महामारी की शुरुआत से ही इस तरह की बातें कही जा रही थीं कि भारत कोविड-19 से होने वाली मौतों का आंकड़ा काफ़ी कम करके बताएगा. सिस्टम की कमज़ोरी और अधिकारियों पर कार्यकुशलता दिखाने के दबाव को देखते हुए ये वाजिब चिंता है कि कोविड-19 से मौतों का सही आंकड़ा सामने नहीं आएगा. महामारी के असर का अनुमान लगाने के लिए दुनिया भर के रिसर्चर “ज़रूरत से ज़्यादा मौतों” का इस्तेमाल करते हैं यानी संकट के समय किसी भी वजह से वो मौत़ें जो एक ‘सामान्य’ वर्ष में ‘सामान्य’ हालत में होने वाली मौत से ज़्यादा हो.
भारत के मामले में 2020 की दूसरी छमाही तक काल्पनिक “ज़रूरत से ज़्यादा मौतें” और कोविड-19 से मौतों की मानी हुई कम गिनती बनावटी अनुपात तक पहुंच गई. विशेषज्ञ और पत्रकार ये साबित करने के लिए पूरी कोशिश करने लगे कि वास्तविक मौतों का आंकड़ा बताए गए आंकड़े से कई गुना ज़्यादा है. इस बात को एक तथ्य की तरह पेश किया गया कि भारत में कोविड-19 का सही मानवीय मूल्य एक ‘अदृश्य त्रासदी’ है. कुछ बनावटी रिसर्चर ने तो कुल चिकित्सकीय तौर पर प्रमाणित मौतों की वजह- ऐसी चीज़ जिसका कोविड-19 से होने वाली मौतों से बेहद कम लेना-देना है- का इस्तेमाल करके ये दिखाने की भी कोशिश की कि भारत में कोविड-19 से होने वाली मौतों को कम करके दिखाया जा रहा है.
इस बात को एक तथ्य की तरह पेश किया गया कि भारत में कोविड-19 का सही मानवीय मूल्य एक ‘अदृश्य त्रासदी’ है.
ये उम्मीद स्वाभाविक तौर पर की जा रही थी कि मौतों पर महामारी के संपूर्ण असर के व्यापक पैमाने के तौर पर जब सरकार की तरफ़ से सभी कारणों से होने वाली मौतों की जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी तो इन सभी अटकलों पर विराम लग जाएगा. वास्तव में मीडिया में कुछ इस तरह की रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें बताया गया कि 2020 में दिल्ली में एक तिमाही में, जब महामारी उग्र रूप धारण कर चुका था, मौत का आंकड़ा 2019 में उसी समय के दौरान मौत के आंकड़े से काफ़ी कम था. अभी भी किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने आधिकारिक तौर पर 2020 और 2019 के लिए नागरिक रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) से सभी कारणों से मौतों का आंकड़ा नहीं जारी किया है.
लेकिन केरल ने कुछ हफ़्ते पहले सभी कारणों से मौतों का आंकड़ा ये दावा करते हुए जारी किया है कि हर तरह की आशंका के विपरीत कोविड-19 से राज्य में मौतों का आंकड़ा बढ़ने के बदले 2020 में कुल मौतों की संख्या 2019 के मुक़ाबले 11% कम हो गई. राज्य के सीआरएस आंकड़ों के मुताबिक़ (ग्राफ 1) केरल में कुल मौतों की संख्या में काफ़ी कमी आई है. वास्तव में 2019 तक चार साल लगातार मौतों की संख्या बढ़ने के बाद 2020 में कुल मौतों की संख्या 2015 से पहले के स्तर पर पहुंच गई. सरकार के मुताबिक़ 2019 में 1,000 की आबादी पर 7.5 मौतें हुई और 2020 में महामारी के बावजूद 1,000 की आबादी पर 6.8 मौत हुई. ये आंकड़ा राज्य में महामारी से कथित मौतों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर सवाल उठाता है.
केरल सरकार दावा करती है कि ये कम संख्या महामारी के दौरान राज्य के प्रशासन द्वारा उठाए गए निरोधक और मुस्तैद क़दमों का नतीजा है. सरकार ये भी मानती है कि बाक़ी देश में सीआरएस के सही आंकड़े नहीं हैं क्योंकि कोविड-19 की वजह से बड़ी घटनाओं के रजिस्ट्रेशन में काफ़ी कमी देखी गई है. साथ ही 2019 के मुक़ाबले 2020 में राज्य में 92 प्रतिशत जन्म को ही रजिस्टर किया गया है तो ऐसे में मौत का आंकड़ा भी पूर्ण नहीं माना जा रहा है.
भारत के किसी राज्य से इस तरह के संभावनाओं के विपरीत आंकड़े पर ग़ौर करने की ज़रूरत है
इस तथ्य को देखते हुए कि कुछ देशों में 2020 में कुल मौतों की संख्या 2019 के मुक़ाबले 50 प्रतिशत ज़्यादा थी, अक्सर कोविड-19 से होने वाली मौतों की वास्तविक संख्या बताई गई संख्या से काफ़ी ज़्यादा, भारत के किसी राज्य से इस तरह के संभावनाओं के विपरीत आंकड़े पर ग़ौर करने की ज़रूरत है, वो भी ऐसे राज्य का आंकड़ा जहां रजिस्ट्रेशन सिस्टम काफ़ी अच्छा है. हालांकि राज्य को 2020 में कोविड-19 से होने वाली कुछ मौतों को छिपाते हुए पकड़ा गया था. सरकार के द्वारा मुहैया कराए गए उपश्रेणी स्तर के आंकड़े का इस्तेमाल करके 2019 से 2020 के बीच सभी 14 ज़िलों में सभी कारणों से मौतों के आंकड़े की तुलना की गई (टेबल 1). इसमें पाया गया कि सभी ज़िलों में मौतों के आंकड़े में कमी आई है जो पूरे राज्य को मिलाकर 26,849 कम मौतें दर्ज की गईं.
ग्राफ 1: केरल में कुल मौतों की संख्या (2015-2020)
District |
Recorded COVID-19 Deaths |
Total Deaths 2019 (CRS) |
Total Deaths 2020 (CRS) |
Difference (2020-2019) |
EKM |
390 |
21,920 |
19,602 |
-2,318 |
MPM |
385 |
22,159 |
20,633 |
-1,526 |
KKD |
394 |
27,180 |
24,132 |
-3,048 |
TVM |
747 |
32,678 |
28,904 |
-3,774 |
TSR |
394 |
30,450 |
27,386 |
-3,064 |
KLM |
265 |
21,204 |
18,652 |
-2,552 |
ALP |
303 |
17,231 |
15,463 |
-1,768 |
KTM |
183 |
20,667 |
17,918 |
-2,749 |
PKD |
171 |
19,075 |
17,681 |
-1,394 |
KNR |
258 |
19,493 |
17,813 |
-1,680 |
PTA |
90 |
12,576 |
11,145 |
-1,431 |
KGD |
93 |
7,691 |
7,337 |
-354 |
IDK |
33 |
6,919 |
6,287 |
-632 |
WYD |
70 |
4,739 |
4,180 |
-559 |
KERALA |
3,776 |
263,982 |
237,133 |
-26,849 |
Source: Local Self Government Department, Government Of Kerala, data as on 3rd February 2021.
ये मानते हुए कि 2020 में ज़्यादातर मौतें पहले से रजिस्टर्ड हैं, इनमें से कुछ गिरावट घटी हुई आर्थिक गतिविधि, आवागमन में कमी और लॉकडाउन की वजह से रोड ट्रैफिक या औद्योगिक हादसों में कमी का नतीजा हो सकती है. एक वजह संक्रामक बीमारियों से कम मौतें भी हो सकती है. लेकिन ये तथ्य बना हुआ है कि ऐतिहासिक रूप से केरल में संक्रामक बीमारियों की वजह से मौतों का अनुपात काफ़ी कम रहा है और 2019 में सड़क हादसों (मैप 1) की वजह से यहां सिर्फ़ 4,440 लोगों की जान गई. ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि 2020 में लॉकडाउन के बावजूद सड़क हादसों की वजह से मौत के आंकड़े में काफ़ी कमी नहीं आई और राज्य में क़रीब 3,000 लोगों की जान सड़क हादसे में गई. अगर राज्य में सभी तरह की दुर्घटनाओं से होने वाली कुल मौतों (2019 में 13,623) को भी ले लिया जाए तो ये 27,000 “कम मौतों” का आधा हिस्सा ही है. एक ऐसे राज्य में जहां मीडिया ने बिना सोचे-समझे दावा किया कि लॉकडाउन से जुड़ी चिंता की वजह से किशोरों की ख़ुदकुशी में बढ़ोतरी हुई है, वहां 2020 में कुल मौतों की संख्या में कमी महत्वपूर्ण लगती है.
भारत के इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था कि सीआरएस द्वारा इकट्ठा आंकड़े इतने महत्वपूर्ण हैं.
अगस्त 2020 में देश-विदेश के 200 से ज़्यादा शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों, पत्रकारों और सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों ने भारत सरकार से अनुरोध किया था कि सभी तरह की मौतों का आंकड़ा जारी किया जाए ताकि कोविड-19 की वजह से “ज़रूरत से ज़्यादा मौतों” की गिनती की जा सके. उनके मुताबिक भारत के इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था कि सीआरएस द्वारा इकट्ठा आंकड़े इतने महत्वपूर्ण हैं. अब जब भारत में कोविड-19 के संक्रमित मरीज़ों की संख्या के मामले में दूसरे सबसे बड़े राज्य केरल ने ज़िला स्तर पर 2020 और 2019 के लिए (वास्तव में 2012 तक) सभी तरह की मौतों का आंकड़ा जारी कर दिया है तो ये उम्मीद की जाती है कि प्रमुख भारतीय और वैश्विक संस्थानों का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेषज्ञ जवाब हासिल करने के लिए फ़ौरन आंकड़ों पर काम शुरू कर देंगे.
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