Author : Rakesh Sood

Published on Mar 24, 2020 Updated 0 Hours ago

इस विषय में एक राष्ट्रीय रणनीति बननी चाहिए, जो राज्यों को इस बात का विश्वास दे कि उन्हें इसके लिए संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे.

कोविड-19 से सफलतापूर्वक निपटने के लिए भारत के पास कम होता जा रहा है समय

भारत के पास कोविड-19 से निपटने की तैयारी का समय पर्याप्त से भी अधिक था. लेकिन अब ये समय अत्यंत तीव्र गति से समाप्त हो रहा है. भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण का पहला केस 30 जनवरी को दर्ज किया गया था. ये मरीज़ केरल के त्रिशूर ज़िले का रहने वाला था, जो चीन के वुहान शहर से लौटा था. वुहान से लौटे केरल के दो अन्य छात्र भी अगले चार दिनों में कोरोना से संक्रमित पाए गए थे. तबसे ये तीनों छात्र वायरस के संक्रमण से मुक्त हो चुके हैं.

उस समय में चीन में वायरस के संक्रमण के दस हज़ार केस सामने आ चुके थे, जो अधिकतर वुहान शहर में ही सीमित थे. इनके अलावा जो 98 अन्य लोग कोरोना वायरस से संक्रमित थे, वो 18 अन्य देशों के नागरिक थे. 23 जनवरी को एक करोड़ दस लाख की जनसंख्या वाले वुहान शहर और छह करोड़ की आबादी वाला चीन के हूबे प्रांत की सीमाओं को चीन ने तब तक बाक़ी देश से काटते हुए सील कर दिया था. लेकिन, तब तक क़रीब पचास लाख लोग, चीनी नव वर्ष के जश्न की छुट्टियों के लिए वुहान शहर आ कर जा चुके थे, जो सप्ताहांत से शुरु हुई थीं. इनमें ये कोरोना से संक्रमित पाए गए केरल के तीन भारतीय छात्र भी शामिल थे. 31 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नोवल कोरोना वायरस को अंतरराष्ट्रीय चिंता वाला सार्वजनिक स्वास्थ्य का आपातकाल घोषित कर दिया था. 11 फ़रवरी को इंटरनेशनल कमेटी ऑन टैक्सोनॉमी ऑफ़ वायरसेज़ ने इस नए वायरस का नाम कोविड-19 रखा था.

फ़रवरी का महीना भारत के लिए बढ़त वाला था. क्योंकि पूरे महीने तक भारत में कोरोना वायरस का एक भी नया केस दर्ज नहीं किया गया था. जबकि इस दौरान लगभग 60 देशों में कोरोना वायरस से संक्रमित पांच हज़ार से अधिक मामले सामने आ चुके थे. इनमें से कई देशों जैसे दक्षिण कोरिया, इटली और ईरान में वायरस से प्रभावित नए केंद्र उभरे थे. फरवरी के अंत तक चीन में कोरोना वायरस के मरीज़ों की संख्या 77 हज़ार को पार कर गई थी. जबकि इससे मरने वालों का आंकड़ा 2700 से अधिक हो गया था. मार्च महीने की शुरुआत में भारत में कोरोना वायरस के नए केस सामने आने की सूचना मिली. ये मामले हैदराबाद में (मरीज़ संयुक्त अरब अमीरात से लौटा था), दिल्ली में (संक्रमित व्यक्ति इटली होकर लौटा था) और जयपुर (इटली का नागरिक) में दर्ज किए गए थे. ये संख्या तब और बढ़ गई, जब जयपुर में वायरस से संक्रमित इटली के नागरिक के सभी 14 साथियों में कोरोना वायरस का इन्फ़ेक्शन पाया गया. मार्च का पहला हफ़्ता ख़त्म होने तक भारत में कोरोना वायरस के मरीज़ों की संख्या 30 को पार कर चुकी थी. और मार्च महीने के मध्य तक ये आंकड़ा 100 के पार चला गया था. अगले एक हफ़्ते में इस में और उछाल आया और देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 250 से अधिक हो गई.

इस समय तक चीन ने वायरस को और फैलने से रोकने में सफलता प्राप्त कर ली थी. तब तक चीन में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 80 हज़ार को पार कर चुकी थी. और इस वायरस के कारण चीन में तब तक 3245 लोगों की जान जा चुकी थी. लेकिन, इसी दौरान अन्य देशों में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या एक लाख 60 हज़ार से अधिक हो चुकी थी. और ये वायरस 148 देशों में फैल चुका था. इटली इस वायरस से सबसे बुरी तरह प्रभावित देश है, जहां अब तक कोरोना वायरस से चार हज़ार से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है. इसके बाद स्पेन, फ्रांस और जर्मनी का नंबर आता है. अमेरिका में कोरोना वायरस से पहले संक्रमण की सूचना 21 जनवरी को आई थी. तब से अब तक अमेरिका में इस वायरस से  संक्रमित लोगों की संख्या 35 हज़ार से भी अधिक हो चुकी है. इसी कारण से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 11 मार्च को कोरोना वायरस को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया.

प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन

स्पष्ट है कि कोरोना वायरस से निपटने के लिए भारत के पास जो समय था, वो तेज़ी से ख़त्म हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च को राष्ट्र को संबोधित किया. जिसमें उन्होंने देश के सामने खड़े इस संकट के बारे में जनता को बताया. प्रधानमंत्री का ये संबोधन प्रेरणास्पद था. जिसमें उन्होंने लोगों से अपील की कि वो सामाजिक दूरी बनाएं, घबराहट में अधिक ख़रीदारी से बचे. समाज के कमज़ोर और आर्थिक रूप से अक्षम लोगों के प्रति दया का भाव प्रदर्शित करें और 22 मार्च को ख़ुद से ही 14 घंटे के जनता कर्फ्यू का पालन करें. फिर भी, प्रधानमंत्री के संबोधन में उन क़दमों का कोई ज़िक्र नहीं था कि सरकार ने इस चुनौती से निपटने के लिए अब तक क्या क़दम उठाए हैं और आगे क्या करने जा रही है.

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के प्रमुख, डॉक्टर बलराम भार्गव ने 13 मार्च को एलान किया कि अगर भारत को इस वायरस के प्रकोप को कम्युनिटी ट्रांसमिशन के स्तर तक जाने से रोकना है, तो उसके पास एक महीने से भी कम समय बचा है. ये वायरस के प्रसार की वो स्टेज होती है, जब इसका प्रकोप एक महामारी के रूप में फैलने लगता है

मार्च महीने के दौरान सरकार ने धीरे-धीरे बाहर से आने वाले लोगों पर प्रतिबंधों का दायरा बढ़ाना शुरू किया. और, आख़िरकार 22 मार्च को सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर पाबंदी लगा दी. अधिकतर राज्यों ने सार्वजनिक कार्यक्रमों और लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. स्कूल-कॉलेज, रेस्टोरेंट, शॉपिंग मॉल, क्लब और सिनेमाघर बंद कर दिए गए हैं. हालांकि, कुछ मामलों में बैठने की सीमित क्षमता वाले रेस्टोरेंट जारी रखने की इजाज़त दी गई है. रविवार से सार्वजनिक परिवहन के सभी माध्यम बंद कर दिए गए हैं. लेकिन, अगर हमें आवश्यक सेवाओं जैसे कि स्वास्थ्य सेवाएं, बैंकिंग, बिजली और संचार व्यवस्था को जारी रखना है, तो हम इन प्रतिबंधों को लगातार जारी नहीं रख सकते हैं.

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के प्रमुख, डॉक्टर बलराम भार्गव ने 13 मार्च को एलान किया कि अगर भारत को इस वायरस के प्रकोप को कम्युनिटी ट्रांसमिशन के स्तर तक जाने से रोकना है, तो उसके पास एक महीने से भी कम समय बचा है. ये वायरस के प्रसार की वो स्टेज होती है, जब इसका प्रकोप एक महामारी के रूप में फैलने लगता है. वायरस के प्रसार का पहला चरण वो होता है, जब बाहर से आने वाले लोग इस संक्रमण को अपने साथ देश में ले आते हैं. और जब ये वायरस इन लोगों के संपर्क में आए लोगों में फैलता हो, तो इसे वायरस के प्रकोप का दूसरा चरण कहा जाता है. कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि करने वाले परीक्षण को  RT-PCR (रियल टाइम रिवर्स-ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमेरेज़ चेन रिएक्शन) कहते हैं. ये टेस्ट दो चरणों में होता है. पहला ये परखने के लिए होता है कि ये वायरस कोरोना वायरस परिवार का ही सदस्य है. और दूसरा ये जानने के लिए होता है कि ये वायरस 2019 नोवल कोरोना वायरस ही है है. आईसीएमआर ने अब तक 60 ऐसी सरकारी प्रयोगशालाओं की पहचान की है, जहां ये जांच कराई जा सकती है. और अब इसके परीक्षण के लिए आवश्यक टेस्ट किट की संख्या एक लाख से बढ़ा कर इसका स्टॉक दस लाख तक पहुंचाने में जुटी है. इसी के लिए आईसीएमआर शुरुआत में केवल उन्हीं लोगों के परीक्षण के पक्ष में थी थी, जिनमें बुखार, खांसी और सांस की अन्य दिक़्क़त के लक्षण दिखाई दे रहे थे. और जो या तो बाहर से यात्रा करके आए हैं. या फिर किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में संपर्क में आए थे.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख डॉक्टर टेड्रोस अधानॉम घेब्रेयेसस ने तमाम देशों से अपील की कि वो, ‘ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का टेस्ट करते रहें. और हर संदिग्ध व्यक्ति की जांच करें.’ इस पर प्रतिक्रिया देते हुए आईसीएमआर के प्रमुख डॉक्टर बलराम भार्गव ने 17 मार्च को कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का ये फ़ॉर्मूला भारत पर नहीं लागू होता. मगर, इसी के साथ 51 प्राइवेट लैब को भी कोरोना वायरस के पीसीआर टेस्ट की इजाज़त दे दी गई है. लेकिन, आईसीएमआर ने न तो उनको पर्याप्त मात्रा में टेस्टिंग किट उपलब्ध कराने का भरोसा दिया है और न ही इसके ख़र्च के दिशा निर्देश मुहैया कराने का वादा किया है. 2009 में H1N1 वायरस के प्रकोप के दौरान, प्राइवेट लैब्स को इसकी जांच का अधिकार दिया गया था. और उन्हें ये जांच करने की लागत चार हज़ार रुपए तय कर दी गई थी. आईसीएएमआर ऐसी दो विशाल यूनिट का आयात कर रही है, जो 1400 लोगों का प्रति दिन परीक्षण तीव्रता से कर सके. लेकिन, अभी इन मशीनों को आने में दो हफ़्ते का समय और लगेगा. अभी देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की कम संख्या का हवाला देकर आईसीएमआर ये दावा कर रही है कि भारत में कोरोना वायरस का कम्युनिटी ट्रांसमिशन नहीं हो रहा है. हालांकि, आलोचकों का कहना है कि अगर साक्ष्यों की तलाश नहीं करेंगे, तो वो मिलेगा कहां से.

18 मार्च को आईसीएमआर (ICMR) ने कोरोना वायरस के परीक्षण के लिए रोच डायग्नोस्टिक को इजाज़त दी थी. अन्य भारतीय कंपनियों द्वारा कोरोना वायरस की टेस्टिंग किट बनाने की मंज़ूरी मांगने वाले प्रार्थनापत्र अब तक लंबित पड़े हैं

बहुत से अन्य देशों ने कोरोना वायरस की जांच बड़े पैमाने पर की थी. चीन ने फरवरी की शुरुआत से ही अधिक से अधिक लोगों का टेस्ट करना आरंभ कर दिया था और प्रति दिन दस हज़ार लोगों का परीक्षण किया जाने लगा था. दक्षिण कोरिया में 15 फ़रवरी तक 28 मामले सामने आए थे. जिसके बाद उसने संक्रमण के शुरुआती चरण में ही बड़ी संख्या में लोगों का परीक्षण शुरू कर दिया था. वहां, प्रति दिन बीस हज़ार लोगों के टेस्ट किए जाने लगे थे. यही कारण है कि दक्षिण कोरिया अपने यहां वायरस के संक्रमण को आठ हज़ार 600 लोगों तक ही सीमित रखने में सफल रहा. जबकि, इटली में 15 फरवरी तक कोरोना वायरस के केवल तीन मामले पाए गए थे. और, अब वहां इससे संक्रमित लोगों की संख्या पचास हज़ार से भी अधिक हो गई है. और इटली ने व्यापक स्तर पर लोगों का परीक्षण तीन हफ़्ते बाद जाकर शुरू किया था.

18 मार्च को आईसीएमआर (ICMR) ने कोरोना वायरस के परीक्षण के लिए रोच डायग्नोस्टिक को इजाज़त दी थी. अन्य भारतीय कंपनियों द्वारा कोरोना वायरस की टेस्टिंग किट बनाने की मंज़ूरी मांगने वाले प्रार्थनापत्र अब तक लंबित पड़े हैं. चूंकि, इस नए वायरस का जीनोम सीक्वेंस 24 जनवरी को ही सार्वजनिक कर दिया गया था. और पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी ने स्वतंत्र रूप से भी वायरस के एक शुद्ध स्ट्रेन को अलग करने में सफलता प्राप्त की थी. ऐसे में जांच करने वाली किट को त्वरित गति से बनाने के लिए उन्हें तुरंत मंज़ूरी दी जाती, तो लोगों का अधिक विश्वास जीता जा सकता था. बड़ी मात्रा में टेस्टिंग किट बनाने से इसके मूल्य में भी कमी आती. जबकि अभी एक टेस्टिंग किट की क़ीमत क़रीब पांच हज़ार बैठती है. निजी क्षेत्र की जिन लैब को वायरस के परीक्षण की इजाज़त दी गई है, उन्हें आवश्यक किट उपलब्ध कराने की व्यवस्था ऐसी हो कि उन्हें मुफ़्त में ये किट प्रदान की जाएं. इससे टेस्टिंग का दायरा और व्यापक किया जा सकेगा. इसके अलग, आईसीएमआर अब तक वायरस के प्रकोप से निपटने के लिए त्वरित प्रक्रिया के नियामक फ्रेमवर्क को ही तैयार करने में लगा हुआ है.

चीन की लापरवाही

अब तक सामने आई सूचनाओं को जोड़ कर जो तस्वीर बन रही है, उससे साफ़ है कि कोरोना वायरस की ये बीमारी चीन में नवंबर के आख़िरी दिनों या दिसंबर की शुरुआत में वुहान में सामने आई थी. प्रारंभ में इसे न्यूमोनिया के लक्षणों वाली नई रुग्णता के तौर पर पहचाना गया था. और, जिस पर एंटी फ्लू दवाओं का असर नहीं हो रहा था. डॉक्टर ली वैनलियांग, जिन्होंने एक वी चैट ग्रुप पर ‘सार्स (SARS) जैसे नए वायरस’ के सामने आने पर चैटिंग की थी, उन पर स्थानीय अधिकारियों कई तरह की पाबंदियां लगा दी थीं, ताकि उनका मुंह बंद किया जा सके. डॉक्टर वेनलियांग बाद में इस वायरस से संक्रमित हो गए थे और सात फ़रवरी को उनका निधन हो गया था.

चीन ने इस नई बीमारी की सूचना विश्व स्वास्थ्य संगठन को 31 दिसंबर को दी. इसके बाद भी 21 जनवरी तक, विश्व स्वास्थ्य संगठन, चीन की भाषा बोलता रहा कि इस वायरस के एक इंसान से दूसरे इंसान में संक्रमण के कोई सबूत नहीं मिले हैं. यहां तक कि 18 जनवरी को वुहान शहर के अधिकारियों ने चीन के नए साल की पूर्व संध्या पर एक विशाल जलसे का आयोजन किया. जिसमें चालीस हज़ार परिवार शामिल हुए थे. जब 23 जनवरी को चीन की सरकार ने वुहान शहर में तालाबंदी की, तब तक इस नए वायरस से संक्रमित लोग दक्षिण कोरिया, जापान, हॉन्ग कॉन्ग, ताइवान, थाईलैंड, सिंगापुर और अमेरिका तक में पाए जा चुके थे.

चीन की सरकार की सख़्त कार्रवाई के बाद वायरस को लेकर परिचर्चा का रुख़ चीन की शुरुआती लापरवाही से बदलकर दूसरी दिशा में मुड़ गया था. अब कहा जाने लगा कि चीन ने क्वारंटाइन को बेहद सख़्ती से लागू करके बाक़ी दुनिया के लिए इस वायरस से निपटने की तैयारी करने के लिए समय उपलब्ध कराया. ऐसी कहानियां सामने आने लगीं कि किस तरह चीन ने बड़ी तेज़ी से अस्थाई अस्पतालों का निर्माण किया और देश भर से तीस हज़ार स्वास्थ्य कर्मियों को वुहान पहुंचाया. कुल मिलाकर, अब चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ़ से ये माहौल बनाया जाने लगा कि चीन ने कितनी फुर्ती से कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए आवश्यक क़दम उठाए. चीन अब भले ही दूसरे देशों की मदद करने का प्रस्ताव दे रहा हो, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चीन के प्रशासन ने वायरस का प्रकोप शुरू होने के शुरुआती दिनों में बहुत लापरवाही बरती. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, अपने देश की छवि, दुनिया के एक उत्तरदायी राष्ट्र के तौर पर गढ़ने का प्रयास कर रहे थे. लेकिन, कोरोना वायरस के प्रकोप से जिस तरह चीन निपटा है, उसने जिनपिंग के इन प्रयासों को काफ़ी क्षति पहुंचाई है.

भारत की चुनौती

कोरोना वायरस से उत्पन्न वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती ने कई देशों की अर्थव्यवस्था के सामने खड़ी आर्थिक चुनौती को फिलहाल ढक दिया है. भारत जैसे देश में, जहां बड़ी संख्या में लोग असंगठित क्षेत्र में कार्य करते हैं, उनके लिए ये चुनौती और भी बड़ी है. फिलहाल, तो महाराष्ट्र और गुजरात में हज़ारों की तादाद में अप्रवासी कामगारों की छंटनी कर दी गई है. और वो अब मजबूरन अपने गांवों को लौट रहे हैं. अब तक केवल केरल की सरकार ने ही आर्थिक रूप से कमज़ोर तबक़े की सहायता के लिए कोई योजना प्रस्तुत की है. ताकि उन लोगों की मदद की जा सके, जिन्हें कोरोना वायरस की वजह से अपनी रोज़ी गंवा देने का ख़तरा है. इस विषय में एक राष्ट्रीय रणनीति बननी चाहिए,जो राज्यों को इस बात का विश्वास दे कि उन्हें इसके लिए संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे.

भारत में प्रति दस हज़ार व्यक्तियों पर अस्पताल में केवल सात बेड उपलब्ध हैं. जबकि अमेरिका में ये अनुपात 29 है, तो इटली में 34. स्पष्ट है कि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति बेहद कमज़ोर है. इसीलिए, इस परिस्थिति से निपटने के लिए केवल केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयास करने से ही काम नहीं चलेगा

भारत में प्रति दस हज़ार व्यक्तियों पर अस्पताल में केवल सात बेड उपलब्ध हैं. जबकि अमेरिका में ये अनुपात 29 है, तो इटली में 34. स्पष्ट है कि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति बेहद कमज़ोर है. इसीलिए, इस परिस्थिति से निपटने के लिए केवल केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयास करने से ही काम नहीं चलेगा. बल्कि, सरकारों के साथ-साथ निजी क्षेत्र और सिविल सोसाइटी को भी आगे आना होगा. आज एक नेशनल टास्क फ़ोर्स की आवश्यकता है, जिसके सामने टेस्टिंग किट, अस्पताल में बेड और बायोटेक उद्योग में रिसर्च के लिए धन उपलब्ध कराने के लक्ष्य स्पष्ट हों. ताकि ये सभी मिल कर के एक वैक्सीन को विकसित कर सकें, न कि अलग-अलग संकेत से भ्रम पैदा करें. लोगों को संयम और संकल्प से काम लेने की अपील करना निश्चित रूप से एक राजनेता का कार्य है. लेकिन, इस पर लोगों का यक़ीन तब और बढ़ जाएगा, जब सामने खड़ी चुनौती से निपटने के लिए सरकार और अन्य क्षेत्रों के बीच आपसी समन्वय स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो. भारत के पास इस महामारी से निपटने के लिए जो समय था, वो बहुत तेज़ी से बीत रहा है. और अब सरकार इसे व्यर्थ करने का जोखिम अब और नहीं उठा सकती.

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