चीन (China) और भारत (India) जैसे विकासशील देशों के तेज़ गति से हुए विकास ने वैश्विक स्तर पर व्यापार, निवेश और यहां तक कि विकास सहयोग में नाटकीय रूप से बदलाव लाने का काम किया है. इस बदलाव ने जहां एक तरफ वैश्विक ताक़तों के स्वरूप को बदल दिया है, वहीं उत्तर-दक्षिण और दक्षिण-दक्षिण संबंधों के पूरे परिदृश्य को भी परिवर्तित कर दिया है. त्रिकोणीय साझेदारियां (triangular development partnerships) आज विकास सहयोग के एक साधन के रूप में आगे बढ़ रही हैं और कई पारंपरिक डोनर देश एवं संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां (United Nations agencies) त्रिकोणीय साझेदारियों के माध्यम से दक्षिण-दक्षिण सहयोग का तेज़ी से समर्थन कर रही हैं. हालांकि, “त्रिकोणीय सहयोग” शब्द की परिभाषा को लेकर काफ़ी अंतर है. मोटे तौर पर देखा जाए तो यह शब्द उन परियोजनाओं और पहलों की व्याख्या करता है, जो विकासशील देशों (developed countries) में जानकारी और विशेषज्ञता साझा करने एवं विकास संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए पारंपरिक दाताओं और दक्षिणी देशों के तुलनात्मक फायदों को आपस में जोड़ती हैं.
भारत में विदेश मंत्रालय और तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग, जो कि अब विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय है, ने “तीसरे देशों में सहयोग के लिए साझेदारी पर स्टेटमेंट ऑफ इंटेंट” पर हस्ताक्षर किए, जो अन्य विकासशील देशों को संयुक्त रूप से सहायता करने के लिए दोनों देशों की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है.
भारत, जो कि एक प्रमुख दक्षिणी विकास भागीदार है, उसने शुरूआत में खुद को त्रिकोणीय साझेदारियों से दूर कर लिया था. इसका कारण था कि भारत ने आर्थिक सहयोग और विकास संगठन/विकास सहायता समिति के मॉडल से अपने विकास सहयोग को बहुत अलग ढंग से तैयार किया था. यह मॉडल मांग और ज़रूरत के मुताबिक़ संचालित होने वाले विकास के सिद्धांतों पर ज़ोर देता है, साथ ही पारस्परिक लाभ, संप्रभुता के लिए सम्मान और “नो-स्ट्रिंग्स अटैच्ड” विकास भागीदारी यानी ‘ऐसा कुछ भी नहीं है जो अप्रिय हो और जिसे आपको स्वीकार करना पड़े’ वाली सोच का हिमायती है. हालांकि, हाल के वर्षों में भारत ने यूनाइटेड किंगडम (यूके), जापान और अमेरिका (यूएस) जैसे कई देशों के साथ सहयोग करके त्रिकोणीय साझेदारियों की ओर अपना झुकाव दर्शाया है.
भारत में विदेश मंत्रालय और तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग, जो कि अब विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय है, ने “तीसरे देशों में सहयोग के लिए साझेदारी पर स्टेटमेंट ऑफ इंटेंट” पर हस्ताक्षर किए, जो अन्य विकासशील देशों को संयुक्त रूप से सहायता करने के लिए दोनों देशों की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है. वर्ष 2017 में भारत और जर्मनी ने एक दूसरे के साथ कार्य करने की दिलचस्पी जताई थी. दोनों देशों ने अफ्रीकी देशों के साथ अपनी विकास साझेदारी में एक साथ काम करने में रुचि व्यक्त की थी. जापान और भारत ने वर्ष 2017 में एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर प्रोग्राम (अब फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक के लिए प्रोजेक्ट) शुरू किया था. भारत ने अमेरिका के साथ वैश्विक विकास के लिए त्रिकोणीय सहयोग पर मार्गदर्शक सिद्धांतों पर वक्तव्य पर भी हस्ताक्षर किए हैं. साथ ही अफ्रीका में ब्रिटेन और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ कुछ त्रिकोणीय परियोजनाओं में भी सहयोग किया है.
ज़्यादातर विशेषज्ञ इस बात को लेकर सहमत हैं कि त्रिकोणीय साझेदारी के मामले में वित्तपोषण को लेकर कोई परेशानी नहीं होती है, असल दिक्कत उसके कार्यान्यवयन को लेकर आती है, क्योंकि तीन देशों के नज़रिए, वहां के क़ानूनों और क्षमताओं में काफ़ी अंतर होता है और यह सबसे बड़ी दिक्कत के रूप में सामने आता है.
मिलाजुला अनुभव
त्रिकोणीय सहयोग के कई तरह के लाभ होते हैं. इसके प्रमुख फायदों में संसाधनों की पूलिंग, लागत में कमी और विभिन्न प्रकार के किरदारों के पारस्परिक तुलनात्मक लाभों एवं अनुकूल परिस्थितियों का जुड़ाव शामिल हैं. इतना ही नहीं त्रिकोणीय साझादारी आज के समय की सभी प्रमुख चुनौतियों का समाधान उपलब्ध कराती है. इसमें शामिल हैं जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण का नुकसान, ग़रीबी, जलवायु के मुताबिक़ आधारभूत संरचना की कमी जैसी प्रमुख चुनौतियां. इसके साथ ही त्रिकोणीय सहयोग सतत विकास लक्ष्यों को नई एवं प्रगतिशील शोच व कुशलता के साथ मिलजुलकर हासिल करने में अहम भूमिका निभाता है.
एकमुश्त निवेश, भारी ज़ोख़िम, परियोजना की लंबी अवधि और तकनीकी कौशल. बुनियादी ढांचा क्षेत्र की ख़सियत हैं और यह विशेष रूप से त्रिकोणीय साझेदारियों के अनुकूल हैं. ज़ाहिर है कि इन सभी स्पष्ट तौर पर दिखने वाले फायदों के बावज़ूद त्रिकोणीय साझेदारियों को लेकर दिलचस्पी हाल के वर्षों में ही बढ़ी है. इसकी वजह यह है कि तमाम देश चीनी विकास सहायता की नाटकीय रूप से होने वाली प्रगति का मुक़ाबला करने के लिए तेज़ी से इस तरह की साझेदारियों की ज़रूरत महसूस कर रहे हैं. इन देशों को अब यह एहसास हो चुका है कि संसाधनों और क्षमताओं की पूलिंग के ज़रिए ही प्रभावी तरीक़े से इसका सामना किया जा सकता है.
हालांकि, मौजूदा समय में भारत के कुल विकास सहयोग बजट में त्रिकोणीय भागीदारी का अनुपात बहुत कम है. जहां तक त्रिकोणीय सहयोग को लेकर भारत के अनुभव की बात है तो, यह अब तक मिलाजुला रहा है. कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक़ भारत के लिए सफल त्रिकोणीय साझेदारी बहुत कम रही है. देखा जाए तो वे साझेदारियां डिजाइन के हिसाब से त्रिकोणीय नहीं थीं. इथोपिया में आईसीटी केंद्र के लिए भारत-यूएई प्रोजेक्ट जैसी कुछ परियोजनाओं ने ज़मीनी स्तर पर कार्यान्वयन में कई दिक्कतों और देरी का अनुभव किया. ज़्यादातर विशेषज्ञ इस बात को लेकर सहमत हैं कि त्रिकोणीय साझेदारी के मामले में वित्तपोषण को लेकर कोई परेशानी नहीं होती है, असल दिक्कत उसके कार्यान्यवयन को लेकर आती है, क्योंकि तीन देशों के नज़रिए, वहां के क़ानूनों और क्षमताओं में काफ़ी अंतर होता है और यह सबसे बड़ी दिक्कत के रूप में सामने आता है.
प्राप्तकर्ता देश यानी जहां दो देश मिलकर किसी प्रोजेक्ट पर काम करते है, वो अपनी स्वयं की एजेंसी और एक साथ दो देशों के साथ बातचीत करने की क्षमता को लेकर तमाम चिंताओं की वजह से त्रिकोणीय परियोजनाओं शुरू करने को लेकर ज़्यादा कुछ नहीं बोलते हैं. यही वजह है कि ज़्यादातर प्राप्तकर्ता देश प्रत्येक विकास परियोजना के लिए अलग-अलग देशों के साथ साझेदारी करना पसंद करते हैं.
परियोजनाओं का सुचारू क्रायान्वयन
त्रिकोणीय साझेदारियां जहां एक तरफ काफ़ी फायदेमंद हैं, वहीं इनमें कई चुनौतियां भी हैं. विकास सहयोग के लिए भारत का वर्तमान दृष्टिकोण भारतीय कंपनियों को प्राथमिकता देता है और भारतीय इनपुट का इस्तेमाल करता है. भारत का यह नज़रिया ऐसे अन्य देशों के लिए परेशानी का सबब हो सकता है, जो परियोजना को लेकर अपनी कंपनियों का पक्ष लेना चाहते हैं. साथ ही, भारत के वर्तमान दृष्टिकोण के अंतर्गत प्राप्तकर्ता देश अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर विकास परियोजनाओं का चयन करते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि त्रिकोणीय साझेदारी के तहत परियोजनाओं के चयन की प्रक्रिया क्या होगी? क्या इनके चयन की प्रक्रिया मांग या ज़रूरत पर आधारित होगी? इसके अलावा, परियोजना को लेकर पालन किए जाने वाले वित्तीय तंत्र से जुड़े कई अहम सवाल भी हैं. साथ ही यह भी एक बड़ा मुद्दा है कि किसी ज़ोख़िम की स्थित में नुकसान को किस प्रकार वहन किया जाएगा?
छोटी परियोजनाओं की सफलता से न केवल त्रिकोणीय साझेदारी में भरोसा कायम होने में मदद मिलेगी, बल्कि छोटी परियोजनाओं से सीखे गए सबक इस प्रारूप के ज़रिए बड़ी विकास परियोजनाओं को कुशलता के साथ लागू करने में भी सहायक सिद्ध होंगे.
त्रिकोणीय साझेदारियों के लिए जो महत्त्वपूर्ण शर्तें हैं, उनमें प्राप्तकर्ता देशों में बैंक द्वारा वित्तपोषित किए जाने योग्य विकास परियोजनाओं की पहचान, तकनीकी विशेषज्ञता और परियोजनाओं के सुचारू कार्यान्वयन के लिए भागीदारों के बीच बेहतर समन्वय जैसी शर्तें शामिल हैं. कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि प्राप्तकर्ता देश की ज़रूरतों और प्राथमिकताओं पर ज़्यादा ज़ोर होना चाहिए, साथ ही साझीदार देशों के ख़रीद नियमों के बजाए प्राप्तकर्ता देश के ख़रीद नियमों को लागू किया जाना चाहिए. इसके अलावा, बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं से जुड़े भारी ज़ोख़िमों को देखते हुए शुरुआत में त्रिकोणीय साझेदारियों में छोटी परियोजनाओं को लागू करना बेहतर है.
ज़ाहिर है कि छोटी परियोजनाओं की सफलता से न केवल त्रिकोणीय साझेदारी में भरोसा कायम होने में मदद मिलेगी, बल्कि छोटी परियोजनाओं से सीखे गए सबक इस प्रारूप के ज़रिए बड़ी विकास परियोजनाओं को कुशलता के साथ लागू करने में भी सहायक सिद्ध होंगे.
[i] ORF Roundtable “Triangular Cooperation in the Infrastructure Sector – Opportunities and Challenges”, October 13, 2022
[ii] ORF Roundtable “Triangular Cooperation in the Infrastructure Sector – Opportunities and Challenges”, October 13, 2022
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