-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
अमेरिका का दि रेज़िस्टेंस फ्रंट को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित करना, आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारत के साथ बढ़ती एकजुटता का संकेत है. लेकिन, इसका स्थायी असर तभी पड़ेगा जब पाकिस्तान के डीप स्टेट और उसके मोहरों पर कार्रवाई होगी
Image Source: Getty
18 जुलाई 2025 को अमेरिका के विदेश विभाग ने दि रेज़िस्टेंस फ्रंट (TRF) को एक ‘विदेशी आतंकवादी संगठन’ (FTO) और ‘विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकी’ (SDGT) घोषित किया. स्टेट डिपार्टमेंट ने ये कार्रवाई इमिग्रेशन एंड नेशनैलिटी एक्ट की धारा 219 और एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर 13224 के अंतर्गत की है. TRF एक मोहरा आतंकवादी संगठन है, जिसको पाकिस्तान स्थित दहशगर्द संगठन लश्कर-ए-तैयबा से समर्थन मिलता है. TRF, अप्रैल 2025 के बर्बर पहलगाम आतंकवादी हमले के लिए ज़िम्मेदार था. इस हमले में 26 पर्यटक मारे गए थे, जिन्हें उनके मज़हब की वजह से निशाना बनाया गया था. मारे गए लोगों में एक कश्मीरी मुसलमान भी था, जिसने पर्यटकों को बचाने की कोशिश की थी. अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा कि ये हालिया फ़ैसला आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई के प्रति ट्रंप प्रशासन के समर्पण और पहलगाम हमले के पीड़ितों को इंसाफ़ दिलाने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है. पहलगाम हमले को 2008 के लश्कर-ए-तैयबा के मुंबई आतंकी हमले के बाद से भारत पर सबसे बड़ा आतंकी हमला बताया जा रहा है.
भारत ने अमेरिका के इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए इसे वैश्विक आतंकवाद के ख़िलाफ़ बिल्कुल सही समय पर लिया गया फ़ैसला बताया और कहा कि ये क़दम ‘अमेरिका और भारत के आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में सहयोग पर एक मज़बूत मुहर है’. संस्थाओं को विदेशी आतंकी संगठन और विशेष रूप से नियोजित वैश्विक आतंकी का दर्जा देने को ऐसे संगठनों को वित्तीय समर्थन सीमित करने का प्रभावी तरीक़ा कहा जाता है, जिससे लोग इन संगठनों को दान देने से कतराते हैं और इनकी हरकतों को लेकर जागरूक होते हैं. इससे देशों को अमेरिका की चिंता का भी पता चल जाता है और उनके ऊपर आतंकवाद से छुटकारा पाने का दबाव बढ़ता है. ऐसे क़दम से अमेरिका अपने नागरिकों और संस्थाओं को आगाह भी करता है कि वो इन प्रतिबंधित संगठनों को किसी तरह की मदद न दें.
TRF, अप्रैल 2025 के बर्बर पहलगाम आतंकवादी हमले के लिए ज़िम्मेदार था. इस हमले में 26 पर्यटक मारे गए थे, जिन्हें उनके मज़हब की वजह से निशाना बनाया गया था. मारे गए लोगों में एक कश्मीरी मुसलमान भी था, जिसने पर्यटकों को बचाने की कोशिश की थी.
अमेरिका का ये फ़ैसला आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत के कड़े रुख़ के लिए एक कूटनीतिक विजय है. इससे जम्मू कश्मीर में TRF की राह में नई चुनौतियां खड़ी होंगी. ख़ास तौर से उसे हथियार हासिल करने में दिक़्क़त होगी. क्योंकि अब वो पैसे ट्रांसफर करने के लिए इंटरनेशनल बैंकिंग या फिर वित्तीय व्यवस्थाओं का इस्तेमाल नहीं कर सकेगा. इस क़दम से दूसरे देश भी अपनी फंडिंग के चैनलों की पड़ताल करेंगे, वरना उनके ऊपर सेकेंडरी प्रतिबंध लगने का डर होगा. इससे भारत और अमेरिका के बीच TRF से जुड़ी ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने को भी बढ़ावा मिलेगा. हालांकि, पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (PAFF) और कश्मीर टाइगर्स की तरह TRF पर भी सीधा सीधा ISI और पाकिस्तान के डीप स्टेट का नियंत्रण है, जो इस संगठन को प्रशिक्षण, लॉजिस्टिक्स और वित्तीय सहायता देकर जम्मू-कश्मीर में आतंकी अभियान चलाने के लिए उकसाता है.
2019 में जब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35A को हटाया था, तब TRF का गठन जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को धर्मनिरपेक्षता का चोला पहनाने के लिए एक स्थानीय उग्रवादी समूह के तौर पर गठित किया गया था. दि रेज़िस्टेंस फ्रंट ने अपना पहला आतंकवादी हमला मध्य श्रीनगर में हरि सिंह हाई स्ट्रीट पर ग्रेनेड फेंक कर किया था. उस हमले में आठ नागरिक घायल हो गए थे. उस हमले के तुरंत बाद ज़िम्मेदारी लेते हुए TRF ने अपने टेलीग्राम चैनल पर कहा था कि, ‘ये कश्मीर पर क़ब्ज़ा करने वाली भारतीय हुकूमत के ख़िलाफ़ एक स्वदेशी प्रतिरोध की मुहिम का आग़ाज़ है… और भविष्य में ऐसे और भी हमले होंगे.’
TRF का संचालन मुख्य रूप से लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी सैफ़ुल्लाह कसूरी, सज्जाद गुल और सलीम रहमानी करते हैं. पहले आत्मघाती हमलों की जगह अब उन्होंने रणनीति बदलकर स्थानीय और बाहरी लोगों की हत्या और सुरक्षा बलों पर हमले करने शुरू कर दिए हैं. इसी तरह, जैश-ए-मुहम्मद से जुड़े मोहरा संगठन जैसे कि पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (PAFF) और कश्मीर टाइगर्स भी हैं, जो 2020 में भारत विरोधी दुष्प्रचार वाले वीडियो के ज़रिए चर्चा में आए थे, ताकि जम्मू-कश्मीर के कमज़ोर तबक़ों के बीच स्वीकार्यता बढ़ा सकें. PAFF मुख्य रूप से पीर पंजाल के दक्षिण में राजौरी और पुंछ इलाक़ों और जम्मू प्रांत में सक्रिय था. वहीं TRF की गतिविधियां कश्मीर घाटी तक सीमित हैं.
दि रेज़िस्टेंस फ्रंट ने अपना पहला आतंकवादी हमला मध्य श्रीनगर में हरि सिंह हाई स्ट्रीट पर ग्रेनेड फेंक कर किया था. उस हमले में आठ नागरिक घायल हो गए थे.
2018 से 2022 के बीच फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) की पड़ताल ने पाकिस्तान की ISI और उसके डीप स्टेट को मजबूर किया कि वो नए आतंकवादी संगठनों जैसे कि TRF, PAFF और कश्मीर टाइगर्स को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद की शाखाओं के तौर पर उभरने में मदद करे. पाकिस्तान, आतंकवादी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग पर क़ाबू पाने के लिए पर्याप्त क़दम उठाने में नाकाम रहने की वजह से 2008 से 2010 और फिर 2012 से 2015 तक FATF की ग्रे लिस्ट में रहा था. 2018 से 2022 के दौरान पाकिस्तान को कहा गया था कि वो वैश्विक स्तर पर घोषित आतंकी संगठनों और जैश और लश्कर से जुड़े आतंकियों से अपने रिश्ते ख़त्म करे. 2021 में FATF की लगाई हुई 34 शर्तों में से 32 को पूरा करने के बावजूद पाकिस्तान, उसकी ग्रे लिस्ट में बना रहा था और वहां से नाम हटवा पाने में नाकाम रहा. आख़िरकार उसे ग्रे लिस्ट से तब हटाया गया, जब उसने मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी फंडिंग रोकने के लिए क़ानून बनाए और आतंकवादी संगठनों और व्यक्तियों का एक डेटाबेस तैयार कर लिया.
उसके बाद से ही बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से पाकिस्तान ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद की मज़हबी पहचान छुपाकर उसे धर्मनिरपेक्ष चोला पहनाने की कोशिश की है और लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद की जगह नए संगठन खड़े करके उनको स्थानीय स्वरूप देने का प्रयास किया है. FATF की ग्रे लिस्ट में डाले जाने की वजह से आतंक की पारंपरिक फंडिंग के स्रोत बंद होने और विदेशी मुद्रा भंडार कम होने, महंगाई के आसमान छूने और क़र्ज़ के बढ़ते बोझ की वजह से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है. इसी वजह से पाकिस्तान के डीप स्टेट ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए ड्रग्स का रास्ता अपनाया है.
आतंकवादी संगठनों को अब कश्मीर के लोगों से बिल्कुल भी मदद नहीं मिल रही है. इसका सबूत ये है कि 2024 से 2025 के जून के दौरान केवल सात कश्मीरी आतंकी संगठनों में शामिल हुए थे. स्थानीय आबादी से मामूली या बिल्कुल भी सहायता नहीं मिलने की वजह से TRF और PAFF के ज़्यादातर सक्रिय दहशतगर्द पाकिस्तानी मूल के हैं. सुरक्षा एजेंसियों का आकलन है कि जम्मू-कश्मीर में इस समय 125 से 130 के बीच आतंकवादी हैं, जिनमें से 115 से 120 पाकिस्तानी नागरिक हैं. पाकिस्तान की फ़ौज इन आतंकवादियों को न केवल प्रशिक्षण देती है, बल्कि जैसे कि M4 कार्बाइन, रात में देखने में मददगार चश्मे, इरीडियम सैटेलाइट फोन और वाई-फाई से लैस थर्मल इमेजिंग डिवाइस जैसे उन्नत हथियार भी मुहैया कराती है. आतंकवादी बेहद सख़्त एनक्रिप्शन वाले चीनी टेलीकॉम उपकरण भी इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें मूल रूप से पाकिस्तान के सैन्य बल प्रयोग करते हैं. वो मैसेजिंग के सुरक्षित ऐप इस्तेमाल करते हैं. चीन की कंपनियां ये ख़ास एनक्रिप्टेड टेलीकॉम उपकरण पाकिस्तानी फ़ौज के लिए तैयार करती हैं.
सुरक्षा एजेंसियों का आकलन है कि जम्मू-कश्मीर में इस समय 125 से 130 के बीच आतंकवादी हैं, जिनमें से 115 से 120 पाकिस्तानी नागरिक हैं.
पाकिस्तानी तंत्र आतंकवादियों को अपनी बात कहने का मंच मुहैया कराकर और TRF से जुड़े लोगों की तारीफ़ करके खुलकर दहशतगर्दों का समर्थन करता है. 28 मई 2025 को पाकिस्तान के केंद्रीय खाद्य सुरक्षा और रिसर्च राज्यमंत्री मलिक रशीद अहमद ख़ान और पंजाब सूबे की विधानसभा के स्पीकर मुहनम्मद अहमद ख़ान को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों सैफुल्लाह कसूरी, अमीर हमज़ा और लश्कर के आक़ा हाफ़िज़ सईद के बेटे तल्हा सईद के साथ एक कार्यक्रम में देखा गया था. मंत्रियों ने भारत के ख़िलाफ़ भड़काऊ बयानबाज़ी से आतंकवाद के समर्थन में आवाज़ उठाई थी. उन्होंने तो पहलगाम के आतंकी हमले का बदला लेने के लिए पाकिस्तान के आतंकी अड्डों के ख़िलाफ़ भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में मारे गए आतंकवादियों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने का भी वादा किया था. पहलगाम हमले के बाद इसके मास्टरमाइंड सैफ़ुल्लाह कसूरी ने बड़े ग़ुरूर से कहा था कि अब पूरी दुनिया उसको जानने लगी है.
पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान का सत्ता तंत्र आतंकवाद को पालता पोसता है. पाकिस्तान की हुकूमत और उसकी फ़ौज मिलकर TRF और PAFF जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ जम्मू-कश्मीर के शांतिपूर्ण माहौल को बिगाड़ने में जुटी रहती है. अमेरिका द्वारा TRF को विदेशी आतंकी संगठन घोषित करना एक अच्छा क़दम है. इससे आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारत और अमेरिका के बीच सहयोग बढ़ेगा. फिर भी, अभी ये देखना बाक़ी रहता है कि भारत के ख़िलाफ़ आतंकवाद को बढ़ावा देने की सरकारी नीति अपनाने के लिए अमेरिका और उसके साथी देश पाकिस्तान के डीप स्टेट और उसके सैन्य तंत्र पर सेकेंडरी प्रतिबंध लगाते हैं या नहीं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Ayjaz Wani (Phd) is a Fellow in the Strategic Studies Programme at ORF. Based out of Mumbai, he tracks China’s relations with Central Asia, Pakistan and ...
Read More +