ये लेख निबंध श्रृंखला अग्निपथ योजना: बड़ा सुधार या तर्कहीन? का भाग है.
अब जबकि सरकार सैन्य बलों में योद्धा और ग़ैर-योद्धाओं, जिन्हें अग्निवीर कहा जाएगा, को चार साल के लिए भर्ती करने वाली अग्निपथ योजना को लागू करने पर अटल दिख रही है, तो बेहतर यही होगा कि इस योजना को लेकर बहस को भी अब नए चरण में ले जाना होगा जहां इसे कामयाब बनाने के तरीक़ों की चर्चा हो. इसकी राह में आने वाली चुनौतियों का अंदाज़ा लगाकर इसमें सुधार करने की बात की जाए. पूर्व सैन्य अधिकारियों और भारत के सैन्य बलों से जुड़े अन्य लोगों की ये आशंका तो सही है कि इस योजना से सेनाओ का पेशेवराना संतुलन बिगड़ने का डर है. हालांकि उन्हें सेनाओं के मौजूदा नेतृत्व पर इस बात के लिए भरोसा करना चाहिए कि उन्होंने इस योजना से जुड़ी तमाम चुनौतियों के बारे में पर्याप्त रूप से सोच विचार कर लिया होगा. हालांकि उन्होंने ये काम सरकार द्वारा तय की गई सीमा के भीतर रहकर ही किया होगा.
नए अवसरों की शुरुआत
अग्निपथ योजना के तहत सेवा के वर्षों, तनख़्वाह और भत्तों, और सेना की नौकरी के बाद समाज में अवसरों के बारे में सरकार ने अपना नज़रिया साफ़ तौर से सामने रख दिया है. इसलिए, बेहतर यही होगा कि हम इस योजना से जुड़े दो गहरे मुद्दों पर चर्चा करें, जो आपस में जुड़े हुए भी हैं. पिछले कई वर्षों से भारत के सामने अपनी युवा आबादी का लाभ उठाने की विशाल चुनौती खड़ी हुई है. क्योंकि देश में युवाओं की अच्छी ख़ासी आबादी रोज़गार के अवसर तलाश कर रही है. वैसे तो ऐसे युवाओं के कौशल विकास के लिए बनाई गई ‘स्किल इंडिया’ योजना, एक सही दिशा में उठाया गया क़दम थी. लेकिन, जितने बड़े पैमाने पर रोज़गार के अवसर पैदा होने की उम्मीद थी, वैसा हुआ नहीं. इसी तरह, महामारी के कारण जो आर्थिक सुस्ती आई, उस वजह से निर्माण के क्षेत्र में जितने रोज़गार पैदा होने की उम्मीद की गई थी, वैसा भी नहीं हुआ. ऐसे हालात में इस बात की आशंका हमेशा बनी हुई थी कि भारत के पास युवा आबादी के रूप में जो शक्ति है, वो कहीं ‘आबादी की तबाही’ में तब्दील हो जाए. आज जिस तरह से युवाओं के एक बड़े तबक़े को कुछ लोग अपने निजी हितों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, और पैसे के बदले में सामाजिक और सांप्रदायिक टकराव की स्थिति पैदा कर रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि हमारी युवा आबादी की बढ़त अब एक चुनौती में तब्दील होने लगी है.
अग्निपथ योजना के तहत सेवा के वर्षों, तनख़्वाह और भत्तों, और सेना की नौकरी के बाद समाज में अवसरों के बारे में सरकार ने अपना नज़रिया साफ़ तौर से सामने रख दिया है. इसलिए, बेहतर यही होगा कि हम इस योजना से जुड़े दो गहरे मुद्दों पर चर्चा करें
हाई स्कूल तक पढ़ाई कर चुके चालीस से पचास हज़ार तंदुरुस्त और उत्साही युवकों को देश के ऐसे प्रतिष्ठित संगठन, जिसे देश की अंदरूनी और बाहरी ख़तरों से निपटने की संवैधानिक ज़िम्मेदारी दी गई है, उसका हिस्सा बनाकर उनकी ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल करने वाली इस योजना के ऐसे कई सकारात्मक फ़ायदे हैं, जो शायद अभी नहीं देखे जा रहे हैं. आज भारत के सैन्य बलों में पूरे देश से भर्ती होती है. वो पूरे देश की नुमाइंदगी करते हैं; हालांकि, सेना ने संतुलन बनाने के लिए रेजीमेंट वाली परंपरा को बनाए रखा है, जो उसकी दुश्मन से लड़ने की क्षमता की रीढ़ है. अग्निपथ योजना से रेजिमेंट व्यवस्था और इसकी भावना पर कोई फ़र्क़ न पड़े, इसके लिए पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए. भले ही आज एक तबक़ा ये मांग क्यों न कर रहा हो कि सेना की मौजूदा रेजिमेंट व्यवस्था को ख़त्म करके उसे पूरी तरह से देशव्यापी रेजिमेंट व्यवस्था में तब्दील कर देना चाहिए. तीनों ही सैन्य बलों को अपने अपने स्तर पर अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना होगा. हो सकता है कि वायुसेना और नौसेना को अग्निवीरों की भर्ती करने में तुलनात्मक रूप से आसानी हो. लेकिन, उन्हें अपने प्रशिक्षण के संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा अग्निवीरों को कुशल बनाने में लगाना होगा, क्योंकि अग्निवीरों की नौकरी महज़ चार साल की ही रहने वाली है. वहीं, भारतीय थलसेना का विशाल आकार उसे इस बात की सहूलत देता है कि वो अग्निवीरों को युद्ध वाली और उन सहयोगी शाखाओं में तैनात करे, जिनमें भर्तियां पिछले कई साल से रुकी हुई हैं. थलसेना के लिए अग्निवीरों को युद्ध और शांतिकाल की तैनाती के लिहाज़ से इस्तेमाल करना आसान होगा, ख़ास तौर से इन्फैंट्री रेजिमेंटों में जो पारंपरिक रेजिमेंटल व्यवस्था का अटूट हिस्सा हैं.
योजना पर सवाल उठाने वालों का तर्क
पिछले कई सालों से सैन्य बलों की एक और बड़ी शिकायत ये रही है कि मौजूदा दौर में समाज को ये पता ही नहीं है कि सेना देश के लिए करती क्या है. अब जबकि अग्निवीरों का एक बड़ा हिस्सा, शॉर्ट सर्विस कमीशन के कुछ अधिकारियों के साथ सेना की नौकरी करके दोबारा भारतीय समाज की मुख्यधारा में लौटेगा, तो भारत के समाज और सैन्य बलों के बीच बेहतर संपर्क तैयार होगा. इस योजना पर सवाल उठाने वालों का तर्क है कि सिर्फ़ सेना से मिले अनुशासन से ही अग्निवीरों के लिए दूसरा कैरियर बना पाना आसान नहीं होगा, क्योंकि उनके पास ऐसे हुनर की कमी होगी, जो आम तौर पर समाज में दरकार होते हैं. ऐसे में उन्हें निचले दर्जे की कुछ मामूली नौकरियां हासिल करने के ही अवसर मिल सकेंगे. ये एक ऐसी चुनौती है जिसे सरकार और सैन्य बलों को कॉरपोरेट सेक्टर को साथ लेकर, पूरी गंभीरता से लेकर इसका जवाब तलाशना होगा, जिससे अग्निवीरों को सेना में नौकरी के बाद रोज़गार के अवसर आसानी से उपलब्ध हो सकें और उनका आत्मसम्मान बना रहे. जो अग्निवीर सेनाओं की नौकरी के बाद दोबारा पढ़ना चाहेंगे, उनकी पढ़ाई के लिए भी पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने होंगे. वो अपनी अंडरग्रेजुएट की डिग्री तो सेना में नौकरी से ही हासिल कर लेंगे. लेकिन, ग्रेजुएशन और इससे आगे की पढ़ाई में उन्हें मदद की ज़रूरत होगी.
हाई स्कूल तक पढ़ाई कर चुके चालीस से पचास हज़ार तंदुरुस्त और उत्साही युवकों को देश के ऐसे प्रतिष्ठित संगठन, जिसे देश की अंदरूनी और बाहरी ख़तरों से निपटने की संवैधानिक ज़िम्मेदारी दी गई है, उसका हिस्सा बनाकर उनकी ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल करने वाली इस योजना के ऐसे कई सकारात्मक फ़ायदे हैं
भारत के युवाओं और ख़ास तौर से दूसरे और तीसरे दर्ज़े के शहरों और ग्रामीण क्षेत्र के नौजवानों में बहुत सी प्रतिभाएं छुपी हुई हैं. अग्निवीरों के बीच उस प्रतिभा की पहचान करके उनकी युद्ध लड़ने की क्षमता का बख़ूबी इस्तेमाल किया जा सकता है. औसत के सामान्य नियम के मुताबिक़, सैन्य बलों को ये आकलन कर लेना होगा कि 1 से 2 फ़ीसद अग्निवीर बेहद शानदार और मेहनती योद्धा होंगे और उन्हें ख़ास ट्रेनिंग देकर मोर्चे पर किसी भी भूमिका के लिए तैयार करना होगा. वहीं बाक़ी के दस फ़ीसद या इससे कुछ ज़्यादा अग्निवीरों में मोर्चे पर आगे बढ़कर जंग लड़ने का जज़्बा दिखने की संभावना है. तय मानकों के हिसाब से 25 फ़ीसद अग्निवीरों को नौकरी पर बनाए रखने के साथ-साथ अग्निवीरों के इस तबक़े को सेना में बने रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. वैसे तो अग्निवीरों का प्रशिक्षण मौजूदा पैमानों और व्यवस्था के हिसाब से ही होगा. हालांकि इसे काफ़ी कम समय में पूरा करना होगा. लेकिन, प्रशिक्षण के दौरान युवाओं को सेनाओं के अनुशासन, सैन्य नैतिकता और मूल्यों का सबक़ अच्छे से सिखाना होगा. इसके साथ उन्हें भारत के हालिया सैन्य इतिहास और सेवाओं के अलग अलग शौर्य वाले तारीख़ के सबक़ भी अच्छे से याद कराने होंगे. अगला स्तर ये होना चाहिए कि अग्निवीरों को संवाद के कौशल, टीम में काम करने के तरीक़ों और अर्ध- तकनीकी क्षेत्र में वैज्ञानिक रूप से साबित किए गए हुनर को सिखाया जाना चाहिए.
अगला स्तर ये होना चाहिए कि अग्निवीरों को संवाद के कौशल, टीम में काम करने के तरीक़ों और अर्ध- तकनीकी क्षेत्र में वैज्ञानिक रूप से साबित किए गए हुनर को सिखाया जाना चाहिए
वैसे तो गृह मंत्री द्वारा अग्निवीरों को केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में भर्ती के दौरान तरज़ीह देने के ऐलान की तारीफ़ की जानी चाहिए. हालांकि अभी इस ऐलान की बारीक़ियों और इसके प्रभाव का आकलन करना जल्दबाज़ी होगा. चार साल की नौकरी के असर पर भी सवाल उठाए गए हैं और ये वाजिब भी हैं. क्योंकि इसमें से काफ़ी समय तो प्रशिक्षण अभियान चलाने का तजुर्बा हासिल करने और रेजिमेंट से जुड़ने वग़ैरह में भी ख़र्च हो जाएगा. इसके बाद सेना में अर्थपूर्ण योगदान देने के लिए अग्निवीरों के पास समय ही कितना बचेगा. ऐसे में पैसे बचाने और इसके सेना की सामर्थ्य पर पड़ने वाले असर के बीच संतुलन बनाने पर ध्यान देना होगा, भले ही इसके लिए अग्निपथ योजना के तहत सेवा के वर्ष चार साल से बढ़ाकर पांच या सात साल ही क्यों न करने पड़ें.
योजना से जुड़ी चुनौतियां
इस योजना की कामयाबी पूरी तरह से देशभक्ति और देश व सेना के प्रति कर्तव्य की भावना पर टिकी होगी. इस योजना पर राजनीति करने की कोई भी कोशिश तबाही लाने वाली हो सकती है और इससे सैन्य बलों के भीतर ध्रुवीकरण हो सकता है. ये राजनीतिक नेतृत्व और सेनाओं के नेतृत्व की देश के प्रति ज़िम्मेदारी है कि ये योजना, देश के विशाल मानवीय संसाधन का देश के हित में इस्तेमाल करने के मुख्य लक्ष्य को पूरा करने में सफल हो.
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