यहां तक कि चीन जैसे प्रतिद्वंदी को उकसाने में प्रेरणा या मनोबल द्वारा निभाई गई भूमिका के चलते भी है.

युद्ध में अनुकूलन होने या स्थितियों के एक पक्ष के ख़िलाफ़ रहने के बावजूद संघर्ष छिड़ जाने के पीछे का कारण मनोबल हैजीतने की चाहया कम से कम भारी बढ़त हासिल कर चुके शत्रु को सबक़ सिखाने का इरादा ही संघर्ष की शुरुआत करता है और उसे लंबा खींचता हैहालांकि इसमें भारतीय सशस्त्र बलों के लिए भी एक सीख छिपी हैजो ना केवल अनुकूलन के स्पष्ट कारण सेबल्कि पाकिस्तान और यहां तक कि चीन जैसे प्रतिद्वंदी को उकसाने में प्रेरणा या मनोबल द्वारा निभाई गई भूमिका के चलते भी है. इसी प्रेरणा से ये दोनों देश सबसे प्राथमिक और निम्न स्तर की टेक्नोलॉजी का उपयोग करके भारत की रक्षा क़वायदों के लिए चुनौती पेश करते रहते हैंइसी प्रकार वो भारतीय नागरिकोंसैन्य कर्मियों और लक्ष्यों को बड़े पैमाने पर नुक़सान पहुंचाते हैंहालांकि भारत सरकार को उन्नत सैन्य टेक्नोलॉजियों के विकास में निश्चित रूप से निवेश करना चाहिएलेकिन इसके अलावा उसे सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा शोध और विकास (R&D) संगठनों के साथसाथ भारत के निजी क्षेत्र को भी भारतीय सेना की सभी सेवा शाखाओं के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करना चाहिएइससे ऐसी नवाचार युक्त सस्ती टेक्नोलॉजियों का विकास होगा जिन्हें जंग के मैदान में प्रभावी रूप से अमल में लाया जा सकेगा.


 

कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.