-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
एस्सेक्विबो क्षेत्र को लेकर वेनेज़ुएला और गुयाना के बीच बेहद पुराने विवाद में मौजूदा बढ़ोतरी चाय के प्याले में तूफान से ज़्यादा कुछ नहीं लगता है. इसका कारण वेनेज़ुएला की घरेलू राजनीति है.
वेनेज़ुएला और गुयाना के बीच तनाव बढ़ने पर ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुईज़ इनासियो लूला डा सिल्वा ने संघर्ष को रोकने के लिए मध्यस्थता की तरफ कदम बढ़ाया. पिछले दिनों एक सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति सिल्वा ने कहा कि, “अगर कोई एक चीज़ जो हम दक्षिण अमेरिका में नहीं चाहते हैं तो वो युद्ध है.” वैसे तो यहां कुछ देश घरेलू संघर्ष की स्थिति से जूझ रहे हैं लेकिन लैटिन अमेरिका पूरी 20वीं और 21वीं सदी के दौरान किसी बड़े युद्ध से दूर रहा है. यहां कई देशों को शामिल करके आख़िरी बार युद्ध 1879 में हुआ था जो प्रशांत का युद्ध (वॉर ऑफ द पैसिफिक) के नाम से जाना जाता है. ज़ाहिर है कि हाल के दिनों में वेनेज़ुएला-गुयाना के बीच सीमा विवाद को लेकर एक ऐसे क्षेत्र में असहज भविष्य की भावना हावी है जिसने 150 साल से कोई बड़ा अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष नहीं देखा है.
ज़ाहिर है कि हाल के दिनों में वेनेज़ुएला-गुयाना के बीच सीमा विवाद को लेकर एक ऐसे क्षेत्र में असहज भविष्य की भावना हावी है जिसने 150 साल से कोई बड़ा अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष नहीं देखा है.
वेनेज़ुएला और गुयाना शायद दुनिया में इस समय सबसे ज़्यादा एक-दूसरे के विपरीत अर्थव्यवस्थाएं हैं और दोनों एक-दूसरे के पड़ोसी भी हैं. गुयाना की अर्थव्यवस्था में 2022 में 62 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और इस तरह गुयाना “2022 में दुनिया में सबसे ज़्यादा वास्तविक GDP (सकल घरेलू उत्पाद) विकास” वाला देश बन गया. गुयाना के ठीक बगल में वेनेज़ुएला है जहां 2023 में महंगाई की दर बढ़कर 360 प्रतिशत हो गई जो कि दुनिया में सबसे ज़्यादा है. गुयाना का आर्थिक विकास उसी तरह सुर्खियों में है जिस तरह वेनेज़ुएला की आर्थिक गिरावट. फिर भी अपने तमाम शोरगुल के बावजूद दोनों देशों में हाल का सीमा विवाद चाय के प्याले में तूफान से ज़्यादा नहीं है.
मौजूदा विवाद एस्सेक्विबो क्षेत्र को लेकर है जो 61,600 वर्ग मील में फैला विशाल इलाका है और जहां की आबादी 1,25,000 है जिनमें से ज़्यादातर लोग अंग्रेज़ी बोलते हैं. इस इलाके का प्रशासन गुयाना के पास है लेकिन अब इस पर वेनेज़ुएला दावा कर रहा है.
मौजूदा विवाद एस्सेक्विबो क्षेत्र को लेकर है जो 61,600 वर्ग मील में फैला विशाल इलाका है और जहां की आबादी 1,25,000 है जिनमें से ज़्यादातर लोग अंग्रेज़ी बोलते हैं. इस इलाके का प्रशासन गुयाना के पास है लेकिन अब इस पर वेनेज़ुएला दावा कर रहा है. एस्सेक्विबो दो कारणों से ख़ास है: पहला कारण है कि ये बहुत बड़ा है और गुयाना के पूरे ज़मीनी क्षेत्रफल का लगभग दो-तिहाई है, यहां तक कि इंग्लैंड के आकार से भी बड़ा है; और दूसरा कारण है कि ये प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से पेट्रोलियम, से समृद्ध क्षेत्र है.
ये कोई नया ज़मीनी झगड़ा नहीं है. इसकी बुनियाद 18वीं सदी के आख़िर में साम्राज्यवादी दौर में पड़ गई थी जब अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम (UK) इसे वर्तमान समय के गुयाना और वेनेज़ुएला के बीच बांटने के लिए सहमत हो गए थे और एस्सेक्विबो क्षेत्र का ज़्यादातर हिस्सा गुयाना के प्रशासन को सौंप दिया गया. 21वीं शताब्दी के ज़्यादातर समय में ये विवाद शांत रहा लेकिन 2013 में जब गुयाना ने एस्सेक्विबो रीजन के समुद्र में पेट्रोलियम के प्रचुर भंडार की खोज की तो झगड़ा फिर से शुरू हो गया.
तनाव में मौजूदा बढ़ोतरी के पीछे वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो हैं जिन्होंने अभी तक इस मुद्दे का इस्तेमाल देश में अपने पक्ष में समर्थन बढ़ाने की कोशिश के तौर पर किया है. मादुरो ने अपने मक़सद को अधिक वैधता प्रदान करने के लिए वेनेज़ुएला में जनमत संग्रह भी कराया लेकिन इसमें बहुत कम लोगों के शामिल होने को देखते हुए लगता है कि वेनेज़ुएला के लोग हिंसक अपराध और आसमान छूती महंगाई जैसे घरेलू मुद्दों को लेकर ज़्यादा परेशान हैं. वैसे कुछ हद तक लगता है कि मादुरो देश में राजनीतिक विरोध और आने वाले चुनाव से लोगों का ध्यान भटकाने में कामयाब रहे.
ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस समेत कई मध्यस्थों और कम्युनिटी ऑफ लैटिन अमेरिकन एंड कैरिबियन स्टेट्स (CELAC) और कैरिबियन कम्युनिटी (CARICOM) जैसे क्षेत्रीय संगठनों ने वेनेज़ुएला और गुयाना के बीच तनाव कम करने में मदद की है. वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति मादुरो और गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली के बीच सेंट विंसेंट एंड ग्रेनेडाइंस के आरगाइल में 14 दिसंबर को मुलाकात हुई. इसमें दोनों नेता इस बात के लिए सहमत हुए कि “दोनों देशों के बीच मौजूदा विवाद समेत किसी भी परिस्थिति में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ धमकी या ताकत का इस्तेमाल नहीं करेंगे.” दोनों देशों की सेनाएं हाई अलर्ट पर हैं लेकिन उनके बीच तीन महीने के बाद एक बार फिर बातचीत होने की उम्मीद है. आरगाइल में सौहार्दपूर्ण माहौल में कूटनीतिक समझौते के बावजूद वेनेज़ुएला ने गुयाना की सीमा पर एफ-16 और सुखोई लड़ाकू विमानों के साथ 5,000 सैनिक तैनात किए हैं. इसके जवाब में गुयाना ने 29 दिसंबर को यूनाइटेड किंगडम के युद्धपोत (वॉरशिप) HMS ट्रेंट का स्वागत करके अपनी ताकत का प्रदर्शन किया. अगर युद्ध की नौबत आई तो वेनेज़ुएला की सैन्य क्षमता गुयाना से बहुत ज़्यादा है. ब्लूमबर्ग में प्रकाशित एक लेख के अनुसार 1 के मुकाबले 100 से वेनेज़ुएला के पक्ष में सैन्य संतुलन है. लेकिन फिर भी वास्तविक हमला करना आसान काम नहीं है. इसकी वजह ये है कि एस्सेक्विबो में बुनियादी ढांचा नहीं के बराबर है और इसे वेनेज़ुएला के हिस्से के रूप में जोड़ना एक सांस्कृतिक एवं भाषाई चुनौती भी होगी. ज़्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि वेनेज़ुएला के लिए एस्सेक्विबो पर कब्ज़ा करने का बहुत कम या ना के बराबर लाभ है लेकिन ये देखा जाना बाकी है कि मादुरो सत्ता बरकरार रखने के लिए नया जोखिम उठाते हैं या नहीं.
वेनेज़ुएला-गुयाना का संघर्ष आख़िरकार ख़त्म होता है या जारी रहता है, इस पर भारत को करीब से नज़र रखनी चाहिए. इसका कारण ये है कि सिर्फ कुछ साल पहले भारत ने अपने कुल तेल आयात का 12 प्रतिशत हिस्सा वेनेज़ुएला से ख़रीदा था.
वेनेज़ुएला-गुयाना का संघर्ष आख़िरकार ख़त्म होता है या जारी रहता है, इस पर भारत को करीब से नज़र रखनी चाहिए. इसका कारण ये है कि सिर्फ कुछ साल पहले भारत ने अपने कुल तेल आयात का 12 प्रतिशत हिस्सा वेनेज़ुएला से ख़रीदा था. वैसे तो मौजूदा समय में गुयाना भारत को तेल का निर्यात नहीं करता लेकिन बस कुछ ही समय की बात है जब गुयाना-भारत के बीच तेल के व्यापार के लिए बाज़ार की परिस्थितियां अधिक अनुकूल हो जाएंगी. इसके अलावा, भारत के साथ गुयाना के संबंध व्यापार की तुलना में ज़्यादा गहरे हैं. गुयाना में सबसे बड़ा जातीय समूह भारतीयों का है जिन्हें भारतीय-गुयानाई के रूप में जाना जाता है और जिनका हिस्सा वहां की जनसंख्या में लगभग 40 प्रतिशत हैं. फिलहाल के लिए भारत को किसी पक्ष का साथ देने की ज़रूरत नहीं है. उम्मीद करनी चाहिए कि दोनों देशों में बेहतर समझ कायम होगी और लैटिन अमेरिका 21वीं सदी में भी अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष से दूर रहना जारी रखेगा.
हरि सेशासायी ORF के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में विज़िटिंग फेलो हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Hari Seshasayee is a visiting fellow at ORF, part of the Strategic Studies Programme, and is a co-founder of Consilium Group. He previously served as ...
Read More +