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जैसे-जैसे कमज़ोर देश सैटेलाइट इंटरनेट को अपना रहे हैं, वैसे-वैसे डिजिटल कनेक्टिविटी की प्रगति के साधन से उपनिवेशीकरण का नया रूप बनने का ख़तरा बढ़ रहा है.
Image Source: Pexels
ग्लोबल सैटेलाइट कम्युनिकेशन सेक्टर के 4 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है और ये 2023 के 133 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2035 तक 218 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच सकता है. ये विकास काफी हद तक नए उभरते उप-क्षेत्रों से होगा जिनमें रिसीवर, टर्मिनल एवं सैटकॉम चिप, इन-फ्लाइट एवं मैरीटाइम कनेक्टिविटी, कंज़्यूमर एवं बिज़नेस ब्रॉडबैंड, सेल्युलर बैकहॉल और सैटेलाइट रेडियो शामिल हैं. ये मुख्यतः ग्लोबल टेलीकम्युनिकेशन के टेरेस्ट्रियल फिफ्थ जेनरेशन (5G) से अंतरिक्ष आधारित सिक्स्थ जेनरेशन (6G) स्टैंडर्ड की ओर बदलाव से प्रेरित है. ये स्वाभाविक है कि स्थायी सरकार वाले देश, कानून का शासन स्थापित करने वाली विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाएं और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सचेत देश सहज रूप से इस बढ़ते सेक्टर का अंतिम उपयोगकर्ता बनने में सक्षम हैं. हालांकि राजनीतिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर देशों के भीतर जब कुछ गुट- चाहे सत्ताधारी पार्टी हों या विपक्ष, निहित स्वार्थ रखने वाले वाणिज्यिक संस्थान हों या सिविल सोसायटी- ऐसे सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम को लेकर उत्सुकता जताते हैं, विशेष रूप से ऐसे समय में जब नागरिक असंतोष बढ़ रहा हो, तो ये एक अशांत करने वाला घटनाक्रम है.
राजनीतिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर देशों के भीतर जब कुछ गुट- चाहे सत्ताधारी पार्टी हों या विपक्ष, निहित स्वार्थ रखने वाले वाणिज्यिक संस्थान हों या सिविल सोसायटी- ऐसे सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम को लेकर उत्सुकता जताते हैं, विशेष रूप से ऐसे समय में जब नागरिक असंतोष बढ़ रहा हो, तो ये एक अशांत करने वाला घटनाक्रम है.
आम तौर पर संघर्ष से ग्रस्त और कमज़ोर देशों में या तो अनियमित और निगरानी से युक्त इंटरनेट कनेक्टिविटी होती है या बिल्कुल भी नहीं होती. इंटरनेट से वंचित ये क्षेत्र उसी तरह है जैसे बिना इंटरनेट से जुड़े क्षेत्र और इसलिए स्टारलिंक या उसके जैसी कंपनियां जो पेश करती हैं- लो-लेटेंसी, हाई-बैंडविड्थ इंटरनेट कवरेज- वो उन देशों के गुटों के लिए एक आकर्षक विकल्प के रूप में होती हैं. जो गुट ऐसी सेवाओं का संरक्षक बनने में दिलचस्पी रखते हैं वो अच्छी तरह से जानते हैं कि उत्पन्न डेटा पर उनका नियंत्रण नहीं होगा; उनका देश टेलीकॉम, इंटरनेट एवं डिजिटल संप्रभुता के मामले में नुकसान उठाएगा; वो टेलीकॉम सेवाओं को रेगुलेट करने में सक्षम नहीं होंगे एवं अलग-अलग वैध तथा अवैध उद्देश्यों के लिए विभिन्न गैर-सरकारी किरदारों को उनका उपयोग करने का अवसर देंगे; और शांति, व्यवस्था एवं कानून के शासन के अभाव में ऐसी सेवाएं इन कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं के लिए वरदान की जगह अभिशाप साबित होंगी.
कमज़ोर देश वो हैं जहां ग्रामीण क्षेत्रों में औसत मासिक आय 100 से 150 अमेरिकी डॉलर से कम है. वैसे तो सामने से दिखता है कि आर्थिक रूप से ऐसे असुरक्षित देश शायद न्यायसंगत विकास, आर्थिक प्रगति और ग़रीबी के उन्मूलन के लिए सैटेलाइट आधारित इंटरनेट चाह रहे हैं. लेकिन सैटेलाइट आधारित इंटरनेट का नेटवर्क सस्ता नहीं मिलता बल्कि या तो भारी वित्तीय या आर्थिक लागत या दोनों चुकाने पर उपलब्ध है. कमज़ोर देशों में स्टारलिंक जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर की लागत काफी खर्चीली बनी हुई है. ऐसे सैटेलाइट इंटरनेट टर्मिनल की लागत लगभग 500 से 600 अमेरिकी डॉलर प्रति यूनिट है और मासिक सदस्यता शुल्क 50 से 150 अमेरिकी डॉलर के बीच है. ये मासिक सेवा शुल्क औसत घरेलू आय से बहुत ज़्यादा है. सैटेलाइट आधारित इंटरनेट के लिए विशेष रखरखाव, तकनीकी एवं सेवा भुगतान की आवश्यकता होती है जो आर्थिक रूप से अविकसित देशों के लिए लगातार आर्थिक प्रतिबद्धता एवं वित्तीय बोझ की मांग करती है.
आर्थिक रूप से कई अविकसित देश अधिक कर राजस्व उत्पन्न करने के लिए या ग्राहकवादी भ्रष्टाचार और अभिजात वर्ग के कब्ज़े के हिस्से के रूप में इसमें अधिक शुल्क या अतिरिक्त कर जोड़ेंगे. ये जोड़ा गया बोझ डिजिटल असमानता का समाधान करने के बदले मौजूदा डिजिटल विभाजन को और बढ़ाता है. सैटेलाइट इंटरनेट के दाम और स्थानीय आर्थिक परिस्थितियों के बीच ये बुनियादी अंतर व्यवस्थित तरीके से लोगों को अलग करता है जिससे विकास से जुड़े उद्देश्य कमज़ोर होते हैं. ये सामर्थ्य का अंतर केवल एक अस्थायी बाज़ार दोष नहीं है बल्कि ये संरचनात्मक विशेषता है जो बड़े पैमाने पर उपयोग या तकनीकी सुधार के बावजूद बनी रहती है.
आर्थिक रूप से कई अविकसित देश अधिक कर राजस्व उत्पन्न करने के लिए या ग्राहकवादी भ्रष्टाचार और अभिजात वर्ग के कब्ज़े के हिस्से के रूप में इसमें अधिक शुल्क या अतिरिक्त कर जोड़ेंगे. ये जोड़ा गया बोझ डिजिटल असमानता का समाधान करने के बदले मौजूदा डिजिटल विभाजन को और बढ़ाता है.
सैटेलाइट कंपनियों के द्वारा पेश आख़िरी दूरी की कनेक्टिविटी का अस्पष्ट क्षेत्रों में दोहन भी किया जा रहा है, यहां तक कि उन देशों में भी जहां आधिकारिक रूप से सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं या प्रदान नहीं की जाती हैं. पिछले दिनों न्यू हैम्पशायर से अमेरिकी सीनेटर मैगी हसन ने पूछताछ की कि म्यांमार में टेलीफोन और ऑनलाइन धोखाधड़ी के लिए उपयोग किए गए तस्करी वाले स्टारलिंक टर्मिनल से स्टारलिंक ने कितना पैसा कमाया है. 2025 की शुरुआत में भारत ने म्यांमार के म्यावाड्डी साइबर घोटाले के परिसरों से साइबर घोटाला करने वाले लोगों के द्वारा ज़बरदस्ती अपराध में शामिल किए गए अपने 500 नागरिकों को वापस बुलाया. अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध समूहों के द्वारा संचालित इन परिसरों में स्टारलिंक टर्मिनल का इस्तेमाल किया जा रहा था और यहां रोम अनलिमिटेड सर्विस का उपयोग हो रहा था जो पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में दो महीनों के लिए इंटरनेट कनेक्शन की पेशकश करती है.
इस बात की क्या संभावना है कि सूडान, यमन और बांग्लादेश में संगठित अपराध भी म्यावाड्डी की तरह ही हो, विशेष रूप से तब जब इन सभी देशों में औपचारिक रूप से स्टारलिंक सेवाओं की शुरुआत हो गई है? यमन में संघर्ष ने सरकार के राजस्व के आधार को नष्ट किया है जिससे वो वित्तीय संकट में आ गई है. फंडिंग से जुड़े संघर्ष ने महत्वपूर्ण फंड को स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा से दूर किया है. बांग्लादेश में बाहरी और आंतरिक कर्ज़ लगातार बढ़ रहा है और चीन, जापान, विश्व बैंक एवं एशियाई विकास बैंक (ADB) जैसे देशों/संगठनों का लगभग 100 अरब अमेरिकी डॉलर बकाया है. तेल पर निर्भर सूडान आर्थिक पतन के ख़तरे का सामना कर रहा है. सरकारी फंड की कमी के कारण सरकार के द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में कमी आ रही है. बुनियादी सेवाएं चरमरा रही हैं और महंगे सैटेलाइट इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश दुर्लभ संसाधनों के गलत आवंटन को दिखाता है. इनमें से कुछ देशों की अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के कर्ज़ संकट कार्यक्रमों में भागीदारी उनकी सीमित वित्तीय क्षमता को रेखांकित करती है. इस तरह खर्चीले सैटेलाइट निवेश पर आर्थिक रूप से सवाल खड़ा होता है. सैटेलाइट इंटरनेट के लिए आवश्यक चालू वित्तीय प्रतिबद्धता सीधे तौर पर कर्ज़ चुकाने और ज़रूरी सार्वजनिक सेवाओं के साथ प्रतिस्पर्धा करती है.
जब कमज़ोर देशों के गुट सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं को बढ़ावा देते हैं तो वो आपातकालीन ख़रीद की प्रक्रियाओं या सीधी बातचीत के माध्यम से प्रतिस्पर्धी बोली लगाने की प्रक्रियाओं को दरकिनार करने की कोशिश करते हैं. औपचारिक ख़रीद के तौर-तरीकों को अनदेखा करने से पारदर्शिता कम होती है, लागत बढ़ती है और घरेलू क्षमता निर्माण के लिए अवसर ख़त्म होते हैं. डिजिटल कनेक्टिविटी के इर्द-गिर्द तात्कालिकता का नैरेटिव सरकारों को इस बात की अनुमति देता है कि वो कठोर लागत-लाभ विश्लेषण और बुनियादी ढांचे पर बड़े निवेश की सार्वजनिक छानबीन से बच सकें. बांग्लादेश में स्टारलिंक का प्रवेश अप्रत्यक्ष समझौतों से आसान बनाया गया है. साथ ही सरकार पर अंतरिम प्रशासन के कब्ज़े के बाद राजनीतिक आपातकाल की वजह से इसमें तेज़ी लाई गई. इस अंतरिम सरकार का नेतृत्व एक गैर-निवार्चित सलाहकार कर रहे हैं जिनका ख़ुद का टेलीकॉम व्यवसाय था. लेकिन इस तरह तेज़ गति से मंज़ूरी ने सख़्त लागत-लाभ विश्लेषण और ख़रीद की पारदर्शिता से बचने को लेकर चिंता उत्पन्न की है. इसने ये संदेह भी पैदा किया है कि क्या सेवा प्रदान करने वालों का तकनीकी-राजनीतिक एजेंडा है. डिजिटल आधुनिकीकरण अत्याधुनिक तकनीक से जुड़ी सामाजिक पूंजी को जमा करने का एक तरीका है जो अंतरराष्ट्रीय स्थिति और घरेलू वैधता के लिए महत्वपूर्ण है. कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं के लिए सैटेलाइट इंटरनेट निवेश तकनीकी आधुनिकता और प्रगति के शक्तिशाली प्रतीकों के रूप में काम करता है. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सैटेलाइट इंटरनेट को दिखाने की क्षमता एक प्रदर्शन प्रभाव उत्पन्न करती है जो घरेलू विकास की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय छवि को प्राथमिकता देती है. इसी भावना के समान विकासशील देश अक्सर एक घटना में शामिल होते हैं जिसे ‘तकनीकी छलांग’ कहते हैं. यहां वो अत्याधुनिक तकनीक को लागू करने के लिए तकनीकी विकास के शुरुआती चरणों को दरकिनार कर देते हैं. ये विकास से जुड़ा एक आकर्षक छोटा रास्ता प्रदान करता है जिससे देशों को बुनियादी ढांचे से जुड़ी विरासत को छोड़कर सीधे सैटेलाइट इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे आधुनिक आविष्कार की ओर बढ़ने की अनुमति मिलती है. लेकिन व्यावहारिक रूप से लागू करने में उन देशों के सामने तकनीकी समाधानवाद की अतिशयोक्ति का ख़तरा है. आधुनिक तकनीकों को अपनाने में सामाजिक और राजनीतिक आयाम भी महत्व रखते हैं. अभिजात वर्ग की प्राथमिकताएं अक्सर वित्तीय रूप से मज़बूत घरेलू आवश्यकताओं पर हावी हो जाती हैं, विशेष रूप से उन देशों में जहां उनके पास महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति होती है. कमज़ोर देशों के मामले में अगर अभिजात वर्ग की प्राथमिकताएं डिजिटल अनुभव की ओर इशारा करती हैं तो निर्णय लेने वाले अपने तर्कहीन आर्थिक फैसलों के परिणामों से अछूते रह सकते हैं.
डिजिटल आधुनिकीकरण अत्याधुनिक तकनीक से जुड़ी सामाजिक पूंजी को जमा करने का एक तरीका है जो अंतरराष्ट्रीय स्थिति और घरेलू वैधता के लिए महत्वपूर्ण है. कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं के लिए सैटेलाइट इंटरनेट निवेश तकनीकी आधुनिकता और प्रगति के शक्तिशाली प्रतीकों के रूप में काम करता है.
जब सैटेलाइट इंफ्रास्ट्रक्चर की ख़रीद में औपचारिक तौर-तरीके को अनदेखा किया जाता है तो इससे नियमों के दायरे से बाहर सैटेलाइट टर्मिनल का ख़तरा पैदा होता है. नियमों से बाहर ये उपकरण अवैध जासूसी को सुगम बना सकते हैं, दुश्मनी रखने वाले समूहों के द्वारा अनधिकृत संचार को सक्षम बना सकते हैं और विदेशी संस्थाओं को निगरानी की क्षमता प्रदान कर सकते हैं जिससे सुरक्षा चुनौतियां और बदतर हो सकती हैं. आधिकारिक प्रतिबंधों और दुनिया भर में लोगों के बीच अलोकप्रिय सत्ताधारी गुटों जैसे कि हूती या जुंटा की तरफ से गंभीर पाबंदियों की धमकी के बावजूद प्रतिस्पर्धी भूमिगत नेटवर्क पहुंच को आसान बनाने के लिए उभरे हैं जिसमें सोशल मीडिया समूह स्टारलिंक की सेवा हासिल करने और गुप्त रूप से उपयोग करने के लिए समर्थन प्रणाली के रूप में काम कर रहे हैं.
सैटेलाइट इंटरनेट विकास से जुड़ी सहायता प्रदान करने के बदले भू-राजनीतिक प्रभाव का एक साधन बन गया है. मान लीजिए कि अलग-अलग देश शांति और कानून-व्यवस्था बनाए रखने में नाकाम होते हैं. ऐसी स्थिति में लोग तेज़ी से स्टारलिंक जैसी संचार प्रणाली का उपयोग करने की तरफ बढ़ेंगे जिससे विदेशी नियंत्रित डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भरता बढ़ेगी और संभवत: बाहरी किरदारों को डेटा पर नियंत्रण सौंपना पड़ेगा. कनेक्टिविटी में ये संभावना है कि बाहरी नियंत्रण और निगरानी के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाए जो अनिवार्य रूप से नए युग के उपनिवेशीकरण का एक रूप है.
चैतन्य गिरि ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में फेलो हैं.
तारा चावला ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में इंटर्न हैं.
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Dr. Chaitanya Giri is a Fellow at ORF’s Centre for Security, Strategy and Technology. His work focuses on India’s space ecosystem and its interlinkages with ...
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