अमेरिका के विदेश मंत्रालय के बेंजामिन फ्रैंकलिन कक्ष में 27 सितंबर को विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन गिटार बजाते हुए दिखाई दिए और 1954 में विली डिक्शन द्वारा कंपोज किए गए एवं मड्डी वाटर्स द्वारा प्रस्तुत किए गए गाने ‘Hoochie Coochie Man’ को गुनगुनाते हुए देखे गए. ज़ाहिर है कि ऐसे वक़्त में जब अमेरिका की सरकार शटडाउन की दहलीज़ पर खड़ी है और यूक्रेन-रूस युद्ध समाप्त होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है, तब अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन की “रॉक-एंड-रोल” परफॉर्मेंस, सिर्फ़ उनकी मौज-मस्ती का प्रदर्शन भर नहीं था, बल्कि यह इससे आगे बढ़कर कुछ और था. जी हां, ब्लिंकन अमेरिकी विदेश मंत्रालय की नई वैश्विक संगीत कूटनीति पहल (Global Music Diplomacy Initiative) की शुरुआत के अवसर पर अपनी संगीतमयी प्रस्तुति दे रहे थे. ज़ाहिर है कि अमेरिकी विदेश विभाग की इस पहल का मकसद वैश्विक स्तर पर शांति की स्थापना एवं लोकतंत्र को प्रोत्साहित करने के लिए संगीत को कूटनीति के एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना है, जो कि अमेरिका के व्यापक विदेश नीति के लक्ष्यों के अनुरूप है. वैश्विक संगीत कूटनीति पहल की शुरुआत के इस अवसर पर अमेरिका के दोनों बड़े राजनीतिक दलों के बीच उस वक़्त पारस्परिक सौहार्द भी देखने को मिला, जब हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी के रिपब्लिकन प्रमुख माइक मैककॉल ने विदेश मंत्री ब्लिंकन की सराहना करते हुए, इसकी तुलना कैनेडी युग के दौरान व्हाइट हाउस के प्रदर्शन से की. म्यूज़िक डिप्लोमेसी के माध्यम से शांति स्थापना से संबंधित बिल का मैककॉल ने समर्थन किया था, जिसे पिछले साल दिसंबर में सीनेट में पारित किया गया था. इस विधेयक का मकसद वैश्विक स्तर पर संगीत और कलाकारों के माध्यम से आपसी साझेदारियों को बढ़ावा देना और शांति के प्रयासों को गति देना है. इसके उद्देश्यों में संगीत से जुड़े आदान-प्रदान के कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाने और उन्हें कार्यान्वित करने के लिए निजी सेक्टर के साथ साझेदारी का लाभ उठाने, विदेशों में शांति को प्रोत्साहित करने वाले संगीत से जुड़े आदान-प्रदान वाले कार्यक्रमों की मंज़ूरी देने और युवा संगीतकारों के लिए ज़रूरी आदान-प्रदान वाले कार्यक्रमों को संचालित करने के दौरान आने वाली दिक़्क़तों को दूर करने पर फोकस करना है.
इस विधेयक का मकसद वैश्विक स्तर पर संगीत और कलाकारों के माध्यम से आपसी साझेदारियों को बढ़ावा देना और शांति के प्रयासों को गति देना है.
म्यूज़िक डिप्लोमेसी की धारणा
म्यूज़िक डिप्लोमेसी एक हिसाब से सांस्कृतिक कूटनीति का ही हिस्सा है और उसी की तरह काम भी करती है. कोई भी देश सांस्कृतिक कूटनीति को अमल में लाने के दौरान अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपने सांस्कृतिक साधनों और माध्यमों का उपयोग करने की कोशिश करता है. कल्चरल डिप्लोमेसी में देशों के बीच विचारों, सूचना, कला, भाषा के साथ ही संस्कृति से संबंधित तमाम दूसरी चीज़ों का आदान-प्रदान किया जाता है. कुल मिलाकर इसका मकसद देशों और नागरिकों के बीच पारस्परिक समझ-बूझ को सशक्त करना एवं सॉफ्ट पावर को प्रोत्साहन देना होता है. अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वेट डी. आइज़ेनहावर ने वर्ष 1954 में डांस, थिएटर और म्यूज़िक के क्षेत्र में अमेरिका की सांस्कृतिक उपलब्धियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दर्शकों तक पहुंचाने के लिए एक इमरजेंसी फंड की स्थापना की थी. सांस्कृतिक कूटनीति में जितने भी पहलू शामिल होते हैं, उनमें से संगीत एक सबसे महत्वपूर्ण साधन के रूप में सामने आया है. संगीत के ज़रिए विभिन्न समुदायों के लोग अपने विचारों और अनुभवों को आपस में बेहतर तरीक़े से साझा कर सकते हैं, ज़ाहिर है कि इससे न सिर्फ़ पारस्परिक सांस्कृतिक समझ बढ़ती है, बल्कि सहनशीलता और संतोष की भावना में भी वृद्धि होती है.
अमेरिका हो या फिर कोई अन्य देश, सरकार के कामकाज में म्यूज़िक डिप्लोमेसी का उपयोग कोई नई बात नहीं है. शीत युद्ध के कालखंड में बढ़ते तनाव के बीच अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा प्रायोजित डिजी गिलेस्पी और लुई आर्मस्ट्रांग जैसे प्रभावशाली जैज़ आइकन्स ने सोवियत दर्शकों के समक्ष अमेरिकी संस्कृति को प्रचारित करने में अहम भूमिका निभाई थी, साथ ही दोनों देशों के मध्य एक दूसरे की संस्कृति की पारस्परिक स्वीकार्यता एवं समझ-बूझ को बढ़ाने में भी अहम योगदान दिया था. नरेश फर्नांडीस की प्रभावशाली पुस्तक ताज महल फॉक्सट्रॉट (Taj Mahal Foxtrot) देखा जाए तो न सिर्फ भारत जैसे गुटनिरपेक्ष देश में एक जीता-जागता जैज़ इकोसिस्टम विकसित करने में अमेरिकी जैज़ के प्रभाव का वर्णन करती है, बल्कि राष्ट्र निर्माण में उसकी भूमिका का भी बखान करती है. संगीत, सॉफ्ट पावर का एक बेहतरीन साधन है और यह दुनिया के सामने अमेरिका की उदारवादी छवि प्रस्तुत करने का माध्यम भी है. अमेरिका की संगीत कूटनीति उसके बहुलवादी मूल्यों और विविध पहचानों में अंतर्निहित आज़ाद विचारों वाली, उसकी छवि पेश करने का भी बेहतरीन साधन है. अमेरिका की संगीत कूटनीति वियतनाम युद्ध के दौरान भी देखने को मिली थी, तब शांति का संदेश देने की कोशिशों के अंतर्गत द बीटल्स म्यूज़िकल ग्रुप ने “All You Need Is Love” गीत प्रस्तुत किया था. निसंदेह तौर पर दुनिया का कोई भी हिस्सा हो, अगर वहां संगीतकारों के बीच पारस्परिक रिश्ता होता है, तो उससे न सिर्फ आपसी विश्वास क़ायम होता है, बल्कि एक दूसरे के विचारों और संस्कृति को समझने में भी ख़ासी मदद मिलती है. वर्ष 1906 में जर्मनी से सम्राट ने अमेरिका और जर्मनी के आपसी संबंधों को मज़बूती प्रदान करने के लिए कंडक्टर यानी संवाहक कार्ल मक को ख़ास तौर पर बोस्टन भेजा था. इराक़ी नेशनल ऑर्केस्ट्रा ने वर्ष 2003 में वाशिंगटन डी.सी. में एक म्यूज़िक कंसर्ट प्रस्तुत करके, वहां अमेरिकी जनता का समर्थन हासिल करने की कोशिश की थी.
इस सीडी पैक को इसलिए जारी किया गया था, ताकि जब भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल किसी देश का दौरा करेगा, तो वहां विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को इसे उपहार स्वरूप भेंट किया जाएगा.
दुनिया के साथ बेहतर संपर्क स्थापित करने के लिए भारत द्वारा भी अपनी कूटनीति में हज़ारों साल पुरानी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का लाभ उठाया गया है. भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) के अंतर्गत वर्ष 1950 में इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस (ICCR) की स्थापना की गई थी. इसका मकसद विश्व के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंधों को फिर से जीवित करना और सशक्त करना था. भारत की सांस्कृतिक कूटनीति में बुद्धिस्ट सर्किट और रामायण सर्किट बेहद अहम स्थान रखते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2014 में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा किए जाने के बाद से भारत की सॉफ्ट पावर को वैश्विक स्तर पर अत्यधिक प्रोत्साहन मिला है. इससे पहले, बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन की फिल्में और अभिनेता राज कपूर के आवारा हूं जैसे गाने सोवियत रूस, मध्य पूर्व एवं अफ़ग़ानिस्तान में बेहद लोकप्रिय थे. वर्ष 2008 में विदेश मंत्रालय के पब्लिक डिप्लोमेसी डिवीजन द्वारा सारेगामा (Saregama) के सहयोग से 60-गीतों का सीडी पैक तैयार किया गया था. इस सीडी पैक में 1946 से 2006 तक के हिट बॉलीवुड गाने का संकलन था. बताया जाता है कि इस सीडी पैक को इसलिए जारी किया गया था, ताकि जब भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल किसी देश का दौरा करेगा, तो वहां विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को इसे उपहार स्वरूप भेंट किया जाएगा.
ज़ाहिर है कि संगीत के माध्यम से जो सांस्कृतिक संबंध बनते हैं, उससे ऐसे लोगों को बीच संपर्क का ज़रिया स्थापित होता है, जो सामान्य हालातों में शायद एक दूसरे से मिलजुल नहीं सकते हैं. संगीत किसी भी देश के आदर्शों, आकांक्षाओं और मूल्यों का प्रचार-प्रसार करने का महत्वपूर्ण साधन है. जिस प्रकार से किसी देश का राष्ट्रगान दुनिया के समक्ष उस देश की सशक्त अभिव्यक्ति होती है, ठीक उसी तरह की क्षमता संगीत में भी होती है. इसमें कोई शक नहीं है कि दो देशों के बीच या जातीय समुदायों के बीच संघर्ष या विवाद को कम करने में संगीत कूटनीति एक प्रभावशाली उपकरण साबित हो सकती है.
वर्तमान स्वरूप
आज के दौर की बात करें, तो मिडिल ईस्ट में हिप-हॉप फेस्टिवल्स का आयोजन करके अमेरिका म्यूज़िक डिप्लोमेसी का उपयोग कर रहा है. चीन इसके उलट अपनी नरम छवि को पेश करने के लिए अपने पड़ोसी देशों में ओपेरा का आयोजन कर रहा है. ज़ाहिर है कि जब देशों के द्वारा संगीत कूटनीति का उपयोग किया जाता है, तो इसे भरपूर मीडिया कवरेज भी मिलता है. ऐसे में यह कहना उचित होगा कि संगीत कूटनीति में राजनीतिक व सामाजिक मसलों की ओर भी ध्यान आकर्षित करने की क्षमता होती है, जिससे कहीं न कहीं अंतर्राष्ट्रीय नीति निर्धारण पर भी असर पड़ता है. आयरलैंड के रॉक बैंड U2 के प्रमुख सिंगर बोनो ने अपने संगीत कंसर्ट्स को उन्हीं देशों और शहरों में आयोजित किया था, जहां पर G7 या G8 समूहों की बैठकें आयोजित की गई थीं. इस दौरान आयरिश गायक बोनो ने अफ्रीकी लोगों की परेशानियों और पीड़ा को लेकर दर्शकों एवं सरकारों, दोनों के ही बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने मंच का लाभ उठाया और इस प्रकार से उन्होंने सफलतापूर्वक अफ्रीका को वित्तीय ऋण से राहत दिलाने में योगदान दिया. भारत में हाल ही में संपन्न हुए G20 सम्मेलन में सरकार द्वारा देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को विदेशी मेहमानों के समक्ष बखूबी प्रस्तुत किया गया. जिसमें कोणार्क चक्र, नटराज की कांस्य प्रतिमा की प्रस्तुति के साथ ही भारतीय पारंपरिक शिल्प से प्रेरित G20 जीवनसाथी कार्यक्रम में मनीष मल्होत्रा के संग्रह प्रमुख थे. इसके अलावा, नई दिल्ली में दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्षों के पहुंचने पर भारत के विभिन्न प्रदेशों के लोक कलाकारों द्वारा लोकनृत्य भी प्रस्तुत किए गए थे.
आज के दौर की बात करें, तो मिडिल ईस्ट में हिप-हॉप फेस्टिवल्स का आयोजन करके अमेरिका म्यूज़िक डिप्लोमेसी का उपयोग कर रहा है. चीन इसके उलट अपनी नरम छवि को पेश करने के लिए अपने पड़ोसी देशों में ओपेरा का आयोजन कर रहा है.
अमेरिका के नए ग्लोबल म्यूजिक डिप्लोमेसी इनिशिएटिव में कई कार्यक्रम और पहलें शामिल हैं. जैसे कि अमेरिकन म्यूजिक मेंटरशिप प्रोग्राम (इसके अंतर्गत वैश्विक स्तर पर ऐसे संगीत पेशवरों को अमेरिका में मेंटरशिप एवं नेटवर्किंग के अवसरों के लिए लाया जाएगा, जो अपने करियर के मध्य में हैं, यानी अच्छा-ख़ासा वक़्त संगीत की दुनिया में बिता चुके हैं.), कला और विज्ञान में फुलब्राइट-कैनेडी सेंटर विजिटिंग स्कॉलर अवार्ड, साथ ही दुनिया भर में अंग्रेजी भाषा सीखने को प्रोत्साहित करने के लिए अमेरिकी संगीत और गीतों को दुनिया के तमाम देशों में बच्चों की कक्षाओं में शामिल करने का प्रयास. नई वैश्विक संगीत कूटनीति पहल की शुरुआत के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में क्विंसी जोन्स को विश्व स्तर पर संगीत के ज़रिए शांति को बढ़ावा देने के लिए पहला शांति पुरस्कार प्रदान किया गया. अमेरिका की इस संगीत कूटनीतिक पहल के तहत कई क़दम उठाए जाएंगे. जैसे कि प्रत्येक महाद्वीप से 60 अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को गहन संगीत प्रशिक्षण के लिए वर्चुअल माध्यम से जोड़ा जाएगा और घाना एवं नाइजीरिया के संगीतकार मिलजुलकर म्यूज़िक कंपोज करने के लिए एक साथ आएंगे और चर्चा करेंगे कि संगीत सामाजिक उद्यमिता पहल के माध्यम से एकता को किस प्रकार प्रोत्साहित कर सकता है. इसके साथ ही संगीत के ज़रिए विवादों और तनावों को दूर करने में विशेषज्ञता रखने वाले अमेरिकी हिप-हॉप कलाकारों द्वारा नाइजीरिया की यात्रा की जाएगी और 10 अमेरिकी बैंड 30 देशों की यात्रा कर, वहां अपने संगीत का जादू बिखेरेंगे, इसके अलावा अमेरिकी कला के राजदूत (arts envoys) मिडिल ईस्ट एवं चीन की यात्रा करेंगे.
निष्कर्ष
अमेरिका की इस पहल से ऐसा लगता है कि वह अपनी छवि को बदलने के साथ ही सॉफ्ट पावर को अधिक से अधिक बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है. एक वक़्त ऐसा था, जब पूरी दुनिया में अमेरिकी पॉप कल्चर का बोलबाला था. हालांकि, देखा जाए तो, जब से इंटरनेट का उपयोग बढ़ा है और ग्लोबलाइज़ेशन का दौर शुरू हुआ है, तब से ज़्यादातर देशों ने वैश्विक स्तर पर अपना सांस्कृतिक प्रभाव डालना शुरू कर दिया है. हाल-फिलहाल में ही दक्षिण कोरिया के BTS और K-dramas जैसे प्रख्यात बैंड्स ने दुनिया भर के युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया है. तुर्किये का “Ertugrul” नाम का टेलीविजन ड्रामा ज़बरदस्त हिट है और इसने दुनिया भर के मुसलमानों के बीच ख़ासी लोकप्रियता हासिल की. हाल ही में रिलीज़ की गई चीनी ब्लॉकबस्टर फिल्म “बॉर्न टू फ्लाई” ने भी ख़ासी लोकप्रियता हासिल की है. सैन्य आधुनिकीकरण की पृष्ठभूमि पर आधारित इस फिल्म में चीनी वर्चस्व के विचार को प्रदर्शित किया गया है, साथ ही दक्षिण चीन सागर में चीन के विरुद्ध अमेरिका की कथित आक्रामकता को पेश करने की कोशिश की गई है. ऐसी परिस्थितियों के बीच अमेरिका का म्यूज़िक डिप्लोमेसी के ज़रिए वैश्विक स्तर पर युवाओं को एकजुट करने की दिशा में किया गया यह प्रयास काफ़ी दूरदर्शी प्रतीत होता है. इतना ही नहीं अमेरिका द्वारा शुरू की गई म्यूज़िक डिप्लोमेसी में जिस प्रकार से अफ्रीकी देशों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, उसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि वर्तमान में अफ्रीकी संघ यानी अफ्रीकी देशों का रणनीतिक महत्व ख़ासा बढ़ गया है और इसके चलते देर से ही सही, लेकिन ज़्यादातर देश अब उनके साथ अपने संबंध प्रगाढ़ करने में और उन्हें अपने खेमे में करने की कोशिशों में जुट गए हैं. ऐसे हालातों में जब वैश्विक स्तर पर अमेरिका का प्रभुत्व संभावित रूप से ढलान पर है, चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है और कुछ मध्यम आय वाले देशों द्वारा जिस प्रकार से अपनी रणनीतिक स्वायत्ता को प्रदर्शित किया जा रहा है, तब दुनिया भर में इस सोच को बढ़ावा मिला है कि देशों के लिए अपने मुताबिक़ कूटनीतिक नतीज़ों को हासिल करने में संगीत एक सशक्त माध्यम सिद्ध हो सकता है.
अमेरिका के ग्लोबल म्यूजिक डिप्लोमेसी इनिशिएटिव में आने वाले दिनों में उसके विभिन्न सहयोगियों और साझेदारों को शामिल किया जाना चाहिए. ख़ास तौर पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के सहयोगियों और ग्लोबल साउथ के अधिक से अधिक देशों को इस पहल में ज़रूर शामिल किया जाना चाहिए. जापान, भारत और दक्षिण कोरिया जैसे एशियाई देशों में संगीत की जड़ें बहुत गहरी हैं और इसकी एक समृद्ध विरासत मौज़ूद है. पिछले वर्ष भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा था कि अलग-अलग देशों के संगीत में उनकी दिलचस्पी ने ही कूटनीति में रुचि जगाई. भारत की समृद्ध शास्त्रीय संगीत की परंपरा के साथ ही यहां का लोक संगीत और फिल्मों पर आधारित लोकप्रिय संगीत कूटनीति के लिहाज़ से एक ताक़तवर उपकरण साबित हो सकता है. हालांकि, एक सच्चाई यह भी है कि म्यूज़िक डिप्लोमेसी की भी अपनी सीमाएं हैं और भारत-पाकिस्तान के पारस्परिक संबंधों में इन सीमाओं को बेहतर तरीक़े से देखा जा सकता है. उल्लेखनीय है कि भारत और पाकिस्तान के कलाकारों, गायकों और संगीतज्ञों के बीच प्रगाढ़ संबंध होने के बावज़ूद, दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में न तो कभी मधुरता आ पाई और न ही कभी आम सहमति ही बन पाई.
मनीष दभाड़े जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ में डिप्लोमेसी पढ़ाते हैं, साथ ही वे एक स्वतंत्र थिंक टैंक द इंडियन फ्यूचर्स के संस्थापक हैं.
सुभ्रांग्शु प्रतिम सरमाह द इंडियन फ्यूचर्स, गुवाहाटी के निदेशक हैं.
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