Author : Kanchan Lakshman

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 27, 2025 Updated 0 Hours ago

बांग्लादेश में पिछले साल सत्ता परिवर्तन के बाद से कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन फिर से ताक़तवर होते जा रहे हैं. ऐसे में भारत विरोधी बयानबाज़ी तेज़ होने के साथ साथ सीमा पर भी स्थिति नाज़ुक होती जा रही है.

क्या बांग्लादेश फिर से कट्टरपंथ की ओर बढ़ रहा है?

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16 से 20 फरवरी 2025 को सीमा सुरक्षा बल (BSF) और बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड्स (BGB) की महानिदेशक स्तर की 55वीं बैठक हुई. इस दौरान कई मुद्दे सामने लाए गए. अगस्त 2024 में शेख़ हसीना सरकार के तख़्तापलट के बाद से दोनों बलों के बीच ये पहली उच्च स्तरीय बैठक थी. इस बैठक के दौरान दोनों देशों के अधिकारियों ने सीमा के आर-पार होने वाले अपराधों, सीमावर्ती इलाक़ों में BSF के कर्मचारियों और भारतीय नागरिकों पर बांग्लादेश स्थित अराजक तत्वों द्वारा किए जाने वाले हमलों, बांग्लादेश में भारत के उग्रवादी संगठनों की सक्रियता, सीमा पर मूलभूत ढांचा, सीमा पर एक क़तार वाली बाड़ का निर्माण और आपसी तालमेल से सीमा के प्रबंधन की योजना जैसे कई मुद्दों पर चर्चा की.

 

इस बातचीत के दौरान, ख़बरों के मुताबिक़ बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड्स ने सरहद के 150 गज के भीतर बीएसएफ द्वारा एक क़तार वाली बाड़ (SRF) के निर्माण पर ऐतराज़ जताया गया. BGB ने संयुक्त रूप से निगरानी और शर्तों पर फिर से वार्ता करने का प्रस्वात रखा. हालांकि, भारत बांग्लादेश के बीच सरहद पर 90 ठिकानों पर SRF का निर्माण कर रहे सीमा सुरक्षा बल ने शर्तों पर पुनर्विचार से इनकार कर दिया. BSF ने इसके लिए आपस में पहले हुई बातचीत के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि इस पर तो पहले ही सहमति बन चुकी है. उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड्स ने अपने यहां सत्ता परिवर्तन होने के बाद सीमा पर बाड़ लगाने पर आपत्ति जताई है.

 बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के साथ साथ सीमा पर बांग्लादेश के सीमा रक्षकों की हालिया हरकतों और बातचीत के दौरान उसके रुख़ ने भारत की पूर्वी सीमा पर उभरती चुनौतियों को रेखांकित किया है.

बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के साथ साथ सीमा पर बांग्लादेश के सीमा रक्षकों की हालिया हरकतों और बातचीत के दौरान उसके रुख़ ने भारत की पूर्वी सीमा पर उभरती चुनौतियों को रेखांकित किया है. इनमें उन कट्टरपंथी इस्लामिक तत्वों का उभार भी शामिल है, जिन पर पहले शेख़ हसीना की सरकार ने प्रभावी ढंग से नियंत्रण बना रखा था. इससे भी ज़्यादा फ़िक्र की बात तो बांग्लादेश में बढ़ती भारत विरोधी बयानबाज़ी है.

 

सीमा पर नाज़ुक होते हालात

भारत और बांग्लादेश की सीमा, कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों और सीमा के आर-पार सक्रिय आपराधिक संगठनों द्वारा घुसपैठ और तस्करी के लिए इस्तेमाल के लिहाज़ से नाज़ुक बनी हुई है. इस सीमा के कई हिस्से ऐसे हैं, जो सलाफ़ी विचारधारा वाले संगठनों की वजह से बेहद संवेदनशील हैं. बांग्लादेश के कट्टरपंथी मौलाना अक्सर पश्चिम बंगाल के मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी 24 परगना ज़िलों के अंदरूनी इलाक़ों का दौरा करते रहते हैं और धार्मिक परिचर्चाओं में हिस्सा लेते रहते हैं. सीमा पर मज़हबी संस्थाओं की बढ़ती तादाद के साथ साथ सीमावर्ती इलाक़ों में धार्मिक तौर-तरीक़ों में तब्दीली आती भी देखी गई है.

 

दोनों देशों की सीमा पर रहने वाले एक जैसी मज़हबी और भाषाई पहचान रखते हैं. इस वजह से बांग्लादेश के कट्टरपंथी तत्वों के लिए बंगाल की जनता के बीच घुलना मिलना और अपनी पैठ बनाना आसान हो जाता है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान बांग्लादेश से अवैध अप्रवास काफ़ी बढ़ गया है और इस वजह से असम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में आबादी की संरचना भी बदलती देखी जा रही है. मज़हबी संस्थाओं की बढ़ती तादाद और बांग्लादेश के रूढ़िवादी मौलानाओं के दौरों के साथ सोशल मीडिया पर उग्रवादी बंगाली साहित्य के विस्तार ने सीमावर्ती इलाक़ों में रहने वालों पर गहरा असर डाला है और इससे भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ गई हैं.

 ये संगठन सीमावर्ती इलाक़ों की साझा मज़हबी और भाषाई पहचान का दुरुपयोग करके पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में अपने ठिकाने स्थापित करते हैं और फिर अंदरूनी इलाक़ों में अपने नेटवर्क का विस्तार करते हैं.

बांग्लादेश के प्रतिबंधित संगठनों जैसे कि जमात उल मुजाहिदीन (JMB) और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (ABT) के टेरर मॉड्यूल का ख़ात्मा और पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कट्टरपंथी/रूढ़िवादी संस्थाओं के साथ उनके संबंध ये दिखाते हैं कि बांग्लादेश स्थित आतंकवादी संगठनों से ख़तरा कितना बढ़ता जा रहा है. ये संगठन सीमावर्ती इलाक़ों की साझा मज़हबी और भाषाई पहचान का दुरुपयोग करके पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में अपने ठिकाने स्थापित करते हैं और फिर अंदरूनी इलाक़ों में अपने नेटवर्क का विस्तार करते हैं.

 

इस्लामिक कट्टरपंथियों की बढ़ती ताक़त

अगस्त 2024 में सत्ता परिवर्तन के बाद से बांग्लादेश में भारत विरोधी आतंकवादी और कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों की गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं. सियासी बदलाव के इस दौर में कई कट्टरपंथी और आतंकवादी या तो सरकार की क़ैद से भाग निकले हैं या फिर उन्हें रिहा कर दिया गया है. इनमें अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के प्रमुख मुफ़्ती जशीमुद्दीन रहमान, इकरामुल हक़, ABT के भारतीय अभियान का प्रमुख जमात उल अंसार फिल हिंदा शर्क़िया, प्रमुख शमीम महफ़ूज़ और शेख़ असलम शामिल हैं. इसका नतीजा ये हुआ है कि आज बांग्लादेश में कट्टरपंथी और आतंकवादी संस्थाएं खुलेआम अपनी गतिविधियां चला रही हैं. प्रतिबंधित संगठन जमात उल मुजाहिदीन के दूसरे नंबर का नेता ग़ुलाम सरवर राहत को हाल ही में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस के साथ उस वक़्त देखा गया था, जब वो ढाका के अयानगर में एक तथाकथित ख़ुफ़िया नज़रबंदी शिविर के दौरे पर गए थे.

 

अगस्त 2024 के बाद से जमात उल मुजाहिदीन (JMB) ने अपनी संगठनात्मक गतिविधियां तेज़ कर दी हैं और वो बांग्लादेश के सबसे बड़े कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन हिफ़ाज़त-ए-इस्लामी (HeI) के साथ तालमेल की संभावनाएं भी तलाश रहा है. हिफ़ाज़त-ए-इस्लामी के संयुक्त सचिव मौलाना मोमिनुल हक़, जमात-ए-इस्लामी (JeI) के साथ मिलकर इस्लामिक संगठनों का एक साझा मंच स्थापित करने के लिए काम कर रहे हैं. इस संगठन की हाल में हुई कुछ बैठकों में पाकिस्तान के नागरिक भी शामिल हुए हैं. सत्ता परिवर्तन के बाद जमात-ए-इस्लामी ने ख़ुद को फिर से ताक़तवर बनाकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है. भारत की सुरक्षा एजेंसियों का आकलन है कि JeI ने हाल में हुई अपनी बैठकों में अपने समर्थकों को इस बात के लिए उकसाया कि वो जमात के मुखिया शफ़ीक़ुर रहमान की अगुवाई में बांग्लादेश में एक इस्लामिक मुल्क की स्थापना के लिए काम करें.

 बांग्लादेश के सुरक्षा बलों द्वारा संस्थागत तरीक़े से चटगांव के पहाड़ी इलाक़ों में बंगाली मुसलमानों को बसाया जा रहा है, जिससे वहां की आबादी की बनावट बदल रही है.

बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन में ख़िलाफ़ समर्थक बहुराष्ट्रीय इस्लामिक संगठन हिज़्ब-उत-तहरीर (HuT) ने भी काफ़ी अहम भूमिका अदा की थी. अब हिज़्ब-उत-तहरीर भी सामने आकर खुलकर देश भर में विरोध प्रदर्शन आयोजित कर रहा है. 7 मार्च 2025 को इस संगठन ने ढाका में ‘मार्च फॉर खिलाफ़त’ का आयोजन किया था. HuT को अंतरिम सरकार के कुछ सदस्यों जैसे कि आसिफ़ नज़रुल, नाहिद इस्लाम, आसिफ़ महमूद सजीब भुइयां और महफूज़ आलम से भी समर्थन मिल रहा है. हिज़्ब-उत-तहरीर के संस्थापकों में से एक नसीमुल ग़नी को गृह सचिव नियुक्त किया गया था. प्रतिबंध लगे होने के बावजूद HuT को सार्वजनिक रूप से अपनी ख़िलाफ़त की विचारधारा का प्रचार प्रसार करने की छूट मिली हुई है. ये संगठन नौजवानों को भर्ती करने पर ज़ोर देता है, ताकि वो धर्मनिरपेक्ष सरकार के मौजूदा ढांचे के प्रति उनकी नाख़ुशी का फ़ायदा उठाकर कट्टरपंथी इस्लामिक ख़िलाफ़त का विकल्प मुहैया करा सके. हिज़्ब-उत-तहरीर की गतिविधियों पर भारत की भी नज़र है. हाल ही में गृह मंत्रालय ने इस संगठन पर पाबंदी लगई है. नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (NIA) की जांच में पता चला है कि हिज़्ब की दिल्ली, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के कुछ शहरी इलाक़ों में मौजूदगी है. इन जगहों पर HuT नौजवानों को बरगलाने की कोशिश कर रहा है.

 

बांग्लादेश में एक और अहम बात ये हुई है कि अल क़ायदा से जुड़ा आतंकवादी संगठन हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी बांग्लादेश (HuJI-B) एक दशक तक बेजान रहने के बाद से फिर से उठ खड़ा हुआ है. HuJI-B ने हिफ़ाज़त-ए-इस्लामी में पैठ बना ली है और सत्ता परिवर्तन के बाद अब बांग्लादेश के कई क़ौमी मदरसे अब इस संगठन की तरफ़दारी करने लगे हैं. हरकत उल जिहाद ने सोशल मीडिया पर भी अपनी गतिविधियां काफ़ी बढ़ा ली हैं.

 

चिंता के अन्य कारण

चिंता की एक और बात, बांग्लादेश में मौजूद लगभग 13 लाख रोहिंग्या शरणार्थी हैं. क्योंकि उनके आसानी से कट्टरपंथ की ओर झुकने और आतंकवादी समूहों द्वारा भर्ती किए जाने की आशंका रहती है. पाकिस्तान के समर्थन वाली अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी, कुछ शरणार्थी शिविरों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कर रही है, ताकि वो ड्रग तस्करी के सिंडिकेट के साथ अपने संपर्क को मज़बूत कर सके और कट्टरपंथी रोहिंग्या शरणार्थियों का एक समर्पित हुजूम खड़ा कर सके और फिर सही समय आने पर भारत को निशाना बना सके. यही नहीं, भीड़-भाड़ वाले शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थी बेहतर हालात की तलाश में अक्सर कॉक्स बाज़ार और भाषण चार द्वीप से समुद्री और ज़मीनी रास्ते से भाग निकलते हैं और फिर वो त्रिपुरा, असम और पश्चिम बंगाल के रास्ते भारत में घुसपैठ करते हैं.

 

जातीय समूहों के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष की वजह से बांग्लादेश में चटगांव के पहाड़ी इलाक़े (CHT) में उथल-पुथल बनी हुई है. बांग्लादेश के सुरक्षा बलों द्वारा संस्थागत तरीक़े से चटगांव के पहाड़ी इलाक़ों में बंगाली मुसलमानों को बसाया जा रहा है, जिससे वहां की आबादी की बनावट बदल रही है. चटगांव की नाज़ुक स्थिति का भारत पर भी असर पड़ता है, क्योंकि ये इलाक़ा त्रिपुरा और मिज़ोरम से जुड़ा हुआ है. म्यांमार की सेना के अभियान की वजह से म्यांमार की नगा पहाड़ियों में दबाव महसूस कर रहे भारत के उग्रवादी समूह, चटगांव के पहाड़ी इलाक़ों (CHT) में अपने अड्डे बना सकते हैं.

 

कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों के उभार का असर पूरे बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों की बढ़ती तादाद के रूप में भी देखा जा रहा है. हालांकि, बांग्लादेश की सरकार अल्पसंख्यकों पर हो रहे ज़ुल्म से इनकार करती रही है. ऐसे में इस बात पर किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए कि बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड्स के महानिदेशक मुहम्मद अशरफ़ुज़्ज़मां ने हाल के दिनों में अल्पसंख्यकों पर हमले की बात से सिरे से इनकार करते हुए कहा कि ऐसी ख़बरों को मीडिया बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है.

 

पाकिस्तान की बढ़ती गतिविधियां

इन बातों का बांग्लादेश और पाकिस्तान के बदलते हुए रिश्तों से सीधा ताल्लुक़ नज़र आता है. सत्ता परिवर्तन के बाद से बांग्लादेश, पाकिस्तान के नज़दीक आया है. दोनों देशों के बीच फौजी, कूटनीतिक और व्यापारिक संबंधों का भी विस्तार हो रहा है. 1971 के बाद से पहली बार बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सीधा व्यापार शुरू हुई है. सामानों की पहली खेप लेकर पहला जहाज़ पोर्ट क़ासिम से रवाना हुआ था. लेफ्टिनेंट जनरल एस एम कमरुल हसन की अगुवाई में बांग्लादेश का एक प्रतिनिधिमंडल 13-14 जनवरी 2025 को पाकिस्तान के दौरे पर गया था और वहां इस प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर के अलावा आला फ़ौजी अधिकारियों से मुलाक़ात की थी. यही नहीं, बांग्लादेश ने मेजर जनरल शाहिद अमीर अफ़सर की अगुवाई में पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI के एक प्रतिनिधिमंडल को जनवरी 2025 में भारत से लगी सीमा के संवेदनशील इलाक़ों का दौरा करने की भी इजाज़त दी थी.

 बांग्लादेश में इस वक़्त जो राजनीतिक अस्थिरता है, वो भारत के सीमा प्रबंधन और व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर ख़तरा बन गई है.

ISI द्वारा बांग्लादेश के सामरिक क्षेत्रों में अपने ठिकाने स्थापित करने की कोशिशें, भारत के लिए ख़तरनाक हो सकती हैं. पाकिस्तान की रणनीति ये भी है कि वो बांग्लादेश की राजनीति में इस्लामिक पहचान को एक अहम तत्व के रूप में बढ़ावा दे. भारत के सुरक्षा बलों ने संकेत दिया है कि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद और हरकत उल जिहाद ए इस्लामी जैसे पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन, बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन का फ़ायदा उठाकर बांग्लादेश के कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठनों के साथ अपने पुराने रिश्तों के तार फिर से ज़िंदा कर रहे हैं, ताकि वहां से भारत विरोधी गतिविधियां चला सकें.

 

निदान

पिछले साल हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से बांग्लादेश में इस्लामिक तत्वों की ताक़त में बढ़ोत्तरी हो रही है. इसका मक़सद बांग्लादेश का और इस्लामीकरण करना है. इसके लिए इस्लामिक संगठन एक संयुक्त मंत बनाने के लिए काम कर रहे हैं, ताकि सत्ता पर क़ाबिज़ हो सकें और भारत को निशाना बना सकें. बांग्लादेश में इस वक़्त जो भारत विरोधी जज़्बात हैं, उनका इस्लामिक ताक़तें भरपूर फ़ायदा उठा रही हैं. वहीं, पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश इन हालात का इस्तेमाल इस इलाक़े में भारत और भारत के हितों को चोट पहुंचाने के लिए कर रहे हैं. बांग्लादेश में इस वक़्त जो राजनीतिक अस्थिरता है, वो भारत के सीमा प्रबंधन और व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर ख़तरा बन गई है.

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