Author : Kabir Taneja

Expert Speak Raisina Debates
Published on Nov 25, 2024 Updated 2 Days ago

वैसे तो मध्य पूर्व के देशों को ये उम्मीद है कि चुनाव में ट्रंप की जीत से इस क्षेत्र में स्थिरता आएगी. लेकिन, ट्रंप का अस्थिर मिज़ाज, भविष्य की अमेरिकी नीति को अनिश्चितता भरा बना देता है. 

#Trump2.0: ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की अनिश्चितता और संगीन मोड़ पर खड़ा मध्य पूर्व!

Image Source: Getty

ये लेख "#Trump 2.0, "एजेंडे की बहाली: ट्रंप की वापसी और दुनिया पर इसका असर" सीरीज़ का हिस्सा है. 


2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की निर्णायक जीत को मध्य पूर्व के बहुत से लोग ख़ुशख़बरी के तौर पर देख रहे हैं. ग़ज़ा का युद्ध बेरोक-टोक जारी है और अब तो इसने लेबनान को भी अपनी चपेट में ले लिया है. इसके अलावा, इज़राइल अब सीरिया और यहां तक कि दूर स्थित यमन में भी सैन्य कार्रवाई कर रहा है. इसने संघर्ष के पूरे क्षेत्र को अपनी चपेट में लेने की आशंकाओं को बढ़ा दिया है. अब अपेक्षा ये की जा रही है कि ट्रंप तमाम पक्षों पर संघर्ष रोकने का दबाव बनाने के साथ साथ, ईरान को लेकर कड़ा रुख़ अख़्तियार करेंगे. 

पहले प्रशासन के दौरान ऐतिहासिक अब्राहम समझौतों पर दस्तख़त हुए थे, जिनकी वजह से 2020 में कई अरब देशों और इज़राइल के संबंध सामान्य बनाने में मदद मिली थी.

ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान मध्य पूर्व की तस्वीर बिल्कुल अलग थी. उनके पहले प्रशासन के दौरान ऐतिहासिक अब्राहम समझौतों पर दस्तख़त हुए थे, जिनकी वजह से 2020 में कई अरब देशों और इज़राइल के संबंध सामान्य बनाने में मदद मिली थी. वैसे तो ग़ज़ा में संघर्ष के बावजूद अभी अब्राहम समझौते ज़िंदा हैं. लेकिन, जिस तरह से ग़ज़ा में आम लोगों की मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है और युद्ध के अंत के आसार दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहे हैं, उसको देखते हुए अरब देशों और इज़राइल के बीच तनाव साफ़ नज़र आ रहा है, और ट्रंप इस इलाक़े को जिस हाल में छोड़ गए थे, उसमें बहुत बड़ा बदलाव आ चुका है. चूंकि ट्रंप से ये उम्मीद लगाई जा रही है कि वो सभी पक्षों को जल्दी से जल्दी युद्धविराम के लिए राज़ी करने की कोशिश करेंगे. ऐसे में मौजूदा चुनौतियों का समाधान करना उनके लिए पहाड़ जैसी चुनौती होगी. ऐसा करने के लिए निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप को इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर लगाम लगानी होगी, जो अब तक बाइडेन प्रशासन की तमाम अपीलों की लगातार अनदेखी करते आ रहे हैं. इसके बजाय नेतन्याहू ने अमेरिका और इज़राइल के बीच शक्ति संतुलन का पलड़ा बुरी तरह इज़राइल के पक्ष में झुका लिया है. इस संबंध में इज़राइल का बर्ताव एक महाशक्ति जैसा है, वहीं अमेरिका का रवैया एक औसत दर्जे की ताक़त वाला है.

 

मध्य पूर्व

 

हालांकि, रणनीतिक तौर पर ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी से मध्य पूर्व की सुरक्षा के बुनियादी ढांचे पर एक बार फिर से ऐसे मोड़ पर गहरी नज़र होगी, जब क्षेत्रीय संघर्ष और इसकी वजह से समीकरणों का बदलाव पहले ही देखने को मिल रहा है. मिसाल के तौर पर सऊदी अरब के युवराज प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने इज़राइल और उसके बहाने अमेरिका से मांग की है कि वो ईरान की संप्रभुता को चुनौती न दे. ईरान और सऊदी अरब के बीच मूलभूत मतभेद हैं और दोनों ही देश इलाक़े में एक दूसरे के कट्टर विरोधी भी हैं. लेकिन, सऊदी अरब इस बात की पुरज़ोर कोशिश कर रहा है कि वो ईरान और इज़राइल के बीच व्यापक युद्ध में न फंसे. यही नहीं, अरब देशों की अपनी अलग ही चुनौतियां हैं. इनमें से सबसे बड़ी तो यही है कि फिलिस्तीन संकट पर सही नैतिक रुख़ अपनाएं और इसके साथ ही साथ वो देश उन आर्थिक फ़ायदों का संरक्षण भी करें, जो उन्होंने पिछले कुछ वर्षों के दौरान हासिल किए हैं.

रणनीतिक तौर पर ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी से मध्य पूर्व की सुरक्षा के बुनियादी ढांचे पर एक बार फिर से ऐसे मोड़ पर गहरी नज़र होगी, जब क्षेत्रीय संघर्ष और इसकी वजह से समीकरणों का बदलाव पहले ही देखने को मिल रहा है.

ट्रंप से अपेक्षा की जा रही है कि वो ईरान के प्रति वैसा ही कड़ा रवैया अपनाएंगे, जैसा उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान अपनाया था. हालांकि, 2025 में दोनों देशों के रिश्तों की तस्वीर 2016 की तुलना में बिल्कुल अलग होगी. इराक़ जैसे देशों में अमेरिकी सैन्य ठिकानों को उन हथियारबंद संगठनों ने निशाना बनाया है, जो ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कोर (IRGC) के नज़दीकी कहे जाते हैं. वैसे तो अमेरिका ने इन हमलों का जवाब दिया है, पर उसने अब तक ईरान से सीधे तौर पर भिड़ने से परहेज़ किया है. ट्रंप अपने पहले कार्यकाल के दौरान, सीरिया में तैनात बचे खुचे लगभग 900 अमेरिकी सैनिकों को स्वदेश वापस बुलाना चाहते थे. हालांकि, उस वक़्त उनके सलाहकारों ने उन्हें ये क़दम न उठाने के लिए राज़ी कर लिया था. अमेरिका के ये 900 सैनिक, सीरिया के लोकतांत्रिक गठबंधन के नैतिक सहायक के तौर पर वहां तैनात हैं. ये लोकतांत्रिक गठबंधन असल में कुर्दों की अगुवाई वाला एक सैन्य समूह है, जो तथाकथित इस्लामिक स्टेट (जिसे ISIS या अरबी में दाएश भी कहा जाता है) से मुक़ाबला करता है और उन अस्थायी जेलों का रख-रखा करता है, जहां ISIS समर्थक आतंकवादियों को क़ैद करके रखा गया है. ट्रंप की नई कैबिनेट में सुरक्षा मामलों के ज़िम्मेदार लोगों में ईरान के प्रति उग्र रवैया रखने वालों की भरमार होने जा रही है. फिर भी, यहां ये याद रखने की ज़रूरत है कि इनमें से सबसे अहम व्यक्ति जॉन बोल्टन ने पिछले कार्यकाल में ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के तौर पर काम किया था और बोल्टन का कहना था कि राष्ट्रपति बहुत अस्थिर हैं और उनके साथ काम करना मुश्किल है.

 

ट्रंप 2.0

 

इस वजह से ट्रंप के दूसरे कार्यकाल को लेकर मध्य पूर्व में अनिश्चितता की स्थिति बन रही है. ईरान के साथ ट्रंप के रवैये का इतिहास ये संकेत देता है कि वो निजी तौर पर इसमें दिलचस्पी लेंगे. इसकी वजह से इस बात की संभावना भी बनती है कि ईरान के समर्थन वाले हथियारबंद संगठन, अमेरिकी हितों या अमेरिकी सैन्य ठिकानों के प्रति ज़्यादा सक्रिय होंगे. फिर इसके नतीजे में अमेरिका, ईरान पर पलटवार भी कर सकता है. अमेरिका के न्याय विभाग ने इल्ज़ाम लगाया है कि ट्रंप को मारने की एक साज़िश के पीछे ईरान का हाथ था. वैसे तो ईरान ने ऐसी किसी साज़िश के होने से इनकार किया है. लेकिन इससे, ट्रंप और ईरान के बीच निजी तौर पर ज़बरदस्त टकराव का संकेत भी मिलता है. इससे ईरान की धरती पर अमेरिका के सीधे हमले की आशंका बढ़ जाती है. ईरान भी अपनी ओर से इसी तरह का हिसाब किताब लगा रहा होगा और वो अमेरिका से सीधे तौर पर भिड़ने से बचना चाहेगा. जो बाइडेन के शासन में इस बात की गारंटी ईरान को मिलती रही थी. ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने कहा है कि, ‘अगर हमारे हित सुरक्षित रहते हैं, तो हम अमेरिका से ज़रूर बात करेंगे.’

ट्रंप के दूसरे कार्यकाल को लेकर मध्य पूर्व में अनिश्चितता की स्थिति बन रही है. ईरान के साथ ट्रंप के रवैये का इतिहास ये संकेत देता है कि वो निजी तौर पर इसमें दिलचस्पी लेंगे.

वहीं दूसरी ओर, इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, ट्रंप के ईरान विरोधी रुख़ को देखते हुए ये मानकर चल रहे हैं कि वो बाइडेन प्रशासन और डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों द्वारा इज़राइल पर बनाए जा रहे उस दबाव को ख़त्म करेंगे, जो ग़ज़ा और लेबनान दोनों जगह आम लोगों की मौत की बढ़ती संख्या की वजह से बढ़ता जा रहा था. वैसे तो ईरान के मसले पर ट्रंप और नेतन्याहू का नज़रिया एक सा है और दबे छुपे तौर पर अरब देश भी उनके इस दृष्टिकोण से सहमत हैं. लेकिन, ट्रंप से ये उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वो पीछे हटेंगे और इज़राइल को युद्ध विराम या बंधकों की अदला बदली की बात किए बग़ैर सैन्य अभियान का दायरा बढ़ाने की खुली छूट दे देंगे. वैसे तो नेतन्याहू के लिए ये एक चुनौती होगी कि उन्हें कुछ रियायतें देने के लिए राज़ी होना पड़ सकता है, ताकि ट्रंप अपने समर्थकों के बीच उसे जीत के तौर पर प्रचारित कर सकें. तस्वीरें खिंचवा कर अपनी छवि चमका सकें. ट्रंप का मुख्य लक्ष्य तो ‘युद्ध ख़त्म करने’ के अपने चुनावी वादे को पूरा करना होगा, जो किसी नीति के बजाय उनके व्यक्तित्व पर ज़्यादा निर्भर करेगा.

 

अमेरिका में चुनाव होने से बहुत पहले, ये बात साफ़ थी कि समझौता करने के लिए न तो हमास और न ही इज़राइल ही क़दम पीछे खींचने को तैयार हैं. इज़राइल द्वारा हमास के दो बड़े नेताओं इस्माइल हानिया और याह्या सिनवार की हत्या की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा होने के बावजूद हमास और इज़राइल के बीच शक्ति संतुलन में कोई ख़ास बदलाव आता नहीं दिख रहा है. जबकि इस्माइल हानिया को तो इज़राइल ने ईरान की राजधानी तेहरान में मारा था. इसके बावजूद हमास और इज़राइल बुनियादी तौर पर बंधकों के मसले पर टस से मस नहीं हुए हैं और वो सैन्य अभियान पर ब्रेक लगाने को तैयार नहीं दिख रहे हैं.

 

निष्कर्ष

 

आख़िर में, ट्रंप कैबिनेट के जो सदस्य इस बार उन्हें सरकार चलाने में मदद करेंगे, वो वैसे पारंपरिक रूढ़िवादी नेता नहीं होंगे, जिन्हें रिपब्लिकन पार्टी के नेता और अमेरिकी संसद के सदस्य जानते समझते हैं. इसके बजाय, इस बार ट्रंप अपनी कैबिनेट में उन लोगों को जगह दे रहे हैं, जो उनके कट्टर समर्थक रहे हैं. वो रिपब्लिकन पार्टी के भी समर्थक हों, ऐसा ज़रूरी नहीं है. इसकी वजह से मध्य पूर्व के सभी भागीदारों के लिए अनिश्चितता की स्थिति और बढ़ गई है. ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में मध्य पूर्व को लेकर क्या रणनीति अपनाएंगे, इस सवाल का जवाब तो अटकलों के हवाले से ही दिया जा सकता है. लेकिन अमेरिका द्वारा अपना शक्ति प्रदर्शन करना और इलाक़े में उसका दबदबा, ट्रंप की नीतियों और उनकी शख़्सियत के बीच संघर्ष पर निर्भर करेगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.