Published on Apr 06, 2018 Updated 0 Hours ago

क्षेत्रीय मीडिया का नजरिया एनसीआर से छपने वाले अखबारों से ज्यादा नकारात्मक है।

पूर्वोत्तर के नजरिए से चीन को समझने की कोशिश: असम ट्रिब्यून और अरुणाचल टाइम्स का सम्पादकीय विश्लेषण
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चीन और भारत के दैनिक समाचार पत्र।

यह लेख The China Chronicles श्रृंखला का 52 वीं हिस्सा है।


भारत और चीन के बीच पर्याप्त समझ का अभाव लम्बे अर्से से उनके संबंधों को प्रमुख रूप से प्रभावित करता आया है। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के प्रोजेक्ट ‘अंडरस्टेंडिंग चाइना’ का उद्देश्य इस मामले की पड़ताल करना है। इस प्रोजेक्ट के तहत पहले चरण में भारत में राष्ट्रीय प्रिंट मीडिया द्वारा चीन के बारे में आमतौर पर प्रचारित की जाने वाली धारणा की पड़ताल की गई। इस अध्ययन के तहत दूसरे चरण में चीन के बारे में पूर्वोत्तर भारत के नजरिये को समझने के लिए चीन से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों से प्रकाशित होने वाले दो समाचार पत्रों — द असम ट्रिब्यून और द अरुणाचल टाइम्स पर फोकस किया गया। यह विश्लेषण इस समझ को संभव बनाता है कि भारत के क्षेत्रीय मीडिया की धारणा राष्ट्रीय समाचार पत्रों के अनुरूप ही है।यह विश्लेषण 2012 से लेकर 2014 तक के आंकड़ों पर आधारित है। इस दौरान द अरुणाचल टाइम्स का स्रोत उसके वैब संस्करण रहे, जबकि द असम ट्रिब्यून का अध्ययन उसकी प्रतियों के आधार पर किया गया।

इन समाचार पत्रों के ​कुल 89 सम्पादकीय किसी ने किसी रूप में चीन से संबंधित थे (द अरुणाचल टाइम्स — 31;द असम ट्रिब्यून — 58)। उनके सम्पादकीयों के मुख्य विषय को मापदंड मानते हुए लेखकों ने अपनी विषयवस्तु को इन श्रेणियों : ‘चीन एक उभरती ताकत’, ‘भारत-चीन सीमा’, ‘पारिस्थितिकी’, ‘सम्पर्क’ और ‘चाइना डोमेस्टिक’ में बांटा ।

अगर द अरुणाचल टाइम्स ने 2014 में राष्ट्रीय प्रेस के अनुरूप सबसे ज्यादा सम्पादकीय प्रकाशित किए, तो द असम ट्रिब्यून ने 2013 में ऐसा ही किया। द असम ट्रिब्यून ने 2013 में प्रकाशित अपने ज्यादातर सम्पादकीयों में ‘चीन एक उभरती ताकत’ को अपना प्रमुख विषय चुना (58 में से 33 सम्पादकीय)। जबकि दूसरी ओर द अरुणाचल टाइम्स ने 2014 में ‘भारत-चीन सीमा’ को ज्यादा महत्वपूर्ण मामला (22 में से 31 सम्पादकीय) मानते हुए सर्वाधिक सम्पादकीय प्रकाशित किए।

‘चीन एक उभरती ताकत’ के प्रति द असम ट्रिब्यून की बेतहाशा चिंता का कारण शायद चीन की बढ़ती आर्थिक और सैन्य शक्ति तथा ब्रह्मपुत्र जल बंटवारे के विवाद पर उसके संभावित प्रभाव के प्रति उसकी संवेदनशीलता का प्रतिबिम्ब था।

असम के विपरीत, अरुणाचल प्रदेश की सरहद चीन से सटी है, जिसे चीन हमेशा विवादित मानता आया है। ऐसे में कोई हैरानी की बात नहीं कि द अरुणाचल टाइम्स इस मामले को अपने पाठकों के समक्ष किसी भी अन्य विषय की तुलना में ज्यादा बार उठाना चाहेगा। राष्ट्रीय प्रेस के अनुरूप ही, ये क्षेत्रीय मीडिया भी 2013 और 2014 में चीन के प्रति ज्यादा और बहुत अधिक नकरात्मक दृष्टिकोण रखता रहा तथा पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में चीन द्वारा की गई घुसपैठों को नियमित तौर पर रिपोर्ट करता रहा।

द अरुणाचल टाइम्स और द असम ट्रिब्यून दोनों ने ही अध्ययन की तीन साल की अवधि के दौरान चीन के बारे में बहुत ज्यादा संख्या में नकात्मक सम्पादकीयों का प्रकाशन किया। द अरुणाचल टाइम्स ने 31 में से मात्र 9 सम्पादकीय (29.03 प्रतिशत) चीन के प्रति सकारात्मक धारणा वाले प्रकाशित किये, जबकि चीन के प्रति नकात्मक धारणा रखने वाले 22 सम्पादकीय (70.96 प्रतिशत) प्रकाशित किए। द असम ट्रिब्यून ने चीन के बारे में उससे भी कम उदारता दिखाई: उसमें प्रकाशित सकारात्मक सम्पादकीयों की संख्या महज 25.86 प्रतिशत (58 में से 15) रही, जबकि 74.13 प्रतिशत सम्पादकीय (58 में से 43) चीन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले थे। इसके विपरीत, ORF द्वारा इससे पहले पांच राष्ट्रीय समाचार पत्रों पर किए गए अध्ययन में चीन के प्रति नकारात्मक और सकारात्मक दृष्टिकोणों का अंतर बहुत कम पाया गया।

लेखक जानना चाहते थे कि क्या सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह की धारणाओं को ‘प्रबल’, ‘मध्यम’ और ‘कमजोर’ संस्करणों में वर्गीकृत किया जा सकता है। जब इनके तहत आंकड़ों की परख की गई, तो हमने पाया कि द अरुणाचल टाइम्स के नकारात्मक सम्पादकीय, चीन के बारे में उसके सकारात्मक बिंदुओं से कहीं ज्यादा दावे के साथ लिखे गए। वहीं दूसरी ओर, द असम ट्रिब्यून की सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह की धारणाओं का रुख ज्यादा मध्यम रहा है, हालांकि नकारात्मक सम्पादकीयों में कुछ हद तक प्रबलता तथा सकारात्मक सम्पादकीयों में कुछ कमजोर रुख पाया गया। पूर्वोत्तर के दो अलग राज्यों से छपने वाले इन दोनों समाचार पत्रों की धारणाओं में स्पष्ट अंतर होने का कारण शायद यह है कि वे चीन की ओर से संभावित खतरे को अलग-लग संदर्भ में देखते हैं।

अरुणाचल प्रदेश के लिए यह खतरा उसके वजूद से जुड़ा है, क्योंकि चीन उसकी भारतीय पहचान को ही चुनौती देता है और इसलिए, यह खतरा लगातार और हमेशा बना रहता है; असम के लिए, चीन द्वारा किया जाने वाला अपनी ताकत का प्रदर्शन ऐतिहासिक कारणों से असुविधाजनक है, क्योंकि 1962 के युद्ध की उसकी यादें आज भी ताजा हैं।

इसी कारण से, पूर्वोत्तर भारत के दो अलग-अलग राज्यों से प्रकाशित होने वाले इन दोनों समाचार पत्रों के चीन के बारे में अलग-अलग तरह के संदर्भ हैं और इसीलिए वे चीन के बारे में अलग-अलग विषयों पर बल देते हैं। द अरुणाचल टाइम्स सीमा से जुड़े मामले को भारत और चीन के बीच सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा मानता है और इसीलिए वह ज्यादातर चागलाम और अन्जॉ जिलों में सीमा पर बार-बार होने वाली घुसपैठ की घटनाओं के बारे में लिखता रहा है, भारत द्वारा सीमा पर बुनियादी ढांचे के बेहतर बनाने तथा सीमा व्यापार को बेहतर ढंग से संभालने की दलील देता आया है। यूं तो ‘भारत-चीन सीमा’ विषय पर लिखे गए ज्यादातर सम्पादकीयों में सीमा पर होने वाली घुसपैठ पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिनके लिए ‘घुसपैठ’ या ‘चीन की विस्तारवादी मानसिकता’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इन सम्पादकीयों में दोनों पड़ोसी देशों के रिश्तों में सुधार की भी आशा व्यक्त की गई होती है। इनमें से बहुत से सम्पादकीयों की महत्वपूर्ण विशेषता अरुणाचल प्रदेश के जरिए सीमा व्यापार करने की सिफारिश थी।

दूसरी ओर, द असम ट्रिब्यून ने चीन की बढ़ती ताकत, दक्षिण एशिया क्षेत्र में उसके बढ़ते शक्ति प्रदर्शन तथा भारत के लिए उसके संभावित परिणामों पर ज्यादा फोकस किया है। इस बात पर गौर करना दिलचस्प होगा कि द असम ट्रिब्यून ने प्रमुख रूप से लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ पर गौर किया है। द असम ट्रिब्यून में ‘क्षेत्र का निर्विवाद मुश्किले दूर करने वाला’ या ‘दुनिया भर में अधिक प्रभाव’ या ‘अविश्वसनीय आर्थिक एवं अंतर्राष्ट्रीय रुतबा’ जैसे वाक्यों से चीन की बढ़ती ताकत जाहिर होती है। ‘चीन एक उभरती ताकत’ वर्ग के तहत दो महत्वपूर्ण उप-विषय या सब-थीम्स: भारत-चीन भूसामरिक स्पर्धा और चीन का भारत के पड़ोस में बढ़ता प्रभाव हैं। इस संदर्भ में इस बात का उल्लेख करना बेहतर होगा कि इस समाचार पत्र में ब्रह्मपुत्र जल बंटवारे का मामला ‘पारिस्थितिकी’ विषय के तहत बेहद महत्वपूर्ण उप-विषय बनकर उभरा है।

चीन से संबंधित मामलों पर इन समाचार पत्रों की समझ को बेहतर ढंग से जानने के लिए लेखकों ने क्षेत्रीय मीडिया का अध्ययन करते हुए उसी तरीके से अटेन्शन स्कोर‘ एकत्र किएजिसका इस्तेमाल राष्ट्रीय मीडिया के अटेन्शन स्कोर‘ को समझने के लिए किया गया था।

प्रत्येक समाचार पत्र के लिए अटेन्शन स्कोर की गणना उसके द्वारा इन तीन बरसों में प्रत्येक 365 दिनों में प्रकाशित सम्पादकीयों की संख्या को 100 से गुणा करने पर प्राप्त हुए मानकीकृत आंकड़े या स्टेंडर्डाइज्ड स्कोर के आधार पर की गई। हमारा अध्ययन दर्शाता है कि तीन साल की अवधि में, द अरुणाचल टाइम्स चीन से संबधित मामलों के संबंध में लगातार अपने ध्यान में बढ़ोत्तरी करता आया है, 2014 में उसका स्कोर सर्वाधिक (4.93)रहा। द असम ट्रिब्यून का अटेन्शन स्कोर वैसे तो 2012 (2.46) से बढ़कर 2013 में (7.39) हो गया, लेकिन 2014 (6.02) में इसमें मामूली कमी देखी गई, लेकिन फिर भी वह द अरुणाचल टाइम्स से अधिक बना रहा। द असम ट्रिब्यून के ध्यान या अटेन्शन में 2012 और 2013 के बीच हुई बढ़ोत्तरी के अलावा, दोनों समाचार पत्रों ने चीन से संबंधित मामलों पर लगातार दिलचस्पी बनाए रखी है। क्षेत्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित सम्पादकीय निश्चित रूप से यह विचार प्रकट करते हैं कि चीन के साथ ऐतिहासिक और समसामयिक समस्याओं वाले दो सीमावर्ती राज्यों का प्रतिनिधि​त्व करने के बावजूद वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन द्वारा अपनी ताकत के प्रदर्शन से प्रभावित नहीं हैं। इसलिए द असम ट्रिब्यून और द अरुणाचल टाइम्स द्वारा पड़ोस पर दिए गए ध्यान का स्तर राष्ट्रीय समाचार पत्रों के अनुरूप ही रहा। एक ने ध्यान के मामले में इंडियन एक्सप्रेस (राष्ट्रीय दैनिकों में उसका स्कोर सबसे ज्यादा 4.84 रहा) को भी छोटे से अंतर से पीछे छोड़ दिया, तो दूसरे ने द हिंदु के स्कोर से बराबरी की। सीमावर्ती क्षेत्रों से प्रकाशित होने के बावजूद क्षेत्रीय प्रेस को ऐसा नहीं लगता कि उन्हें चीन के बारे में बहुत ज्यादा चिंता करने की जरूरत है।

कुछ तुलनात्मक टिप्पणियों से हम अपनी बात समाप्त करते हैं। चीन के बारे में क्षेत्रीय मीडिया का नजरिया राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र(एनसीआर) से छपने वाले अखबारों से ज्यादा नकारात्मक है। जहां तक विषयों का संबंध है, तो राष्ट्रीय मीडिया मजबूत सम्पर्क तथा आर्थिक और पारिस्थितिकी संबंधी मामलों पर सहयोग के जरिए भारत-चीन संबंधों में सुधार लाने की जरूरत के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता दर्शाता है। अध्ययन में शामिल किये गए क्षेत्रीय अखबारों के सम्पादकीय विषयों में यह बात नहीं देखी गई। दूसरा, उल्लेखनीय है कि चीन के बारे में केवल राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया की धारणाओं में ही अंतर नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय धारणाओं में भी अंतर है। दोनों समाचार पत्र दो अलग-अलग पूर्वोत्तर राज्यों से ताल्लुक रखते हैं और उनके महत्व के विषय भी अलग हैं तथा साथ ही साथ चीन को नकारात्मकता या सकारात्मकता के साथ प्रदर्शित करने की उनकी प्रबलता में भी अंतर है। तीसरा, क्षेत्रीय समाचार पत्रों के सम्पादकीय निश्चित रूप से यह विचार प्रकट करते हैं कि चीन के साथ ऐतिहासिक और समसामयिक समस्याओं वाले दो सीमावर्ती राज्यों का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन द्वारा अपनी ताकत के प्रदर्शन से प्रभावित नहीं हैं। चीन के साथ भौगोलिक निकटता वाले क्षेत्रों से छपने के बावजूद क्षेत्रीय प्रेस को ऐसा नहीं लगता कि उन्हें चीन के बारे में बहुत ज्यादा चिंता करने की जरूरत है और यह बात इस तथ्य से जाहिर होती है कि इन तीन वर्षों में उन्होंने चीन से संबंधित मामलों पर जितना ध्यान दिया है, उसकी मात्रा राष्ट्रीय प्रेस से ज्यादा नहीं है।

आखिर मेंइस बात की ओर संकेत करना जरूरी है कि क्षेत्रीय मीडिया और राष्ट्रीय मीडिया का दृष्टिकोण मोटे तौर पर समान ही है। इसलिएराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडियादोनों का मानना है कि वे सभी अन्य विषय जिनकी हमने पहचान की हैउनमें से चीन एक उभरती ताकत” और सीमा मामले” जैसे विषयों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है।

इस अध्ययन से पता चलता है कि क्षेत्रीय समाचार पत्र राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सामान्य चिंताओं से आगे बढ़कर भारत-चीन संबंधों का आकलन क्षेत्रीय लेंस से करने के इच्छुक हैं। इन दोनों दैनिकों में, भारत-चीन सीमा को संघर्ष के क्षेत्र के साथ ही साथ अवसर के तौर पर भी देखा गया है। इस पृष्ठभूमि में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि भविष्य के नीतिगत निर्णय लेते समय इनकी धारणाओं के अंतर के दायरे को समझा जाए। इसलिए, केंद्र सरकार को इसके प्रति ज्यादा संवेदनशील बनने तथा सुरक्षा या पहचान को जोखिम में डाले बगैर सीमा व्यापार को बढ़ावा देने की जरूरत है। भारत सरकार को सीमावर्ती क्षेत्रों में व्याप्त हाशिये पर होने तथा असुरक्षा की भावना को दूर करने की जरूरत है। बुनियादी सुविधाओं के विकास तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में बेहतर सम्पर्क पर ध्यान दिए जाने की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है।

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Authors

Rakhahari Chatterji

Rakhahari Chatterji

Professor in Political Science, Calcutta University (Retired 2008). Formerly Dean, Faculty of Arts, Calcutta University; Visiting Fellow in Political Science and Associate, Committee on South ...

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Anasua Basu Ray Chaudhury

Anasua Basu Ray Chaudhury

Anasua Basu Ray Chaudhury is Senior Fellow with ORF’s Neighbourhood Initiative. She is the Editor, ORF Bangla. She specialises in regional and sub-regional cooperation in ...

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