जिस वक़्त अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े के बाद भारत के पड़ोस में संरचनात्मक बदलाव के संकेत मिल रहे हैं, उसी वक़्त भारत के दक्षिण से एक नई चुनौती का उदय हो रहा है. खाने-पीने के सामान की कमी से जूझ रहा श्रीलंका अब एक आर्थिक विपदा के मुहाने पर खड़ा है जिस पर अगर काबू नहीं पाया गया तो उसका भारत के सुरक्षा हालात पर गंभीर असर होगा.
ये आर्थिक संकट श्रीलंका के आर्थिक विकास के मॉडल के कई दशकों का नतीजा है. मध्यम आय वर्ग के देश में बदलने के बावजूद लंबे गृह युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता की वजह से श्रीलंका बड़े पैमाने पर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने में नाकाम रहा. श्रीलंका अपने आर्थिक विकास को सॉवरेन बॉन्ड और अंतर्राष्ट्रीय द्विपक्षीय व्यावसायिक कर्ज़ के ज़रिए बरकरार रखने में लगा रहा. इस तरह के कर्ज़ आम तौर पर ऊंची ब्याज़ दर मिलते हैं और इन्हें कम समय में चुकाने की शर्त होती है (सारणी 1 देखें). इसकी वजह से श्रीलंका सरकार को मजबूर होकर अपनी आमदनी और विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल कर्ज़ चुकाने के लिए करना पड़ा और खर्च चलाने के लिए फिर से कर्ज़ लेना पड़ा. 2020 तक श्रीलंका पर बाहरी कर्ज़ बढ़कर 35.3 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया.
ये आर्थिक संकट श्रीलंका के आर्थिक विकास के मॉडल के कई दशकों का नतीजा है. मध्यम आय वर्ग के देश में बदलने के बावजूद लंबे गृह युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता की वजह से श्रीलंका बड़े पैमाने पर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने में नाकाम रहा.
सारणी 1. श्रीलंका का बकाया बाहरी कर्ज़
दान दाता |
बाज़ार से कर्ज |
एशियाई विकास बैंक |
जापान |
चीन |
विश्व बैंक |
भारत |
प्रतिशत (%) |
47% |
13% |
10% |
10% |
9% |
2% |
स्रोत: न्यूज़ वायर
ईस्टर धमाके और उसके बाद कोविड की लहरों के साथ श्रीलंका का 3-5 अरब अमेरिकी डॉलर (या देश की जीडीपी का 10 प्रतिशत) का पर्यटन उद्योग ठहर सा गया जिसकी वजह से श्रीलंका का राजस्व और विदेशी मुद्रा भंडार और भी कम हो गया. ये संकट श्रीलंका के खाद्यान्न उत्पादन में कमी और ऑर्गेनिक खेती की तरफ़ बढ़ने की सरकार की एकतरफ़ा नीति के कारण निर्यात की वजह से और भी बढ़ गया. घाटे पर सरकार चलाने की परंपरा और कर में कमी ने स्थिति और ख़राब कर दी. इसकी वजह से जुलाई 2021 तक श्रीलंका के पास सिर्फ़ 2.8 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बच गया.
इन सभी कारणों ने महंगाई में योगदान दिया, कई आयातित सामानों पर पाबंदी लगानी पड़ी और खाने-पीने के सामान का आपातकाल आ गया. इसके अलावा, आशंका जताई जा रही है कि ये संकट लंबे समय तक बना रहेगा क्योंकि श्रीलंका सरकार इस परिस्थिति में भी ग़लत ढंग से शासन व्यवस्था चलाने में लगी है, वो भी उस वक़्त जब 2030 तक श्रीलंका की ऋण परिपक्वता बढ़ती रहेगी.
अगर श्रीलंका को भारत का अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और सहयोग चाहिए तो उसे उन मुद्दों पर काम करना होगा जो वहां की राजनीति पर साफ़ तौर पर चोट करेंगे. इन मुद्दों में अल्पसंख्यक अधिकार, 13वें संशोधन को लागू करना और चीन से ख़ुद को दूर करना शामिल है.
जवाब की उम्मीद करना: चीन, भारत, पश्चिमी देश और आगे क्या?
अतीत में श्रीलंका आर्थिक सहायता के लिए चीन, भारत और आईएमएफ के पास गया है. लेकिन मौजूदा सरकार आईएमएफ से परहेज़ करना चाहती है और वो करेंसी स्वैप के लिए भारत और चीन से मदद मांग रही है जबकि कर्ज़दाताओं के समूह के कर्ज़/फॉरेन करेंसी टर्म्स फैसिलिटी के लिए चीन से मदद चाह रही है. लेकिन चूंकि संकट लगातार जारी है तो कई कारणों से श्रीलंका चीन के और भी क़रीब आएगा. मुख्य रूप से चीन ने श्रीलंका को विशाल कर्ज़ और डॉलर स्वैप सुविधा मुहैया कराई है और अभी भी लगातार मुहैया करा रहा है. कर्ज़दाताओं के समूह के इस कर्ज़ को भी श्रीलंका प्राथमिकता देगा क्योंकि इन्हें देते वक़्त कोई शर्त नहीं रखी जाती है और इससे बेहद ज़रूरी विदेशी मुद्रा भंडार में भी बढ़ोतरी होगी. दूसरी तरफ़, भारत न केवल चीन के मुक़ाबले (सारणी 1 को देखिए) श्रीलंका को कर्ज़ देने में पीछे रहा है बल्कि भारत ने करेंसी स्वैप की सुविधा का विस्तार करने से भी इनकार कर दिया है.
इसी तरह, जैसे भारतीय निवेश सामाजिक विकास को प्रोत्साहन देता है, उसी तरह चीन की मुख्य परियोजनाएं और निवेश जैसे कि कोलंबो पोर्ट सिटी और हंबनटोटा बंदरगाह बेहद ज़रूरी एफडीआई और लाभ बढ़ाते हैं. इस तरह चीन आकर्षण का एक बिंदु बनता है. आख़िर में, श्रीलंका के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जीतना और चीन से सहयोग पाना सिर्फ़ एक वजह (कम-से-कम अभी) पर निर्भर है यानी आर्थिक सहयोग. इसके उलट अगर श्रीलंका को भारत का अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और सहयोग चाहिए तो उसे उन मुद्दों पर काम करना होगा जो वहां की राजनीति पर साफ़ तौर पर चोट करेंगे. इन मुद्दों में अल्पसंख्यक अधिकार, 13वें संशोधन को लागू करना और चीन से ख़ुद को दूर करना शामिल है.
इसी तरह की चिंता ईयू-श्रीलंका संबंधों को लेकर भी है. श्रीलंका के सामानों के सबसे बड़े आयातकों में से एक (सारणी 2 को देखिए) यूरोपियन यूनियन ने दीर्घकालीन आयात पाबंदी लगाने के श्रीलंका के फ़ैसले के ख़िलाफ़ खीज का प्रदर्शन किया है और नतीजे भुगतने के संकेत दिए हैं. इसकी वजह से श्रीलंका में मानवाधिकार के मुद्दे पर ईयू-श्रीलंका के बीच दूरी और बढ़ सकती है और ये मुद्दे आगे के व्यापार और निवेश में रुकावट डालेंगे. इस तरह चीन के और भी क़रीब आ जाएगा श्रीलंका.
राष्ट्रीय हितों का फ़ायदा उठाना
लेकिन श्रीलंका के लिए चीन के ये प्रलोभन कर्ज़ के जाल से मुक्त नहीं हैं. इसलिए भारत के पास श्रीलंका को पूरी तरह चीन की तरफ़ झुकने देने से रोकने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. ये संकट भारत को एक मौक़ा मुहैया कराता है कि वो श्रीलंका को मजबूर करे कि भारतीय हितों/संवेदनशीलता का सम्मान करे और उन पर काम करे.
श्रीलंका के हित और उसकी आकांक्षाएं चीन के साथ क़रीबी संबंधों में हो सकती है लेकिन ये भारत का दायित्व है कि वो इस संकट को लेकर श्रीलंका के साथ बातचीत शुरू करे.
कर्ज़ और वित्तीय सहायता मुहैया कराने के परंपरागत तरीक़ों के अलावा भारत श्रीलंका पर दबाव बनाने के लिए सद्भावना नीतियों/राहत उपायों का इस्तेमाल कर सकता है. अपनी आयात पाबंदियों के ज़रिए श्रीलंका की सरकार प्राथमिक तौर पर अपने निर्यात राजस्व और विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने पर ध्यान दे रही है. श्रीलंका के सामानों के सबसे बड़े आयातकों (सारणी 2 देखिए) में से एक होने, जिसका 70 प्रतिशत मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के ज़रिए होता है, के साथ भारत के पास श्रीलंका का राजस्व और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने की काफ़ी क्षमता है. ऐसे में भारत इस अवसर का इस्तेमाल श्रीलंका के आयात के लिए समयबद्ध रियायत का प्रस्ताव तैयार करने में कर सकता है और उसे मजबूर कर सकता है कि वो भारतीय राष्ट्रीय हितों का पक्ष लेकर काम करे.
सारणी 2. श्रीलंका के निर्यात के बड़े गंतव्य और उसकी क़ीमत
2020 में श्रीलंका के निर्यात के बड़े गंतव्य |
निर्यात का मूल्य (अमेरिकी डॉलर में) |
अमेरिका |
2.66 अरब |
यूनाइटेड किंगडम |
956 मिलियन |
भारत |
654 मिलियन |
जर्मनी |
611 मिलियन |
इटली |
477 मिलियन |
बेल्जियम |
313 मिलियन |
नीदरलैंड्स |
307 मिलियन |
चीन |
252 मिलियन |
स्रोत: ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स
दूसरी बात, ग़ैर-ज़रूरी सामानों पर आयात पाबंदी की वजह से भारत और चीन- दोनों देशों से श्रीलंका को निर्यात कम हो गया है. लेकिन ये भारत के खाद्य पदार्थ और ज़रूरी सामानों का निर्यात है जो श्रीलंका को चीन के निर्यात के ऊपर अनुकूल परिस्थितियां मुहैया कराते हैं (सारणी 3 देखिए). इससे भारत के लिए एक अवसर मिलता है कि वो श्रीलंका को एक तय समय के लिए रियायती दर पर मानवीय खाद्य सहायता और ज़रूरी सामानों का निर्यात करे. भारत इस सद्भावना का इस्तेमाल कर श्रीलंका को इस बात के लिए मना सकता है कि वो भारतीय हितों और चिंताओं को लेकर ज़्यादा संवेदनशील हो.
सारणी 3. श्रीलंका को निर्यात होने वाले बड़े सामान
|
भारत से निर्यात होने वाले बड़े सामान |
चीन से निर्यात होने वाले बड़े सामान |
1 |
फार्मास्युटिकल्स उत्पाद |
लोहा और इस्पात |
2 |
चीनी और कंफेक्शनरी |
बुनी हुई फैब्रिक |
3 |
खनिज ईंधन, तेल और मोम |
टेलीफोन सेट |
4 |
लोहा और इस्पात |
मानव निर्मित स्टेपल फाइबर |
5 |
नमक, सल्फर, मिट्टी और पत्थर, प्लास्टर के सामान, चूना और सीमेंट |
कपास |
6 |
कॉफी, चाय और मसाला |
परमाणु रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी और मशीनी उपकरण |
7 |
बुनी हुई फैब्रिक |
प्लास्टिक और उससे बने सामान |
8 |
वाहन और उनके पुर्जे और उपकरण |
विशेष बुने हुए फैब्रिक, टेक्सटाइल फैब्रिक, चित्र बने कपड़े, झालर, कशीदाकारी और गोटा |
9 |
खाद्य वनस्पति, सूरन |
मानव निर्मित रेशा |
स्रोत: भारतीय उच्चायोग, श्रीलंकाई दूतावास
इसलिए श्रीलंका का ये आर्थिक संकट भारत को एक अवसर मुहैया कराता है कि वो श्रीलंका में अपनी सद्भावना का प्रदर्शन करे और श्रीलंका सरकार को मनाए भी कि वो भारतीय हितों और संवेदनशीलता का सम्मान करे. श्रीलंका के हित और उसकी आकांक्षाएं चीन के साथ क़रीबी संबंधों में हो सकती है लेकिन ये भारत का दायित्व है कि वो इस संकट को लेकर श्रीलंका के साथ बातचीत शुरू करे. इस संकट को लेकर भारत जितनी देर करेगा उतना ही वो श्रीलंका को इस बात के लिए तैयार करेगा कि वो रियायत देकर दूसरे देशों, ख़ास तौर पर चीन, के साथ बातचीत करे.
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