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Published on Sep 05, 2024 Updated 1 Hours ago

GBA में एक प्रमुख किरदार के रूप में भारत अपने राष्ट्रीय और जलवायु लक्ष्यों को पूरा करते हुए अपनी ऊर्जा सुरक्षा बढ़ा सकता है, आर्थिक विकास तेज़ कर सकता है और जैव ईंधन के क्षेत्र में अपना नेतृत्व मज़बूत कर सकता है. 

टिकाऊ ईंधन में नेतृत्व की तरफ: ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस और भारत

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वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन: भारत के लिए इसका क्या अर्थ है?

ग्लोबल बायोफ्यूल्स अलायंस या वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA), जिसकी शुरुआत 9 सितंबर 2023 को भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान हुई थी, सतत ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का सूचक है. भारत और आठ दूसरे देशों, जिनमें अमेरिका और ब्राज़ील शामिल हैं, के द्वारा शुरू GBA का लक्ष्य दुनिया भर में सतत जैव ईंधनों और जीवाश्म ईंधनों के स्वच्छ एवं अधिक जलवायु अनुकूल विकल्पों का उपयोग बढ़ाना है. इसे हासिल करने के लिए GBA अधिक किफायती सप्लाई सुरक्षित करने, जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए दिशा-निर्देश विकसित करने और क्षमता निर्माण एवं तकनीकी समर्थन के माध्यम से वैश्विक स्तर पर जैव ईंधन को अपनाने की रफ्तार को तेज़ करने के लिए काम कर रहा है. 

GBA ने अफ्रीकी देशों का विशेष रूप से ध्यान खींचा है और इसमें दक्षिण अफ्रीका, केन्या, युगांडा और तंजानिया शामिल हुए हैं. इन देशों का जुड़ना ऊर्जा स्रोत के महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में जैव ईंधनों की वैश्विक स्वीकृति को उजागर करता है. 

अपनी स्थापना के एक साल के भीतर GBA ने दुनिया भर में ईंधन को अपनाने की दिशा में कुछ प्रगति की है. अमेरिका, ब्राज़ील और भारत, जिनका कुल मिलाकर वैश्विक इथेनॉल उत्पादन में 85 प्रतिशत और खपत में 81 प्रतिशत हिस्सा है, के नेतृत्व में इस गठबंधन का विस्तार हुआ है और अब इसमें 24 देश एवं 12 संगठन शामिल हैं. इन संगठनों में विश्व बैंक, विश्व आर्थिक मंच और अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी शामिल हैं. GBA ने अफ्रीकी देशों का विशेष रूप से ध्यान खींचा है और इसमें दक्षिण अफ्रीका, केन्या, युगांडा और तंजानिया शामिल हुए हैं. इन देशों का जुड़ना ऊर्जा स्रोत के महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में जैव ईंधनों की वैश्विक स्वीकृति को उजागर करता है. 

तेल की मांग को कम करने के लिए जैव ईंधन तेज़ी से महत्वपूर्ण बनता जा रहा है, ख़ास तौर पर परिवहन सेक्टर में जहां लग रहा है कि इलेक्ट्रिक गाड़ियां पूरी तरह से तरल ईंधनों वाली गाड़ियों की जगह नहीं ले सकती हैं. चूंकि जैव ईंधन के लिए वैश्विक मांग 2028 तक बहुत ज़्यादा बढ़ने का अनुमान है, ऐसे में भारत वैश्विक जैव ईंधन के क्षेत्र में फायदा उठाने और अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए अच्छी स्थिति में है. 

GBA भारत के लिए बहुआयामी अवसर पेश करता है और देश में रोज़गार बढ़ाने, आर्थिक वृद्धि तेज़ करने तथा बायोफ्यूल सेक्टर में भारतीय उद्योगों के वैश्विक विस्तार का वादा करता है. इसके अलावा ये ऊर्जा आत्मनिर्भरता के भारत के लक्ष्य के साथ-साथ 2025 तक इथेनॉल मिश्रण बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने के उसके उद्देश्य के अनुरूप है. इस कदम से तेल के आयात में भारत का 5.4 अरब अमेरिकी डॉलर और हर साल 63 मिलियन टन तेल बचने की उम्मीद है जिससे उसकी ऊर्जा सुरक्षा बहुत अधिक बढ़ती है और आयात का बिल कम होता है. 

इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) और कोएलिशन फॉर डिज़ास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (CDRI) जैसी पहल के साथ मेल-जोल से GBA भारत को जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ दुनिया की लड़ाई में नेतृत्व की भूमिका में रखता है. बायोफ्यूल पर चीन का ध्यान कम होने को देखते हुए इस सेक्टर में भारत की बढ़ती प्रमुखता विशेष रूप से उल्लेखनीय है. चीन जहां बड़ी मात्रा में जैव ईंधन का उत्पादन करता है, वहीं उसकी राष्ट्रीय नीतियों में इस सेक्टर को प्राथमिकता नहीं दी गई है. चीन में इथेनॉल मिश्रण की औसत दर 1.8 प्रतिशत पर बनी हुई है. घरेलू ऊर्जा सुरक्षा और संभावित निर्यात बाज़ार के मामले में ये भारत के लिए काफी फायदेमंद है. इसके साथ-साथ ये स्थिति बायोफ्यूल में वैश्विक नेतृत्व करने वाले देशों के रूप में उभरने के मामले में भारत के लिए एक अवसर तैयार करती है. 

गठबंधन से कदम तक

भारत की महत्वाकांक्षी जैव ईंधन की रणनीति, जिसकी रूप-रेखा 2022 में भारत की संशोधित राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति में तय की गई थी, का लक्ष्य भारत को एशिया के बायोफ्यूल सेक्टर में एक प्रमुख किरदार के रूप में स्थापित करना है. नीति में आक्रामक लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं जिनमें 2025-26 तक गैसोलीन में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण और 2030 तक डीजल में 5 प्रतिशत बायोडीज़ल मिश्रण शामिल हैं. इसे हासिल करने के लिए भारत ने कई पहल शुरू की हैं जैसे कि इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के द्वारा दूसरी पीढ़ी का इथेनॉल प्लांट और वित्त वर्ष 2025-26 से प्राकृतिक गैस में कंप्रेस्ड बायोगैस का चरणबद्ध अनिवार्य मिश्रण शामिल हैं. इसके अलावा सरकार ने बायोमास संग्रह के लिए वित्तीय सहायता भी मंज़ूर की है और बायोफ्यूल उत्पादन के लिए मंज़ूर कच्चे माल को व्यापक बनाकर उद्योग में इनोवेशन को बढ़ावा देते हुए सप्लाई चेन की चुनौतियों का समाधान किया है. इसके अलावा, भारत टिकाऊ हवाई ईंधन का पता लगा रहा है और इस दिशा में 2027 तक 1 प्रतिशत और 2028 तक 2 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य बनाया गया है. इसके साथ-साथ अल्कोहल-टू-जेट और वेस्ट-टू-फ्यूल परिवर्तन जैसी इनोवेटिव तकनीकों की भी पड़ताल की जा रही है. 

इसके अलावा, भारत टिकाऊ हवाई ईंधन का पता लगा रहा है और इस दिशा में 2027 तक 1 प्रतिशत और 2028 तक 2 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य बनाया गया है.

हालांकि GBA की सफलता केवल भारत पर निर्भर नहीं है. 2024 में ब्राज़ील की G20 अध्यक्षता वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन के ढांचे में बायोफ्यूल को जोड़ने का एक प्रमुख अवसर पेश करती है. G20 के अध्यक्ष के रूप में ब्राज़ील अपनी नवीकरणीय ऊर्जा की विशेषज्ञता और मज़बूत जैव ईंधन क्षेत्र का लाभ वैश्विक ऊर्जा कायाकल्प के एजेंडे का नेतृत्व करने के लिए कर सकता है और इस तरह संभावित रूप से दुनिया भर में बायोफ्यूल को अपनाने की गति तेज़ कर सकता है. 

ब्राज़ील के दृष्टिकोण में PRONATEC और लो-कार्बन एग्रीकल्चर प्रोग्राम जैसे लोगों पर केंद्रित कार्यक्रम शामिल हैं जो वन उत्पादों की वैल्यू चेन और छोटी जोत वाले किसानों का समर्थन करते हैं. दुबई में COP28 (जलवायु सम्मेलन) के दौरान ब्राज़ील ने एक पारिस्थितिक कायाकल्प योजना पेश किया जिसका उद्देश्य सतत आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना है. इसके अलावा ब्राज़ील के अनाज इथेनॉल उत्पादकों के राष्ट्रीय संघ (UNEM) ने 1 जनवरी को मराकाजू शहर में एक नए इथेनॉल, खाद्य और मक्के के तेल की सुविधा का काम-काज शुरू होने का एलान किया. इससे देश में जैव ईंधन की उत्पादन क्षमता और बढ़ेगी. 

2024 में ब्राज़ील ने नई उद्योग नीति की शुरुआत की जिसका लक्ष्य 2033 तक परिवहन ऊर्जा मिश्रण में जैव ईंधन के हिस्से में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी है. ब्राज़ील इथेनॉल, बायोडीज़ल और टिकाऊ हवाई ईंधन के मिश्रण को बढ़ावा देने के लिए भविष्य का ईंधन कार्यक्रम भी विकसित कर रहा है. पिछले दिनों ब्राज़ील के विदेश मंत्रालय ने G20 बैठक के दौरान इथेनॉल ईंधन का इस्तेमाल करने वाली हाइब्रिड-फ्लेक्स और फ्लेक्स गाड़ियों का प्रदर्शन करने के लिए गन्ना और जैव ऊर्जा उद्योग संघ के साथ एक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए. ये ब्राज़ील की G20 अध्यक्षता में सतत विकास की प्राथमिकता के अनुरूप ब्राज़ील की इथेनॉल तकनीक को बढ़ावा देता है. GBA में ब्राज़ील के नेतृत्व के साथ ये पहल वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन और सतत विकास एजेंडा के प्रमुख घटक के रूप में जैव ईंधन को आगे बढ़ाने की उसकी प्रतिबद्धता पर ज़ोर देती है. 

GBA में भारत और ब्राज़ील के नेतृत्व के साथ मिलकर ये प्रयास वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन और सतत विकास एजेंडा के प्रमुख घटक के रूप में जैव ईंधन को आगे बढ़ाने की उनकी प्रतिबद्धता पर ज़ोर देते हैं. 

आगे का रास्ता

जैव ईंधन, जिसे जीवाश्म ईंधन के कम कार्बन वाले विकल्प के रूप में माना जाता है, महत्वपूर्ण चुनौतियां लाता है जिनमें संसाधनों की मांग, प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस (GHG) के उत्सर्जन में संभावित बढ़ोतरी शामिल हैं. लाइफ साइकिल असेसमेंट या जीवन चक्र आकलन (LCA) से पता चलता है कि जैव ईंधन से GHG उत्सर्जन काफी हद तक परिस्थिति के अनुसार है जो उत्पादन की पद्धति और कच्चे माल (फीडस्टॉक) के प्रकार पर निर्भर करता है. पहली पीढ़ी के विकल्प जहां अक्सर नवीकरणीय ऊर्जा की आवश्यकताओं से कम पड़ जाते हैं, वहीं विशेषज्ञों द्वारा अनुशंसित दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन GHG में कमी और ऊर्जा आवश्यकताओं- दोनों मोर्चों पर भरोसा दिखाते हैं. ब्राज़ील, भारत और अमेरिका की विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए GBA को उचित तकनीकों का चयन करके और काई एवं कृत्रिम सूक्ष्मजीवों जैसी वैकल्पिक सामग्रियों के लिए R&D (अनुसंधान एवं विकास) फंड की व्यवस्था करके इन चुनौतियों का समाधान करना चाहिए. 

जैसे-जैसे ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस (GBA) आगे बढ़ रहा है, वो वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था का विस्तार करने में ब्राज़ील, भारत और अमेरिका के कीमती अनुभवों और विशेषज्ञता का लाभ उठा सकता है.

जैसे-जैसे ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस (GBA) आगे बढ़ रहा है, वो वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था का विस्तार करने में ब्राज़ील, भारत और अमेरिका के कीमती अनुभवों और विशेषज्ञता का लाभ उठा सकता है. शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए इस दशक में उत्पादन हर साल 11 प्रतिशत बढ़ना चाहिए. एलायंस के काम-काज को आदर्श बनाने और इसे एक साधारण G20 पहल बनने से रोकने के लिए GBA को कई कदम उठाने की ज़रूरत है. 

सबसे पहले भारत के भीतर मुख्यालय और स्थायी सचिवालय बनाने के लिए भारत को तेज़ी से समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहिए. ऐसा करने से GBA को कूटनीतिक विशेषाधिकार के साथ अंतर्राष्ट्रीय कानूनी संस्था का दर्जा मिलेगा. इसके बाद, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के द्वारा ‘ब्राज़ील, भारत और अमेरिका में जैव ईंधन नीति: वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन के लिए जानकारी’ शीर्षक वाली उसकी रिपोर्ट की सिफारिशों के अनुसार GBA को अमेरिका, ब्राज़ील, यूरोप और इंडोनेशिया में मौजूदा अधिकता से आगे नए और मौजूदा बाज़ारों को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए. 

ये देखते हुए कि कच्चे तेल के बड़े उत्पादक और खपत करने वाले देश जैसे कि चीन, रूस और सऊदी अरब इस पहल में शामिल नहीं हुए हैं, ऐसे में GBA को सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए. तकनीक, विशेषज्ञता और वित्त की कमी के कारण जैव ईंधन का बहुत कम या बिल्कुल ही नहीं विकास करने वाले देशों की संभावना का आकलन करने के लिए अच्छी तरह से परिभाषित चार्टर ज़रूरी है. GBA को अपनी स्वीकार्यता सदस्य देशों तक ही सीमित नहीं रखनी चाहिए बल्कि गैर-सदस्यों तक भी पहुंचना चाहिए, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) में जहां जैव ऊर्जा शून्य उत्सर्जन, रोज़गार सृजन और ग्रामीण आय पैदा करने के लिए एक सस्ता और अधिक प्रतिस्पर्धी रास्ता पेश कर सकती है. सूडान, इथियोपिया, अंगोला, नेपाल, ग्वाटेमाला, कोस्टा रिका और लाओस जैसे देश ऐसी क्षमता पेश करते हैं जिनका इस्तेमाल नहीं हुआ है. 

इस उद्देश्य के लिए GBA विशेषज्ञता के केंद्र के रूप में काम कर सकता है और निवेश एवं साझेदारी की सुविधा देने वाले गारंटर के रूप में काम करते हुए तकनीकी जानकारी और सर्वश्रेष्ठ प्रथाएं प्रदान कर सकता है. वित्तीय संस्थानों के साथ तालमेल और PRAJ, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, Eni S.p.A. और रायज़ेन जैसी प्राइवेट और सार्वजनिक कंपनियों को अधिक क्षमता वाले देशों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन भी महत्वपूर्ण है. इस व्यापक दृष्टिकोण को अपनाकर GBA दुनिया भर में जैव ईंधन के विकास को तेज़ कर सकता है, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दे सकता है और पूरे विश्व में जैव ईंधन तकनीक के आर्थिक एवं पर्यावरण से जुड़े फायदों को अधिकतम कर सकता है. इस तरह GBA वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन में एक प्रमुख किरदार के रूप में अपनी भूमिका मज़बूत कर सकता है. 


मानिनी गर्ग ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं. 

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