टास्क फोर्स 7: सुधारित बहुपक्षवाद की ओर: वैश्विक संस्थानों और संरचनाओं को बदलना
सार
जी20 को जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करना और इसे लेकर प्रतिक्रिया देनी चाहिए जो वैश्विक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को प्रभावित करती है. दुनिया की लगभग दो-तिहाई आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 85 प्रतिशत का योगदान देने वाला जी20, जलवायु संकट की गंभीरता और विश्व अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता है. इन मुद्दों पर मल्टीलेटरल रिस्पॉन्स के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों को अपनाने की आवश्यकता है: राष्ट्रों के बीच और उनके अंदर क्लाइमेट चेंज के अलग-अलग प्रभाव, महिलाओं समेत दूसरे समूह जो समाज के हाशिये पर रहने वाले हैं, उनके द्वारा असंगत रूप से महसूस किए जाते हैं, और इससे इनक्लुसिव ट्रांसफॉर्मेटिव क्लाइमेट पॉलिसी की ज़रूरत का पता चलता है.
भारत अपने G20 नेतृत्व के माध्यम से ग्लोबल साउथ के लिए एक बहुपक्षीय एज़ेंडा को आगे बढ़ाने और जलवायु बहुपक्षवाद के लिए एक समावेशी दृष्टिकोण का समर्थन करने के लिए बेहतर स्थिति में है. समावेशी नीति के औज़ारों को शामिल करके, मल्टीलेटरल प्रोसेस को सूचित करने के लिए अग्रणी रीजनल और ग्लोबल प्रोसेस में भारत उन देशों को शामिल कर सकता है जिनकी आवाज़ वैश्विक मंच पर कम सुनी जाती है और इस तरह स्टेकहोल्डर्स की एक व्यापक श्रृंखला को इसमें शामिल किया जा सकता है.
-
चुनौती
क्लाइमेट चेंज का वैश्विक और घरेलू आर्थिक सहयोग पर स्पष्ट रूप से प्रभाव नज़र आता है. [1] जैसे-जैसे क्लाइमेट चेंज के प्रभाव बदतर होते जा रहे हैं, इसके सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय तत्वों को एड्रेस करने वाले रिस्पॉन्स की आवश्यकता और अधिक ज़रूरी हो गई है. इस चुनौती और इससे जुड़े सभी मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए बड़े पैमाने पर मल्टीलेटरल कमिटमेंट की आवश्यकता है. यहां संवर्धित(एनहांस्ड) और समावेशी जलवायु सहयोग के लिए कोशिशें ‘कम होते’ बहुपक्षवाद(मल्टीलेटरलिज्म ) की पृष्ठभूमि में किया जा रहा है. [2] बहुपक्षवाद और इससे प्रभावित होने वाले लोगों के बीच अलगाव बढ़ता जा रहा है. आदर्श रूप से, वैश्विक प्रक्रियाओं को हाइपरलोकल सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं द्वारा एड्रेस किया जाना चाहिए जो ख़ास तौर पर विकासशील दुनियां से सबसे अधिक प्रभावित हैं. मौज़ूदा समय में भारत को ख़ुद को ग्लोबल साउथ के लिए एक भरोसेमंद आवाज़ के रूप में आगे लाना चाहिए और अपने व्यापक विदेश नीति उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अपनी जी20 अध्यक्षता का लाभ उठाना चाहिए, जिनमें से अधिकांश देश क्लाइमेट चेंज के कारण भोजन, ऊर्जा और पानी के संकट का सामना कर रहे हैं.
क्लाइमेंट चेंज को दुनिया की “सबसे बड़ी बाज़ार विफलता” माना जाता है, जो बाज़ार की अन्य ख़ामियों से भी बढ़ी है. [3] आने वाले दशक में, ‘जलवायु परिवर्तन को कम करने में विफलता’ और ‘जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन में नाकामी’, मानवता और विश्व अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा जोख़िम है, क्योंकि इसके बाद अन्य जटिल वज़ह जैसे एक्सट्रीम वेदर की घटनाएं, जैव विविधता की हानि और पारिस्थितिकी तंत्र का नुकसान तय है, और बड़े पैमाने पर इससे इमीग्रेशन होगा. [4]अर्थशास्त्री प्रकृति को मुख्यधारा में लाने की अपील करते हैं क्योंकि “अर्थव्यवस्था पर्यावरण की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है”. [5] आर्थिक निर्णय लेने के लिए जलवायु परिवर्तन के निहितार्थों से प्रेरित होना चाहिए जो उन्नति, विकास और समान अवसर में बाधा डालते हैं. संसाधन जुटाने के माध्यम से एक समावेशी और परिवर्तनकारी जलवायु दृष्टिकोण वर्तमान असमानताओं को दूर कर सकता है और जलवायु प्रभावों के प्रति हमारे रेजिलियेंस को मज़बूत कर सकता है.
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और ग्रीनहाउस गैसों के अग्रणी उत्पादकों के रूप में, जी20 पर जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती आर्थिक बर्बादी से निपटने की एक अनिवार्य ज़िम्मेदारी है. जी20 ने आर्थिक सहयोग और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध को पहचानते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं. राष्ट्रों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को सामने रखना चाहिए और पेरिस समझौते की पुष्टि करने के लिए प्रेरित करने से लेकर, ग्रीन एनर्जी कैपिटल जुटाने और डीकार्बोनाइजेशन (जलवायु वित्त सहित) को बढ़ावा देने, कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र के कार्यान्वयन को बढ़ावा देने, परिपत्र कार्बन अर्थव्यवस्था के साथ ग्रीन एनर्जी ट्रांसफॉर्मेशन को प्रोत्साहित करने और निर्माण करने तक और एडॉप्टिव रेजिलियेंस विकास के लिए एक अनिवार्य शर्त है और जी20 ने वैश्विक जलवायु कार्रवाई को सफलतापूर्वक बढ़ावा दिया है.
वर्तमान, पूर्ववर्ती और आगामी जी20 की अध्यक्षता, जो सभी विकासशील देशों के पास हैं, ग्लोबल साउथ के देशों की आवाज़ को मज़बूत करने और सभी के लिए एक समावेशी जलवायु और आर्थिक रूप से सुरक्षित भविष्य की सुविधा प्रदान करने का एक उत्कृष्ट मंच प्रदान करती हैं. भारत भौतिक जलवायु जोख़िम के मामले में तीसरा सबसे संवेदनशील देश है और 2050 तक 14 भारतीय राज्य दुनिया के शीर्ष 100 सबसे अधिक जलवायु-जोख़िम वाले क्षेत्रों में से एक होने जा रहे है. [6] वर्षों से भारत के मौज़ूदा अध्यक्ष पद और जलवायु नेतृत्व ने इसे समानता और समावेशिता के सिद्धांतों के अनुसार आगे का रास्ता तय करने के केंद्र में रखा है. ग्लोबल नॉर्थ के प्रभुत्व वाले समूह में, भारत के नेतृत्व वाला जी20 ग्लोबल साउथ के लिए क्लाइमेट फाइनेंस और आपदा जोख़िम लचीलेपन को आगे बढ़ाकर जलवायु बहुपक्षवाद (क्लाइमेट मल्टीलेटेरिज्म) को पुनर्जीवित कर सकता है.
भारत ‘साझा लेकिन अलग-अलग ज़िम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं’ के सिद्धांत की वकालत करता है. इस बात पर जोर देता है कि विकसित देश जो परंपरागत रूप से सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक रहे हैं, उन पर उत्सर्जन को कम करने और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने में मदद करने की अधिक ज़िम्मेदारी है. भारत समानता का समर्थक रहा है और ग्लोबल साउथ में उनके लिए चिंता व्यक्त करता है जिन्होंने जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान दिया है लेकिन महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव सहित सबसे अधिक प्रभाव झेलने पर मज़बूर हैं.
भारत के समावेशी और सहयोगात्मक जलवायु नेतृत्व के कुछ उदाहरण इंटरनेशनल सोलर अलायंस (आईएसए) और कोलिजन फॉर डिजास्टर रेजिलियेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआई) हैं. दोनों तंत्र जलवायु कूटनीति, एनर्जी एक्सेस, आपदा राहत और वित्त जुटाने और कैपेसिटी बिल्डिंग को सक्षम करके विकासशील देशों के लिए ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन को बढ़ावा देते हैं. [7] वो जलवायु पर विकसित और उभरते दोनों देशों के प्रयासों को संगठित और संस्थागत बनाने में भारत द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को दोहराते हैं. भारत और फ्रांस के संयुक्त प्रयास से बनी संस्था आईएसए जलवायु परिवर्तन के लिए उत्तर-दक्षिण सहयोग के महत्व को दोहराती है.
इसके अलावा, भारत 2030 के लिए अपने जलवायु लक्ष्यों का विस्तार करके एक उदाहरण स्थापित कर रहा है, [8] जिसमें 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता, 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा, उत्सर्जन में एक अरब टन की कटौती, 45 प्रतिशत तक अर्थव्यवस्था की कार्बन इन्टेन्सिटी को कम करना और 2070 तक नेट जीरो तक पहुंचना शामिल है. नवंबर 2022 में कॉप27 में ऐतिहासिक नुक़सान और क्षति वार्ता के बाद, [9] विकासशील देशों को वित्तीय सहायता और क्षतिपूर्ति के लिए विकसित देशों को ज़िम्मेदार ठहराने के लिए लगातार आगे बढ़ने की ज़रूरत है.
समानता, ऐतिहासिक उत्सर्जन और जलवायु न्याय(क्लाइमेट जस्टिस) पर भारत का रुख़ और ज़ोर विकासशील देशों के लिए इसकी नेतृत्वकारी भूमिका को दर्शाता है और यह जी20 की अध्यक्षता के दौरान समावेशी जलवायु बहुपक्षवाद पर ज़ोर देने के लिए अच्छी स्थिति में है.
हालांकि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चिंता का विषय है लेकिन देशों, भौगोलिक क्षेत्रों, पारिस्थितिकी प्रणालियों और लोगों पर इसका प्रभाव अलग-अलग और असमानुपातिक है. ग्लोबल साउथ को जलवायु परिवर्तन के अलग-अलग प्रभावों का सामना करना पड़ता है, महिलाओं और अन्य हाशिए पर रहने वाले समूहों को सामाजिक और आर्थिक ज़िम्मेदारियों, खाद्य और जल सुरक्षा, ऊर्जा और स्वास्थ्य देखभाल दायित्वों सहित अंतरविरोधी विशेषताओं के कारण इन प्रभावों का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता है, जो इन वर्गों को अधिक असुरक्षित बनाते हैं.[10] प्राकृतिक आपदाओं की जेंडर नेचर पर एशियन डेवलपमेंट बैंक [11] के 20 साल के अध्ययन से पता चलता है कि जिन समाजों में महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति कम है, प्राकृतिक आपदाएं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आपदा के बाद पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज़्यादा प्रभावित करती हैं.
जलवायु परिवर्तन के चलते नुक़सान और क्षति, आर्थिक और गैर-आर्थिक दोनों प्रकार की होती है. [12] ग्लोबल साउथ की अर्थव्यवस्था कृषि, फॉरेस्ट्री, मत्स्य पालन और पर्यटन जैसे जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों पर बहुत अधिक निर्भर है, जो सभी तरह के क्लाइमेट चेंज के प्रति संवेदनशील हैं. इसके अतिरिक्त, गैर-आर्थिक नुक़सान और क्षति भी हैं [13] जिन्हें आर्थिक दृष्टि से मापना मुश्किल है. सांस्कृतिक विरासत स्थलों, जैव विविधता या पारंपरिक आजीविका के नुक़सान का प्रत्यक्ष आर्थिक मूल्य नहीं मापा जा सकता है लेकिन वे समुदायों और समाज की भलाई के लिए ज़रूरी होते हैं.
इस बीच वैश्विक उत्सर्जन को कम करके और ग्लोबल वार्मिंग को उलट कर जलवायु संकट से निपटने के समाधान तलाशे जा रहे हैं, हालांकि इसका ख़ामियाज़ा आपदाओं के रूप में महसूस किया जाता रहा है. एक अनुमान के अनुसार 90 प्रतिशत प्राकृतिक आपदाएं और 95 प्रतिशत आपदा-संबंधी मौतें विकासशील देशों में होती हैं. [14] ग्लोबल साउथ में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव इस तथ्य से और भी गंभीर हो गए हैं कि उनके पास इन चुनौतियों से निपटने के लिए संसाधनों और बुनियादी ढांचे की कमी है, जिससे जलवायु संबंधी आपदाओं से निपटना और उनसे उबरना मुश्किल हो जाता है और इससे जलवायु आपदा का एक दुष्चक्र शुरू हो जाता है. इसके अलावा, इन देशों के एक अहम भाग में सुशासन, पारदर्शिता, जवाबदेही की कमी होती है जिसकी वज़ह से उच्च स्तर का भ्रष्टाचार यहां हावी रहता है. ऐसे में एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो विकासशील और अविकसित देशों को ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए अवसर प्रदान कर सके.
क्लाइमेट एक्शन को समानता और न्याय पर ध्यान देने के साथ, विशेष रूप से सबसे कमज़ोर समूहों पर प्रभावों की जटिलताओं को संबोधित (अड्रेस) करना चाहिए. इसका मतलब यह सुनिश्चित करना है कि सबसे कमज़ोर समुदायों और क्षेत्रों को वित्तीय और तकनीक़ी सहायता के साथ-साथ संसाधनों और एडाप्टेशन (अनुकूलन) के लिए पहुंच हासिल हो सके. इसमें अनुकूलन प्रयासों में स्वदेशी और स्थानीय समूहों के पारंपरिक ज्ञान और प्रैक्टिस को स्वीकार करना और निर्णय लेने में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना भी शामिल है. जेंडर ब्लाइंड क्लाइमेट एक्शन डिफ़ॉल्ट रूप से विफल होने की गारंटी है क्योंकि यह विशिष्ट नीतियों के असमान प्रभावों को नज़रअंदाज़ करती है. अंततः, समावेशन के परिणामस्वरूप जी20 के भीतर एक मॉडल या रूपरेखा की स्थापना हो सकती है जो प्रणालीगत परिवर्तन को प्रेरित करती है, जिससे अलग-अलग वर्क स्ट्रीम में विकास और सतत विकास को बढ़ावा मिलता है और इससे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग, जलवायु न्याय(क्लाइमेट जस्टिस) के प्रति प्रतिबद्धता, समावेशिता को मुख्यधारा में लाना और विकसित और विकासशील देशों के बीच न्यायसंगत बोझ साझा करना आवश्यक हो जाता है. [15]
-
जी 20 की भूमिका
ग्लोबल मल्टीलेटरल सिस्टम के प्रति बढ़ते अविश्वास के बीच, [16] जी20 प्रभावी जलवायु सहयोग को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. साल 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान जी20 की स्थापना के बाद से, बहुपक्षवाद में समावेशिता(डाइवर्सिटी इन मल्टीलैटेरलिज्म), समानता और विविधता का विश्वदृष्टिकोण विकसित हुआ है, जैसा कि ‘संकट’ को लेकर भी एक विचार पैदा हुआ है, जिसमें स्पष्ट रूप से जलवायु भी अब शामिल है. जलवायु परिवर्तन के संबंध में जी20 एक इनक्लूसिव ग्रीन ट्रांजिशन, एक्सिलरेटेड क्लाइमेट फंडिंग और डिजास्टर रेजिलियेंस के साथ जोख़िम में कमी में सुधार का नेतृत्व कर सकता है, जिससे इसके दायरे और विशेषज्ञता के अंतर्गत आने वाले मुद्दों और ग्लोबल इकोनॉमी और विकास से संबंधित मुद्दों से निपटना संभव हो सकता है.
यह भारत के लिए जी20 में समावेशिता(इंक्लूजिविटी ) की हिमायत करने का, ख़ास तौर पर जलवायु बहुपक्षवाद के लिए ग्लोबल साउथ की चिंताओं को एज़ेंडे में शामिल करने और जेंडर परिप्रेक्ष्य को शामिल करने और हाशिए पर चले गए देशों की आवाज़ को शामिल करने का सबसे सही अवसर है. जी20 को उत्सर्जन में कमी लाने, जलवायु वित्त जुटाने, कम कार्बन अर्थव्यवस्था में परिवर्तन में तेज़ी लाने, अनुकूलन और लचीलेपन को मज़बूत करने और जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए निर्णायक कार्रवाई करनी पड़ेगी. अपनी क्लाइमेट रिलेटेड वर्क स्ट्रीम और सहभागिता समूहों के माध्यम से – उदाहरण के लिए, स्थायी वित्त कार्य समूह, ऊर्जा संक्रमण कार्य समूह, कार्बन मूल्य निर्धारण नेतृत्व गठबंधन, और हाल ही में गठित पर्यावरण और जलवायु स्थिरता कार्य समूह – जी20 जलवायु परिवर्तन और सतत विकास नीति का निर्माण और कार्यान्वयन कर सकता है. समावेशिता के लिए नए विचारों को भी लागू किया जाना चाहिए क्योंकि बहुपक्षवाद, दूसरे अंतर्राष्ट्रीय प्रणालियों की तरह ही, निर्णय लेने वाली भूमिकाओं में महिलाओं को पर्याप्त रूप से शामिल करने में विफल रहा है. [17]
क्लाइमेट मल्टीलेटरलिज्म , या जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सहयोग, राजनीतिक असहमति, आर्थिक हितों, ग्लोबल साउथ देशों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं पर अतिरिक्त टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को लागू करने, प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे की बाधाओं, सीमित संसाधनों और भरोसे की कमी के कारण बाधित रहा है. वैश्विक और मल्टीलेटरल क्लाइमेट एक्शन को ना केवल क्लाइमेट फंडिंग के मुद्दे पर विचार करना चाहिए बल्कि भरोसा बढ़ाने के लिए विकासशील देशों की ज़रूरतों का जवाब भी देना चाहिए. लो-कार्बन इकोनॉमी में एनर्जी ट्रांजिशन और रिन्यूएबल एनर्जी के बढ़ते उपयोग के लिए ग्लोबल नॉर्थ द्वारा अनुदान के रूप में वित्तीय प्रतिबद्धताओं और ग्लोबल साउथ के लिए शून्य-ब्याज़/कम-ब्याज़ ऋण की आवश्यकता होगी. नेट ज़ीरो तक पहुंचने के लिए न्यूनतम 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वार्षिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है.[18] क्लाइमेट फंडिंग को मात्रात्मक रूप से देखने के अलावा (यानी, वित्तीय प्रवाह की मात्रा), क्लाइमेट फंडिंग के गुणात्मक पहलुओं को देखना महत्वपूर्ण है. [19] इसमें यह सवाल शामिल है कि क्या नीति नियोजन में जनसंख्या के प्रभावित वर्ग का प्रतिनिधित्व किया गया है और क्या परियोजनाओं में जेंडर इक्वालिटी फैक्टर्स और जेंडर रिस्पॉन्सिबल रणनीतियां शामिल हैं.
-
जी20 को सिफ़ारिशें
चुनौतियों पर क़ाबू पाने के लिए मज़बूत वैश्विक सहयोग, निरंतर राजनीतिक इच्छाशक्ति और विकासशील देशों के लिए स्वच्छ प्रौद्योगिकी और जलवायु लचीलेपन में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है. जी20 के भीतर एक क्लाइमेट लिगेसी बनाने के लिए इस पॉलिसी ब्रीफ में प्रस्ताव दिया गया है कि भारतीय अध्यक्षता के दौरान क्लाइमेट एक्शन दो स्तंभों पर आधारित होना चाहिए: डिज़ास्टर रिस्क रेजिलियेंस, और क्लाइमेट फ़ंडिंग.
* डिज़ास्टर रिस्क रेजिलियेंस
भारत की जी20 अध्यक्षता ने डिज़ास्टर रिडक्शन वर्किंग ग्रुप के गठन का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया. [20] इसके अलावा जी 20 में आमंत्रित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की सूची में सीडीआरआई [21] को शामिल किया जाना भी विविध देश के दृष्टिकोण को शामिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है.
भारत डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन एंड रेजिलियेंस में जेंडर लेंस को शामिल करने पर विचार कर सकता है. जेंडर स्पेसिफिक बाधाओं और असमानता के कारण महिलाओं को आपदाओं के दौरान जीवन और आजीविका में अधिक नुक़सान उठाना पड़ता है, साथ ही इससे उबरने में भी महिलाओं को लंबा समय लगता है.[22] महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के लिए भारतीय जी20 अध्यक्षता को ध्यान में रखते हुए, डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन में वुमन लीडर्स की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए, जहां महिलाओं को सामुदायिक नेताओं के रूप में संगठित किया जा सकता है. ज़ेंडर रिस्पॉन्सिव डिज़ास्टर रिलीफ का होना और नीति नियोजन, कार्यान्वयन और निगरानी चरणों में महिलाओं के दृष्टिकोण को शामिल करना बेहद आवश्यक है.
एक अन्य मुद्दा जेंडर डिसएग्रीगेटेड डेटा का संग्रह है. संयुक्त राष्ट्र महिला रिपोर्ट के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल 70 देशों में से 62 देशों ने कहा कि उन्होंने उचित जेंडर डिसएग्रीगेटेड डेटा एकत्र नहीं किया है. [23] भारत ने ‘विकास के लिए डेटा’ की शक्ति का उपयोग करने पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित किया है. [24] आपदाओं पर डेटा को शामिल करने के लिए इसका विस्तार करने से प्लानिंग, रिस्पॉन्स और रिकवरी पर महत्वपूर्ण लाभकारी प्रभाव पड़ सकते हैं.
प्रयासों के दोहराव से बचने और नीतिगत कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करने को सुव्यवस्थित बनाने के लिए जी20 जेंडर सेंसिटिव डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन पर मौज़ूदा ढांचे और संस्थागत विशेषज्ञता का लाभ उठा सकता है. महिलाओं की स्थिति पर 2012 के संयुक्त राष्ट्र आयोग के संकल्प 56/2, [25] ने आपदा योजना और प्रबंधन के सभी पहलुओं में लैंगिक परिप्रेक्ष्य को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता पर जोर दिया है. डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय का सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030) [26] यह भी मानता है कि महिलाएं, विशेष रूप से ज़मीनी स्तर पर, जोख़िम को कम करने के प्रयासों में एक आवश्यक भूमिका निभाती हैं.
डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन को बढ़ाने के लिए जी20 का प्रयास प्रासंगिक सहभागिता समूहों और वर्क स्ट्रीम के बीच सहयोगात्मक होना चाहिए. इस पॉलिसी ब्रीफ में प्रस्ताव है कि थिंक20 (टी20), वूमेन20 (डब्ल्यू20), और डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन वर्किंग ग्रुप इस मुद्दे पर एकजुट हों. टी 20 और डब्ल्यू 20 (जो पहले से ही विभिन्न क्षमताओं में एक-दूसरे के साथ इंटरफेस करते हैं) मूल्यवान संसाधनों के रूप में काम कर सकते हैं, जबकि डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन वर्किंग ग्रुप अपने ढांचे के भीतर सुझावों को शामिल करने की दिशा में काम कर सकता है. इसके अलावा ‘विकास के लिए डेटा’ पहल को आपदाओं पर ध्यान देने के साथ, अपने सभी क्षेत्रों में जेंडर-डिसएग्रीगेटेड डेटा संग्रह के लिए अधिक सक्रियता दिखानी चाहिए.
नीति अंतराल |
प्रासंगिक मौजूदा संरचनाएं और संस्थान |
सुझाई गई कार्रवाई |
1. डीआरआर नीति निर्माण में महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों की अनुपस्थिति.2. व्यापक लिंग पृथक्कृत डेटा का अभाव.3. आपदाओं के प्रति सीमित लिंग-संवेदनशील प्रतिक्रियाएँ. |
1. यूएनसीएसडब्ल्यू संकल्प 56/2, आपदा प्रोग्रामिंग के सभी पहलुओं में लैंगिक परिप्रेक्ष्य को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है. 2.आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए यूएनडीआरआर का सेंडाई फ्रेमवर्क.3. आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन. |
1.इन्फ्रास्ट्रक्चर वर्किंग ग्रुप के संभावित विस्तार के साथ टी20, डब्ल्यू20 और जी20 डीआरआर वर्किंग ग्रुप के बीच इंटरफेसिंग में वृद्धि.2. विकास के लिए डेटा में आपदाओं के संदर्भ में लिंग-विभाजित डेटा पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है. |
* क्लाइमेट फाइनेंस(जलवायु वित्त)
जी20 के भीतर, जलवायु वित्तपोषण (क्लाइमेट फाइनेंसिंग) का मुद्दा (विशेषकर नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित) अधिकांश जलवायु चर्चाओं में मुख्य आधार है. नैरेटिव को अब गुणात्मक पहलुओं (जैसे अनुदान और शून्य/कम ब्याज़ ऋण के माध्यम से वित्तपोषण) और मात्रात्मक पहलुओं (सहयोग और साझेदारी) दोनों को शामिल करने के लिए विस्तारित करना होगा. इसके लिए जलवायु संकट को सहयोग और मदद के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक अवसर के रूप में फिर से तैयार करने की आवश्यकता है.
भारत को विकासशील और कम आय वाले देशों के लिए अनुदान-आधारित क्लाइमेट फाइनेंस फ्लो की वकालत करने और जेंडर-जस्ट क्लाइमेट चेंज का समर्थन करने पर विचार करना चाहिए.
इनवायरन्मेंट और क्लाइमेट सस्टेनेबल वर्किंग ग्रुप [27] और सस्टेनेबल फंडिंग वर्किंग ग्रुप [28] के माध्यम से, जी20 जलवायु वित्त के लिए एक रोडमैप तैयार करने और एक न्यायसंगत ट्रांजिशन के लिए रास्ता तैयार करने के लिए अच्छी तरह से तैनात है. जलवायु वित्त (क्लाइमेट फाइनेंस) के प्रति प्रतिबद्धता को निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी से मज़बूत किया जा सकता है, जिसे बिज़नेस 20 सहभागिता समूह के माध्यम से जुटाया जा सकता है. [29]
मल्टीलेटरल लेवल पर एक भागीदार संगठन के रूप में आईएसए [30] सहित, ग्लोबल साउथ की आवाज़ उठाने में भारत की भूमिका को और अधिक स्थापित करता है. आईएसए विश्व स्तर पर, विशेष रूप से छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों के लिए सोलर डिप्लॉयमेंट की भूमिका को आसान बनाता है.
ऑपरेशनल लेवल पर क्लाइमेट फंडिंग और रिन्यूएबल एनर्जी में जेंडर दृष्टिकोण शामिल होना चाहिए. अगर शुरू से ही जेंडर पर विचार किया जाए तो परियोजनाओं के लाभकारी [31] आर्थिक और सामाजिक प्रभाव होंगे जो लॉन्ग टर्म वायबिलिटी (दीर्घकालिक व्यवहार्यता) में मदद करेंगे. महिलाओं और ऊर्जा के अंतर्संबंध को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, नीतियां अक्सर जेंडर ब्लाइंड होती हैं, इसके बावज़ूद भारत में 92 प्रतिशत ग्रामीण घरेलू ऊर्जा ज़रूरतो को महिलाओं द्वारा पूरा किया जाता है. [32]
डब्ल्यू 20 समूह रिन्यूएबल एनर्जी में महिलाओं की भागीदारी को एक्सीलरेट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. यह कॉप27 से जेंडर और महिलाओं पर कुछ सीख और सिफ़ारिशों को शामिल कर सकता है [33] और डेवलपमेंट वर्किंग ग्रुप के साथ इंटरफेस कर सकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परिणाम बढ़ोतरी और विकास समग्र और समावेशी हो, जिसमें सभी समाज को लाभ हो.
नीतिगत अंतराल/चुनौती |
मौजूदा संगठन और पहल |
सुझाई गई कार्रवाई |
1. ऊर्जा संक्रमण को मजबूत करने के लिए लिंग लेंस को जोड़ना.2. निजी क्षेत्र से पूंजी का दोहन.3. यह सुनिश्चित करना कि ग्लोबल साउथ में विकासशील देशों में पूंजी का प्रवाह हो. |
1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन.2. सीओपी 27 से लिंग-न्यायपूर्ण ऊर्जा परिवर्तन पर सिफ़ारिशें. |
1. पर्यावरण और जलवायु स्थिरता + सतत वित्त कार्य समूह त्वरित जलवायु वित्त की दिशा में एक मार्ग प्रशस्त करने के लिए; विकास कार्य समूह और W20 तथा EMPOWER ट्रैक को भी फीड करना.2. समावेशी जलवायु बहुपक्षवाद के लिए एक उपकरण के रूप में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का उपयोग करना.3. बी20 के माध्यम से निजी क्षेत्र को संगठित करना. |
मौज़ूदा मल्टीलेटरल सिस्टम बड़ी हैं और उनमें नेविगेट करना अक्सर कठिन होता है, विशेषकर कम प्रतिनिधित्व वाले देशों के लिए यह कठिन है. इन प्रणालियों में सकारात्मक बदलाव के लिए व्यापक सुधार की आवश्यकता नहीं है बल्कि इसे छोटे और अधिक केंद्रित कार्यों द्वारा भी हासिल किया जा सकता है. इस प्रकार भारत की जी20 की अध्यक्षता समावेशी जलवायु बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने और अलग-अलग वर्क स्ट्रीम के भीतर बेहतर अंतर्संबंध के माध्यम से जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सहयोग में तेज़ी लाने का अवसर पैदा करती है जो एक बड़े समूह की तरह बोझिल नहीं हैं और आम सहमति हासिल करना अक्सर आसान होता है. न्यायसंगत क्लाइमेट एक्शन को प्राथमिकता देकर, जिसमें रिन्यूएबल एनर्जी में परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए अनुदान-आधारित जलवायु वित्त को मज़बूत करना और ज़ेंडर इनक्लुसिव डिज़ास्टर रेजिलियेंस शामिल है, भारत विकासशील दुनिया के लिए प्रासंगिक तरीक़े से जलवायु संकट को संबोधित करने में महत्वपूर्ण नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है और सभी के लिए एक स्थायी भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.
Attribution: अदिति मुकुंद और नम्रता काबरा, “समावेशी जलवायु बहुपक्षवाद की ओरः G20 के लिए एक अवसर!,” T20 Policy Brief, June 2023.
[1] Christopher B. Field and Vicente R. Barros, Climate Change 2014 – Impacts, Adaptation and Vulnerability: Global and Sectoral Aspects (Cambridge University Press, 2014).
[2] Amrita Narlikar, “Harnessing New Opportunities in a World of Declining Multilateralism: What India Can Do for Itself and Others,” ORF, January 26, 2022.
[3] Nicholas Stern, “The Economics of Climate Change: The Stern Review”, Cambridge University Press, 2007.
[4] World Economic Forum, “Global Risks Report 2023,” WEF.
[5] Praveen Gupta, “Regulators Must Realise Economy Is a Fully Owned Subsidiary of Ecology,” Deccan Herald, March 29, 2023.
[6] Petrana Lorenz, “XDI Releases World-First Comparison of Every State’s Physical Climate Risk – 34 Million Addresses,” XDI, February 21, 2023.
[7] Kanchi Gupta, “India’s Emerging Blueprint for International Climate Leadership,” ClimateWorks Foundation, August 24, 2022.
[8] Ministry of Environment, Forest and Climate Change, Government of India.
[9] “COP27 Reaches Breakthrough Agreement on New “Loss and Damage” Fund for Vulnerable Countries”, UN Climate Press Release, November 20, 2022.
[10] Shouraseni Sen Roy, “Linking Gender to Climate Change Impacts in the Global South”, (New York: Springer, 2018)
[11] “Gender-Inclusive Disaster Risk Management”, Asian Development Bank, February 2014.
[12] Saleemul Huq and Mohamed Adow, “Climate Change Is Devastating the Global South,” Climate Crisis | Al Jazeera, May 13, 2022.
[13] United Nations Framework Convention on Climate Change, “Non-Economic Losses”, UNFCCC.
[14] Narayan Chandra Jana, R. B. Singh, “Climate, Environment and Disaster in Developing Countries”, (Singapore: Springer Nature, 2022).
[15] United Nations Environment Programme, “Emissions Gap Report 2018,” UNEP.
[16] “Trust and the Future of Multilateralism,” IMF, May 10, 2018.
[17] Tatiana Valovaya, “Women’s Imprint in Multilateralism”, Geneva: Geneva Global Policy Briefs, 2021.
[18] United Nations, “Climate Finance,” UN.
[19] “Qualitative Aspects of German Climate Finance: Participation, Gender and Human Rights – The German Contribution to International Climate Finance,” The German Contribution to International Climate Finance, January 12, 2023.
[20] “First Disaster Risk Reduction Working Group Meeting in Gandhinagar,” G20.
[21] “Coalition for Disaster Resilient Infrastructure”.
[22] United Nations Women, “Disaster Risk Reduction,” UN Women.
[23] “Best Practices For Inclusive Gendered Security In Natural Disasters”, Center for Excellence in Disaster Management & Humanitarian Assistance, Hawaii, 2022.
[24] “Data for Development: Role of G20 in Advancing the 2030 Agenda,” ORF, January 3, 2023.
[25] “Commission on the Status of Women”.
[26] United Nations Office for Disaster Risk Reduction, “Sendai Framework for Disaster Risk Reduction 2015-2030,” UNDRR.
[27] G20, “Sherpa Track”.
[28] G20, “Finance Track”.
[29] G20, “Engagement Groups”.
[30] “International Solar Alliance”.
[31] Global Green Growth Institute, “Climate Finance and Women”
[32] Senay Habtezion, “Gender and Energy”, UNDP, 2013.
[33] “Gender & Women at COP 27”, UNFCCC, 2022.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.