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तेज़ी से हो रहे शहरीकरण और शहरों में आबादी के दबाव से निपटने के लिए भारत के कई शहरों ने मेट्रो रेल नेटवर्क के विकास में निवेश किया है, जिससे वो आबादी के बड़े हिस्से को आवाजाही के ऐसे टिकाऊ और सस्ते समाधान मुहैया करा सकें, जो एक साथ काफ़ी संख्या में यात्रियों को उनकी मंज़िल तक पहुंचाने में सक्षम हों. इन कोशिशों के बावजूद, बहुत से शहरों की मेट्रो सेवाओं का लोग उतनी बड़ी तादाद में इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, जिसकी उम्मीद लगाई गई थी. इसकी बड़ी वजह ये है कि ये मेट्रो नेटवर्क, शहर की दूसरी परिवहन सेवाओं से ठीक तरीक़े से नहीं जुड़े हैं. इसकी वजह से शहरों में परिवहन का जो नेटवर्क बना है, उनमें तालमेल का अभाव है और वो टिकाऊ परिवहन के विकल्प दे पाने में नाकाम रहा है.
राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति (NUTP) के तहत जिन परिवहन व्यवस्थाओं की शुरुआत की गई थी, वो एकीकृत बहुआयामी नेटवर्क स्थापित करने में असफल रहे हैं. इससे भारतीय शहरों में एकीकृत टिकाऊ मल्टीमॉडल परिवहन व्यवस्था (ISMTS) विकसित करने की फ़ौरी ज़रूरत रेखांकित होती है, ताकि सुरक्षित, आसान, सस्ती, आरामदेह, सुविधानजनक और टिकाऊ परिवहन व्यवस्था स्थापित की जा सके.
कोई भी एकीकृत स्थायी परिवहन व्यवस्था मुख्यत: पांच तरह के एकीकरण पर निर्भर करती है: भौतिक ढांचा, परिचालन संबंधी, सूचना संबंधी, भाड़े का और संस्थागत एकीकरण. यात्रियों के आराम, सुविधा और आसानी से आवाजाही के लिए परिवहन की मौजूदा अलग अलग सेवाओं को जोड़ने वाले साझा भौतिक मूलभूत ढांचे का निर्माण करना सबसे ज़रूरी होता है.
आवाजाही के तमाम माध्यमों का भौतिक रूप से एकीकरण आम तौर पर वहां किया जाता है, जहां इन संसाधनों की लोग अदला-बदली करते हैं. जैसे कि मेट्रो से उतरकर बस से आगे का सफर करना. या रेलवे स्टेशन से मेट्रो में जाना. अगर दोनों साधनों के मूलभूत ढांचे एक दूसरे से बख़ूबी जुड़े होते हैं, तो यात्रियों को अदला बदली में कोई असुविधा नहीं होती. अदला-बदली के इन केंद्रों (इंटरचेंज) को उनकी भौगोलिक अहमियत, किसी जगह आपस में जुड़ रहे परिवहन के साधनों की संख्या और परिवहन व्यवस्था के अलग अलग स्टेशनों के बीच स्तर के फ़र्क़ के मुताबिक़ अलग अलग स्तरों में वर्गीकृत किया जा सकता है. इंटरचेंज का सबसे आसान वर्गीकरण कुछ इस प्रकार से होता है:
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लेवल 1 का इंटरचेंज, जिसे मल्टीमॉडल हब भी कहते हैं. इसमें परिवहन की क्षेत्रीय सेवाओं, शहरी परिवहन की सेवाओं और बस नेटवर्क के बीच आवाजाही की सुविधा होती है. ये केंद्र शहर के भीतर आवाजाही के साथ साथ दो या अधिक शहरों के बीच सफर कर रहे यात्रियों को सुविधा प्रदान करते हैं.
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लेवल 2 इंटरचेंज वो होते हैं, जो शहरी परिवहन सेवा के दो से ज़्यादा सार्वजनिक सेवाओं को जोड़ते हैं और इनमें सिटी बस सेवा भी शामिल होती है.
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लेवल 3 इंटरचेंज सबसे बुनियादी स्तर का आपस में जुड़ा हुआ परिवहन केंद्र होता है, जहां शहर में सार्वजनिक परिवहन की कोई एक व्यवस्था, शहर की बस सेवा नेटवर्क से जुड़ती है.
हर स्तर का इंटरचेंज बहुआयामी परिवहन व्यवस्थाओं की कुशलता और सुविधा बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है.
भौतिक ढांचे के एकीकरण के तत्व
सार्वजनिक परिवहन के केंद्रों के मूलभूत ढांचे के एकीकरण के ज़रिए परिवहन नेटवर्क के अलग अलग तत्वों को एकजुट किया जाता है और सुविधाओं व मूलभूत ढांचे के साझा इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे यात्रियों को निर्बाध आवाजाही की सुविधा दी जा सके. इस एकीकृत बुनियादी ढांचे की संरचना किसी इंटरचेंज के स्तर के मुताबिक़ अलग अलग होती है और हर स्तर के इंटरचेंज पर अलग तरह की सुविधाओं की आवश्यकता होती है. हालांकि, परिवहन के मल्टीमॉडल केंद्रों में तो विशेष तौर पर कुछ अहम तत्वों की ज़रूरत होती है, ताकि भारत के शहरों में कुशल, सहजता से पहुंच वाले और इस्तेमाल करने वालों के लिए आसान एकीकृत परिवहन केंद्र (ISMTS) स्थापित करना सुनिश्चित किया जा सके.
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अदला-बदली के ठिकाने एक दूसरे के क़रीब हों: किसी एक केंद्र पर आपस में जुड़ने वाले परिवहन सेवा के केंद्र और अड्डों को इतने पास होना चाहिए कि लोग पैदल वहां आ जा सकें, और उनको अदला बदली में ज़्यादा समय या दिक़्क़त न लगे.
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पहुंचने और निकलने की सुविधाएं: परिवहन के अलग अलग साधनों जैसे कि मेट्रो और बस या रेलवे और मेट्रो के बीच आसानी से अदला बदली करने के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचे में पैदल चलने के रास्ते, किराए पर या अपनी साइकिल से आने जाने की सुविधा, निजी गाड़ियों की पार्किंग की सुविधा, टैक्सी से उतरने और चढ़ने की व्यवस्था और ऑटो रिक्शा के लिए स्टैंड शामिल हैं.
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सीढ़ी मुक्त पहुंच: परिवहन की अलग अलग व्यवस्थाओं के बीच बिना किसी बाधा के आने जाने की सुविधा के लिए अच्छी डिज़ाइन और आसानी से पहुंचे जा सकने वाले बुनियादी ढांचे जैसे कि फुट ओवरब्रिज, लिफ्ट, एस्केलेटर और ढलाव शामिल हैं.
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समावेश: परिवहन के मल्टीमॉडल केंद्रों को सबके लिए आसान पहुंच वाला होना चाहिए, ख़ास तौर से दिव्यांगों के लिए. इनमें चौड़ी लिफ्ट, ट्रैवेलेटर्स, ख़ास ज़रूरतों वाले लोगों के लिए तयशुदा पार्किंग, कमज़ोर नज़र वालों की आवाजाही के लिए ख़ास रास्ते, ब्रेल मैप और सिग्नल और सबके लिए सहज पहुंच वाले शौचालय शामिल हैं.
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आसानी से दिखने की सुविधा: इन केंद्रों पर रौशनी की पर्याप्त व्यवस्था भी ज़रूरी होती है, ताकि सुरक्षित माहौल हो और लोगों को रास्ते आसानी से दिखें, फिर चाहे दिन हो या रात. रौशनी के खंबों को ऐसी जगह लगाया जाना चाहिए, ताकि पूरे स्टेशन पर पर्याप्त रौशनी हो.
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निगरानी की व्यवस्थाएं: सीसीटीवी कैमरों, सुरक्षा जांच और सामान की जांच की व्यवस्था जैसे सुरक्षा के उपाय, हर अदला बदली वाले केंद्र में होने चाहिए, ताकि यात्रियों को सुरक्षित महसूस कराया जा सके.
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मौसम से संरक्षण: किसी भी इंटरचेंज को इस तरह से डिज़ाइन किया जाना चाहिए, ताकि पूरे साल मौसम के उतार-चढ़ाव से सुरक्षा प्रदान की जा सके. साये तले बैठने की सुविधा हो, फुट ओवरब्रिज ढके हुए हों और फुटपाथ के ऊपर भी शेड लगे हों.
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सार्वजनिक सूचना की व्यवस्थाएं: परिवहन के सभी माध्यमों के सूचना तंत्र को प्रभावी तरीक़े से जोड़ा जाना चाहिए. इसमें निर्देश देने और पहचान करने के स्पष्ट संकेत, सूचना केंद्र, अदला बदली केंद्र का नक़्शा और गाड़ियों की आवाजाही की वास्तविक समय पर सूचना को स्पष्ट रूप से दिखाने की व्यवस्था हर मल्टीमॉडल केंद्र में होनी चाहिए.
भौतिक ढांचे के एकीकरण के मामले में भारत के शहरों की स्थिति
वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की 2016 के एक सर्वे ने उजागर किया था कि बैंगलोर मेट्रो के 70 प्रतिशत संभावित यात्री सिर्फ़ इसलिए उसकी सेवा का उपयोग नहीं करते, क्योंकि दूसरी परिवहन व्यवस्थाओं से अदला बदली वाले मेट्रो स्टेशन तक पहुंचने और वहां से अपनी मंज़िल तक जाने की अच्छी सुविधाएं नहीं हैं. ये चुनौती केवल बैंगलोर की नहीं है; बल्कि ये भारतीय शहरों की एकीकृत परिवहन व्यवस्था की आम समस्या है.
सार्वजनिक परिवहन सेवाओं की जानकारी की उपलब्धता के मामलों में शहरों को 3.1 अंक मिले, जिससे वास्तविक समय में बेहतर आंकड़े उपलब्ध कराने और मुसाफ़िरों द्वारा आसानी से इस्तेमाल की जा सकने वाली सुविधा की ज़रूरत का पता चलता है
ओला मोबिलिटी इंस्टीट्यूट द्वारा अभी हाल में किए गए एक सर्वे के दौरान पांच बिंदुओं वाले लाइकर्ट पैमाने का इस्तेमाल करते हुए पूरे देश में सार्वजनिक परिवहन की गुणवत्ता का मूल्यांकन किया गया था. इस सर्वे में भी यात्रियों के बीच बड़े स्तर पर असंतोष उजागर हुआ था. इस सर्वे में अदला बदली के केंद्रों में सुरक्षा, दिव्यांगों के लिए आवाजाही में दिक़्क़त और सभी शहरी इलाक़ों में सार्वजनिक परिवहन सेवा की उपलब्धता को लेकर यात्रियों की कई चिंताएं सामने आई थीं. परिवहन केंद्रों पर सुरक्षा के मामले में पांच में से औसतन 2.7 अंक दिए गए, जिससे सुरक्षा के उपाय बढ़ाने की ज़रूरत रेखांकित होती है. शारीरिक अक्षमताओं वाले लोगों के लिए इन केंद्रों तक पहुंच की सुविधा के मामले में केवल 2.6 अंक मिले, जिससे समावेशी मूलभूत ढांचे की भारी कमी का पता चलता है. शहरों में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की उपलब्धता को पांच में से 2.9 अंक मिले, जिससे सीमित उपलब्धता और फेरों की कमी का पता चलता है. सार्वजनिक परिवहन सेवाओं की जानकारी की उपलब्धता के मामलों में शहरों को 3.1 अंक मिले, जिससे वास्तविक समय में बेहतर आंकड़े उपलब्ध कराने और मुसाफ़िरों द्वारा आसानी से इस्तेमाल की जा सकने वाली सुविधा की ज़रूरत का पता चलता है, तभी परिवहन सेवाओं तक पहुंच सुलभ हो सकेगी.
सेंटर फॉर एनवायरमेंटल प्लानिंग ऐंड टेक्नोलॉजी (CEPT) यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन, ‘एसेसमेंट फ्रेमवर्क फॉर फिज़िकल इंटीग्रेशन’ में पाया गया कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के मल्टीमॉडल हब में रेलवे, मेट्रो और बस सेवाएं बस 300 मीटर के दायरे में उपलब्ध हैं. लेकिन, इन सब सेवाओं के बीच अदला बदली के लिए सीधी पैदल (NMT) आवाजाही की सुविधा का अभाव है. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से हर दिन पांच लाख यात्री गुज़रते हैं. फिर भी वहां गिने चुने एस्केलेटर हैं. जिससे यात्रियों की असुविधा में और इज़ाफ़ा हो जाता है. अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से आने जाने वाले यात्रियों को भी ऐसी ही असुविधाएं झेलनी पड़ती हैं. अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से सबसे क़रीबी मेट्रो स्टेशन 800 की दूरी पर है. लेकिन, दोनों को जोड़ने के लिए कोई तय पैदल रास्ता नहीं है और रास्ते में रात के वक़्त रौशनी की कमी से ये आवाजाही असुरक्षित हो जाती है.
अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से आने जाने वाले यात्रियों को भी ऐसी ही असुविधाएं झेलनी पड़ती हैं. अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से सबसे क़रीबी मेट्रो स्टेशन 800 की दूरी पर है. लेकिन, दोनों को जोड़ने के लिए कोई तय पैदल रास्ता नहीं है और रास्ते में रात के वक़्त रौशनी की कमी से ये आवाजाही असुरक्षित हो जाती है.
ये पैटर्न भारत के तमाम शहरों के मल्टीमॉडल केंद्रों पर दिखता है. जिसमें किसी स्टेशन को लेकर बनने वाली योजना में परिवहन सेवाओं को आपस में जोड़ने वाले मूलभूत ढांचे की अनदेखी की समस्या साफ़ नज़र आती है. इसका परिणाम ये होता है कि यात्रियों को अदला बदली में दिक़्क़त होती है, जिससे परिवहन के ये एकीकृत केंद्र असुविधाजनक और अकुशल साबित होते हैं.
आगे की राह
हाल के वर्षों में कई शहरों ने अदला बदली के केंद्रों और ठहराव के स्थानों के एकीकरण को सुधारने के लिए कई क़दम उठाए हैं. इनमें से वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट द्वारा स्टेशन एक्सेस ऐंड मोबिलिटी प्रोग्राम (STAMP), स्मार्ट सिटीज़ मिशन के तहत क्षेत्र के आधार पर विकास के तत्व और इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसपोर्टेशन ऐंड डेवेलपमेंट पॉलिसी (ITDP) की अगुवाई में स्ट्रीट्स फॉर पीपुल चैलेंज जैसे क़दम उल्लेखनीय हैं.
भारत के शहरों में परिवहन सेवाओं को जोड़ने वाले केंद्रों के असरदार भौतिक एकीकरण की राह में सबसे बड़ा रोड़ा परिवहन के योजना निर्माण और प्रशासन का टुकड़ों में बंटा होना है. शहरों में परिवहन को देखने वाली ज़्यादातर एजेंसियां मुख्य रूप से उन्हें लागू करने की ज़िम्मेदारी उठाती हैं. इनमें से बमुश्किल ही किसी के पास एकीकृत योजना निर्माण, नीति निर्धारण या तमाम सेवाओं के बीच तालमेल की क्षमता होती है. व्यापक बहुआयामी परिवहन योजना के लिए एक समर्पित प्राधिकरण का अभाव होने से परिवहन के अलग अलग केंद्रों के विकास में कोई आपसी तालमेल नहीं होता.
मिसाल के तौर पर मेट्रो के अधिकारी अपनी योजना बनाने का ज़ोर मुख्य रूप से अपने गलियारों पर केंद्रित रखते हैं. बस सेवा की एजेंसियां अपने रास्तों की योजना स्वतंत्र रूप से बनाती हैं और रैपिड रेल की एजेंसियां भी अपनी व्यवस्था के विकास में यही रवैया अपनाती हैं. जब इन स्वतंत्र रूप से काम करने वाली संस्थाओं की ज़िम्मेदारियों को पूरे शहर में परिवहन की रणनीति विकसित करने के लिए आपस में मिलाया जाता है, तो अक्सर टकराव पैदा होते हैं. ये मसले तमाम एजेंसियों की अस्पष्ट भूमिका और ज़िम्मेदारियां होने की वजह से पैदा होते हैं, जिससे तालमेल में नाकामी और अकुशलत व्यवस्थाएं पैदा होती हैं. आख़िर में परिवहन के तमाम माध्यमों को किसी इंटरचेंज पर आपस में जोड़ने की ज़िम्मेदारी किसके हाथ में होगी, ये स्पष्ट नहीं होता. शहरों को यूनिफाइड मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्टेशन अथॉरिटी (UMTA) जैसी एक व्यापक संस्था की ज़रूरत है, जिसके पास अदला बदली के तमाम केंद्रों को विकसित करने की प्रभावी योजना बनाने और उन्हें लागू करने की ज़िम्मेदारी हो.
केंद्रों को पहले से मौजूद परिवहन केंद्रों से पांच सौ मीटर की दूरी पर ही बनाया जाना चाहिए, ताकि दोनों के बीच आवाजाही सुलभ हो.
शहरों के भीतर परिवहन सेवाओं के भौतिक रूप से आपस में जुड़े मूलभूत ढांचे के लिए बड़े स्तर से लेकर निम्नतम स्तर तक व्यापक योजना निर्माण की भी ज़रूरत है. व्यापक स्तर पर योजना ऐसी होनी चाहिए, जिससे परिवहन की अदला बदली के केंद्र अहम ठिकानों पर स्थित हों, जिससे यात्रियों को पूरे शहर में अबाध तरीक़े से उनके इस्तेमाल में सुविधा हो. छोटे स्तर की प्लानिंग में नए परिवहन केंद्रों को पहले से मौजूद परिवहन केंद्रों से पांच सौ मीटर की दूरी पर ही बनाया जाना चाहिए, ताकि दोनों के बीच आवाजाही सुलभ हो. सूक्ष्म स्तर पर बारीक़ स्थानीय योजना बनानी ज़रूरी है, ताकि आने जाने के रास्ते और व्यवस्थाएं ऐसी हों, जिससे यात्रियों को परिवहन के अलग अलग साधनों के बीच आने जाने में कम से कम असुविधा हो.
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