Author : Shubhangi Pandey

Published on Oct 10, 2018 Updated 0 Hours ago

बीते तीन साल में चीन ने अफगानिस्तान को 7 करोड़ डॉलर के बराबर की सैन्य मदद और खासकर बदख्शां प्रांत को ध्यान में रखते हुए 9 करोड़ डॉलर की विकास संबंधी मदद दी है।

अफगानिस्तान में गुपचुप चीनी घुसपैठ के कई पहलू हैं

यह The China Chroniclesसीरीज की 67वीं कड़ी है।

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युद्ध के मारे अफ़गानिस्तान में अराजकता की स्थिति और उसकी रणनीतिक भूस्थिति देखते हुए इस देश में चीन की बड़ी तेज़ी से बढ़ती दिलचस्पी हैरानी की बात नहीं है। अफ़गानिस्तान में लगातार बिगड़ते सुरक्षा के हालात और इसके जो संभावित ख़तरे चीन के दीर्घकालीन आर्थिक और रणनीतिक उद्यम को झेलने पड़ सकते हैं, वह चीन के लिए एक झकझोर देने वाला अंदेशा है। लेकिन इस देश में और पूरे मध्य एशियाई क्षेत्र में चीन की बढ़ती संलिप्तता की एक और अहम वजह है — चीन के मुस्लिम वीगर बहुल प्रांत शिनजियांग से अफगानिस्तान की क़रीबी।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया और दुनिया भर की ख़ुफ़िया एजेंसियों में ऐसी रिपोर्ट्स आती रही हैं जिनसे इशारा मिलता है कि अफ़गानिस्तान के बदख़्शां प्रांत के वाखन गलियारे में चीन एक सैनिक अड्डा बना रहा है। हालांकि चीन ने अतीत में विदेशों में ऐेसे अड्डे नहीं बनाए हैं, और एक अफग़ान ‘पर्वत ब्रिगेड’ बनाने से जुड़ी अफवाहों का उसने खंडन किया है, लेकिन जिबाउता का उदाहरण उसके इस दावे के ख़िलाफ़ जाता है और अपने रणनीतिक लक्ष्यों को मज़बूत करने के लिए अपने आर्थिक प्रभाव और अपनी ताकत का इस्तेमाल करने की नई चीनी नीति की कलई खोल देता है।

6 सितंबर 2018 को चीन में अफ़गानिस्तान के राजदूत ने रायटर के साथ एक इंटरव्यू में कहा कि चीन अपनी ज़मीन पर अफ़गान सैनिकों को ट्रेनिंग देने को पूरी तरह तैयार है ताकि अफ़गानिस्तान के पहाड़ी वाखन गलियारे की पूर्वोत्तरी सरहद से अल क़ायदा और आईएस के आतंकियों को शिनजैंग में घुसपैठ करने से रोका जा सके। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट द्वारा प्रकाशित हाल की रिपोर्ट्स के मुताबिक, खंडन के बावजूद ‘चीन वाखन में ही सैनिक ट्रेनिंग कैंप बनाने की प्रक्रिया में है और इरादा वहां फौज की कम से कम एक बटालियन रखने का है जिसके पास ज़रूरी हथियार और सैनिक साज़ो-सामान होंगे।

मार्च 2018 में, इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप ने भी एक रिपोर्ट जारी की और ताजिकिस्तान के गोर्नो बदख़्शा स्वायत्त क्षेत्र में चीनी फौजियों की ठीकठाक उपस्थिति की पुष्टि की। यह क्षेत्र अफगानिस्तान के वाखन गलियारे से भी लगता है और चीन के शिनजियांग प्रांत से भी। इसलिए अफगानिस्तान में चीन की फ़ौजी हलचल को शिनजियांग के वीगर मुसलमानों को अपने साथ जोड़ रहे कट्टर इस्लामी समूहों को निशाना बनाने की रणनीति के साथ-साथ मध्य एशिया में अपने रणनीतिक और आर्थिक प्रभाव का दायरा बनाने की चीनी नीति के साथ मिलाकर देखे जाने की जरूरत है।

हाल ही में इस्लामाबाद में चीन और पाकिस्तान के विदेश मंत्रालयों के प्रतिनिधिमंडल की बैठक में ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर’ की महत्वाकांक्षी परियोजना को ‘पश्चिम’ की तरफ़ विस्तार देने का निर्णय हुआ। हालांकि इस विस्तार के ब्योरे सार्वजनिक नहीं किए गए, लेकिन चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इस साल के शुरू में एलान किया था कि अफगानिस्तान निस्संदेह सीपीईसी के विचार के दायरे में आ रहा है जो राष्ट्रपति शी चिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है। बीते तीन साल में चीन ने अफगानिस्तान को 7 करोड़ डॉलर के बराबर की सैन्य मदद और खासकर बदख्शां प्रांत को ध्यान में रखते हुए 9 करोड़ डॉलर की विकास संबंधी मदद दी है।

बीजिंग की ताजा रणनीतिक मुद्रा और उसके नीतिगत रुझानों को देखते हुए लगता है कि आने वाले कल को भी अफगानिस्तान को वित्तीय और फ़ौजी मदद का सिलसिला बड़ा होता दिख सकता है। इस इलाक़े में अपनी भौतिक उपस्थिति जमा कर चीन अफगानिस्तान के अलग-अलग इलाक़ों में हावी उग्रवादी गुटों और वहां की सरकार के बीच शांति का समझौता कराने की बेहतर हैसियत में होगा और इस शांति प्रक्रिया के अगुवे के तौर पर भारत को पीछे छोड़ देगा — और इस तरह एक वैध नेक अंतरराष्ट्रीय ताकत के तौर पर अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल करने की ओर एक क़दम बढ़ा देगा। अफगानिस्तान में अपना असर बढ़ाने के इरादे के साथ, चीन ने भारत को राज़ी कर लिया है कि वह अफगानिस्तान के सीमित क्षमता-निर्माण कार्यक्रम में साथ में शामिल हो, जबकि नई दिल्ली काबुल में सबसे अहम विकास-निवेशक है।

बहरहाल, चीन को कोशिश एक तरह का रणनीतिक संतुलन हासिल करने की लगती है। दूसरे अधिकतर राष्ट्रों के विपरीत, यह अफगानिस्तान की अस्थिरता को अपने लिए एक अवसर की तरह देख रहा है कि वहां अच्छी-खासी रणनीतिक घुसपैठ कर ले और साथ ही साथ कूटनीति का इस्तेमाल करते हुए इलाक़े में आपस में लड़ रहे अलग-अलग गुटों के बीच संधि करा दे। इससे भी ज़्यादा, चीन अब तक पाकिस्सतान को अपने बारहमासी दोस्त की तरह बनाए रखने में कामयाब रहा है और उसने चीन और अफगानिस्तान के बीच बढ़ती क़रीबी को लेकर पाकिस्तान के अंदेशे और उसकी असुरक्षा को दूर रखा है जबकि काबुल को वह अपने रणनीतिक कैलकुलस से जोड़ रहा है।

इतना कहने के बाद, बदख्शा में तेज़ी से बढ़ रहे सैन्यीकरण का सबसे अहम पहलू यह ख़तरा है कि निकाले गए ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) के वीगर लड़ाके जो अफगानिस्तान के बाहर से काम कर रहे हैं, चीन की घरेलू स्थिरता के लिए ख़तरा बन सकते हैं। आज के वीगर मुस्लिम बहुल शिनजैंग प्रांत को चीनी अधिकारी खुलेआम समाज के सामने खड़ी तीन खतरनाक बुराइयों के फूलने-फलने की जगह मानते हैं — अलगाववाद, आतंकवाद और इस्लामी अतिवाद। इसके अलावा विदेशी ज़मीन से आने वाले कट्टरतावादी तत्वों का एक ख़तरनाक अंदेशा भी मौजूद है जो अफगानिस्तान को लांचिंग पैड की तरह इस्तेमाल करते हुए चीन के वीगर बहुल इलाकों के साथ विघटनकारी रिश्ते बना सकते हैं। इसलिए अफगानिस्तान में चीन के लिए सैनिक कार्रवाई ज़रूरी है ताकि वह ईटीआईएम जैसे समूहों की आतंकी गतिविधियों को रोक सके, पश्चिमी सरहद पर निगरानी का एक तंत्र खडा कर सके और ताजिकिसितान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के साथ एक ठोस सुरक्षा तंत्र सुनिश्चित कर सके।

इन सबके बावजूद वाखन गलियारे में चीन की आने वाली नीति को आलोचनात्मक ढंग से परखने की ज़रूरत है। हालांकि एक स्तर पर इसकी प्रेरणा मूलतः कट्टरतावाद के ख़तरे से निबटना है, इस इलाके में चीन की दिलचस्पी अफगानिस्तान की उस रणनीतिक भूमिका की वजह से भी है जो वह मध्य एशिया में चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव को लेकर निभाने में सक्षम है। चीन के पुरज़ोर खंडन के बावजूद, ऐसे पर्याप्त सबूत हैं जो इलाक़े में एक निश्चित सैन्य जमावड़े की ओर इशारा कर रहे हैं — जो चीन के लिए चुनौती भी है और अवसर भी।

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